भारत में पाश्चात्य सभ्यता का प्रभाव

प्यार, मोहबत, इश्क और प्रेम सब एक ही है, इसे किसी भी नाम से संबोधन किया जा सकता है, परन्तु सभी का अर्थ एक ही ही है। प्यार छोटा सा शब्द है किन्तु इसका अर्थ सागर से भी गहरा है। किन्तु-परन्तु समाज के बदलते परिवेश में प्रेम कि परिभाषा में भी बदलाव आता जा रहा है। जैसे की सभी जानते है कि वर्तमान मे आर्थिक दौर चल रहा है, सच कहा जाए तो हम आर्थिक युग में जीवनयापन कर रहे है। संभवतः इस कारण प्यार, मोहबत भी व्यवासायिक रूप  धारण करता जा रहा है। जैसा की पहले भारतीय संस्कृति में प्यार की की परिभाषा कुछ और ही रहा, संबन्धों में व्यवसाय नही होता था। अब तो भाई-बहन, पति-पत्नी समय पर अपनी आय की समीक्षा करते देखे जा सकते है। सदियों जो रिश्ते अनमोल थे उन्हें भी अब रूपयों के तराजू में तौला जाने लगा। इधर कुछ वर्षो से भारत में पाश्चात्य सभ्यता का प्रभाव निरन्तर बढ़ता जा रहा है। परिणामस्वरूप अब पहले जैसे संयुक्त परिवार कम ही दिखाई देते हैं। कुछ वर्षो पहले तक अगर परिवार का कोई बच्चा बगैर बताये घर से चला जाता था, तो परिवार को कोई भी बड़ा सदस्य उससे जवाब तलब कर लेता था किन्तु अब ऐसा नहीं रहा। देश प्रेम भी एक प्रेम है, सैनिक देश प्रेम के लिए अपने प्राण तक न्यौछावर कर देते है। जब कि दूसरी तरफ कुछ ऐसे लोग भी जो अपने लाभ के लिए राष्ट्र को हानि पहुँचाने का भी सौदा कर लेते हैं। प्रेम एक शक्ति है जैसा कि अकसर लोगों को कहते सुना जाता है कि प्रेम कमजोरी है, जबकि ऐसा कदापि नहीं देश प्रेम, पति-पत्नी, भाई-बहन, पिता-पुत्र, माँ-बेटा का उचित प्रेम सही मार्ग दर्शक बनकर उसे प्रगति के पथ की ओर निरन्तर अग्रसर करता है।  जिस तरह से विश्व में आतांकवाद बढ़ रहा है उसके दृष्टिगत रखते हुए दुनिया भर में प्रेम का पैगाम पहुँचाना अति आवश्यक हो गया है। ईश्वर भी सदैव उसी का साथ देते हैं, जो उसे सच्चे मन से प्रेम करता है। जिसका मीरा और गोपियाँ उसका एक साक्षात उदाहरण भी हैं। प्यार का अनुभव शरीर से नहीं, प्यार का अनुभव आत्मा से होता है। वर्तमान में जिस तरह का महौल है उसको देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि आँखों की बेशर्मी की सारी हदें पार हो गई है। 
 एक आदमी को शादी के बाद जानकारी हुई की उसकी पत्नी को अंग्रेजी नहीं आती, उस व्यक्ति ने एक दिन अपनी पत्नी को उसके पिता के घर छोड़ आया। अब तो पति-पत्नी के पावन संबन्ध और प्रेम में भाषा भी बाधक बनने लग गया। प्रेम सदैव ऐसा होना चाहिए जिससे दूसरे का हित हो। बच्चों से प्यार करे जब भी कभी उसमें गलत आचरण देखें पहले उसे प्यार से समझायें अगर वो प्यार की भाषा न समझे तो उसे कठोरता से समझाना चाहिए।
 लोगो में पुुत्र प्रेम कीे लालसा के कारण कन्या जन्म लेने से पहले ही उसकों जन्म लेने से रोक दिया जाने के कारण ही सरकार भ्रूण हत्या पर कठोर हुई, इसके लिए जनता में जागरूकता लाने के लिए बेटी बचाओं, बेटी पढ़ाओं का सरकार को कार्यक्रम चलाना पड़। समाज के सभी वर्गो का दायित्व है कि कन्या को भी उतना ही प्यार और सम्मान दे, जैसा  लड़के को प्यार सम्मान देते हैं। प्यार, मोहबत, इश्क और प्रेम अनमोल आवश्यकता है उसका सही उपयोग हो और मानव जगत के कल्याण के लिए प्यार किया जाये यही हम सब के लिए हितकारी होगा। ईश्वर सब को सदबुद्धि दे! 


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