राजा सुहलदेव की वीरता

संवत 1082 माघ मास कृश्ण द्वितीया दिनांक 13 जनवरी 1027 को 2-3 बजे दोपहर में गजनी के धर्मान्ध, मुस्लिम लुटेरे महमूद गजनबी ने अपार सोना व दौलत लूटने के लालच में गुजरात के प्रभास तीर्थ में स्थित भगवान शिव का गौरवशाली सोमनाथ मंदिर जो साक्षात उच्च के चन्द्रमा का प्रतीक था तोड़ दिया (प्रसिद्ध ज्योतिषी संजय राठ ने अपनी पुस्तक वैदिक रेमेडीज में 12 राशियों के द्वादशलिंगों का वर्णन किया है) जिसमें सोमनाथ को वृष राशि में माना है। जहाँ चन्द्रमा उच्च का होता है।) भारत में केन्द्रीय सत्ता व राजनैतिक एकता के अभाव और छोटे-छोटे अति निर्बल और मात्र अपना ही हित देखने वाले राज्य भारत की इस दुर्गति के कारण बने। मंदिर के प्रमुख पुजारी घोघाराम ने महमूद को भगवान शिव के भयानक शाप की चेतावनी भी दी और जब महमूद गदा से अद्वितीय लिंग को तोड़ने लगा तो पुजारी ने कहा कि आप सोना लें लें किन्तु प्रतिमा को स्पर्श ना करें किन्तु वह ना माना तो उसने शाप दिया कि जो भी भगवान शिव के लिंग को अपवित्र करेगा वह अपने दुर्भाग्य व मृत्यु का स्वयं जिम्मेदार होगा। किन्तु वह ना माना पुजारी लिंग से लिपट गया महमूद ने पहले उस लिपटे पुजारी की हत्या की फिर प्रतिमा तोड़ी। सोमनाथ मंदिर के विध्वंस का समाचार फैलते ही मालवा समेत सारे देश मे प्रतिशोध की ज्वाला जल उठी उससे भयभीत होकर गजनबी ने वापसी का रास्ता बदल लिया और रेगिस्तान के रास्ते गजनी लौटा रास्ते में रेतीले तूफान और लुटेरों के हमले मे उसे अपार कष्ट और धन हानि उठानी पड़ी। खजाने पर कई परिजनों और सरदारों की धनलोलुप नजरें गड़ गई। उसे सदा अपनी जान और खजाना लुटने का खतरा महूसस होता था सदा षडयंत्रों की आशंका ने उसे मानसिक रोगी बना दिया और इतिहास गवाह है। कि उसके बाद उसने कोई भी हमला या बड़ा अभियान नही चलाया और मात्र चार साल बाद 30 अप्रैल 1030 को 59 वर्ष की उम्र मे मलेरिया और क्षय रोग से उसकी मृत्यु हो गई उसकी मौत के बाद उसका बेटा मोहम्मद गजनी का बादशाह बना तो उसने पुनः भारत लूटने की योजना बनाई महमूद का भान्जा सैयद सालार मसूद इस अभियान का सरदार था इस अभियान में सोमनाथ विध्वंस में शामिल गजनी के सभी दुर्गान्त सरदार मसूद के पिता सालार षाह बिन अताउल्लाह, सालार सैफुदद्ीन, रजब मियाँ, सुल्तान एरातलीन, मीर बख्तियार, मलिक हैदर, सिकंदर दीवानी आदि शमिल हुये। वह मइ्र्र 1931 में एक लाख फौज व 50,000 घुड़सवार लेकर चला उसकी पहली टक्कर पंजाब के शाही नरेश त्रिलोचनपाल व स्यालकोट के राजा राय अर्जुन से हुयी जो मसूद की विषाल फौज से हार गये फिर वह दिल्ली पहुँचा जहाँ उसका मालवा और गुजरात के तोमर राजा महिपाल से भंयकर युद्ध हुआ महिपाल के पुत्र गोपाल नंे मसूद की नाक काट ली मसूद और उसके पिता सालार शाह भागने ही वाले थे कि गजनी से उसकी मदद हेतु गजनबी के बेटे मोहम्मद की विशाल फौज आ गई महिपाल इस संयुक्त सेना का सामना नही कर सके और पराजित हुये और उनके पुत्र गोपाल वीरगति को प्राप्त हुये। मसूद ने दिल्ली को जी भर कर लूटा फिर उसने कन्नौज के राजा यशपाल परिहार पर हमला किया परिहार साम्राज्य उस समय अतिम सांसे गिन रहा था। यशपाल ने यद्यपि मसूद का मुकाबला किया किन्तु अपने से 10 गुना से भी ज्यादा बड़ी फौज का वह सामना नही कर सका और हार कर भाग गये मुस्लिम लुटेरों की फौज ने कन्नौज को खूब लूटा फिर मसूद ने सन 1033 की होली (फाल्गुन पूर्णिमा) के दिन यशपाल के अधीनस्थ लखनऊ के राजा बिजली पासी पर हमला किया पासी राजा बेहद बहादुरी से लड़ते हुये शहीद हो गया कहा जाता है। कि उनका सर कटने के बाद भी उनका कबंध लड़ता रहा मुस्लिम फौज यह अचरज देख कर भाग गई जिस जगह उसका सर कटा वह स्थान आज सरकटा नाला कहलाता है। इसके बाद मसूद ने बाराबंकी और अयोध्या को लूटा और वहां सम्राट विक्रमादित्य द्वारा निर्मित भगवान राम के जंमभूमि मंदिर को क्षतिग्रस्त किया। उसके सेनापति ने दलभड़करा पर अधिकार कर वहाँ अपना सेनापति मलिक अब्दुल्ला को रख छोड़ा मालवा के परमार नरेश भोज की विशाल फौज केे डर से दक्षिण ना जाकर उसने श्रावस्ती के प्रसिद्ध सूर्य मंदिर को लूटने का फैसला किया इस समय श्रावस्ती और बस्ती पर वैस वंश के पराक्रमी और सुयोग्य राजा सुहलदेव का शासन था जो वैस वंश के क्षत्रिय त्रिलोक चन्द्र वैस के बड़े पुत्र बिड़ारदेव के वशंज और राजा बिहारीमल (मोरघ्वज)के ज्येष्ठ पुत्र थे। (आजकल  इतिहास से अभिनिज्ञ कुछ राजनेता सुहलदेव को अपने राजनैतिक लाभ के लिये कही पासी तो कही राजभर बताते हैं) वह खुद एतराम में रूक गया जहाँ उसका पिता सालार शाह भी एक बड़ी फौज लेकर आ गया तारीखे मसूदी के अनुसार इसी दौरान मसूद ने मीर बख्तियार और सुल्तान एरातालीन को दक्षिण के जिले लूटने भेजा।
 मीर बख्तियार और सुल्तान एरातालीन ने मसूद के आदेश पर सुल्तानपुर को लूटने के मकसद से हमला किया जहाँ उनकी राजा सुहलदेव और राजा हरदेव की फौज से जबरदस्त टक्कर हुयी। जहाँ मुस्लिम फौज बुरी तरह पराजित हुयी। मसूद के 5 बड़े सेनापति मारे गये गजनबी के समय से आज तक मुस्लिम फौज को इतनी बड़ी हार का सामना नही करना पड़ा था। मसूद जब दिल्ली युद्ध में लगा था, उस समय सुहलदेव नेे भावी संकट को देखते हुये 17 राजाओं का संघ बनाया जिसमे उन्होने तत्कालीन सभी छोटे व बड़े राज्यों को देश व धर्म की, रक्षा के लिये आमंत्रित किया इस संध में राय रायब, राय सायब, राय अर्जुंन, राय भीकम, राय मकारू,राय सवारू,राय कनक, राय कल्याण, राय हरपाल, राय अरन, राय बीरबल, राय जयपाल, राय श्रीपाल, राय हकारू, राय नरसिंह, राय प्रभु, राय देवनारायन शमिल हुये राजा सुहलदेव का  पुत्र अल्हण व भाई मेघ, चंदेल नरेष विद्याधर का पुत्र विजयपाल, जिसके पिता ने महमूद गजनबी को भी आंतकित किया था। बिहार के राजा राय हरदेव, उनके साथी कदा और मलिकपुर के राय राजा , परिहार नरेश यषपाल, दिल्ली के महिपाल का पुत्र कुमारपाल, पंजाब के षाही वंष का राजा सन्दलपाल व जो अपना राज्य छिन जाने पर अपने पिता त्रिलोचन पाल के साथ कालिजंर आ गया था और आते समय रास्ते मे कुछ लुटेरोें ने धन के लालच में त्रिलोचनपाल की हत्या कर दी थी। इस युद्ध के बाद उसें गोरखपुर की जागीर मिली आज भी गोरखपुर और उसके आस पास शाही क्षत्रिय निवास करते है तथा गजनबी के हमले मे नष्ट हुये अनेक राज्यों के राजा, सैनिक व नागरिक जो पूरब को सुरक्षित मान कर इधर बस गये थे शामिल हुये इस युद्ध में भारी संख्या में वैस, भाले सुल्तान, कलहंस राजपूत ,रैकवार क्षत्रिय, पासी और भर भी लड़े अब रजब ने बहराइच पर हमला करने के लिये और बहराइच से सालार सैफुददीन ने संदेष भेजा कि दुश्मन काफी ताकतवर है तुरन्त फौज भेजो। संदेश पाकर मसूद पिता सहित भारी फौज लेकर पहुँचा ( इलियट डरेवाली एंड-2-पेज-538 ) इस संयुक्त फौज ने कसाला नदी के किनारे पड़ाव डाला और सबने तय किया कि राजपूतों पर हमला कर देना चाहिये किन्तु उनकी इस योजना की भनक सुहलदेव को लग गई उन्होने मुस्लिम फौज के रास्ते में खाइयां व गढढे खोद कर उन्हें उपर से ढक दिया और कई पेड़ काट कर रास्ते मे डाल दिये व छोटी छोटी लोहे की गेंदों मे छोटे छोटे भाले लगा कर भारी संख्या में फैला दिये। जिनसे मुस्लिम फौज के घोड़े भारी संख्या में भालों की चोट व गढढों में गिरकर लंगड़े हो गये। इन सब मुसीबतों को झेलते हुये किसी तरह मसूद ने अपनी सेना की व्यूह रचना की। राजपूतो ने उसे संदेश भिजवाया कि यह भूमि राजपूतों की है वह वापस चला जाय मसूद ने जवाब दिया कि सारी भूमि खुदा की है। मुस्लिम इतिहासकार शेख अब्दुलर्रहमान चिश्ती की पुस्तक 'मीरात-ए-मसूदी' के अनुसार 13 जून 1033 दिन षनिवार को चितौरा झील के किनारे राजा सुहलदेव ने इस फौज को अपनी 17 राजाओं की 1,20,000 सॅनिको की संयुक्त फौज से घेर लिया अपने को बचाने के लिये मसूद ने अपने चारों ओर गायें खड़ी कर ली तथा एक हिन्दू महिला से अपने कैदी सुहाग की मांग करवाई किन्तु राजपूतों ने रण के भारी बाजे बजवाये जिनकी आवाज से गायें भाग गई। राजपूतों ने कई ओर से मसूद पर भयानक हमला बोला जिससे मुस्लिम फौज भारी संख्या मे मारी गई। यह देख कर उसने कुछ सेना राजपूतों के हरावल के मुकाबले हेतु छोड़ कर बाकी सेना लेकर राजपूत सेना के बायें बाजू पर हमला किया और दिन भर भारी रक्तपात हुआ शाम को युद्ध बंद होने पर मसूद ने जब अपनी सेना की गिनती करवाई तो पता चला कि उसके एक तिहाई सैनिक और आधा दर्जन बड़े बड़े सेनापति मारे गये जबकि राजपूत सेना का ज्यादा नुकसान नही हुआ। मुस्लिम फौज में मातम छा गया। उसने रात अपनी फौज को जोशीला भाषण दिया कि मैं दुश्मन को पीठ नही दिखा़ऊँगा यदि तुम लोग वापस जाना चाहो तो जा सकते हो। मुझे कोई नाराजगी नही होगी। मसूद फूट फूट कर रोने लगा यह देख कर फौज भी रोने लगी। दूसरे दिन 14 जून 1033 रविवार जेठ अमावस्या (14 रजब,हि 424) को प्रातः पुनः युद्ध शुरू हुआ राजा हरदेव और सुहलदेव के नेतृत्व मे मसूद गाजी की फौज पर दो ओर से भयानक हमला हुआ। दिन भर घमासान युद्ध हुआ। दिन डूबते डूबते मैदान राजपूतों के हाथ आ गया। इसी बीच राजा सुहलदेव ने गाजी मियां को सामने देख कर तीर मारा जिसकी घातक चोट से गाजी गिर पड़ा सिकंदर दीवानी और अंय साथी उसे गोद में उठाकर एक बगीचे में भागे। गाजी मियां के गिरते ही मुस्लिम फौज का उत्साह भंग हो गया।
 वह जान बचा कर भागने लगी तभी राजपूतों ने भीषण गति से निर्णायक हमला किया मसूद की फौज इस हमले को रोक नही पाई और बुरी तरह कटने लगी। राजा सुहलदेव अपनी टुकडी के साथ गाजी के पीछे बाग में भागे जहां गाजी के सैनिको ने उसे बचाने के लिये अतिंम लड़ाइ्र्र लड़ी जिसमे सुहलदेव को गंभीर धाव लगे किन्तु इस पर भी उन्होने मसूद का सिर काट लिया शेष भागती मुस्लिम फौज का राजपूतों ने पीछा करके सफाया कर दिया ( तवारीख-ए-मुल्ला मुहम्मद आफ गजनी ) 40 हजार मुस्लिम सैनिक बंदी बनाये गये। अगले दिन राजा सुहलदेव वीरगति को प्राप्त हुये कुछ के अनुसार उनकी मृत्यु सन 1050 में हुयी और सब राजाओं की सम्मति से सभी 40 हजार बंदियों का वध कर दिया गया और राजा सुहरदेव के पुत्र अल्हण श्रावस्ती का राजा बने। मसूद का डेरा लूट कर उसमें आग लगा दी गई और गाजी द्वारा दिल्ली, मेरठ, कन्नौज, लखनऊ, बाराबंकी, अयोध्या से लूटी गई सारी दौलत जब्त कर ली गई। जिसे राज्यों की जनता और ध्वस्त मंदिरो के पुनरूद्धार में लगाया गया। जिस जगह पर राजा सुहलदेव का दाह संस्कार हुुआ था वहाँ एक विजय स्मारक बनाया गया जिसको सूर्य मंदिर सहित 1224 में सुल्तान अल्तमष के बेटे व अवध के सूबेदार नसीरूदद्ीन मुहम्मद ने तुड़वा कर उस जगह गाजी मियां की दरगााह बनवा दी। राजपूतों की इस विजय की खुशियां मुस्लिम लुटेरों से पीड़ित अनेक देशों में मनाई। इस युद्ध ने विदेषी हमलावरों की ऐसी कमर तोड़ी कि आगामी 160 साल तक किसी भी हमलावर को भारत पर हमला करने का साहस नही हुआ। राजा सुहलदेव का जंम बसन्त पंचमी संवत 1009 को और मृत्यु 15 जून सन 1033 को हुयी थी। मीरात-ए-मसूदी के अनुसार इस युद्ध में पौन करोड़ लोग लड़े थे जो काल्पनिक है। आज इस युद्ध स्थल पर राजा सुहलदेव (सुखदेव) का मंदिर व स्मारक बना हुआ है। जहाँ हर साल कार्तिक पूर्णिमा को को विशाल मेला लगता है।  


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