शेफाली की उससे मुलाकात नही हुयी

शेफाली लखनऊ के एलिफिस्टन होटल में रिसेपनिस्ट थी उसकी डयूटी सुबह 11 बजे से रात 9 बजे तक होती थी उसके बाद विपिन गुप्ता यह जिम्मेदारी उठाते थे स्टाफ कार उसे कैपिटल थियेटर पर छोड़ देती थी जहाँ से वो चारबाग स्टेशन से आने वाली 8 नम्बर की सरकारी बस पकड़ कर वायरलेस चैराहे पर उतरती थी वहाँ से पांच मिनट के पैदल फासले पर महानगर मे उसका घर था उसके परिवार मे उसकी विधवा माँ व एक बड़ा भाई था जो बम्बई मे नौकरी करता था और कभी-कभी ही आ पाता था।
बरसात की एक रात शाम से ही लगातार बारिश होने के कारण शेफाली को होटल से निकलने मे देर हो गई, जब वो कैपिटल पहुँची 10 बज रहे थे किस्मत से पहुँचते ही बस आ गई खराब मौसम के कारण बस में केवल चार-पांच ही पैसेन्जर थे तभी उसकी निगाह छह फुट लंबे तगड़े बेहद खूबसूरत व हैण्डसम नवजवान पर पड़ी जिसने काफी महंगा सूट पहन रहा था देखने में वो किसी फिल्मी हीरो से कम नही लग रहा था शेफाली उसे देखकर पहली ही नजर में ही उस पर बुरी तरह फिदा हो गई वो किसी फाइल में मशगूल था निशातगंज चैराहे पर स्टापेज आने पर वो उतरा और चिनहट जाने वाली वाली बस में सवार हो गया सारे टाईम शेफाली उसे एक टक देखती ही रही रात भर शेफाली उसके बारे मे सोचती रही सुबह कब हुयी उसे पता ही नही चला अगले दिन बार-बार उस हैण्डसम का चेहरा शेफाली की आँखों के सामने आ घूम रहा था। आज शेफाली का किसी काम मे मन नही लगा अगले कई दिनों तक शेफाली की उससे मुलाकात नही हुयी शेफाली उसे एक हसीन सपना समझ कर भूल गई।
एक रात गुप्ता जी ने शेफाली को फोन करके रिक्वेस्ट की उन्हें अपने बीमार बच्चे को दिखाने डाक्टर के घर जाना है। डयूटी पर आने में कुछ देर हो सकती प्लीज शेफाली थोड़ा एडजस्ट कर लेना गुप्ताजी जी को आते-आते पौने दस बज गये शेफाली जब कैपिटल पहुँची तो रात के दस बजे थे जैसे ही शेफाली बस में चढ़ी उसे फिर वही हैण्डसम नवजवान दिखाई दिया शेफाली उसके साईड वाली सीट पर बैठ गई बीच में केवल गैलरी थी आज दोनांे की निगाहे दो चार हुयीं शेफाली ने महसूस किया कि केवल वो ही उस नवजवान पर फिदा नहीं है, बल्कि वो भी शेफाली की बेपनाह खुबसूरती से बुरी तरह प्रभावित है। लेकिन चाहकर भी दोनों के बीच कोई बात नही हुयी, इसके एक महीने बाद की बात है। होटल में एक शानदार पार्टी हुयी जिसकी व्यवस्था में बिजी रहने के कारण शेफाली को होटल से निकलते हुये काफी देर हो गई और वह रात दस बजे कैपिटल पहुँची आज फिर बस मे उसकी मुलाकात उस नवजवान से हुयी। आज शेफाली जब सीट पर बैठने लगी तो उसका पर्स हाथ से छूटकर नीचे गिर गया नवयुवक ने पर्स उठाकर शेफाली को दिया थैंक्स ए लाॅट शेफाली ने मुस्करा कर कहा मेंशन नाॅट इसे सम्हाल कर रखिये मिस शेफाली, शेफाली चोपड़ा और आप जी मुझे अमित कहते है, अमित ने बताया कि वो मल्टीनेशनल ट्रेवल एजेंसी मे सीनियर मैनेजर है। उसकी डयूटी साढे नौ बजे खत्म होती है। जो चिनहट के पास के पास रहता है। दोनांे ने अपने विजटिंग कार्डस एक्सचेंज किये शेफाली को लगा कि अमित से मिलकर दुनिया भर खुशियां उसकी झोली मे गिर गयीं है। अगले दिन अमित का फोन आया जिसका वो बेसब्री से इंतजार कर रखी थी ढेरों बात हुयी और मिलने का वादा हुआ आज शेफाली जानबूझ की होटल से देर से निकली बस में मुस्कराता हुआ अमित उसका इंतजार कर रहा था। उसके बाद एक बार जो मुलाकातों का सिलसिला शुरू हुआ तो प्यार के रंगीन सपनों, साथ जीने-मरने की कसमों शादी के हसीन वादों पर ही थमा, पर तभी कुछ ऐसा घटा कि शेफाली को अमित रहस्यमय शख्स लगने लगा दिसम्बर की एक शाम बातों ही बातों में शेफाली ने अमित को बताया कि उसे दशहरी आम बेहद पसंद है। अमित ने अगले दिन उसे एक पेटी भेंट की खोल कर देखने पर उसमें ताजे दशहरी आम थे, जाड़े के मौसम में दशहरी आम कैसे मिल सकते है। अमित ने बताया ये उसे एक विदेशी कस्टमर ने विदेश से लाकर दिये है। एक दिन शेफाली अमित के साथ चिड़ियाधर गई। शेफाली ने क्लर्क से दो टिकट माँगे तो वह शेफाली के चारों ओर ऐसे देखने लगा जैसे किसी को ढूँॅढ रहा हो, शेफाली के दुबारा टोकने पर उसने शेफाली को बड़ी अजीब निगाहों से देखते हुए झुंझलाते दो टिकट काटे एक दिन एक युवक होटल में अपने भाई से मिलने आया जो होटल में कुक था। शेफाली उसे तुरंत पहचान गई ये आठ नम्बर वाली बस का ड्राईवर था। उससे शेफाली ने पूछा तुम अमित बाबू को बस मे कहां से बैठाते हो, वो चैंककर बोला कौन अमित बाबू वही जो रात 10 बजे तुम्हारी बस से जाते हैं वो हैरानी से बोला, जी मैं तो उन्हें नही जानता शायद रामविलास बता सक,े वो कन्डक्टर है। शेफाली को ड्राईवर की बात पर बड़ा आश्चर्य हुआ।
एक शाम अमित और शेफाली हजरतगंज के क्वालिटी रेंस्ट्रा मे लंच पर गये लंच के बाद शेफाली वाशबेसिन पर हाथ धोने गई वाशबेसिन में सामने लग शीशे से पूरे रेंस्ट्रा का डायनिंग हाल नजर आता है। अचानक शेफाली की नजर शीशे पर गई उसे यह देखकर बड़ी हैरत हुयी डायनिंग टेबुल पर दो प्लेटों में खाना दिख रहा था पर अमित नजर नही आ रहा था वह बुरी तरह घबरा गई उसने पलट कर देखा तो यह क्या अमित तो अपनी सीट पर ही था लेकिन जब फिर से शेफाली हाथ धोने लगी तो अमित फिर नही दिखाई दिया। शेफाली पलटी तो अमित वही था, शेफाली ने पलटकर तीसरी बार आयने मे देखा तो अमित साफ दिख रहा था शेफाली की जान मे जान आई शेफाली ने सोचा या तो इस आयने मे कुछ दोष है या उसे कुछ वहम् हो गया है। मगर वो गहरी उलझन मे डूब गई पर सामान्य दिखने का प्रयास कर रही थी एक दिन बातों ही बातों मे अमित ने शेफाली को बताया कि तुम्हारे होटल मे मेरे मामाजी काम करते है। कौन विपिन गुप्ता ओह कुछ दिन बाद शेफाली को टायफायड ने पकड़ लिया डाक्टरों ने उसे दवा के साथ कम्पलीट बेडरेस्ट की सलाह दी एक रात करीब तीन बजे उसे यूरिन लगी जब लौटकर उसने लाइट बुझाई तो अंधेरे मे सूट पहने अमित नजर आया वो बुरी तरह घबरा गई बंद कमरे मे भला अमित कैसे आ सकता है उसने झट से लाइट जलाई तो कमरे मे कोई नही था उसे पुनः लाईट बुझाई तो फिर उसे अमित नजर आया एकदम साफ और बिलकुल पास वो बुरी तरह घबरा गई उसने पुनः लाईट जलाई लेकिन कमरे मे अमित का कही कोई नामोनिशान नही था उसने अपने मन को समझा कर तीसरी बार लाईट बुझाई तो इस बार अमित उससे सटा खड़ा था और उसकी सांसों की आहट को वह साफ महसूस कर रही थी वो मारे डर के बुरी तरह चीखी मम्मी ई ई ई और बेहोश हो गयी उसकी चीख सुनकर उसकी माँ रंजना देवी की नींद खुल गई वो भागी-भागी शेफाली के कमरे मे आयीं शेफाली को बेहोश देखकर उनके हाथ पांव फूल गये उन्होंने उसके चेहरे पर पानी के छींटे मारे कुछ देर बाद शेफाली को होश आया वो अपनी मम्मी से लिपटकर बुरी तरह रोने लगी उसने माँ को सारी बात बताई माँ ने शेफाली को समझाया यह कुछ नही केवल तुम्हारा भ्रम है। अक्सर बुखार और कमजोरी मे ऐसा हो जाता है अगले दिन आश्चर्यजनक रूप से बुखार उतर गया अगली रात सब कुछ सामान्य रहा तीसरी रात कोई शेफाली को सोते हुये महसूस हुआ कि कोई उसे आवाज दें रहा है। उसकी नींद टूट गई तो उसने देखा कि सामने बिस्तर पर अमित बैठा है उसने चैंककर पूछा, अमित तुम इस वक्त तुम कमरे मे कैसे आये खिड़की लेकिन इतनी रात तुम्हें मेरे कमरे कोई देख लेगा तो मेरी कितनी बदनामी होगी तुम्हें कुछ नही होगा मैंने तुमसे प्यार किया है। तुम पर मैं कोई आँच नही आने दूँगा मंै चाहूँ तभी तुम्हें कोई मुझे देख सकता है। शेफाली अमित की बात समझ नही सकी, पर तुम यहाँ क्यों आये हो मैं तो रोज तुमसे मिलती थी हां पर पिछले पांच दिनों से तुम नही मिली मैं तुमसे मिलने को बैचेन हो गया और खुद को यहाँ आने से रोक नही सका लेकिन तुम्हें मेरे घर का पता कैसे चला तुम्हारे होटल से। अमित अभी तुम यहां से जाओं नही तो मुसीबत हो जायेगी चला जाऊँगा पर तुम मुझसे वादा करो जल्दी ही मुझसे मिलोगी हाँ बाबा मिलूँगी! पर अभी तो तुम यहां से जाओं! अच्छा जरा एक गिलास पानी तो पिला दो बैठो लाती हूँ, शेफाली जब पानी लेकर आई तो कमरे मे कोई नही था शेफाली बुरी तरह घबरा गई अमित इतनी जल्दी आखिर कहां गायब हो गया वह अमित पर बुरी तरह झल्ला उठी तीन-चार दिन बाद वो अमित से मिली तो उसने पूछा कि उस रात तुम कहां चले गये तो अमित बोला मुझे किसी के आने की आहट सुनाई दी तो खिड़की से कूदकर भाग गया था। इसके कुछ दिन बाद शेफाली अमित के साथ बाॅटनिकल गार्डन घूमने गई तो वहां उसे उसकी क्लासमेट प्रीति शर्मा मिल गई जो अपनी नवविवाहित बहन और जीजा के साथ घूमने आई जीजा जी के हाथ में कोडक कैमरा था जिससे वे आस-पास के खूबसूरत नजारों को कैमरे मे कैद कर रहे थे। प्रीति ने अमित ओर शेफाली को अपनी दीदी और जीजा जी से मिलवाया दोनों ने साथ खूब मस्ती की जीजाजी ने सबके कई ग्रुप फोटोग्राफ भी लिये। इसके कुछ दिन बाद एक रात शेफाली की डयूटी खत्म होने वाली थी कि एक एजूकेटेड नवजवान ने शेफाली से पूछा गुप्ताजी हैं, कब तक आयेंगें जी वो तो साढे नौ बजे तक आते हैं तशरीफ रखिये आप कौन जी मैं उनका भान्जा अमित हूँ। शेफाली बुरी तरह चैंक गई वो बोली तुम अमित कैसे हो सकते हो अमित से तो मेरी मुलाकत रोज होती है। युवक बोला आपको जरूर कोई गलतफहमी हुयी है मैं ही गुप्ता जी का भान्जा अमित हूँ, कुछ ही देर मे गुप्ताजी आ गये अमित ने उनके पैर छुये गुप्ताजी ने भी तस्दीक किया कि यही उनका भान्जा अमित है। तो आपका कोई दूसरा भान्जा मिला होगा, मेरा कोई दूसरा भान्जा नही है हाँ तीन भान्जियां जरूर है। शेफाली बदहवास सी हो गई। अगर यह अमित है, तो वो कौन है? जो उससे अमित बनकर मिलता है, किसी तरह वह घर पहुँची धीरे-धीरे उसका मानसिक संतुलन बिगड़ने लगा, उसे नींद में चलने की बीमारी लग गई दिन में ना जाने किससे बातें करती रहती थी, अक्सर अकेले में अमित-अमित बड़बड़ाती थी कभी-कभी रात मंे नींद मंे घर से निकल जाती काफी दूर जाने पर उसे होश में आती और रात वाली कोई बात याद नही आती थी।
एक रात शेफाली की माँ की नींद खुली तो उन्होने देखा कि शेफाली नींद मे छत पर जाने वाली सीढी पर जा रही है उन्हांेने शेफाली को आवाज दी! शेफाली ने तो जैसे सुना ही नही माँ पीछे-पीछे गई सारा मोहल्ला सन्नाटे व खामोशी मे डूूबा हुआ था किसी भी खतरे से बेखबर शेफली छत की चाहदीवारी पर चल रही थी यदि माँ ने तुरन्त उसका हाथ खींच नहीं लिया होता निश्चित रूप से वो छत से गिरकर मर जाती गिरते ही शेफाली होश में आ गयी खुद को छत पर देखकर मारे डर के माँ से लिपट कर बुरी तरह रोने लेगी शेफाली के नींद मे चलने की बात सारे मोहल्ले मे आग की तरह फैल गई। 9 जनवरी 1975 की रात थी कई दिनों से शीतलहरी चल रही थी आसमान पर बादल छाये हुये थे। शाम से हल्की-हल्की बारिस हो रही थी शेफाली ने सपने मे देखा कि अमित कमरे मे सामने खड़ा उसे अपने पास बुला रहा है! शेफाली उठी और उसके सीने से लिपट गई दोनों प्रेमी युगल आकाश में पक्षी की तरह उड़े जा रहे थें तभी सपना बदल गया वो अमित के साथ कार मे किसी हाईवे पर सफर कर रही थी दोनों की नई-नई शादी हुयी थी दोनांे बेहद खुश थे तभी अचानक सामने से आकर एक तेज रफ्तार ट्रक ने कार को टक्कर मार दी इस भीषण टक्कर से कार हवा मे 7-8 फुट उछल गई शेफाली चिल्ला उठी अमित बचो तभी सपना टूट जाता है। यह कैसा भयानक सपना था वो अपने मन को समझाती है सपने तो सपने होते है। इनका हकीकत से कोई वास्ता नही होता है। तभी उसे सामने अमित खड़ा दिखाई दिया। वो सब कुछ भूलकर अमित की बाहों मे समा गई। अमित तुम कहाँ चले गये थे मैंने बहुत बुरा सपना देखा था मैं जानता हूँ अब तुम्हें डरने की कोई जरूरत नही है। आओं चलें शेफाली घर का दरवाजा खोल कर अमित के पीछे-पीछे चल देती है। बाहर हल्की-हल्की बारिस हो रही थी रात के दो बजे का समय था सारे मकान व सड़कें वीरान थीं खामोश व सन्नाटे मे डूबी हुयी थी तेज हवा और बारिस का शोर फैला हुआ था शेफाली रात के सन्नाटे मे दुनिया से बेखबर चली जा रही थी दूर-दूर तक कोई नजर नही आ रहा था मोहल्ले का एक युवक राकेश जो शेफाली की नींद में चलने की बीमारी से वाकिफ था ओडियन से पिक्चर देखकर लौट रहा था शेफाली को बरसाती रात मे इस तरह जाते देख कर वो सारा माजरा समझ गया वो शेफाली का पीछा करने लगा शेफाली के आगे एक सफेद छाया चल रही थी जो कभी दिखती कभी गायब हो जाती थी! शेफाली वायरलैस चैराहा, गोल मार्केट चैराहा होते हुये निशातगंज रेलवे क्रसिंग पहुँची तो बारिश ने तूफान का रूप धारण कर लिया तेज हवा के झख्खड़ चल रहे थे रह-रहकर बिजली कड़क रही थी, सम्मोहित सी शेफाली चली जा रही थी। वो निशातगंज पुलिस चैकी होते हुये गोमती नदी की तरफ जाने लगी लेकिन अचानक वो गोमती नदी के कुछ पहले बांये हाथ वाले रास्ते पर मुड़ गई यह वीरान रास्ता तो पेपर मिल होते हुये उजरियाव गांव जाता था इस रास्ते पर दिन मे भी कोई जल्दी-जल्दी नही आता था दोनों ओर घने उँचे पेड़ अंधेरा और भयानक मौसम फिर भी राकेश दिल कड़ा करके चला जा रहा था राकेश को अपनी पीछा करने की बेवकूफी पर बड़ा गुस्सा आ रहा था तभी राकेश की आँखें फटी गई मारे भय के उसके दिल की धड़कन बेकाबू हो गई! शेफाली इस रोड पर बाँये हाथ मे बने ईसाईयों के कब्रिस्तान के अंदर चली गई शेफलाी अंदर चलती हुयी एक कब्र के सामने खड़ी हो गई कब्र को घूरते हुये उसके मुँह से एक चीख निकली अमित वो उस कब्र पर गिर गई राकेश भी इस खौफनाक नजारे को देख कर बेहोश हो गया अगले दिन कब्रिस्तान के चैकीदार ने निशातगंज पुलिस चैकी मे कब्रिस्तान एक महिला व एक युवक की लाशें पड़े होने की सूचना दी पुलिस ने मौके पर जाकर राकेश को जिंदा पाकर जिला अस्पताल मे भर्ती करवाया और शेफाली की लाश का पोस्टमार्टम करवा कर उसे रंजना देवी को सौंप दिया शेफाली के अंतिम संस्कार मे शामिल होने आई उसकी सहेली प्रीति ने बताया कि शेफाली उसे अपने दोस्त अमित के साथ बाॅटनिकल गार्डन मे मिली थी उस समय उसके जीजा ने हम सब के कई फोटो खींचे थे पर हैरानी की बात यह थी कि सभी फोटो में शेफाली तो नजर आ रही थी पर अमित नजर नही आ रहा था पुलिस जाँच मे पता चला कि जिस कब्र पर शेफाली पाई गई थी वो किसी अमित फ्रान्सिस की थी! उसके बगल बाली कब्र अमित की पत्नी सिल्विमा फ्रन्सिस की थी दोनों कब्रों पर मृत्यु की तिथी लिखी थी 9 जनवरी 1950।
इसी दिन शेफाली का जंम हुआ था कब्रिस्तान के पुराने रजिस्टर के मुताबिक अमित मकबरा रोड लालबाग का निवासी था पुलिस उसके घर पहुँची जहाँ उन्हें दो बुजुर्ग मिलेे जिन्होंने पुलिस को बताया कि अमित उनके तीन भाईयों मे सबसे छोटा था जो पेशे से इंजीनियर था। एक महीने पहले ही उसकी शेफाली से शादी हुयी थी 9 जनवरी 1950 की रात वो अपनी नवविवाहित पत्नी के साथ कार द्वारा कानपुर से लौट रहा था कि एक तेज रफ्तार ट्रक ने उसकी कार को टक्कर मार दी दोनांे की मौके पर ही मौत हो गई थी। अमित के भाईयों ने जब रंजना देवी के घर आकर शेफाली की फोटो देखी तो वो बुरी तरह चैंक गये शेफाली की फोटो हूबहू उनके भाई की मृत पत्नी से मिलती थी जो 25 साल पहले मर चुकी थी अखबार मे छपी शेफाली की फोटो और मौत की खबर को पढ़कर चिड़ियाघर का टिकट बाबू पुलिस के पास आया उसने बताया कि यह लड़की कई महीनो पहले चिड़िया घर आई थी इसने मुझसे दो टिकट कटवायें पर यह अकेली थी इसके साथ कोई दूसरा नही दिख रहा था कहते है। कि आज भी महानगर की अंधेरी बरसाती रातों में कभी-कभी सड़कों पर शेफाली की रूह भटकती दिखाई दती है। अपने अमित की तलाश में।
रहस्य-रोमांच की इस कहानी के स्थान व पात्र पूर्ण काल्पनिक


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