पक्षाघात

अनेक कारणों जैसे उच्च रक्तचाप, मस्तिष्क रोग, मस्तिष्क स्त्राव, हृदय रोग, रक्ताल्पता, आदि के प्रभाव से कुपित वायु जब शरीर के अधोभाग मे स्थित होकर शिराओं तथा स्नायुओं को सुखा कर सन्धि बन्धनो को शिथिल करती हुयी मनुष्य के दायें या बांये ओर की चेतना एवं क्रिया को नष्ट कर देती है। तो उस अवस्था को पक्षाघात या एकांग्ड. रोग कहते है। इसी प्रकार प्रकुपित वायु के सम्पूर्ण शरीर में व्याप्त होने पर सर्व शरीर की ंिक्रयाशीलता नष्ट हो जाती है। इसे पक्षवर्ध या अंगघात कहते हैं। कभी-कभी प्रकुपित वायु का प्रभाव चेहरे गले और मुख पर होता है इसे मुखाघात या फेशियल पैरालीसिस कहते हैं। केवल एक हाथ या एक पैर अर्थात दाहिनी या बांयी ओर और उसी तरफ मुख पर होने वाले वायु प्रकोप के प्रभाव सें दांयें या बांये ओर के हाथ पैर, चेहरे, जबान निष्क्रिय हो जातेे हैं। इस प्रकार के एकांगघात या अंगघात को पक्षाघात कहते हैं।
चेष्ठावह संस्थान के विक्षतस्थल के अनुसार अंगघात या पक्षाघात निम्नलिखित 4 प्रकार के होते हैं।
एकांगघात-(मेनोपेलेजिया) मस्तिष्क के शतकीय भाग मे विकृति होने से प्रायः एकांगघात होता है। इस भाग पर नाड़ी तन्तु एक दूसरे से दूर रहते है। अतः विकृति का प्रभाव कम नाड़ी तन्तुओं पर होंने से किसी एक अंग ही को ही घात होता है। यह उध्र्व चेष्ठावह नाड़ी कंदायु अंगघात या अपर मोटर न्यूरान्स पैरालीसिस का ही एक प्रकार है। इसमें वातयुक्त अंग की पेशियां कड़ी नही बल्कि शिथिल हो जाती है। अतः इसे फलैसिड प्रकार का अंगघात भी कहते हैं। यदि विकृति कठिन स्वरूप की होती है। तो पैरालीसिस टैªक्ट कि अनेक तन्तुओं (फाइवर्स) का विनाश हो जाने से स्तब्ध या स्पाष्टिक स्वरूप का अंगघात भी होता है। कभी कभी विकृति के अधिक व्यापक होने से पंगुता या अधरांगवात या पैराप्लैर्जिया की अवस्था भी उत्पन्न हो जाती है।
2. पक्षबद्ध अर्घांगवात (हेमीन्लैजिया) सेरिब्रल कार्टेक्स से निकलने के बाद नाड़ी तन्तुओं या नर्वस फाइर्बस लो इनटर्नल कैप्सलमेरी होकर जाना पड़ता हैै। इस स्थान में नर्व फाइवर्स या नाड़ी तन्तु उे दूसरे से निकटतम सम्पर्क मे रहते हैं। अतः वहां की विकृति से पक्षबद्ध या हेमीप्लैजिया हो जाता है। अर्थात शरीर के दक्षिण या वाम भाग के प्रत्येक भाग का घात होता है। यह अंगघात स्तम्भयुक्त होता है। इसका प्रभाव मुख पर नही होता है। क्योंकि मुख की नड़ियों के सूत्र इसें अ्रग्रभाग से प्रारंभ होते है। इसलिये इसका प्रभाव मुख से नीचे वाले भाग पर होता है। अर्थात मस्तिष्क के वाम पाश्र्व के तन्तुओं कि विक्षत होने से विकृति दक्षिण भाग के अंगों पर और विक्षत मस्तिष्क दाहिने भाग के तन्तुओं में होने पर वाम भाग के अंगों मे विकृति दिखाई देती है। युवाओं मे इसका कारण रक्तवाहनियों मे रक्त जमने के कारण होती है। इसके अलाचा धमनी संकोचक के कारण रक्तावरोध होने से भी तन्तुओं का विनाष होता है। मस्तिष्कावरण शोथ।
3. मस्तिष्काबुर्द (ब्रेन टयूमर) के दवाब से भी इन्टरनलकैप्सूल के तन्तुओं के विनाश होने से अधांर्गवात की अवस्था उत्पन्न होती है। छोटे बच्चो मे जंमकालीन अघात, राकमान्तिक मसूरिका या आन्त्रिक ज्वर के उत्सर्ग से यह रोग हो सकता है। मध्यम मस्तिष्क मे विकृति होंने से निरूद्ध भाग में अधांर्गवात की अवस्था उत्पन्न होती है। किन्तु साथ ही उसी दाये या वाम भाग की नेत्रचेष्टिनी आक्युलोमीटर नाड़ी का भी घात हो जाता है। इसे बेबर्स सिन्ड्रोम कहते हैं। पोन्स की विकृति के फलस्वरूप भी इस प्रकार का विपरीत पाश्र्वीय अंगघात होता है। इसमे समकक्ष की सप्तम नाड़ी तथा छठी नाड़ी का घात होता है।
4. सर्वांगघात (डाइप्लैजिया) यह जंमजात रोग है। इसेा प्रभाव सम्पूर्ण शरीर पर होता है। इस अवस्था मे पैरामिडिल डैªक्ट या तो पूरी तरह लुप्त होंती हैं या सुषुम्ना तक ही पहुंचती है। कभी-कभी यह ग्रीवा तक भी आ जाता है। घातक प्रभाव कुछ अंगों पर अधिक कुछ पर कम होता है। यह प्रभाव दोनों दांये-बांये अंगों पर ही पाया जाता है। यह स्तम्भयुक्त वात है।
4. अधरांगवात (पैराप्लैजिया) यह सुषुम्ना नाड़ी की विकृति का परिणाम है। सुषुम्ना से निकल कर दोनो अधोशाखा को सप्लाई करने वाली नाड़ियों के घात सन्धिओं मे प्रकुपित व्याप्त होकर मुख को पीड़ित करती है। जिससे यह रोग होता है। इसे अर्दित पक्षाघात कहते हैं। इसमे मुख का बांया या दांया भाग टेढा हो जाता है। गर्दन भी मुड़ जाती है। सिर कांपने लगता है। आवाज नही निकलती है। आंख, नाक, बाल, कान, दांतों मे भी विकृति आ जाती है
साथ ही विकृत पाश्र्व में गले मे पीड़ा, भोजन, जल निकलने में कठिनाई होती है। इसकी पूर्व अवस्था मे सारा शरीर रोमांचित एवं कम्पयुक्त होता है। आंखे मलिन रहती हैं मुख की त्वचा सुन्न रहती है तोद होता है। मत्था और हनु जकड़ जाते है। अधरांगवात दो प्रकार का होता है।
1. सामान्य अधरांगवात-
इसमे मुखमंडल की विकृति नही होती है। मुखके नीचे दांयी या बांयी ओर आधे कंधों नीचे विकृति आती है।
2. विशिष्ठ अधरांगवात-
इसमे दांये य बांये आधे अंगों के साथ मुखमंडल मे भी विकृति आती है।
आजकल लोंगों को पक्षाघात स्त्री या पुरूषों में उच्चरक्तचाप अत्याधिक रक्तस्त्राव, मस्तिष्क रक्तस्त्राव, ब्रेन टयूमर, अति रक्ताल्पता, हृदय रोग, दिमागी शोथ, मस्तिष्कावरण शोथ, शरीर पर विशेष अघात की अवस्था मे शरीर के दांये ओर अंगों हाथ, पैर, मुख, पेट, पसली, कमर या इसी प्रकार शरीर के बांये अंगों मे अधरांगवातउस भाग की मांस पेशियां, स्नायुतन्तु सभी कार्यहीन हो माते हैं। कभी-कभी वायु प्रकोप के कारण उपरोक्त अंगों के साथ सारे शरीर की क्रियाशीलता बन्द हो जाती है। इसे सर्वांगघात कहते हैं।
चिकित्सा-
1. एकौशध चिकित्सा।
2. लहसुन कन्द कल्प 4 ग्राम मक्खन 10 ग्राम 2 बार खिलायें।
3. रस लहसुन कन्द कल्प को तिल के तेल भून की 6 से 10 ग्राम की मात्रा मे सुबह शाम खिलायें साथ ही अनार का रस एक कप रोज दें।
4. बतख का मांस 100 से 150 ग्राम 250 मि.ली. दूध और दशमूल क्वाथ 20-25 मि.ली. सुबह शाम।
5. मांस रस 14 से 25 मि.ली. दशमूल क्वाथ 20 मि.ली. सुबह शाम नाश्ते के बाद दें।
6. भोजन बंद कर दें महारास्नादि काढा 25 मिली सुबह शाम नाश्ते के बाद दें। अनार का रस 100 मि.ली मुसम्मी का रस 150 मि.ली. मिला कर सुबह शाम 1 माह तक दें।
मिश्रित योग-
1.वृहत वातचिन्तामणि रस, ब्राहृमी वटी 1-1 गोली मधु से सुबह शाम दें।
2. महास्नादि काढा 25 मि.ली., समीर पन्तरा रस 60 सु 120 मि.ली. मधु से सुबह शाम 200 अनार का रस के साथ दें।
3. महाबलादि क्वाथ 20 मि ली एकांग वीर रस 120 ग्राम मधु से सुबह शाम दें व अनार का रस 150 मि.ली मुसम्मी का रस 100 मि.ली. मिला कर दें।
4. माष मोदक 30 ग्राम, दशमूल क्वाथ 25 मि.ली. व अनार का रस 200 मि.ली सुबह शाम दें।
5. मिल मेल 15 मिली. रसोत कन्द 2 ग्राम सेधंा नमक 1 ग्राम दो बार सुबह शाम दें।
6. रसराज रस 10 मि ग्रा. मधु से सुबह शाम दें। योगराज गुगुल 2-2 गोली सुबह शाम। अनार का रस 150 मि.ली मुसम्मी का रस 100 मि.ली. मिला कर 2 बार दें।
7. कस्तूरी 15 मि ग्रा, लहसुन 1 ग्राम, तिल तेल 15 मि.ली. दो बार सुबह शाम दें और अनार का रस 200 मि.ली. सुबह शाम दें।
8. महायोगराज गुगुल 1-1 गोली, वृहत वातचिन्तामणि रस 1 गोली महारास्नादि काढा 25 मि.ली सुबह शाम दें। व अनार का रस 150 मि.ली मुसम्मी का रस 100 मि.ली. सुबह शाम दें।
9. योगराज गुगल 2-2 गोली सुबह शाम, महारास्नादि काढा 25 मि.ली सुबह शाम दें। व अनार का रस मुसम्मी का रस 250 मि.ली. सुबह शाम दें।
10. ग्रंथादि तेल 10 ग्राम, गाय का दूध 200 मिली योगराज गुगल 2-2 गोली सुबह शाम व अनार का रस 200 मि ली सुबह शाम दें।
11. मांस का तेल 10 ग्राम महारास्नादि गुगल 2 गोली दो बार सुबह शाम दें।
12. रसोन पिंड 10 ग्राम, एरण्ड मूल क्वाथ 20 मि ली सुबह शाम दें व अनार व मुसम्मी का रस दोनो 250 मि.ली. सुबह शाम दें।


किसी योग्य डाक्टर राय अवश्य लें।


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