राहू और वैवाहिक सुख

राहू और वैवाहिक सुख सुनने मे बड़ा अजीब सा लगता है। पर यह सच है कि कैसे कालपुरूष का दुःखकारक और पूर्व जंम के पापों का कारक ग्रह विवाह जैसा महान सुख दे सकता है। तमिल ज्योतिष में एक कहावत है। कि राहू से अधिक कोई वरदान नही देता और केतु से अधिक कोई शाप नहीं देता है, ज्योतिष मे कई ग्रन्थों मे वर्णन आता है। कि विवाह समय के ज्ञान के लिये गुरू, शनि व राहू के संयुक्त गोचर को देखें। प्रस्तुत लेख मे राहू से जुड़े कई ऐसे सूत्रों का वर्णन किया जायेगा जो वैवाहिक सुख प्रदान करते हैंः-
1. भृगु बिंदू-भृगु बिंदू का वर्णन भृगु नंदी नाड़ी में मिलता है। जिसकी सर्वप्रथम खोज स्व चदंलाल पटेल ने की थी और 1997 में आई अपनी पुस्तक प्रैडिक्टिंग थू्र नवांश एंड नाड़ी एस्ट्रोलाॅजी में उसका वर्णन किया था यह चन्द्रमा और राहू की जंमस्थ स्थितियों का मध्य बिंदू होता है। जिससें त्रिकोण में शुभ ग्रहों का गोचर शुभ फल और अशुभ ग्रहों का गोचर अशुभ फल देता है। राहू और चन्द्रमा के राशि अंशों को जोड़ो योगफल का 2 से भाग दो जो राशि अंश आये उसी राशि अंश पर भृगु बिंदू होगा लेखक गोयल के अनुसार भृगु बिंदू से द्वितीय भाव पर गुरू का वक्री या मार्गी गति से गोचर विवाह देगा यह सिद्धान्त आश्चर्यजनक रूप से सत्य पाया गया है।
4. भगृ नंदी नाड़ी का सूत्र-जातक की 21 वर्ष की आयु के बाद जब राहू, शनि या गुरू गोचर मे जब जंमस्थ मंगल, नवांश लग्न या नवांश लग्नेश से गोचर करे या देखेंतो जातक का विवाह होगा। यह विद्यी भी प्रमाणित है।. अगस्त नाड़ी के सूत्र:-
1. शनि गोचर मे मंगल से या उससे 7 वीं राशि पर गोचर करे या उसे देखे।
2. गुरू गोचर मे मंगल से या उससे 7 वीं राशि पर गोचर करे या उसे देखे।
3. शनि गोचर मे नवांश लग्न या नवांश लग्नेश से गोचर करे या देखें तो जातक का विवाह होगा।
4. गुरू गोचर में नवांश लग्न या नवांश लग्नेश से गोचर करे या देखें तो जातक का विवाह होगा।
अपवाद-
1. यदि राहू मंगल के साथ हो या उससे अगली राशि में हो गोचर का बिंदू मंगल से चतुर्थ राशि होगा।
2. यदि राहू मंगल से 7 वों हो तो गोचर का बिंदू मंगल ये 10 वें भाव की राशि होगा।
श्री निवास शास्त्री ने अपनें ग्रन्थ राहू केतु इन भृगु एस्ट्रोलाॅजी में लिखते कि गुरू अपने द्वितीय पर्याय (12-24) एवं तृतीय पर्याय में (24-36) जब गुरू राहू को स्पर्श करता है तो जीवन मे नये परिवर्तन आते हैं। और अक्सर जातक का विवाह होता है। गुरू और लग्न से द्वितीय भाव विवाह से उत्पन्न कुटुम्ब का होता है। तथा गुरू और लग्न से तृतीय भाव सप्तम से त्रिकोण काम या विवाह त्रिकोण का होता है। तथा वह पेज नम्बर 39 में लिखते है। कि जब राहू गोचर मे शुक्र को स्पर्श करता है तो और अक्सर जातक को स्त्री की प्राप्ति प्रेम संबध या विवाह होता है। तथा धनलाभ व सुख मिलता है गुरू शुक्र से राहू का गोचर पत्नी की प्राप्ति हो। गुरू द्वितीय और तृतीय पर्याय मे गुरू जब शुक्र से निकलेगा तो पुरूष जातक का विवाह होगा और स्त्री जातक मे गुरू द्वितीय और तृतीय पर्याय मे गुरू जब मंगल से निकलेगा तो स्त्री जातक का विवाह होगा।
1. लग्नेश के राशि अंशों मे राहू के राशि अंशों को जोड़ांे योगफल में से गुरू के राशि अंश घटाओं प्राप्त राशि अंशो पर राहू या केतु का गोचर विवाह समय बतायेगा यदि योग 12 राशि से अधिक हो तो उससे 12 राशि घटा कर प्राप्त राशि अंशो पर राहू या केतु का गोचर विवाह समय बतायेगा (साभार-प्लेनेटस इन आॅरविट) अपवाद - यदि राहू या गुरू 4 या 10 भाव मे हो तो यह नियम लागू नही होगा यदि राहू या गुरू चैथे भाव मे हो तो तो उपरोक्त प्राप्त संख्या मे 30 जोडो तथा प्राप्त संख्या पर राहू या केतु का गोचर विवाह समय बतायेगा यदि राहू या गुरू दशम भाव मे हो तो तो उपरोक्त प्राप्त संख्या मे 30 घटाओ तथा प्राप्त संख्या पर राहू या केतु का गोचर विवाह समय बतायेगा
राहू के दो लाभकारी योग
1. लग्न अंश में दशमेश के राशि अंश जोड़ो जो योगफल आये उसमे शनि के अंश जोड़ो जो राशि अंश प्राप्त हो उस पर या उससे त्रिकोण मे गुरू का गोचर जाॅब देगा।
2. लग्न अंश में राहू के राशि अंश जोड़ो जो योग फल आये उसमे से शनि के अंश घटाओ जो राशि अंश प्राप्त हो उस पर या उससे त्रिकोण मे राहू का गोचर जाॅब देगा।


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