महारानी पद्यमनी

17 जुलाई 1296 को सुल्तान जलाउद्दीन खिलजी की उसके सगे भतीजे और दामाद अलाउद्दीन खिलजी के ईशारे पर सिपाहियों महमूद सालिम, मुफरीदजादा और इख्यिारूद्दीन ने सर कलम करके मानिकपुर में हत्या कर दी और 16 रमजान 18 जुलाई 1296 को अलाउद्दीन ने खुद को हिंद का शंहशाह घोषित कर दिया। 21 अक्टूबर 1296 (सोमवार 22, हिलहिज्जा) को वह दिल्ली के तख्त पर बैठा। गुजरात, रणथम्भौर, मालवा पर विजय के बाद उसकी खूनी निगाह मेवाड़ पर पड़ी जहाँ उस समय रावल रतन सिंह का शासन कर रहे थे, जो 20 मई सन 1302 में अपने पिता राजा समर सिंह की मृत्योपरान्त राजा बने थे जिनका विवाह सन 1300 में चित्तौड़ से 40 किलोमीटर पूर्व सिंगौली रियासत के मेवाड़ के पुराने चैहान वंशी वफादार सरदार महाराजा हमीरशंख पुत्रीे अद्वितीय सुंदरी महारानी पद्यमनी से हुआ था। यह उनका पांचवा विवाह था उनकी पटरानी प्रभावती (नागमति) और एक पुत्र वीरभानु था जालौर रियासत के चैहान राजा कनेरदेव सोनगरा पद्यमनी के संबधी और जालौर जिले की सांचैर रियासत के राजा व मेवाड़ के सामंत गोरा चैहान महारानी के सगे ताया थे (सोनगरा व सांचैर चैहानों का इतिहास, हुकुम सिंह भाटी) 1302 में चितौड़ के पुरोहत राधव चेतन से राजा रतन सिंह का विवाद हो गया (वीर विनोद) और रतन सिंह ने उसे देश निकाले की सजा दे दी अपमान और प्रतिशोघ से भरा राधव अलाउद्दीन के पास दिल्ली पहुँचा और उसने सुल्तान को चितौड़ का खजाना लूटने और महारानी पद्यमनी को अपने हरम में डालने के लिये उकसाया सुल्तान ने स्वयं भी रानी की संुदरता के बारे मे सुना था कामुकता व महात्वाकांक्षा के वशीभूत होकर वह एक भारी सेना व अपने पुत्र खिज्र खां, अमीर खुसरो के साथ सोमवार, 8 जमादी उस्मानी 702 हिजरी (29 जनवरी 1303) को शाही कालें झंडे और राजछत्र सहित दिल्ली से रवाना हुआ और चित्तौड़ पहुँच कर उसने बेड़च और गंभीरी नदी के संगम पर अपने सैन्य शिविर लगाये उसने अपना खेमा चक्रवारी चित्तौड़ी पहाड़ी पर लगाया जहां उसका सफेद छत्र लहराने लगा और दुर्ग पर घेरा डाल दिया मेवाड़ के प्रधान सेनापति लक्षमण सिंह इन दिनों मालवा नरेश गोगादेव से युद्ध करने गये थे सुल्तान ने राणा को अपनी शरण मे आने और महारानी को सुल्तान के हरम मे भेजने की मांग की गई जो ठुकरा दी गई मार्च 1303 में किले पर दोनों ओर से पूरब के सूरजपोल दरवाजें और पच्छिम के सात दरवाजों पर हमला हुआ पर दो महीनों के घेरे के बाद भी किले जीता ना सका तो सुल्तान ने अमीर खुसरो को अपना दूत बना रतन सिंह के पास भेजा कि सुल्तान व्यर्थ का रक्तपात ना चाहकर संधि करना चाहते है। वे कुरान की कसम खाकर महारानी को अपनी बहन बनाना चाहते है। उन्हें किले मे आने दिया जाय और उन्हें रानी साहिबा का प्रतिविम्ब शीशे मे दिखा दिया जाय तो वह बिना किसी युद्ध के वापस लौट जायेंगें व्यर्थ के रक्तपात को रोकने और प्रजा को नरसंहार से बचाने के लिये रावल इसके लिये राजी हो गये। गोरा चैहान ने इसे सुल्तान की एक चाल बताकर रतन सिंह को रोकना चाहा पर राणा नही माने साथ ही उन्होंने काका गोरा को अपमानित भी किया गोरा शासन छोड़कर घर बैठ गये उन्होंने राजा से भोजन वेतन लेना भी बंद कर दिया सुल्तान राजसी मेहमान के तौर पर किले मे सूरजपोल से दाखिल हुआ कई दिनों तक राजसी मेहमान बना एक दिन रानी पद्यमनी का विम्ब उसे शीशे में दिखाया गया जिसे देखकर वह कामांध हो गया जब रावल सुल्तान को विदा करने किले के बाहर आये तो सुल्तान नें उन्हें सूरज पोल पर धोखे से बंदी बना कर दिल्ली के लालकोट किले मे कैद कर लिया सुल्तान ने रानी पद्यमनी के पास अमीर खुसरो व चित्तौड़ के नायक देवपाल को दूत बना कर संदेश भिजवाया कि यदि महारानी सुल्तान के हरम मे आने को तैयार हों तभी रावल जी को छोड़ा जायेगा पटरानी प्रभावती के बेटे वीरभानु व देवपाल ने भी उन्हें सुल्तान के हरम मे जाने की सलाह दी महारानी ने गोरा के बारे मे सारा हाल जानकर गोरा चैहान को मदद के लिये बुलाया वे मेवाड़ छोड़ की कही और जाने पर विचार कर रहे थे तभी रतन सिंह कैद हो गये जिससे उन्होंने जाना स्थगित कर दिया वे अपने भतीजे बादल सहित चितौड़ आये तभी लक्षमण सिंह भी गोगाराव का वध करके  मालवा से लौटे रानी ने सभी सामंतों से मिल कर रावल को सुल्तान की कैद से छुड़ाने की एक गुप्त योजना बनाई महारानी ने सुल्तान तक सूचना पहुँचाई कि वह हरम मे आने को तैयार है पर उनकी दो शर्ते है वे अपनी सात सौ दासियों के साथ आयेंगी जिन्हें किसी भी सिपाही द्वारा रोका ना जाये दूसरी वह हरम मे आने के पहले महारावल रतन सिंह से मिलना चाहती हैं दोनों शर्तें मान ली गई सात सौ डोलियों मे हथियार बंद राजपूत बैठे और प्रत्येक डोली मे 16-16 कहारों के रूप में राजपूत सैनिक थे जब यह काफिला दिल्ली पहुँचा तो सुल्तान जश्न मनाने लगा रावल को महारानी से मिलवाया गया जहां रानी की जगह स्त्री वेश में लोहार बैठा था जिसने रावल की बेड़ियां काट दी और राजपूत रावल को डोली में बैठाकर किले के बाहर ले गये जहाँ रावल किले के बाहर खड़े घोड़े पर सवार होकर चित्तौड़ भाग निकले तुर्क सैनिकों को इस धोखे का पता चलते ही वे राजपूतों का पीछा करने लगे जिसे गोरा चैहान ने अपनी टुकड़ी सहित किले के फाटक पर रोका और  अपार तुर्क सेना से लड़ते हुये वे शहीद हो गये तुर्कों ने उनका शव किले की बुर्ज पर डाल दिया बाहर भतीजें बादल को जब ताया गोरा के शहीद होने की खबर मिली तो उसने सोचा कि ताई जरूर सती होगीं अतः वह अकेले ही किले मे घुस गया ताया का शव घोड़े पर रख कर भाग निकला कुछ तुर्क सैनिको ने उसे रोकने की कोशिश की पर वह मार-काट मचाता हुआ चित्तौड़ पहुँच गया रावल भी सकुशल चित्तौड़ पहुँच गये गोरा की पत्नी गोरा के शव के साथ सती हो गई रावल ने गदद्ार देवपाल को मौत के घाट उतार दिया अब अलाउद्दीन ने किले पर दुबारा हमला किया रावल रतन सिंह के चचेरे भाई व मेवाड़ के सेनापति भड़लक्ष्म सिंह जो सिसौदा रियासत के राजा थे ये 13-14 भाई थे और उनके 6-7 पुत्र थे अपने पुत्र अनंतसी, अरसी और अजय सिंह तथा सात अंय भतीजो, 14 साल के नायक बादल, रणथंभौर के राजा हम्मीर चैहान का पुत्र रामदेव या रतनसिंह जिसे हमीर ने 10 जुलाई 1301 को जौहर के बाद हुये साके मे वीरगति पाने से पूर्व  चित्तौड़ भेज दिया था डोडया सरदार विजय सिंह ने अपने पांच हजार सैनिकों सहित किले पर मोर्चा संभाला 13 सेनापतियों के नेतृत्व मे कई दिन युद्ध चला जिसमे लक्ष्मण सिंह के पुत्र अनंतसी, अरि सिंह, उनके 13 भाई 7 भतीजे युवराज वीरभानु शहीद हो गये अजय सिंह घायल हो गये किले मे  संसाधनों की कमी, सैनिकों की घटती संख्या और बाहरी मदद की आशा ना देखकर रावल रतन सिंह ने घायल अजय सिंह को खजाना देकर पुश्तैनी रियासत सिसौदा भेज दिया स्थिति को समझकर महारानी जौहर की तैयारी करने लगी 25 अगस्त 1303 को प्रातः सूर्याेदय के समय महारानी पद्यमनी जो अद्वितीय सौन्दर्य व वीरता की देवी थी अपनी पवित्रता और आन-बान की रक्षा हेतु हजारों स्त्रियों के साथ किले के केन्द्र मे बने कुंभामहल के तहखाने की जौहर की चिता मे कूद पड़ीं किले के फाटक खोल दिये गये रावल केसरिया बाना पहने 30, हजार वीर राजपूतों सहित तुर्क सेना पर टूट पड़े और लड़ते लड़ते वीरगति को प्राप्त हो गये लक्षमण सिंह, डोडया विजय सिंह, बादल चैहान, रामदेव 84 अंय सामंत हजारों सैनिकों सहित शहीद हो गये इस तरह गहलौतों की रावल शाखा का अंत हो गया सोमवार 11 मोहर्रम, 703 हिजरी 25 अगस्त 1303 को सुल्तान, ने खिज्र खां, अमीर खुसरो, राघव चेतन, शाही फौज के साथ किले मे प्रवेश किया जहाँ चितौड़ का राय क्षमा याचना हेतु सुल्तान के सामने उपस्थित हुआ जिसे सुल्तान ने क्षमा कर दिया परन्तु जब सुल्तान को पद्यमनी की जगह उसके जौहर की खबर व राख मिली क्रोध मे आकर उसने राघव चेतन का      वध कर दिया तथा 30, हजार बेगुनाह, ब्राह्मणों, स्त्रियों पुरूषों, बच्चों का भी वध करवा दिया अनेक मंदिरो कों तोड़कर वहांँ मस्जिदें बना दी गयीं। किला खिज्र खा। को दे दिया चित्तौड़ का नाम खिज्राबाद रखा गया 10 दिन रह कर 20 मुहर्रम (3 सितम्बर 1303) के बाद शाही फौज दिल्ली लौट गई बाद में सुल्तान ने किला राजा जालौर के राजा मालदेव को दे दिया कालान्तर में अजय सिंह ने अपने पुत्रों सज्जन सिंह व क्षेम सिंह के बजाय बड़े भाई अरि सिंह के वीर पुत्र हमीर को सिसौदा का उत्तराधिकारी बनाया मालदेव ने अपनी पुत्री हमीर को ब्याह कर मेवाड़ के आठ जिले उसे दहेज मे दिये जिससे मेवाड़ पर पुनः राणाओं का शासन प्रारंभ हुआ मालदेव की मृत्यु के बाद हमीर ने राजा मालदेव के पुत्र व अपने साले जय सिंह पर हमला करके सन 1318 में चित्तौड़ पर पुनः कब्जा कर लिया और राणा शाखा को जंम दिया रतन सिंह ने 1 साल 3 महीने 5 दिन राज्य किया था कुंभा महल के दक्षिण पश्च्छिम मे रतन सिंह महल, रानी पद्मनी के महल व तालाब मे मध्य ओर बांये बना ग्रीष्मकालीन पद्मनी महल (जनाना महल), गोरा बादल के महल व छतरियां, सती स्थल आज भी देशभक्ति, शौर्य, त्याग बलिदान की उस गौरव गाथा के मूक साक्षी है। किवदंती है कि रानी पद्मनी ने जौहर से पूर्व खिलजी को शाप दिया कि जैसा खिलजी ने मेरे कुल व चित्तौड़ वासियों का विनाश किया है। वैसा ही उसके कुल का भी नाश हो वो निरवंशी भी मरे वास्तव मे वैसा ही हुआ केवल 10 साल बाद सुल्तान जलोदर व वहम का रोगी हो गया उसने मलिक काफूर की बातों मे आकर अपने वफादारों सरदारों को कठोर मृत्यु दंड दिया अपने बेटे खिज्र खाँ व बहू देवल कुमारी को ग्वालियर किले मे व अपनी पत्नी महरू को दिल्ली में कैद कर लिया 6 जनवरी 1316 को मलिक काफूर द्वारा विष देने से खिलजी की मृत्यु हो गई मलिक ने सुल्तान के छोटे पुत्र उमर को सुल्तान बनाया और खिलजी के पुत्र, खिज्र खां, शादी खाँ की आँखे निकलवा कर मरवा दिया अंय पुत्र मुबारक खां को कैद कर लिया पर वह कैद से भाग गया और मलिक काफूर को मरवा कर खुद सुल्तान बन गया उसने उमर की आंखें निकला ली 15 अप्रैल 1320 को मुबारक खां की भी मृत्यु हो गई इसी के साथ खिलजी वंश निरवंशी समाप्त हो गया जबकि मेवाड़ का राजघराना 715 साल बाद भी अपनी पूरी आन बान शान के साथ खड़ा है। दामोदर लाल गर्ग के अनुसार पद्यमनी जैसलमेर के 1276 में निष्काशित राजा पुण्यपाल की पुत्री तथा पूंगलगढ की राजकुमारी थी पूंगलगढ चितौड़ से 184 किमी उत्तर पश्च्छिम में बीकानेर राज्य के अन्र्तगत चमलावती व रमनेली नदियों के संगम पर पिंडकेश्वर तीर्थ पर स्थित था यह बीकानेर से 50 किमी पच्छिम मे खाजूवाला रोड पर मे है। किसी ने उन्हें गुजरात, रणथंभौर, जैतगढ के डोडिया राजा की बेटी, सिंध लंका या सौराष्ट की राजकुमारी बताया है। पर वास्तव मे वे कोटा मघ्य प्रदेश सीमा पर चित्तौड़ से 40 किलोमीटर पूर्व सिंगौली के चैहान राजा हमीर शेख की पुत्री थी और जो जालौर नरेश का संबधी था चित्तौड़ के पूर्व मे जई नामक गांव के राजपूत खुद को पद्यमनी के मायके का वासी और उनके विवाह के समय रानी के साथ चित्तौड़ से पूर्व से आने की बात करते है। गोरा चैहान का उनका ताया होना तथा जालौर नरेश का उनका संबधी होना भी उन्हें चैहान राजकुमारी होना बताता है। ना कि जैसलमेर की भाटी। जई वासियों अनुसार उनके परिवार की स्त्रिया गयी रानी पद्यमनी के साथ जौहर मे शहीद हुयी थी पर एक स्त्री गर्भवती होने के कारण बच गई थी बाद मे राणा ने उनके भरणपोषण के लिये जई गांव दिया चित्तौड़ के गंगरार तहसील के सोनियाणा गांव के मेनारिया ब्राह्मण के अनुसार 1302 मे उनके पूर्वजों ने रानी पद्यमनी के लिये पुत्रेष्टि हवन किया पर इसके शीघ्र बाद ही हमला हो गया राणा रतन सिंह ने यह गांव उनके पूर्वजों को यज्ञ के दान मे दिया था। रानी पद्यमनी का जंम 1285 में हुआ था सन 1300 में 15 वर्ष की आयु में उनका विवाह रावल रतन सिंह से हुआ था 1302 में  उन्होने पुत्रेष्टि हवन करवाया था था और 25 अगस्त 1303 में वे जौहर करके शहीद हो गयीं। 


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