माई एक्सपीरियंस आफ सम भृगु एस्ट्रोलाॅजर्स

ए. एम., जनवरी 1963) महादेव सदाशिव केलकर अधिकांश सारे केसेस मे पूर्व जंम की सत्यता की परीक्षा नही की जा सकती थी क्यांेकि उनके प्रसंग अस्पष्ठ थे लेकिन कुछ केसेस मे जिसमे मंै जु़ड़ा था ये ऐतिहासिक ग्रन्थांे से सत्य पाये गये मेरठ के भृगु ज्योतिषी के बारें मे सुन कर मै 1920 मे उनके पास गया और एक ज्योतिष बूढे से मिला जो ज्योेेेतिष मे पारंगत नही था पर उसके पास कुछ कुण्डलियों के पाठ थे जो अध्यात्मिक शक्ति सम्पन्न किसी पूर्वज द्वारा लिखे गये थे उससे परीक्षा हेतु मैंने महात्मा गंाधी, लाला लाजपतराय, पंडित मदन मोहन मालवीय, और दो कम महत्व के दो व्यक्तियों की रीडिंग्स  प्राप्त थी  क्योकि संभव था कि वह आदमी इन तीन के जमांको के बारे मे जानता हो  मेरे पूना के मित्र ज्योतिषी ने बताया था कि महात्मा गांधी 7 वीं राशि की लग्न मे पैदा हुये थे जबकि मैने खुद ही लाजपत राय के जमांक मे 7 वीं लग्न तुला लग्न मे लिख दी थी उस समय खुद मै ज्योतिष की सत्यता और इन पाठों की प्रमाणिकता को परखना चाहता था इसलिये मैने इन व्यक्तियों  के नाम और पदो को नहीं बताया मैने ज्योतिषी को दिखाया अंत मे तीन पाठों कि विस्तृत विवरणों ने सिद्ध कर दिया कि निःसंदेह ये विवरण किसी महान सिद्धि द्वारा लिखे गये थे परन्तु भविष्य की घटनायें भविष्यकथन से मेल नही खाई। पठन का समय और उस समय तक की घटनायें एकदम सही थीं। 
महात्मा गांधाी:- महात्मा गांधी के पूर्व जंम के संबध मे उनका पूर्व जंम का नाम पद तथा दो जमों के मध्य की अवधि का वर्णन किसी  उच्च सिद्धि को बताती है। महात्मा गांधी के पूर्व जंम के बारे मे लिखा था कि वे चित्तौड़ के राजा के ज्येष्ठ पुत्र थे इन्होने अपने पिता की ईच्छा पर अपने राज्यारोहण का अधिकार अपने छोटे भाई को दे दिया था उनका नाम चूड़ाजी दिया था और कहा गया था उनके बाद कुछ उपजाति के लोग उनके नााम पर होगें (कुछ राजपूत आज भी चूड़ावत कहलाते है )उनको युद्ध मे कई लोगों को मारना पड़ा था जिसका उन्होने पश्चाताप किया अतः वे 400 साल बाद समुद्र के तट पर जंम लेगा यह सुन कर मैने मेरठ लाईबेरी मे टाॅड के राजस्थान को पढा और पाया कि चित्तौड़ मे 15 वीं सदी के मध्य मे राणा लाखा नाम का राजा शासन करता था उसके चूडा़जी नाम का एक पुत्र था, एक दिन  किसी निकट राज्य के कुछ लोग आये और उन्होने चूड़ाजी के लिये अपनी राजकुमारी का विवाह प्रस्ताव रखा जिसे राजा नंे भूल वश स्पष्ठ रूप से ना समझ कर कि प्रस्ताव उनके पुत्र के लिये है। खुद के लिये समझ लिया राजा ने कहा कि मै इसे स्वीकार नही कर सकता क्योंकि मै बूढा हो गया हूँ और इसे अपने पुत्र के लिये जो शिकार खेलने बाहर गया है स्वीकार करता हूँ वापस लौटने पर पुत्र को पिता का व्यक्तव्य अच्छा नही लगा और उसने कन्या से विवाह करना अस्वीकार कर दिया इस पर राजा ने कहा कि क्योकि मैं इसे स्वीकार कर चुका हूँ अतः मै खुद इस कन्या सेे विवाह कर लूंगा अगर मेरे मेरा पुत्र मेरे नयी रानी से उत्पन्न पुत्र के लिये अपना राज्याधिकार त्याग दे इस पर चूड़ाजी राजी हो गये कुछ समय बाद राजा के एक पुत्र पैदा हुआ जो राजा बना और चूड़ा जी सेनापति बने। वर्तमान जंम के बारे मे सामान्य विवरण के बारे लिखा था एक बार वो अपने बाल विवाह तथा माता पिता के अल्पायु होने पर दुःखी होगा क्योंकि वोे अपने माता पिता की सेवा नही कर सका जातक अपने देश की अपेक्षा अधिक समय अंय देश मे रहेगा और उसे जेल होगी उसके हजारों अनुयायी होगें। निम्न जाति के लोग उसके भाई होगें 15 से 18 वर्ष के बीच जातक की माता जातक के बुरे मित्रों और अधार्मिक भोजन के कारण चिंतित होगी पर जातक शिक्षा के लिये विदेश जाने से पूर्व खुद को सुधारेगा वो मांसाहार, परस्त्रीगमन व शराब ना अपनाने की तीन प्रतिज्ञायें करेगा उसके स्वदेश लौटने से पूर्व उसकी मां मर जायेगी वो वकील होगा और 25 वें वर्ष मे दूसरे देश जायेगा 29-30 वर्ष मे वो युद्धरत होगा और कई उच्च बर्ग के लोगो को बचायेगा वे अपने विचारों का लेखन करेगा 38-40 वर्ष के मध्य वो सौभाग्य से शत्रु प्रहार से बच जायेगा 10.2.1908 मे एक पठान ने जानलेवा हमला किया था 44 वर्ष की आयु मे उसकी पत्नी और पुत्र को यात्रा के दौरान जेल होगी 46 से 50 के बीच सरकार पहले जनता की भलाई के लिये व्यवस्था करेगी पर बाद मे उत्तरार्ध के बाद सरकार इसे बदल देगी जनता के भारी संहार की घोषणा करेगी और बहुत से शिक्षित और बुद्धिमान लोग मारे जायेगें। विद्या बुद्धिबलैयुक्ताः शतद्वयदिवशात् क्षयः। (13 अप्रैल 1919 को अमृतसर का जलियांवाला बाग कांड) उसका एक पुत्र विदेश मे अपने कायों के लिये  जाना जायेगा 66-68 वर्ष मे पत्नी का निधन होगा जब सूर्य 10 वीं से 12 राशि मे होगा (मकर से मीन राशि मे) और उसकी अपनी मृत्यु 71 वर्ष की आयु मे माघ की शुक्ल पक्ष की एकादशी को दोपहर मे होगी यह आंशिक रूप से असत्य है मृत्यु का वर्ष गलत है। पर महीना व तिथि व समय सत्य है। वो अपनी पत्नी की मृत्यु के बाद स्त्रियो की शिक्षा पर भारी धन खर्च करेगा महात्मा गंाधी का जंम 2 अक्टूबर 1869 के गुजरात के पोरबंदर स्थान पर हुआ था उनकी मृत्यु 30 जनवरी 1948 को गोली द्वारा हुयी थी।
प. मदन मोहन मालवीय:- इनके पूर्व जंम के बारे मे कहा गया था कि वे पूर्व जंम मे बनारस मे ब्राह्मण थे लेकिन वे युवावास्था मे अपना परिवार छोड़ कर प्रयाग आ गये जहांँ उन्होने एक विशाल जनसभा देखी जिसे किसी ने अंग्रेजी मे सम्बोधित किया था इससे मालवीयजी के बड़ा दुःख हुआ कि उनकी संस्कृत विद्या का कोई उपयोग नही है। तो उन्होने ईश्वर से प्रार्थना की जिससे उनके इस अच्छे कर्म के कारण वे अगले जंम मे शासकों द्वारा सम्मान प्राप्त करेगा अतः अपनी मृत्यु के तीन वर्ष बाद वो पुनः अगले जंम मंे ब्राह्मण के रूप मे जंम लगा चुँकि गंत जंम का उसका नाम नही लिखा था अतः इन घटनाओं को प्रमाणित करना असंभव था इस जंम मे उसकें अंग्रेजी मे पारंगत होने तथा हिन्दी के बजाय अंग्रेजी मे भाषण देने का वर्णन था उसके शासकों की सभा के सदस्य होने का वर्णन था जहाँ वह कुछ भयभीत होगा वो शिक्षा के कई भवन बनवायेगा वो वकील और लेखक भी होगा 23 वर्ष के बाद उसकी शिक्षा मे बाधा आयेगी और तब वह अध्यापक के रूप मे धर्नाजन करेगा 67 वर्ष मे वो जल यात्रा करेगा और वो 69 वर्ष की आयु मे दीर्घायु होकर मरेगा मालवीयजी का जंम 25 दिसम्बर 1861 को ईलाहाबाद  मे हुआ था तथा उनका निधन 12 नवम्बर  1946 को 85 वर्ष मे हुआ था।
लाजपतराय:- लाजपतराय के पूर्व जंम के बारे मे लिखा था वे पूर्व जंम मे पंजाब के ध्यान नाम के क्षत्रिय राजा थे जो अपने बुरे मित्रो के जोर देने पर राजकुमार की हत्या करके राजा बने थे कुछ समय बाद वो और उनके मित्र युद्ध मे मारे गये मृत्यु के समय उन्होने ईश्वर से प्रार्थना की कि ईश्वर उन्हें अगले जंम मे क्षत्रिय ना बनाये 20 वर्ष के बाद वो पंजाब मे एक वैश्य परिवार मे पैदा हुये मै सन 1830 से सन 1940 तक के पंजाब के इतिहास नही प्राप्त कर सका अतः मैं इन घटनाओं को प्रमाणित नही कर सकता हूँ संपादक डी एस परिहार द्वारा पंजाब के इतिहास मे खोजने पर ज्ञात हुआ राजा रणजीत सिंह के दोे पुत्र शेरसिंह और खरक सिंह या करतार सिंह थे रणजीत सिंह के बाद खड़क सिंह राजा बना जो अयोग्य राजा था जो राज्य के विद्रोहो को काबू करने मे नाकामयाब रहा। महाराजा का एक अयं बेटा शेरसिंह था शेरसिंह के वजीर दो कशमीरी डोगरा राजपूत भाईयों राजा गुलाब सिंह औैर ध्यान सिंह थे। शेर सिंह ने उनके साथ षडयंत्र कर के राजा खड़क सिंह की हत्या करवा दी थी और खड़क सिंह के बाद उसका पुत्र नौनिहाल राजा बना तो शेरसिंह ने पुनः गुलाब सिंह औैर ध्यान सिंह के साथ षडयंत्र कर के नौनिहाल सिंह की भी हत्या करवा दी। नौनिहाल जब अपने पिता के अंतिम संस्कार से लौट रहा था तो उस पर एक ईमारत गिर गई उसे ईलाज के बहाने ले जाया गया कुछ लोगों के अनुसार नौनिहाल के शरीर पर घातक घाव थे उसके बाद शंेरसिंह ने राज परिवार के आधीन लाहौर किले पर घेरा डाल दिया और लंबे घेरे के बाद शेरसिंह की विजय हुयी शेरसिंह ने अपने वजीरों ध्यानसिंह व गुलाबसिंह द्वारा सन 1841 मे खुद को राजा घोषित करवा दिया शेरसिंह कठपुतली राजा बने बाद मे गुलाब सिंह और ध्यान सिंह किंगमेकर बन गये उन्हाने शंेरसिंह के भतीजे अजीत सिंह संधवालिये से मिल कर 16 सितम्बर 1843 को शंेरसिंह की हत्या करवा दी। फिर अजीत सिंह राजा हुए। 1845 मे हुये पहले सिंख आंग्ल युद्ध मे सिख सेना की हार हुयी और दोनों डोगरा भई उसमे मारे गये बना यह वर्णित था कि  जैन परिवार मे जंम लेने के बाद भी वो वेदों का अनुयायी होगा वो 27 से 32 वर्ष के मध्य अकाल से पीड़ित से  लोगों की सहायता करेगा तथा 40 वर्ष की आयु मे भूकंप से पीड़ित लोगों की मदद करेगा। 41 से 44 वर्ष के मध्य वो सरकार के विरूद्ध बंगाल के लोगों की सहायता करेगा और प्रथ्वी के दूसरे भाग मे जायेगा वो 50 वर्ष मे विदेश जायेगा 55 व 56 वर्ष मे एक क्रूर शासक द्वारा कई छात्र व लोग मारे जायेगें 57-58 वर्ष मे (सन 1921-22) वो अपने एक मित्र को लेकर चिंतित रहेगा उनकी आयु 76 वर्ष दी गई थी जब कि वो नवम्बर 1988 मे अचानक मर गये कान्ग्रेंस नेता, स्वतंत्रता सेनानी, लेखक पंजाब केसरी लाला लाजपतराय का जंम 28 जनवरी 1865 को पंजाब के ढुंढके शहर मे राधाकृष्ण तथा माता गुलाबदेवी के घर हुआ था 17 नवमबर 1928 को लाहौर  में उनका निधन हुुआ था।
सत्य शिवसाई बाबा:- शशिकंात ओक ने अपनी पुस्तक नाड़ी ग्रन्थ भविष्य मे पृष्ठ 88 पर शिरड़ी के साई बाबा के जमांक के नाड़ी फलादेश का वर्णन किया है चेन्नई स्थित शुगर नाड़ी केन्द्र के वाचक डा. करूणानिधि द्वारा उन्हें शिरड़ी के साई बाबा की पट्टी देखने का अवसर मिला जो उन्ही के शब्दों मे शुक ऋषि मैत्रेय तथा अगस्त्य के साथ शिवत्व का वंदन कर रहे एक व्यक्ति के जमांक का वर्णन कर रहे है। शिव के अंश दत्तात्रेय के अवतार भारद्वाज गोत्र मे उत्पन्न इस महान विभूत के प्रथम खंड का वर्णन किया जा रहा है। विलंबी संवत्सर अर्थात सन 1838 भाद्रपद्र महीना त्रयोदशी तिथि पूर्वाषाढा नक्षत्र मेष लग्न गुरूवार अर्थात 27 सितम्बर सन 1838 दिनांक दोपहर 12 बज कर 5 मिनट 25 सेंकेंड पर उनका जंम हुआ साई का जंम पाथारी गांव मे ब्राह्मण कुल मे पिता गंगा भुवदिय तथा माता देवगिरि के घर हुआ था उनके दो बडे भाई बहन थे उनके बड़े भाई का नाम अंबादास तथा बहन का नाम बलवंत बाई था वे सबसे छोटे और अंतिम पुत्र थे नाड़ी मे महर्षि बताते है। इसी साई ने अगले जंम मे सत्य साई के नाम से जंम लिया नाड़ी के अनुसार नाड़ी वाचक करूणानिधि गत जंम मे साई बाबा का परम भक्त था तथा नाड़ी अनुवादक एम आर रघुनाथन ही गत जंम मे साई के बड़े भाई अंबादास थे जो रघुनाथान की अपनी ताड़ पटटी पर भी लिखा था एक पटटी मे रघुनाथन की पूर्वजंम की मां तथा बहन के चेन्नई मे ही जंम लेने के बारेे मे लिखा था जिनके आधार पर रघुनाथ नेे दो व्यक्तियों का नाम परिश्रम से ढूँढ डाला था अपनी गत जंम की माता देवगिरि अम्मा वर्तमान जंम मे श्रीमती आर गीता अम्मल उर्फ बाबा पाटी तथा बड़ी बहन बलवंत बाई वर्तमान में श्रीमती बी राजेश्वरीे है। सन् 2003 मे एम आर रघुनाथन का निधन हो गया नाड़ी मे लिखी अंग्रेजी तथा हिंदी जंम तिथी परस्पर मेल नही खाती है सत्यशिव साई बाबा का जंम 23 नवम्बर 1926 को अक्षय संवस्तर कार्तिक मास कृष्ण चतुर्थी तिथी को मंगलवार आर्द्रा नक्षत्र के चतुर्थ चरण मे व तुला लग्न मेे हुआ था।


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