रेजीडेंसी की प्रेतनी

मनोज पंत लखनऊ विष्वविद्यालय में बी.ए. का छात्र था उसके पिता पीताम्बर पंत नैनीताल के सम्पन्न किसान थे। वह हबीबुललाह हाॅस्टल में अपने रूम पाॅर्टनर कैलाश सक्सेना के साथ रहता था। उसके बगल के कमरे में दो सीनियर छात्र जितेन्द्र चैहान और उमाशंकर मिश्रा रहते थे। मनोज का कमरा हास्ॅटल के एकदम आखिरी कोने में पड़ता था। मनोज के एक दूर के रिश्ते के बहनोई लक्ष्मी दत्त जोशी सचिवालय में क्लर्क थे जिनके यहाँ मनोज अक्सर जाया करता था। ये दोस्त अक्सर शाम को कभी सिनेमा कभी-कभी बाजार कभी इधर उधर घूमने चले जाते थे। अगस्त 1977 की बात है। राखी के त्यौहार पर मनोज के सभी दोस्त अपने अपने घर गये हुये थे मनोज अकेला ही रह रहा था। भादो की एक शाम मनोज डालीगंज की मार्केट घूमनें निकला जब वह डालीगंज पुल पर पहँुचा तो उसने गोमती नदी के बीच एक टापूनुमा जमीन पर एक मंदिर देखा बरसात का मौसम था आसमान बादलों से घिरा था। मनोज नाव द्वारा मंदिर पहुँचा तो पाया कि यह सौ डेढ साल पुराना एक शिव मंदिर था। जिसका दरवाजा पूर्व मे था और मंदिर के चारों ओर खिड़िकियाँ बनी हुयी थी। उसने मंदिर में पूजा की फिर आस-पास का नजारा देखने लगा। नदी उफान पर थी। चारों ओर नदी का शान्त बरसाती पानी दृश्य बड़ा मनोरम था धीरे-धीरे बरसाती शाम का दूधिया उजाला हल्के-हल्के अंधेरे में बदलने लगा कितना वक्त गुजर गया कुछ पता ही नही चला। तभी अचानक तेज बारिश शुरू हो गई। वह मंदिर के अंदर चला गया। बाहर मूसलाधार बारिश हो रही थी। उसकी फुहारें अंदर आ रही थीं। मंदिर में घना अंधेरा फैला हुआ था अचानक आसमान पर बिजली कौंधी तो उसने मंदिर के कोने मे मानवाकृति सा साया देखा वह बुरी तरह चैंक उठा ध्यान से देखने पर पता चला कि वह 18-20 साल की बेहद सुन्दर लड़की थी सांचे में ढला मांसल बदन, गोरा रंग, बेहद खूबसूरत चेहरा तीखे नाक नक्ष, कुल मिला कर सौन्दर्य की मूर्ति लग रही थी। पर उसे आश्चर्य हो रहा था कि उसने तो किसी को मंदिर में आते नही देखा। वह मंदिर मे आई कब। मनोज ने उसे अपना परिचय देते हुये उसके बारे में पूछा तो पता चला कि वह रोज सुबह मंदिर में पूजा करने आती है। परन्तु आज किसी कारण सुबह ना आ सकी तो शाम को आ गई। तभी नाव वाले ने गुहार लगाई दोनो किनारे आ गये और बिना आपस में कोई बात किये अपने अपने रास्ते पर चल दिये। मनोज उस युवती के सौन्दर्य से अत्यन्त प्रभावित हुआ था। सफेद साड़ी ब्लाउज में भीगा हुआ उसका अद्वितीय सौन्दर्य बार-बार मनोज को उसकी ओर आकर्षित कर रहा था। पर मनोज उसका को नाम, पता पूछने का मौका नही मिला था। वह लड़की, उसका रूप और उसकी बातें कई दिनों तक मनोज के दिलो-दिमाग पर छायी रही वह लड़की मनोज की यादों मे बुरी तरह समा गई थी। धीरे-धीरे वह इस बात को भूल गया। उसी साल नवम्बर के आखिरी हफ्ते में मनोज के रूम पार्टनर कैलाश की तबीयत बेहद खराब हो और उसे हाॅस्टल वार्डन ने बलरामपुर अस्पताल में भरती करा दिया। मनोज, जितेन्द्र और उमाशंकर ही उसकी तीमारदारी और चाय, खाने की व्यवस्था करते थे। एक शाम जब मनोज खाना लेकर अस्पताल पहुँचा तो कैलाश ने आग्रह करके उसे रोक लिया बातों ही बातों में समय का पता ही नही चला रात के दस बज गये तो मनोज ने कैलाश से विदा ली और पैदल ही हाॅस्टल को चल दिया बाहर अंधेरा व घना कोहरा फैला हुआ था। वह बलरामपुर से दीवानी कचेहरी होता हुआ रेजीडेंसी के करीब पहुँचा चारों और भयानक सन्नाटा फैला हुआ था कई बीघा में फैले घने पेडों के बीच खड़े रेजीडेंसी के खामोश खण्डहर बड़े डरावने लग रहे थे स्ट्रीट लैम्प काफी दूर जल रहा था तभी मनोज रेजीडेंसी के दक्षिण पच्छिमी कोने में बने क्रिश्चयंस के कब्रिस्तान के सामने पहुँचा तो उसे पायल बजने की हलकी-हलकी अवाज सुनाई दी उसने चारों ओर देखा पर उसे कुछ नही दिखा परन्तु वह भयभीत हो गया फिर उसे किसी युवती की हँसने की मधुर आवाज सुनाई दी। मनोज ने फिर सहमते हुये चारों ओर देखा किन्तु फिर उसे कुछ नही दिखा उसकी घबराहट बेकाबू हो गई उसने सुन कुछ रखा था कि यह जगह भुतहा है यहाँ आत्माये भटकती हैं। कुछ लोग यहाँ बेहोश भी पाये गये थे जिनको अजीब से कुछ डरावने अनुभव हुये थे अचानक मनोज को लगा कि किसी युवती ने मधुर आवाज में उसका नाम पुकारा उसने फिर कांपते हुये सब तरफ देखा उसे अपने बाँयी ओर उसे एक सुन्दर लड़की खड़ी दिखाई दी घ्यान से देखने पर वह दंग रह गया यह तो वही लड़की थी जिसे वह गोमती नदी के मंदिर मे मिला था। उसे हैरानी भी हुयी उसने वहाँ चारो ओर देखा था पर उसे कोई नही दिखा था तो यह कहाँ से आ गई। और उसे बेहद खुशी भी हो रही थी कि जिसे वह महीनों से तलाश रहा था वह अचानक उसे मिल गई। उसने बताया कि वह अभी-अभी ही आई है। उसका नाम पायल है। वह खदरा में रहती है। वह लाटूश रोड की खन्ना मेडिकल साईन्टिक कम्पनी मे कैशियर है। रात के नौ बजे तक लौटती है परन्तु आज उसे कुछ ज्यादा देर हो गई दुुर्भाग्य से कोई रिक्शा तांगा भी नही मिला इसलिये पैदल ही चल दी। मनोज को आश्चर्य भी हुआ की इतने भीषण जाड़े मे भी वह साधारण कपड़े ही पहने है। पर वह कुछ ना बोला दोनो आपस में बात करने लगे आज डरते-डरते मनोज ने उसे अपना परिचय देते हुये उससे अपने प्रेम का इजहार कर दिया जिसे पायल ने सकुचाते और शर्माते हुये स्वीकार कर लिया दोनों बातों मे ऐसा डूबे कि पता ही नही चला कि कब रात का एक बज गया पायल ने चैंकते हुये कहा उई माँ इतनी देर हो गई अब में मम्मी को क्या जवाब दूँगी। उन दोनों ने एक दूसरे से विदा ली।
दो तीन कदम चलने के बाद मनोज उसे बाॅय करने को मुड़ा वह देख कर बुरी तरह घबरा गया कि वहाँ दूर-दूर तक कोई नही नजर आ रहा था वह किसी तरह अपने मन को समझाते हुये वापस आया अब वह अक्सर रेजीडेंसी जाने लगा चूँकि पायल ने उसे उसके आफिस आने से मना किया था और वही मिलने का वादा किया था। अतः वह रोज रेजीडेंसी जाता था इधर चार-पांच दिनों से पायल से उसकी मुलाकात नही हुयी थी वह बड़ा उदास व गुमसुम रहता था उसके दोस्त भी उसके व्यवहार मे आये इस परिवर्तन से चकित थे पर वे कुछ नही बोले। एक दिन पायल उसे उसी जगह मिली उसने बताया कि उसकी माँ की तबीयत खराब थी। इसलिये वह ना आ सकी उन दोनों ने उस दिन रेजीडेंसी के अंदर चबूतरे पर बैठ कर जी भर कर बातें कीं। उसके बाद वे लोग अक्सर देर शाम को रेजीडेंसी के भीतर मिलने लगे। और एक दिन उनके बीच मर्यादा की दीवार भी ढह गई। इघर मनोज के दोस्तों ने गौर किया कि वह रोज शाम बिना किसी को कुछ बताये कही चला जाता है। और देर रात को लौटता है। उनके पूछने पर गोलमोल सा उत्तर देता है। लेकिन उसके सादगी भरा व्यवहार सच्चाई के कारण उन्होने इस बात पर ज्यादा जोर नही दिया लेकिन कुछ दिन बाद उन्होंने देखा कि जो मनोज सुबह पाँच बजे उठ कर पूजा पाठ करता था वह 10 बजे सो कर उठता है। वह पहले की तरह नियम से कसरत और पढ़ाई भी नही करता है। और उसका शरीर कमजोर और पीला सा हो गया है। एक दिन मनोज को तेज बुखार आ गया तो उसके दोस्तों ने उसके जीजा को बुला लिया। तभी सब लोगों को यह देख कर आश्चर्य हुआ कि वह तेज बुखार की हालत मे पायल-पायल पुकार रहा है। पायल कौन है यह कोई नही जानता था। बुखार उतर जाने पर सबने उससे पायल के बारे मे पूछा तो उसने कहा कि वह किसी पायल को नही जानता है। लेकिन स्वस्थ होते ही उसकी हरकतें पहले जैसी हो गई रोज शाम निकल जाना आधी आघी रात तक लौटना अब उसके शरीर से गुलाब की भीनी-भीनी खुषबू आती थी जब कि वह कोई सेंट नही लगाता था परन्तु इधर उसके दोस्तों को कुछ दाल में काला नजर आया वह उस पर नजर रखने लगे जनवरी की एक कोहरे और धंुध से भरी सर्द शाम मे कैलाश ने उसका पीछा किया रात के करीब नौ बज रहे थे। उसने उसे रेजीडेंसी के वीरान खण्डहरों में जाते देखा वह बुरी तरह चैंक गया अंधेरी कुहासे भरी रात में रेजीडेंसी बड़ी डरावनी लग रही थी तभी यह देख कर कैलाश को अपनी दिल की धड़कन बंद होती सी महसूस हुयी जब उसने देखा कि मनोज मंत्रमुग्ध सा रेजीडेंसी में बने कब्रितान में जा रहा है। वह बेखौफ एक कब्र पर जाकर बैठ गया और ना जाने वह किससे बातें कर रहा है। यह देखकर कैलाश की रूह फना हो गयी जब उसने मनोज को किसी लड़की से बातें करते देखा उसे किसी लड़की की हँसने, खिखिलाने बातें करने की आवाज तो सुनाई दे रही थी पर उसे कोई नजर नही आ रहा था तभी उसने देखा कि मनोज किसी के साथ संभोग जैसी हरकतें करने लगा मानों वह किसी के साथ संभोग कर रहा हो। कैलाश की डर के मारे घिग्घी बंध गई सर्दी के मौसम में भी उसका पसीना छूट गया वह वहाँ से सर पर पैर रख कर भाग लिया वह समझ गया कि यह भूत-प्रेत का चक्कर है वह बदहवास सा हाॅस्टल पहुँचा सब उसकी हालत देख कर बुरी तरह चैंक गये सामान्य होने उसने जो बताया उसे सुन कर सबके होश फाख्ता हो गये उन सबको पक्का यकीन हो गया कि मनोज किसी प्रेतनी की चपेट में है। मारे घबराहट के उनको रात में नींद नही आई फिर वे मनोज से घीरे-धीरे कटने लगे एक दिन मनोज का एक्सीडेंट हो गया। वह शाम को हाॅस्टल पर ही रहा खबर पाकर मनोज के बहनोई उसे देखने आये तो कैलाश ने उन्हें उस रात घटी पूरी घटना बताई उन्होंने इस बारे में अपने एक सहकर्मी ब्रजभूषण श्रीवास्तव से बात की तो श्रीवास्तव जी उन्हें लेकर नरही के पण्ड़ित काली शंकर मिश्रा के पास ले गये सारी बात सुन कर उन्होने कहा यह स्पष्ट रूप से प्रेत बाधा का मामला है सब लोग हाॅस्टल पहुँचे उन्होने मनोज के नाखुन देखे और आँखों की पुतलियों में देखा और बताया कि यह किसी प्रेतनी की चपेट में है। जो धीरे-धीरे इसका खून पी रही है। उन्होने एक तावीज मनोज को पहनाई और एक सुरक्षा यंत्र उसकी बाँह में बांधा और कुछ पूजा सामग्री लिखी और तीसरे दिन अपने घर में मनोज का पूरा इलाज करने को कहा लेकिन उसी रात एक भयानक घटना घट गयी अचानक शाम होते होते मौसम का मिजाज बदलने लगा आसमान घने बादलों से घिर गया और देर शाम से तेज हवाओं के साथ तेज बारिश होने लगी सब लोग जल्दी से बिस्तर में दुबक गये रात के करीब 2 बजे का वक्त था अचानक तेज हवा के झोंके से कमरे का दरवाजा तेज आवाज के साथ खुल गया कमरे में गुलाब की भीनी-भीनी खुशबू फैल गयी मनोज की नींद खुल गई। उसने देखा कि दरवाजे के बाहर पायल खड़ी थी वह मनोज का नाम लेकर उसे बाहर बुलाने लगी मनोज उसे देख कर बुरी तरह भयभीत हो गया और वह बाहर नही निकला तो पायल कमरे में आ गयी। परन्तु जैसे ही वह मनोज के पास पहुँची तो चीखती हुयी पीछे हट गई देखते ही देखते उसका बेमिसाल सौन्दर्य भयानक रूप में बदल गया। बाल खुलकर बिखर गये आँखों की जगह दो काले गढढे दिखने लगे वह सफेद साड़ी में बिलकुल चुड़ैल लग रही थी। वह लाल क्रोधित नजरों से घूरती हुयी बोली ये क्या पहन रखा है तूने तुरन्त इसे उतारो कुछ देर बाद तेज आवाज में चीखती हुयी वहां से गायब हो गई। दूसरी रात कोई हादसा नही हुआ मनोज पूरी रात चैन से सोया। तीसरे दिन मनोज के बहनोई उसे पण्ड़ित काली शंकर के पास ले गये उन्होने मनोज को माँ काली की प्रतिमा के सामने बैठा कर पूजा की मनोज की दोनों कलाईयों में धागा बांधा और फिर मनोज पर पीली सरसों के दाने फेंकते हये पायल की आत्मा का आह्वाहन किया और पूछा बता कौन है तू कुछ देर बाद मनोज के मुँह से एक नारी स्वर गूँजा मैं पायल हूँ मैं एक मध्यमवर्गीय लड़की थी मैं खदरा में रहती थी मुझे अपने पड़ोस में रहने वाले एक लड़के से प्रेम हो गया। किन्तु मेरी माँ ने मेरी शादी कहीं और तय कर दी प्रेमी दूसरी जाति का था मैने अपने प्रेमी से कहा कि वह मुझे भगाकर मुझसें शादी कर ले पर वह राजी नही हुआ। मुझे उसके धोखे से बड़ा सदमा लगा। इसी बीच मेरी शादी टूट गई लड़के वालों को कही से मेरे प्रेम के बारे में पता चल गया था। इधर मेरे प्रेमी की भी शादी हो गई मैने प्रेम में निराश होकर गोमती में कूद कर आत्महत्या कर ली मेरा शरीर गोमती में ही प्रवाहित कर दिया गया। तब से सुदर्शन मैं युवको को अपना शिकार बना कर अपनी अधूरी इच्छा पूरी कर लेती हूँ। उस दिन गोमती नदी के मध्य बने उस मंदिर इसे जाते देखकर मैं इस पर मोहित हो गई। और मैने इसे अपना शिकार बना लिया। पण्डित जी के समझाने पर वह मनोज को छोड़ने को राजी हो गई। और बोली मुझे मुक्ति दे दो मिश्रा जी ने उसे तंत्र क्रिया द्वारा प्रेतयोनि से मुक्त कर दिया मनोज पूर्णतः स्वस्थ्य हो गया गोमती नदी का शिव मंदिर और रेजीडेंसी आज भी इस घटना की गवाही दे।
यह रहस्य-रोमांच कहानी का स्थान व पात्र पूर्णतः कालपनिक है।


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