बाॅलीवुड की क्लासिकल फिल्में

वैसे तो सौ साल के हिन्दी सिनेमा के इतिहास मे बनने वाली फिल्मों की संख्या लाखों में है। परन्तु अगर क्लासिकल फिल्मों की बात की जाय वे ऊंगलियों में ही गिनी जा सकती है। क्लासिकल फिल्मों की श्रेणी मे रखे जाने फिल्मों की संख्या इतनी ज्यादा है कि टाॅप टेन का चुनाव करना बेहद मुशकिल है, किसी समीक्षक के लिए उनमे से 10 फिल्मों का चुनाव करना हो। अलग-अलग पंसद है। लेकिन अधिकांश समीक्षकों ने इन फिल्मों को क्लासिकल माना है।
1. दो आँखें बारह हाथ-1956 में मराठी फिल्म निर्माता व्ही शांताराम ने एक अद्वितीय फिल्म दो आँखें बारह हाथ बनाई ब्रिटिश राज में एक जेलर अपने जोखिम पर कुछ खूँखार कैदियों को सुधारने का बीड़ा उठाता है। लेकिन समाज के लालची ठेकेदार उसे ऐसा करने से रोकते है। जेलर अपने प्रयोग मे सफल तो हो जाता है पर इस कोशिश में उसकी जान चली जाती है।
2. दो बीघा जमीन-1956 में आई विमल राय द्वारा निर्देशित और बलराज साहनी व निरूपाराय, नान पालिसकर द्वारा अभिनीत दो बीघा जमीन। औद्योगिकीरण का दानव किस प्रकार गरीब बेबस किसानो मजदूरों और कुटीर उद्योगांे धंधों को निगल रहा है यह फिल्म इसका यर्थाथ रूप मे चित्रण करती है।
3. मुगले आजम-मुगले आजम शंहशाह अकबर के शहजादे सलीम और कनीज अनार कली की प्रेम कहानी व उसके द्वारा बादशाह के खिलाफ विद्रोह पर आधारित कमरूददीन आसिफ के शानदार ख्वाब का शाहकार है। 1961 में आई यह फिल्म अपने मँहगंे सेट, शानदार डायलाॅग, युद्ध सीन्स, मधुर गानों अभिनेताओं के जानदार अभिनय के लिये आज भी जानी जाती है। इसमे शंहशाह अकबर के रूप मे पृथ्वीराज कपूर ने अपनी जिंदगी का सबसे बेहतरीन अभिनय किया फिल्म ने दर्जनों कीर्तिमान स्थापित किये।
4. 1961 में आई गुरूदत्त की फिल्म प्यासा साहिर लुधियानवी और लेखिका अमृता प्रीतम की असफल प्रेम कहानी पर आधारित थी, फिल्म की कहानी असफल, प्रकाशित, निर्धन व मित्रों, प्रेमिका, समाज और परिवार द्वारा उपेक्षित और अपमानित कवि विजय की दर्दभरी जिदंगी पर आधारित थी, जिसे एक वेश्या सम्मान व सहारा देती है। और अपना सब कुछ बेचकर उसकी रचनाओं को प्रकाशित करवाती है सौभाग्य से उसकी रचनायें सुपरहिट हो जाती है, तो विजय के सम्मान व रचनाओं की रायल्टी लूटने के लिये वही सब मित्र, परिजन, प्रेमिका, विजय को मृत घोषित कर देते है जिन्हांेने विजय की जिंदगी मे केवल जहर ही बोया था सम्मान समारोह में जब विजय सशरीर पहुँच जाता है। तो उसके भाई मित्र सब उसे पहचानने से इंकार कर देते है।
5. मदर इण्डिया महबूब खान द्वारा निर्देशित 1957 में आई फिल्म मदर इडिया फिल्म की कहानी गाँव की विकलांग पति द्वारा परित्यक्त नववधु राधा पर आधारित है जो परिवार की गरीबी, कर्ज, सूदखोरी, शोषण से अकेली झूझती है। और अपने इज्जत, परिवार तथा गाँव व नारी के सम्मान की रक्षा करती है। फिल्म सूदखोरों द्वारा बेबस किसानों का साहूकार द्वारा निमर्म शोषण उत्पीड़न और उनके डाकू बनने की समस्या काभी मार्मिक चित्रण करती है।
6. गाइड 1965 विजय आनंद द्वारा निर्देशित गाइड एक भ्रष्ट्र सजायाफता व्यक्ति का महात्मा बनकर सूखे व अकाल पीड़ित किसानों की रक्षा के लिये आमरण तप करके प्राण त्याग देने के कथानक पर आघारित थी आर.के. नारायन के नोवेल गाइड पर बनी यह फिल्म देवानंद के जीवन की सबसे बेहतरीन फिल्म और पूरे जीवन का सार थी।
7. आनंद 1971 में आई ऋषिकेश मुखर्जी द्वारा निर्देशित और अभिताभ बच्चन व राजेश खन्ना द्वारा अभिनीत फिल्म एक डाक्टर की यादों पर आधारित थी जिसमे डाक्टर अपने एक जीवन, उत्साह व उल्लास से भरे कैंसर से मरते हुये हुये मरीज आनंद को याद करता है। आनंद खुद मरकर कइयों की जिदंगी खुशियाँ से भर जाता है। फिल्म का डायलाग आनंद मरा नही है। आनंद मरा नही करते' पूरी कहानी कह जाता है।
8. आँधी 1975 गुलजार की आंधी एक महिला पाॅलिटियशन और उसके अलग रहे डाक्टर पति के पुर्नामिलन पर आधारित कहानी थी चुनाव मे विपक्षी पार्टी महिला पर डाक्टर से अवैध संबधों का आरोप लगाती है। महिला पाॅलिटियशन पूरे समाज के सामने अपने पति-पत्नी के रिश्ते को स्वीकार करती है, उसकी यह सच्चाई उसके चुनाव में जीत का कारण बनती है।
9. श्याम बेनेगल ने 1974 में शबाना आजमी, अनंत नाग, साधू मेहर, व अमरीश पुरी को लेकर अद्वितीय फिल्म अंकुर बनाई जिसमे एक जमींदार एक निर्धन बेबस किसान की पत्नी से अवैध संबध बनाता है। जिससे ग्रामीण समाज का माहौल बिगड़ जाता है।
10. जुनून अभिनेता से निर्माता बनंे शशि कपूर ने 1979 में क्लासिक फिल्म जुनून बनाई देश मे गदर के समय अवध का एक नवाब एक अंग्रेज लड़की के प्यार मे अंधा होकर अपने देश, परिवार समाज के प्रति फर्ज को भूल जाता है। प्रेमिका तो उसे नही मिलती हाँ प्रेमिका की मोहब्बत जरूर मिल जाता हैं ।
अन्य क्लासिकल फिल्मों में राजकपूर की बरसात, अवारा व श्री 420, जागते रहो, चेतन आंनद की 1962 के भारत चीन युद्ध पर बनी हकीकत, एक विकलांग युवक की दूसरे अंधे युवक से सच्ची दोस्ती पर आधारित सत्येन बोस की दोस्ती, देवानंद की हम दोनो, गुरूदत्त की साहब बीबी और गुलाम, कागज के फूल, विमलराय की मधुमती, बंदनी, देवदास, परख, काबुलीवाला, मनोज कुमार की उपकार व पूरब और पच्छिम, राजेश खन्ना वहीदा रहमान की खामोशी, अभिताभ बच्चन की दीवार, रमेश सिप्पी की शोले, संजीव कुमार व रेहाना सुल्ताना की दस्तक, शक्ति सामंत की अराधना, कटी पतंग, अमर प्रेम, सुनीलदत की मुझे जीने दो व रेशमा व शेरा, ऋषीकेश मुखर्जी की मीना कुमारी अभिनीत मेरे अपने, शबाना आजमी की निशांत, गोविंद निहलानी की ओमपुरी, स्मिता पाटिल व सदाशिव अमरापुर की अर्धसत्य, धर्मेन्द्र, संजीव कुमार, की सत्यकाम, अनुपमा, जितेन्द्र, जया भादुरी, प्राण की परिचय, ख्वाजा अहमद अब्बास की सात हिन्दुस्तानी व गर्म हवा, नसीरूददीन शाह, फारूख शेख, स्मिता पाटिल, सुप्रिया पाठक की बाजार, सई पराजंपे की चश्मे बददूर, जाने भी दो यारों, सत्यजीत रे की शतरंज के खिलाड़ी, आमिर खान की लगान आदि यह लिस्ट इतनी छोटी नही है। कि जिसमें सभी फिल्में समा सके हो सकता है कि इसमें कुछ महत्वपूर्ण फिल्मंे छूट गई हों।


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