दूसरे विवाह से संतान

द्वादश भाव द्वितीय विवाह का है। तथा उससे 5 वे चैथा भाव द्वितीय संतान का है। चन्द्रकला नाड़ी मे द्वितीय विवाह नवम भाव से कही-कही द्वितीय विवाह छठे भाव से बताया गया है। अतः उनसे 5 वां लग्न व दशम भाव द्वितीय संतान के हुये। भृगु नाड़ी के अनुसार शुक्र पहली पत्नी चन्द्रमा व बुद्ध बुध द्वितीय पत्नी या द्वितीय पति के कारक ग्रह हैं चन्द्रमा या बुध से पांचवा भाव द्वितीय संतान का है। यदि लग्न या शुक्र से पांचवा भाव भारी पाप्रगस्त हो तथा लग्न, चैथा व दशम भाव शुभ व बली हो जातक को द्वितीय पत्नी से संतान होगी
1. जातक-11 जनवरी 1927। 3.53 प्रातः। लखनऊ। वृश्चिक लग्न 14 अंश, लग्न मे शनि 1 अंश, धनु मे सूर्य 26, बुध 16, केतु 14, मकर मे शुक्र 8, कुंभ मे गुरू 5, मेष मे चन्द्र 1 ,मंगल 18, मिथुन मे राहू। शेष दशा-6 वर्ष 6 माह, 9 दिन। 25 अप्रैल 1959 को पहला विवाह सात वर्ष तक निःसंतान 11 अप्रैल 1957 को द्वितीय विवाह जिससे 4 पुत्र व 4 पुत्री हुये ( केस न0 30 ) शुक्र शत्रु कर्तरी मे शुक्र से 5 वां भाव पापकर्तरी मे तथा शनि दुष्ट पर बुध से पंचम मे चन्द्र व लग्नेश होकर स्वग्रही मंगल कोई पाप प्रभाव ने द्वितीय पत्नी से संतान दी।
2. कन्या लग्न मे शुक्र, मंगल राहूू, वृश्चिक का चन्द्र मीन मे केतु, कर्क मे वक्री गुरू व सूर्य सिंह मे शनि बुध। क्षत्रिय लड़का पहली पत्नी ने गर्भावस्था मे आत्महत्या की द्वितीय पत्नी से एक पुत्र है। शुक्र नीच का मंगल राहू योग सर्प शाप के कारण पहली पत्नी अल्पायु व संतानहीन रही जबकि द्वितीय पत्नी कारक बुध से पंचमेश गुरू उच्च का व अपने मित्र सूर्य से युत है।
3. युवती- 19 अगस्त 1978। प्रातः 11. 12 मिनट। बहराइच। तुला लग्न, कुंभ मे चन्द्र, मीन में केतु, कर्क मे गुरू, सिंह मे सूर्य, बुध, शनि। कन्या मे राहू, मंगल, शुक्र। उप पद से द्वितीय मे सूर्य, शनि प्रथम विवाह का नाष, मंगल व शुक्र द्विस्वभाव राषि मे मंगल व शुक्र द्विस्वभाव राषि मे जातिका के दो विवाह देगा मंगल द्विस्वभाव राषि में दो पति योग। प्रथम पति की फेफडे़ के कैंसर से मृत्यु द्वितीय अन्र्तजातीय विवाह पति दो साल छोटा। पति कारक मंगल से आयु भावेष अष्ठमेष मंगल राहू युत पति अल्पायु और दुःमरण योग। द्वितीय विवाह नवम भाव से देखते हैं। पंचमेष (रोमांस व लवर कारक) की नवमेष से युति द्वितीय प्रेम विवाह नवमेष बुध तथा पंचमेष की युति द्वितीय पति उम्र मे छोटा। एक पुत्री है। सप्तमेश व प्रथम पति कारक मंगल 12 भाव मे नीच होकर शुक्र व राहू युत होकर सर्प शाप बना रहा है। राहू मंगल से 5वें भाव पर स्व दृष्टि डाल कर सर्प दोष से संतानहीन बना रहा है। जबकि सिंह के बुघ से पंचमेश गुरू जमांक मे उच्च का होकर पाप प्रभाव रहित है। जिसने द्वितीय पति से संतान दी।
4. एक जातक- 12 जनवरी 1964। समयः1.35 रात्रि लखनऊ तुला लग्न वृश्चिक मे केतु धनु मे बुध शुक्र, मकर मे सूर्य, कुंभमे शनि, मेष मे चन्द्र व गुरू, वृष मे राहू, कन्या मे मंगल। पहली पत्नी से 1987 मे विवाह जो मंदबुद्धि की थी उसे छोड़ दिया उससे कोई औलाद नही थी 1993 मे पुनः शादी जिससे 2 पुत्र व 2 पुत्रियां हुयी शुक्र बुध दोनो पापर्कतरी मे है। व चन्द्र युत गुुरू की नवीं दृष्टि से युत है। धनु के शुक्र पर गुरू दृष्टि व त्रिकोण मे चन्द्र युति अति द्यातक है। जबकि धनु के बुघ पर गुरू की दृष्टि लाभदायक है। अतः द्वितीय पत्नी से संताने हुयी
.जातक - 6 मई 1954। समय-प्रातः 4 बजे। लखनऊ मीन लग्न मेष मे सूर्य व बुध वृष मे शुक्र व चन्द मिथुन मे केतु, व गुरू तुला मे शनि वक्री धनु मे मंगल व राहू। मकर नवांश मे शनि वृष मे शुक्र केतु कर्क मे चन्द्र मंगल सिंह मे बुध तुला मे सूर्य गुरू वृश्चिक मे राहू। दोनों पत्नियों से संताने प्रथम पत्नी के निधन के बाद दूसरी शादी की। 1986 मे द्वितीय शादी । 1976 मे प्रथम शादी से दो पुत्र एक पुत्री द्वितीय पत्नी से एक पुत्री।
जातक:- 28 अगस्त 1968। प्रातः-7.30। लखनऊ। कन्या लग्न मे शुक्र व केतु, मीन मे राहू, मेष मे शनि मिथुन मे चन्द्र, कर्क मे मंगल, सिंह मे सूर्य, गुरू बुध। शुक्र द्विस्वभाव राशि मे। दो विवाह। लग्नेश सप्तमेश या द्वादेश युत। गुरू के आगे शुक्र व पीछे चन्द्र दो पत्नियां। लग्न व चन्द्र लग्न से सप्तमेश गुरू पापकर्तरी मे है।


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