इच्छधारी सर्प, मिथक या सत्य

ना केवल भारत मे बल्कि सारी दुनिया मे सर्पों और इंसान के बीच गहरा संबध पाया जाता है आष्चर्य है कि सर्प पूजा भारत के अलावा प्राचीन मिस्त्र, चीन, जापान, अमरीका, दक्षिण अफ्रीका और आस्ट्रेलिया जैसे सुदूर महाद्वीपों और परस्पर विरोध सभ्यताओं मे भी पाई जाती है भारत में सर्प को मत्र्य देवता (नागदेवता) का दर्जा प्राप्त है जो मनुष्य या जीव तप, यज्ञ, पुण्य कर्म करके स्वर्गादि लोकों का प्राप्त कर सकते हैं। अन्य देवतों की भांति यह भी चिंता, ईष्र्या, प्रतिशोध, भय, क्रोध आदि मानसिक संवेदों से ग्रस्त होते है। देवतों के समान उच्च कोटि के सर्पों मे भी अणिमा, गरिमा, लघिमा आदि पुराणें के अनुसार ब्रह्मा जी के शरीर के रोमों से सर्पाें की उत्पत्ति कही गई है। सर्पों के 12 अवतार कहे गये हैं। मत्सयपुराण के अनुसार कुछ सर्पों का आकार कमर के उपर मनुष्य का और नीचे का भाग सर्प का होता है। पुराणों मे इच्छाधारी सर्पों का तथा कुछ मनुष्यों तथा देवताओं का शापग्रस्त होकर सर्प बन जाने का वर्णन है। उतंग ने जब राजा कौत्स की पत्नी के कुण्डल चुरा लिये तो नागराज तक्षक ने इन्हें वापस लेने के लिये नग्न क्षपणक का रूप बना लिया जिससे वे कभी-कभी लुप्त हो जाते थे अंत मे वे पुनः नाग का वेष धारण करके पाताल मे कुण्डल सहित घुस गये पाताल नागों का निवास स्थान कहा गया है। नागलोक की राजधानी भोगवतीपुर कही गई है भगवान कृष्ण ने जब कालियनाग का दमन किया तो उसने भी इंसानी रूप मे आकर भगवान से क्षमा मांगी। और पाताल चला गया अनन्त, वासुकी, शेष, पद्यमनाग, कम्बल, शंखपाल, घतृराष्ट्र, तक्षक, कालिय, नवनाग है। अंय नागों मे कर्कोटक, षंखचूर्ण आदि है। कश्मीर नागभूमि है। वहां अनंतनाग नामक षिला है प्राचीन काल मे वर्तमान दिल्ली मे कुतबमीनार के पास लोहे की लाट की जगह पर एक मटट्ी का काफी ऊँचा टीला था जो शेषनाग का स्थान मलियाडीह कहलाता था उस टीले पर छोटी-छोेटी मलिया (मटटी की हँड़िया) मे शेष नागदेवता पर दूध चढाया जाता था जिसका अपभ्रंा ही डेहली या दिल्ली है। इसी स्थान पर तोमर राजा अनंगपाल ने पंडितों कहने पर लौह लाट लगवाई थी जिसकी नींव शेषनाग के फन पर टिकी थी पंडितो ने बताया था कि जब तक यह लाट रहेगी लेकिन कुछ लोगों के बहकाने मे आकर उसने लाट पुनः खुदवा कर देखी लाट की जड़ से खून नजर आया लाट पुनः स्थापित की गई लेकिन पंडितों ने कहा अब लाट शेष जी के फन पर नही रहेगी और आपका राज्य नष्ट हो जायेगा वास्तव मे ऐसा ही हुआ आपका राज्य अनंतकाल तक सुरक्षित रहेगा शेषनाग के अवतार लक्ष्मण जी की नगरी लखनऊ में भी ईमामबाडे़ के निकट ऐसे ही टीले पर शेषनाग का मंदिर था जिसके कूप मे दूघ डालने पर सामग्री सीधे पाताल मे षेशनाग तक पहुँचती थी। उस मंदिर को तुडव़ा कर औरंगजेब ने उस टीले पर टीले वाली मस्जिद बनवा दी थी इच्छाधारी नागों की वास्तविकता फिल्मों, कहानी व उपन्यासों मे वर्णित किस्सों से भिन्न है। किसी सर्प के मनुष्य या अन्य रूप धारण करने की कोई भी वास्तविक या प्रामाणिक घटना अभी तक सामने नही आई है। वास्तव मे इच्छाधारी सर्प का अर्थ है ऐसा सर्प जिसकी इच्छा शक्ति अत्यंत प्रबल हो जो वर्षों के तप के कारण देवतुल्य हो गया हो उसमें अणिमा, गरिमा, लघिमा आदि शक्तियां आ गई हों ऐसे सर्प जंम जंमातरों तक अपनी इच्छा पूर्ति के लिये प्रयत्नरत रहता है। ज्योतिष व अध्यात्म मे पूर्वज, गत जन्म के षत्रु, खजाने की रक्षा हेतु खजाने के साथ मृत कोई व्यक्ति, गत जन्म के बिछड़े प्रेमी, प्रेमिकायें, पति पत्नी, या कोई तीव्र इच्छा लिये मरा व्यक्ति जीवित या प्रेतात्मा रूप मे जीवित या प्रेत के रूप मे सर्प योनि मे आता है। और अपनी जंमातरों की प्रेम घृणा, प्रतिशोध, सुरक्षा की भावना या अन्य कोइ्र्र इच्छा को पूरा करता है इन्हे ही इच्छाधारी सर्प कहते हैं। कभी-कभी इच्छाधारी सर्प स्वप्न में आकर कुछ ऐसी बाते बताते हैं। जो निकट भविष्य मे आश्चर्यजनक रूप से सत्य हो जाती है। कभी-कभी पूर्व जन्म के इच्छाधारी नाग-नागिन इस जंम मे पति पत्नी बन जाते हैं। मशहूर हस्तरेखा विषेशज्ञ कीरो ने एक ऐसी महिला का जिक्र अपनी पुस्तक मे किया है जिसका भविष्य बताते हुये कीरो ने उसे उदासीन व असांमाय महिला बताया कीरो ने बताया कि वह गत जन्म मे इंसान नही थी महिला ने कीरो को बताया कि कुछ वर्ष पूर्व वह भारत गई थी वहां दक्षिण भारत के जंगलों मे भ्रमण के दौरान एक साधू ने महिला को बताया कि गत जन्म मे वह शंखचूर्ण नामक सर्प थी इस प्रकार की कुछ अत्यन्त प्रामाणिक एवं सत्य घटनायें अवश्य सामने आई हैं। कुछ प्रेतबाधा के केसेस मे सवार प्रेत ने स्वयं को प्रेत की एक योनि सर्प योनि का बताया तो कुछ मामलों ने खुद को गत जन्म मे प्रेत बताया कुछ प्रेतात्मायें कभी-कभी सर्प का रूप धारण कर लेती हैं इन्हें इच्छाधारी प्रेत कहा जा सकता है जुलाई 2011 में सुजानपुर ( पंजाब) की मोना ने दावा किया कि वह पूर्व जन्म मे सर्प थी वह सपने मे अक्सर एक छोटा सर्प देखती थी सर्प अचानक मनुश्य बना जाता था एक दिन मोना को अचानक गत जन्म की स्मृति हो गइ्र्र कि वह गत जन्म मे इच्छधारी सर्प थी जो 200 वर्श पूर्व वह गुजरात के चंदनपुर मे रहती थी एक बार वह अपने नाग के साथ विचरण कर रही थी तो चंदनपुर के राजा चंदनसिंह ने उसकी हत्या कर दी थी मोना गुजरात गई वहां उसने सुजानपुर के वाव पुलिस स्टेशन मे अपना केस दर्ज कराया वहां के पुलिस इन्सपेक्टर ए एल अहिर ने मोना व उसके परिवार की जांच की और घटना को सत्य पाया इस केस की खबर कई समाचार पत्रों व टी.वी. चैनलों ने प्रसारित की थी। (साभारः महानगर कहानियां, 2011) ग्वालियर से 70 किमी. दूर व दतिया से 30 कि मी उत्तर मे षीतला बाजार, इंदरगढ कस्बे मे प्रकाषचन्द्र सैन अपने बड़े भाई घनश्याम सैन के साथ रहते थे और दर्जी का काम करते थे प्रकाष 1970 से ष्वास, खूनी खंासी के रोगी थे वे आगरा, भिण्ड, ग्वालियर, झांसी, दतिया के दर्जनों एलोपैथ, होम्योपैथ, आयर्वुेद डाक्टर्स से इलाज करवा चुके थे लेकिन डाक्टर्स उनका रोग नही पकड़ पाये वे 24 अल्ट्रसाउन्ड, 30 पैथालाजी रिपोट व 42 एक्स रे करवा चुके थे बीमारी के चक्क्र मे प्रकाश का पुष्तैनी मकान और छह बीघा जमीन भी बिक चुकी थी बड़े भाई घनश्याम की हेयर कंटिग की दुकान भी बीमारी मे धन लगाते-लगाते घाटे मे चली गई उसी गम में 1984 मे घनश्याम चल बसे  8 जुलाई 2000 को उनकी मुलाकात घनीराम भगत से हुयी जिन पर परीत (प्रेत) देवता, बुंदेला बाबा और बाले बाबा की सवारी आती थी कस्बे से एक कि मी उत्तर मे खेत मे उन्होने देवस्थान बनवाया था जहां अगले दिन 9 जुलाई को काफी कमजोरी मे भी वहां गये और खेत के बीच पीपल के नीचे बने बाले बाबा के स्थान पर जाकर उन्होंने प्रसाद चढाया और भगत जी के आदेश पर स्थान की 5 परिक्रमायें की प्रकाश को बेहद ताजगी और प्रसन्नता अनुभव हुयी उन्हें एकादशी के मेले मे रात आने का आदेष मिला लौटने पर प्रकाश पर दवाइ्रयां जादू का असर करने लगी भूख व पाचन शक्ति सुधरने लगी अब वे हर माह ग्यारस के मेले जाने लगे नवम्बर एकादशी को भगत जी पर बाले बाबा के माध्यम से प्रकाश पर सवार प्रेत भगत जी पर आया उसने कहा ले जाओं इस दुष्ट को मेरे सामने से इस पापी ने अपने दो साथियों के साथ मुझ बेकसूर नाग (प्रेत) को मरवाया है। जिनमे दो साथियों को मै बर्बाद कर चुका हूँ, तीसरा यह पाप भोग रहा है। लेकिन मेरी षरण मे आने के कारण मैं इसे माफ कर रहा हूँ यदि शराब व मांस छोड़ दे तो स्वस्थ हो जायेगा प्रकाश ने सबके सामने अपनी गलती की माफी मांगी बात करीब 20 साल पहले की थी प्रकाश अपने गांव के पुश्तैनी मकान मे बनी दुकान मे सिलाई का काम कर रहे थे तभी उनके साथी ठा. वीरेन्द्र सिंह ने बताया कि आपके मकान के छप्पर मे एक सांप चिड़ियां खा रहा है। प्रकाश ने बाहर आकर देख सच मे एक सांप बैठा है काफी भीड़ जमा थी तभी ठाकुर जगत सिंह ने बिना कुछ सोचे अपनी बंदूक से सांप को मार दिया वहां पर खड़े काशीराम बंशकार ने प्रकाष से कहा यह तो नाग हितैषी व रक्षक नाग (परीत) देवता है आपको इनकी हत्या का फल भोगना पड़ेगा काशीराम ने देवी मंदिर पर सर्प का अग्निदाह किया इसके कुछ दिन बाद ठा. वीरेन्द्र सिंह की एक घर मे ही एक दुर्घटना में रीढ की हड्डी टूट गई और वे विकलांग हो गये ठाकुर जगत सिंह की दुकान, चक्की सब चैपट हो गई मकान बिक गया आज वे बदतर जीवन बिता रहे हैं। प्रकाश ने सब बातें स्वीकार कर मांफी मंागी। प्रकाश अबपूर्णतः स्वस्थ है। हाथरस, उत्तर प्रदेश से 18 किलोमीटर दूर अलीगढ़ मुख्य सड़क से लगा रेंहन नामक गांव है। 27 जुलाई 1979 की रात को इस गांव के ठा. हरिशंकर सिंह की पत्नी एलावती को एक पुत्र पैदा हुआ 29 जुलाई को वासुदेव सिंह जाटव नामक व्यक्ति हरिषंकर का मकान ढूंढता हुआ आया और बोला कि क्या आपके घर कल रात को किसी बालक ने जंम लिया है उनके हां कहने पर जाटव ने बालक देखने की इच्छा व्यक्त की बालक को देखकर वह फूट-फूट कर रोने लगा फिर जाटव ने विचित्र सी कथा सुनाई उसने बताया कि वह अलीगढ़ के पुरा गांव का निवासी है। उसके 1964 मे कालीचरण नाम का पुत्र पैदा हुआ था जिसकी पत्नी व 2 बच्चे थे एक रात्रि मेरी पत्नी को सपने मे एक इच्छाधारी सर्प ने बताया कालीचरण मेरा गत जंम का षत्रु है। मैं कल रात इसे मार डालूंगा पत्नी के पूछने पर सर्प ने बताया कि गत जंम मे मैं एक सैनिक था और छुट्टी पर अपने घर जा रहा था मेरे पास रूपये और बीबी बच्चों के लिये उपहार थे कालीचरण गत जंम मे लुटेरा था उसने मुझे मार कर लूट लिया था मैं मरकर इच्छाघारी सांप बना और गत जंम मे मैंने इसे मार दिया मैं इसे तीन जंम तक डसूँगा तब मेरा बदला पूरा होगा उस बदमाश ने मरकर कालीचरण के रूप मे जंम लिया है फिर सपने का सर्प मनुष्य बन गया अगली षाम सांप ने कालीचरण को डस लिया काफी कई दिन तक कई सपेरों ने ईलाज किया एक बापगी पर ईच्छाधारी सर्प ने आकर सपने की सारी कहानी को सच बताया और क्रोध मे कहा कि कालीचरण मर कर रेहन गांव के हरिशंकर के घर पैदा होगा उसके बड़े होने पर अगले जंम मे वह पुनः उसे डसेगा 26 जुलाई को कालीचरण की मृत्यु हो गई 27 को उसकी लाश जला कर जाटव रात मे सोये तो उन्हें सपने मे कालीचरण ने कहा बापू आप रोते क्यो हो मै रेहन गांव मे हरिशंकर के घर पैदा होऊँगा आप आकर मुझे देख लेना 22 जुलाई 1991 की रात हरिशंकर की पत्नी एलावती ने सपना देखा कि एक बुढिया सपने मे आकर कह रही थी कि हरिश्ंाकर के पुत्र दिनेश को 12 साल पूरे होने के सात दिन के भीतर एक इच्छाधारी सर्प डस लेगा दिनेश ही पूर्व जंम का कालीचरण है कालीचरण ने गत जंम मे सर्प के प्रति घोर पाप किया था दो जंमों मे डसने के बाद इस जंम मे भी डस कर सर्प अपना बदला पूरा करेगा अगले दिन 28 जुलाई को हरिश्ंाकर ने दर्जनों सपेरे, डाक्टर बुला लिये बात फैल गई हजारों लोग गांव मे इकठ्ठे हो गये सपेरो ने दिनेश को एक ऊँचे मचान पर बैठा दिया 3 अगस्त को शाम पांच बजे ना जाने कैसे एक सर्प ने आकर दिनेश को डस लिया और काफी डाक्टरी व तांत्रिक ईलाज के बाद भी दिनेश की मृत्यु हो गई। 1940 में महाराष्ट्र के पिपल कड़ी गांव के किसान रघुनाथ को ईच्छाधारी सर्प ने डस लिया गांव के तांत्रिक कालू भगत ने बेहोश रघुनाथ के षरीर मे ईच्छाधारी सर्प को बुलाया कर सर्प से डसने का कारण पूछा तो सर्प ने बताया कि मैं रघुनाथ का पड़ोसी गणपत फूलपगारे नामक षरीफ किसान रहता था मेरी खूबसूरत बीबी सारजाबाई पर रघुनाथ ने बलत्कार का प्रयास किया मैने उसे खूब मारा तो उसने हम पति-पत्नी से माँफी मंाग ली एक रात जब मैं अपने खेत मे सो रहा था तो रधुनाथ ने मुझे पत्थर से मार कर लाश कुँये में डाल दी और खबर फैला दी कि पैर फिसलने से गणपत कुँये में गिर गया रधुनाथ ने गणपत के खेतों पर कब्जा कर लिया उसकी पत्नी पुत्र सहित मायके चली गई कालू भगत के कहने पर सर्प अपना विष खींचने पर राजी हो गया अगर रघुनाथ मेरा मकान बनवा कर मेरे खेत वापस करे मेरे बीबी बच्चों का पालन करे। सबने हामी भरी सर्प विष खींच कर मर गया सर्प को हाँडी मे रख कर दफना दिया गया रघुनाथ पूर्णतः ठीक हो गया उसने सब वचनों का पालन किया। उत्तर प्रदेश के एटा जिले के कठौल गांव के झनकलाल बाल्मीकि की 17 साल की बेटी सपना को बचपन से सपना आता था कि वह गत जंम मे इच्छाधारी नागिन थी और अपने नाग के साथ अलीगढ की अतरौली तहसील के खेड़ा बुजुर्ग गंाव में षिव मंदिर के पास रहती थी वे दोनो दिन मे सर्प रूप मे रहते थे व रात मे स्त्री पुरूष बन जाते थे एक बार एक नेवले ने सर्प को घायल करके कुंये मे गिरा दिया जिससे सर्प की मृत्यु हो गई नाग ने मर कर उसी गांव मे महेन्द्र सिंह के पुत्र संजय के रूप मे जंम लिया नागिन कुछ दिन तक महेन्द्र सिंह के घर चक्क्र लगाती रही कुछ दिन बाद नागिन ने भी उसी कुंये मे डूब कर आत्महत्या कर ली थी सपना ने संजय व महेन्द्र सिंह का विवरण देकर अपने पिता व भाई खेड़ाबुजुर्ग गांव भेजा पहले किसी ने उस पर विश्वास नही किया लेकिन सपना के बताये स्थान, मंदिर, कुंये व घटनायें सब सत्य पाई गयीं गांव वालों ने भी सपना की सब बातों की पुष्टि कि 17 वर्ष पूर्व मंदिर के पास एक बेहद पुराना सांप का जोड़ा रहता था जो कुंये मे गिर कर मर गया था सपना ने खुद अपने नाग संजय को पहचान लिया वह उसके बताये स्थान पर संजय के शरीर मे कुछ जंमजात चोट के चिन्ह भी पाये गये चँुकि दोनो बाल्मीकि जाति के थे अतः दोनो परिवार की सहमति से 30 जुलाई 2007 नाग पंचमी को दोनों का विवाह कर दिया गया था अंत मे सपना एक पुत्री की मां बनी। इस घटना को कई समाचार पत्रों, वाइस आॅफ लखनऊ, महानगर कहानियां, मनोरम, मनोहर सत्यकथा, सहारा चैनल ने कवर किया था 1980 की बात है।
 सत्यकथा, सहारा चैनल ने कवर किया था 1980 की बात है। बिहार के मुंगेर जिले के षाहपुर पटोरी कस्बे के निवासी रामसिंह की विवाहिता पुत्री रीना प्रेताबाधा से पीड़ित थी उसका विवाह लखीसराय के कार्मानंद शर्मा स्मारक महाविद्यालय के वाणिज्य के प्रवक्ता कामेश्वर सिंह के साथ हुआ है। प्रेतात्मा कभी सपने में, कभी साक्षात सर्प रूप मे प्रकट होकर रीना को परेशान करती थी रीना को क्रोध व पागलपन के दौरे पड़ते थे वह अपने पति को शरीरिक संबध नही बनाने देती थी रीना को कई बार सर्प ने डसा भी। अंत मे लखीसराय के एक तांत्रिक ने रीना पर सवार प्रेत को बुलाया तो प्रेत ने बताया कि उसका नाम राजू है। वह रीना का सहपाठी था व कालेज के दिनों से रीना से एकतरफा प्रेम करता था रीना के विवाह हो जाने के बाद निराशा मे उसने आत्महत्या कर ली थी मर कर वह सर्प योनि मे चला गया तांत्रिक ने उसे जला कर मुक्ति दे दी दी। कई सपेरों ने मुझे बताया कि इच्छाधारी सांप बडा़ ही शक्तिशाली होता है। उसमे कई कई जंमों तक बदला लेने की शक्ति होती है। वह दिव्य मणि तथा अनेक दिव्य शक्तियों से युक्त होता है। उसें इच्छानुसार रूप बदलने की शक्ति होती है। वह अपने वचन का पक्का होता है। यदि वादे से मुकर जाये तो फिर कभी नही काटता है।


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