डिपाॅसिटर इन एस्ट्रोलाॅजी

डिपाॅजिटर्स थ्योरी वास्तव मे भविष्य कथन करने के कुछ गुप्त नियम है। जिनका प्रयोग करने पर ग्रह योगों के फलादेशों के परम्परागत फल बदल जाते हैं और आश्चर्यजनक परिणाम सामने आते हैं। डिपाॅसिटर का वर्णन हांलाकि ज्योतिष के प्राचीन गन्थों में हजारों वर्षो से है। परन्तु उसे एक ठोस सिद्धान्त के रूप मे प्रस्तुत करने वाले सर्वप्रथम लेखक डाॅ. जगन्नाथ भसीन है। जिन्हांेने सन् 1982 में छपी अपनी पुस्तक मे डिपाॅसिटर इन एस्ट्रोलाॅजी मे इसे विस्तार से प्रस्तुत किया यह पुस्तक अब अप्राप्य है। जिसे उन्होंने मूल रूप से सप्तर्षि नाड़ी व अंय पाराशर ग्रन्थों से लिया है। प्राचीन गन्थों में इसका वर्णन भावेश के फलादेशों के अन्र्तग्रत किया गया है।
1. यदि कोई ग्रह नीच का होकर शुभ भाव में हो या त्रिक मे ना हो और नीच ग्रह का राशि स्वामी ग्रह यदि नीच ग्रह को देखता हो तो जातक शासक हो। फलदीपिका अ0 7, श्लोक 26
2. यदि नीच ग्रह का राशि स्वामी ग्रह यदि लग्न या चन्द्र से केन्द्र मे हो तो जातक राजा होगा फलदीपिका अ0 7, श्लोक 28
3. षष्ठ भाव मे शनि की राशि मे राहू हो तो शनि गंभीर रोग देगा श्ािन व छठा भाव दोनों रोग कारक है। राहू भी रोग दायक है।
4. जातक पारिजात अध्याय 11 श्लोक 35 लग्नेश जिस राशि मे हो उस राशि का राशिस्वामी यदि लग्न से 8 वे भाव हो तो जातक को रोग हों। यह नियम सभी भावों पर लागू होता है। यदि पंचमेश जिस राशि मंे हो उस राशि का राशिस्वामी यदि लग्न से 6, 8 या 12 वे भाव हो तो पंचम भाव के शुभ फल नष्ट हों।
5. जातक पारिजात अध्याय 7 श्लोक 156 लग्नेश जिस राशि मे जाय या नवांश मे जाये उसका राशि स्वामी या नवंाश स्वामी यदि जमंाक मे केन्द्र या त्रिकोण मे जाये तो पर्वत योग होगा जातक  धनी, दीर्घायु व सम्मानित होगा।
6. लग्नेश जिस राशि मे जाय उसका राशि स्वामी ग्रह भी जिस राशि मे हो उसका स्वामी यदि उच्च का या स्वग्रही होकर जमंाक मे केन्द्र या त्रिकोण मे जाये तो काहल योग बनेगा जातक  धनी, दीर्घायु व सम्मानित होगा। 
7. यदि किसी ग्रह का का राशि स्वामी यदि केन्द्र त्रिकोण मे बली या शुभ ग्रह युक्त या दृष्ट है तो प्रथम ग्रह की दोनो राशियों  व भावों को शुभ फल प्राप्त होगा जैसे कर्क लग्न मे योग कारक मंगल 12 वें मिथुन मे शत्रु राशि गत है। परन्तु यदि बुध शुभ ग्रह युक्त या दृष्ट है तो मंगल की दोनो राशियों के भाव दशम व पंचम भाव से संबधित शुभ फल प्राप्त होंगें।
8. यदि कोई शुभ ग्रह किसी पापी ग्रह का भावेश है तो वह अपनी स्थिति वाले भाव की चीजों को हानि देगा जैसे धनु लग्न मे छठे भाव में वृष मे मंगल व केतु दो पापी ग्रह है। और षष्ठेश शुक्र द्वितीय भाव मकर मे है। शुक्र पापी ग्रहांे का भावेश होने के कारण द्वितीय भाव की वस्तुओं को हानि देगा चँुकि द्वितीय भाव सप्तम भाव से 8 वां होने के कारण पति या पत्नी की आयु का भी है। अतः शुक्र पति या पत्नी को अल्पायु देगा।
9. स्व श्री आर संस्थानम द्वारा संपादित शुक्र नाड़ी के विवाह खण्ड मे विवाह काल निर्धारण का एक सूत्र दिया हुआ है। जिसमे भावेश सिद्धान्त को बड़ी खूबसूरती से प्रयोग किया गया है। जंम लग्नेश नवंाश में जिस राशि में जाये वह राशि स्वामी ग्रह जमांक मे जिस राशि पर हो उस राशि पर गुरू का गोचर जातिका या जातक का विवाह देगा जैसे कन्या लग्न का स्वामी ग्रह बुध यदि नवंाश मे कर्क राशि हो तथा कर्क का स्वामी ग्रह चन्द्रमा यदि जमंाक मे तुला राशि पर हो तो तुला से गुरू के गोचर मे जातक का विवाह होगा।


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