डेस्टनी ब्रेकर और ऋण बंधन इन एस्ट्रोलाॅजी


इस सिद्धान्त के जंमदाता प्रसिद्ध भृगु नाड़ी ज्योतिषी स्व आर जी राव के शिष्य व नाड़ी ज्योतिष पर कई पुस्तकें के लेखक श्री सत्यनारायण नायक जी है। जिसे अपने ग्रन्थ ' रेवलेशन फ्राम नाड़ी एस्ट्रांेलाॅजी'मे इसे प्रस्तुत किया है। हिन्दी भाषा मे लिखा यह विश्व  का एक मात्र लेख हैं भारतीय ज्योतिष व अध्यात्म मे सूर्य आत्मा का प्रतीक है। बृहस्पति जीव यानि प्राण हैं मंगल देह या शरीर है। चन्द्रमा मन व शूक्ष्म शरीर है। पूर्व जंम की वासना (ईच्छायें) व बुद्धि बुध है। भोग शुक्र है। शनि जीवन व जीवन के समस्त कर्म हैं राहू केतु संवेदनशील बिंदू है। राहू माया या भ्रम देता हैं और केतु संसार का त्याग या उसे ठुकराना यानि अध्यात्मिक या पारलौकिक है। यह दोनो डेस्टिनी ब्रेकर या भाग्यनाशक ग्रह है। देह मंगल के विकास के साथ अंहकार का विकास होता है। अनियंत्रत अहंकार जातक का विनाश कर देता है इसे स्वतंत्र  ईच्छा शक्ति के द्वारा नियंत्रण मे रखा जाता है जमांक मे मंगल की स्थिति जातक के अहंकार के स्वरूप और प्रकृति को बताती है। जमांक मे प्रत्येक ग्रह की स्थिति जातक उस ग्रह के अध्यात्मिक के स्वरूप और प्रकृति को बताती है। जैसे चन्द्रमा मन, बुध बुद्धि, शुक्र भोग शनि कर्म राहू माया या भ्रम केतु अस्वीकृति को जंमाक के लग्न से षष्ठ भाव अदृश्य भाग तथा 7 वे से 12 वें भाव दृश्य भाग को बताती है। लग्न इस जंम के बताताी है। लग्न से पिछले भाव दृश्यभाग जंम के पूर्व की उदित हो चुका है अतः यह दृष्य भाव है। वर्तमान भाग्य के भाव है। लग्न से षष्ठ भाव भाव अभी उदित होने है। अतः यह वर्तमान जीवन के कर्म के भाव है। जो करने है। अदृश्य भाव मे गये ग्रह जातक की सक्रिय ईच्छा शक्ति को बताते है। 12 राशियां सम व विषम राशियांे मे विभजित है। विषम राशियां सूर्य त्रिकोण है। और सम राशियां चन्द्र त्रिकोण बनाती हेैं विषम त्रिकोण की सूर्य सिंह राशि आत्मा को बताती है। उससे त्रिकोण की अगली 5वीं गुरू की राशि धनु जीव व प्राण को बताती है। तथा त्रिकोण की नवी मंगल की राशि देेह को बताती है। जो जंम लेती है। तीन सूर्य त्रिकोण सिंह धनु व मेष आत्मा, जीव तथा देह के स्वामी है। शेष तीन विषम राशियां मिथुन तूला व व कुंभ बुद्धि, भोग व कर्म को बताती है। इनका सूर्य त्रिकोण से अन्र्तसंबध है। इनका परिजनो से भी गहरा संबध है। मिथुन छोटा भाई तुला पत्नी व कंुभ बड़ा भाई। सूर्य त्रिकोण गोत्र, ऋणबंधन, भाई बहनों की जिम्मेदारी पत्नी पुत्री, व अंय संबधी। यह सब भाग्य द्वारा पूर्व निर्धारित है। सूर्य त्रिकोण व्यवहारिक बंधन है। चन्द्र त्रिकोण कर्क राशि से आरंभ होता है। जो माता से संबध व भावनात्मक बंधन को बताता है। यह चन्द्रमा का स्व राशि है। त्रिकोण की अगली राशि वृश्चिक चन्द्रमा की नीच राशि है। जो पत्नी से प्रेम को बताता है। और रक्षात्मक स्वभाव देता है। चन्द्रमा यहां निर्बलता अनुभव करता ह।ै चन्द्र त्रिकोण का अंतिम राशि मीन है। जो वैराग्य और अंतिम  मोक्ष का ेबताता है। चन्द्र त्रिकोण के की अंय राशियां वृष है। जहां चन्द उच्च का होता हैं और भोग मे लिप्त होता है। यहां स्वतंत्र ईच्छा चंचलता से  जुड़ी होती है। यहां चन्द्रमा के अस्थिर स्वभाव को सावधानी के साथ नियत्रित करना चाहिये चन्द्र त्रिकोण की अगली राशि कन्या बुध की राशि है। यह तीव्र बुद्धि की प्रतीक है। यहां स्वतंत्र बुद्धि सभी सांसारिक कार्यो मे सक्रिय होती है। चन्द्र त्रिकोण की अंतिम राशि शनि की मकर है। जो स्वतंत्र ईच्छा के स्व के प्रयास और उपलब्धियां बताता हैं। चन्द्र त्रिकोण जातक को कर्मठ और विजेता बनाता है। यदि उचित प्रयास किया जाये स्वंतत्र ईच्छा भावनाओं को नियंत्रित कर सकती है। यदि  सूर्य नीच का हो तो आत्मदर्शन या मोक्ष प्राप्त करना कठिन होता है। तीन प्रकार के कर्म होते है। संचित कर्म गत जमों के एकत्रित अच्छे या बुरे ऋण होते हैं यह पारलौकिक ऋण है। संचित कर्मों के विनाश के बिना मोक्ष प्राप्ति संभव नही है। 
प्रारब्ध कर्म-इस जंम मे चलने वाले बुुरे  कर्म है। जिन्हें स्वतंत्र ईच्छा के प्रयोग से हम नियंत्रित कर सकते है। जो अभी अधपके है। जिन्हें हम चुकाना हें 
आगामी कर्म-जो कर्म अगले जंम मे होने वाले। यह संचित और प्रारब्ध कर्मों का मिश्रण है। वर्तमान जंम मे पुण्य कर्म करके हमे इन्हें सुधार सकते है। 
 राशि   प्रतीक
        सिंह    राशि आत्मा
 धनु    जीव व प्राण
 मेष    देह
 मिथुन    बुद्धि,
 तूला    भोग
 कुंभ     कर्म 
 कर्क    माता से संबध 
    व भावनात्मक बंधन
 वृश्चिक    पत्नी से प्रेम
  मीन    वैराग्य और अंतिम 
 वृष    भोग 
 कन्या    तीव्र बुद्धि 
 मकर है।          स्वप्रयास व उपलब्धि
डेस्टिनी मेकर और डेस्टिनी ब्रेकर प्लेनटस-ग्रहों के शुभाशुभ प्रभाव के अनुसार उन्हें तीन प्रमुख वर्गों मे बांटा जा  सक्ता है। 
1. डेस्टिनी मेकर-भाग्य का निर्माण करने वाले यह ग्रह निम्न है। सूर्य, बुध और शुक्र यह अंय ग्रहों के साथ मिल कर भाग्य का निर्माण करते है। 
2. डेस्टिनी मोडिफायर  डेस्टिनी मेकर) यह भविष्य मे सुधार के लिये वर्तमान मे भाग्य मे रूकावटें देते है। मंगल व चन्द्रमा। 
3. डेस्टिनी ब्रेकर-राहू व केतु।
इनमे गुरू व शनि शामिल नही है। गुरू जीव यानि जीवन इनके साथ ही योग बनाने वाले उपरोक्त ग्रह भाग्य निर्माण भाग्य सुधार या भाग्य का विध्वंस करते है। शनि गत व वर्तमान व गत जंमों के कर्म है। जो शुभाशुभ  कर्मों के अनुसार जातक का विभिन्न प्रकार के फल प्रदान करते है। 
गुरू व शनि का योग-यह योग बताता है। कि जीव अनिवार्य रूप से गत जंम के कर्मों से बंधा रहता है। यह योग धर्माधिकारी योग कलाता है। 


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