वो मणिधारी सांप था

भारत में सर्प को मत्र्य देवता (नागदेवता) का दर्जा प्राप्त है जो मनुष्य या जीव तप, यज्ञ, पुण्य कर्म करके स्वर्गादि लोकों का प्राप्त कर सकते हैं। अंय देवतों की भांति यह भी चिंता, ईष्र्या, प्रतिशोध, भय, क्रोध आदि मानसिक संवेदों से ग्रस्त होते है। देवताओं के समान उच्च कोटि के सर्पों मे भी दिव्य क्षमता होती है। अणिमा, गरिमा, लघिमा आदि था यह घटना सन 1982 के क्ंवार माह के अंत की है। तब मैं 9 साल की थी। हम सब लखनऊ की बख्शी का तालाब तहसील के अस्ती गांव मे अपने पुश्तैनी विशाल मकान (कोट) मे रहते थे। हमारे गांव व घर के आस-पास सांप बहुत निकलते थे। रात का वक्त था मैं अपनी 6 साल की छोटी बहन नीलम व दादी के साथ बरामदे मे लेटी हुयी थी बरामदे के सामने आंगन था जिसें बीच मे तुलसी चैरा था एक ओर गणेश जी की मूूर्ति रखी थी। आंगन के पश्छिम मे रसोई थी अचानक मैने अंधरे मे डूबे आंगन की फर्श पर अपनी चारपाई से 10-12 फुट दूर मैंने अनोखी रोशनी देखी मै मंत्रमुग्ध सी कुछ देर तक उस रोशनी को देखती रही तभी मैंने महसूस किया कि मैं अकेली ही नही बल्कि नीलम भी उस रोशनी को देख रही है। मैंने दादी को ईशारे से उस रोशनी को दिखाया तो उसे देखकर दादी बड़बड़ाते हुये बोली लगता है राजू बहू (मेरी चाची) ने चूल्हे की आग बुझाई नही है और आग यहीं फेंक दी है। किन्तु तब हमारी हैरत का ठिकाना नही रहा जब मैने उस रोशनी को रेंगते हुये देखा वह सर्प की तरह लहराती हुयी आगे बढ रही थी वह रोशनी करीब दो तीन मिनट तक रही फिर लुप्त हो गई। सुबह बात फैल गई प्रातः जब उस जगह को देखा गया तो वहां चूल्हें की आग के कोई चिन्ह नही थे। मेरे पिता और घर के बुर्जुगों ने बताया कि वो मणिधारी सांप होगा। वैसी दिव्य रोशनी मैंने आज तक नही देखी। डा. पूनम सिंह, स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ कात्यायिनी फ्रैक्चर एवं मैटरनिटी हास्पिटल, वैभव नगर, सोनौली रोड, गोरखपुर
मणिधारी नाग की सच्ची घटना- मैं अपने बचपन से सुनता आ रहा था कि कुछ सांपों के पास मणि होती है। यह घटना 6 सिंतम्बर 1987 की है। मेरा घर बिहार के मुजफ्फरपुर जिले से 35 किलोमीटर दूर से उत्तर की ओर सिवई पट्टी गांव में है। उन दिनों गांव मेे भयानक बाढ आई हुयी थी घर के सामने पूरब में पूल का पेड़ व कुंआ बना हुआ है। बांये हाथ पर एक हैण्डपाइप लगा है। मेन रोड पर पानी बह रहा था चारों ओर आवागमन बंद था, हम लोग नाव पर बैठ कर बाजार जाते थे गांव के उत्तर मे एक नहर बहती थी चाँदनी रातें थी हम लोग छत पर मे बैठ कर पानी का नजारा लेते थे चाँदनी रात मे झिलमिलाता पानी बहुत अच्छा लगता था बरसात वाली गर्मी थी हम लोग घर के बाहर सो रहे थे एक तख्त पर मैं और मेरा चचेरा भाई शब्बीर सो रहा था मेरे दांयी ओर ताऊ नजीर अहमद और व उनका छोटा बेटा सज्जाद सो रहा था बायंे छोटे चाचा यासीन सो रहे थे रात के करीब ढाई बज रहे थे, चारों ओर पानी ही पानी था अचानक तेज बँूदा-बूँदी शुरू होने लगी तेज पानी गिरने लगा तो हम लोग तख्त उठाकर बरामदें मे आकर बैठ गये बारिश मूसलाधार होने लगी एकाएक मेरे चचेरे भाई को 20-25 फुट दूर कुयें के पास कुछ जलता हुआ दिखाई हुआ रोशनी दिये के समान हो रही थी पहले उसने सोचा कि चाचा लालटेन लेकर पेशाब कर रहे है। लेकिन जब रोशनी काफी देर जलती रही तो मैं बोल पड़ा वह देखो लालबत्ती बारिश में क्यों जल रही है। हम सब उधर देखने लगे मेरे ताऊ और चाचा कहने लगे यह तो नागमणि लग रही है। मणि का नाम सुनकर हम सब डर गये क्योंकि जब मणि है। तो सांप भी जरूर होगा हम सब डर के मारे कमरे मे आ गये और थोड़ी देर बाद रोशनी बुझ गई और पुनः उस जगह तेज रोशनी रोशनी प्रकट हुई, ताऊ जी ने कमरे का दरवाजा बंद करते हुये कहा यह तो सचमुच मणिधारी सर्प है। यासीन चाचा बोले, मैं मणि लेने जा रहा हूँ, ताऊजी के कहा पागल हो गये हो क्या सांप तुम्हें भी मार डालेगा और हम सबको भी रोशनी पुनः बुझकर थोड़ी देर बाद प्रकट हुई कुछ देर बाद पुनः बुझ कर चैथी बार हैण्डपम्प के पास पड़े एक पत्थर पर रोशनी नजर आई जो एक मिनट बाद बुझ गई 5 मिनट बाद ताऊ जी कमरे के अंदर से ही टार्च जलाकर बाहर देखने लगे तो दरवाजे के पास एक पांच फुट लंबा व मोटा संाप ईधर-उधर भटकता नजर आया कुछ देर में सुबह हो गई अगले दिन अम्मी को सारी बात बताई तीसरी रात फिर वही रोशनी झाड़ी के पास नजर आई पर हमारी हिम्मत वहाँ जाने की नही हुयी कुूछ देर बाद हमने देखा कि रोशनी बुझ गई और एक 5 फुटा सांप पानी में तैरता हुआ पूरब की ओर चला जा रहा है। उसके बाद वह सांप और रोशनी फिर कभी नही दिखाई दी मेरे ताऊजी कहते थे कि वह मणिधारी सांप था बाढ की वजह से तैरता हुआ चला आया था।
प्रेषक- रफी अहमद, ग्राम सिवई पट्टी, जिला- मुजफफरपुर बिहार।
मणि महेश पर्वत-हिमांचल प्रदेश के चंबा जिले मे भरमौर कस्बे के 24 किमी. पच्छिम मे बुदहिल घाटी मे मणि महेश कैलाश नामक शिव तीर्थ है। जहां बर्फ से ढकी एक डल झील है। यहाँ भादौ मास मे छह दिन की पवित्र यात्रा निकलती है। भादौ पूर्णिमा की रात पर्वत पर नागराज वासुकि की मणि प्रकृट होती है। घाटी मणि के दिव्य प्रकाश मे डूब जाती है। हजारों लोग उसके दर्शन करके घन्य हो जाते हैं। यू टयूब मे उसकी पूरी फिल्म मौजूद है। दक्षिण के रामेश्वरम मंदिर में भी एक नागमणि रखी जो सुबह चार बजे दर्शन के लिये रखी जाती है। हिमांचल प्रदेश मे शिमला के पच्छिम में मंडी जिले से 25 किमी. दूर मुहुनाग का मंदिर है। मुहु नाग मंदिर में पुजारी रंज जी सिंह के पास एक काले रंग की नागमणि है। जो प्रकाशहीन है जिससे वे सर्प दंश से पीड़ितों का सफल ईलाज करते हैं।


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