सशस्त्र संघर्ष के समय में पर्यावरण की रक्षा

विश्व की शान्ति की सबसे बड़ी संस्था संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 5 नवम्बर 2001 को ''युद्ध और सशस्त्र संघर्ष द्वारा होने वाले पर्यावरण के दोहन को रोकने के लिए प्रत्येक वर्ष 6 नवंबर को यू.एन. अंतर्राष्ट्रीय दिवस' के रूप में मनाने की घोषणा की गई है। युद्धों के दौरान घायल एवं मृत व्यक्तियों की गणना तो मानव जाति के द्वारा नुकसान के रूप में की जाती है किन्तु सच्चाई यह है कि इन युद्धों के दौरान शहरों के नष्ट होने, आजीविका संकट में वृद्धि होने तथा पर्यावरण दोहन आदि पर भी इसका गहरा प्रभाव पड़ता है। युद्ध तथा सशस्त्र संघर्ष के चलते पेय जल साधनों को प्रदूषित कर दिया जाता है, फसलों को आग लगा दी जाती है जिसके कारण सारा वातावरण प्रदूषित और मिट्टी जहर बन जाती है। इसके साथ ही जानवरों को सैन्य लाभ हासिल करने के लिए मार डाला जाता है। इस प्रकार युद्धों तथा सशस्त्र संघर्षों का पर्यावरण के साथ मानव और पशु आबादी की आजीविका तथा जीवन पर गंभीर प्रभाव पड़ता है, जिसमें से 'पर्यावरण' सबसे बड़े पीड़ितों में से एक है। 
 वर्तमान परिस्थितियों में जबकि कई देशों ने परमाणु बम बना लिये हैं, ऐसे में यदि एक पागल आदमी बस एक बम चला दे, तो करोड़ों आदमी तो वैसे ही मर जाएँगे, बाकी बचे आदमियों के लिए हवा जहर बन जाएगी। जहरीली हवा, जहरीला पानी, जहरीले अनाज और जहरीले घास-पात को खा करके कोई भी मनुष्य तथा जीव जिंदा नहीं रह सकता। उस परिस्थिति में सारे संसार मंे जीवन का अस्तित्व ही खत्म हो जायेगा। 6 नवंबर युद्ध और सशस्त्र संघर्ष में पर्यावरण के दोहन को रोकने के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर यह महत्वपूर्ण दिवस है। संयुक्त राष्ट्र के पूर्व महासचिव श्री बान की मून ने अपने संदेश में कहा है कि इस अंतराष्ट्रीय दिन पर हम युद्ध तथा सशस्त्र संघर्ष के समय में पर्यावरण की रक्षा और प्राकृतिक संसाधनों के सुशासन तथा पुनर्निर्माण के दौरान बहाल करने के महत्व पर जोर देते हैं। हम यह भी समझते हैं कि प्राकृतिक संसाधनों की आजीविका और लचीलापन समाज के लिए विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा हेतु टिकाऊ प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन के निहितार्थ महत्वपूर्ण भूमिका है। सभी को युद्ध तथा संघर्ष की रोकथाम और शांति के लिए यथा शक्ति योगदान करना चाहिए। 
 संयुक्त राष्ट्र के पूर्व महासचिव डा. कोफी अन्नान ने कहा था कि विश्व की 6 अरब आबादी में से आधी अर्थात 3 अरब आबादी अति निर्धनता की स्थिति में जीवन यापन कर रही है। तथापि बीसवीं शताब्दी मानव सभ्यता के इतिहास में सर्वाधिक पाशविक हिंसा एवं खून खराबे की शताब्दी रही है। संसार की जलवायु बुरी तरह से परिवर्तित हो रही है जिससे लाखों लोगों के बेघर होने एवं उनकी आजीविका नष्ट होने की सम्भावना बढ़ती जा रही है। विश्व के समक्ष उपस्थित संकटों को हल करने के लिए अधिकांश देश उन संकटों को हल करने के लिए आज संयुक्त राष्ट्र की ओर देख रहे हैं जिन संकटों को उनके राष्ट्र हल करने में अपने को असमर्थ पा रहे हंै। डा. अन्नान ने आगे कहा था कि संयुक्त राष्ट्र संघ की अपनी कोई ताकत नहीं है। उसके सदस्य राष्ट्रों की आम सहमति से लिए गये निर्णय ही उसकी ताकत है। 
 हमारा मानना है कि आतंकवाद, परमाणु शस्त्रों की होड़, ग्लोबल वार्मिंग, गरीबी, बेरोजगारी, व्यापार युद्ध, करेन्सी वार, आर्थिक मंदी विनाश ने सारी मानव जाति विनाश के कगार पर ला खड़ा किया है। अब मानवता के अस्तित्व की रक्षा के लिए मानव जाति के समक्ष युद्ध एवं शान्ति में से किसी एक को चुनने की निर्णायक स्थिति है। क्या हमें विश्व की इस भयंकर स्थिति को एक दर्शक की भांति मूक होकर देखते रहना है? या फिर हमें परमाणु युद्धों की आशंका एवं अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद की स्थिति को रोकने के लिए यथा सम्भव योगदान करने के लिए आगे आना चाहिए? 
  हम सबको एक होकर वैश्विक समस्याओं से निपटना है और सारे विश्व में शान्ति व विश्व एकता स्थापित करने के लिए प्रयास करना चाहिए। हमारा मानना है कि ”अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद केवल अन्तर्राष्ट्रीय कानून द्वारा ही नियन्त्रित किया जा सकता है, युद्धों के द्वारा नहीं। इसलिए एक प्रभावशाली अंतर्राष्ट्रीय कानून से युक्त एक 'विश्व न्यायालय' एवं विश्व संसद के निर्माण की जोरदार अपील हम विश्व समुदाय से करते हैं। 
 आज गांव की समस्या के हल के लिए ग्राम पंचायत है। जिले स्तर पर जिला कचहरी है। राज्य स्तर पर हाई कोर्ट है। राष्ट्रीय स्तर पर सुप्रीम कोर्ट है किन्तु अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ऐसा कोई प्रभावशाली विश्व न्यायालय नहीं है जिसके फैसले सभी राष्ट्रों एवं उसके प्रत्येक नागरिक पर सामान्य रूप से लागू हो। आज विश्व प्रभावशाली अन्तर्राष्ट्रीय कानून के अभाव में विनाश की ओर जा रहा है। पक्षपातपूर्ण पांच वीटो पाॅवर से ग्रसित शान्ति की सबसे बड़ी संस्था संयुक्त राष्ट्र संघ युद्धों को रोकने में अपने आपको असमर्थ पा रहा है। परमाणु शस्त्रों की होड़, व्यापार युद्ध, करेन्सी युद्ध, ग्लोबल वर्मिंग, अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद तथा पृथ्वी के संसाधनों के व्यापक रूप से दुरूपयोग विश्व में पूरी तरह से कानून विहीनता के राज्य का जीता जागता प्रमाण है।  
 अब तक हमने दो विश्व युद्धों में मानव जाति का समूल विनाश करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। इस महाविनाश से घबराकर हमने आगे फिर कभी युद्ध न करने की कान पकड़ कर उठक-बैठक करके तौबा-तौबा की। विश्व शांति के लिए पहले महायुद्ध में लीग आॅफ नेशन्स तथा दूसरे महायुद्ध में संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना की। अफसोस है शान्ति की सबसे बड़ी संस्था संयुक्त राष्ट्र संघ की उपस्थिति में आठ देशों ने हजारों की संख्या में परमाणु बम निर्मित कर डाले हंै। इन बमों से अनेक बार अपनी ही धरती रूपी सुन्दर नीले ग्रह का समूल नाश करने के हमने सारे सरंजाम जुटे लिए हैं। 
 कानून तथा विश्व एकता शिक्षाओं से दुिनयाँ को चलाने का तरीका युद्धोन्माद में डूबे शक्तिशाली देशों को बहुत लम्बा तथा नीरस प्रतीत होता है। गरीब तथा छोटे देश भी इस शस्त्रों की होड़ में शामिल है। जनता से टैक्स के रूप में वसूला पैसा वेलफेयर की जगह वारफेयर में लगाया जा रहा है। वे कहते हैं आपके तरीके से दुनियाँ में शांति लाने में बहुत देर लगेगी। आप शान्ति चाहते हंै। हम परमाणु बमों से दो मिनट में सब शान्त कर देंगे। हम सब मिलकर विश्व को सुन्दर से गुलिस्ता की जगह सुन्दर सा कब्रिस्तान बनायेंगे। हम सब विश्ववासी अपनी-अपनी कब्र में होंगे। स्वर्ग से प्रभु के दूत मोमबत्ती लेकर हमारी कब्रों में जलायेंगे। इस तरह से विश्व में चारों ओर मात्र दो मिनट में 'शांति' हो जायेगी।
  संयुक्त राष्ट्र संघ के जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में पर्यावरण में तेजी से हो रहे बदलाव पर चिंता दोहराई गई है। इस सम्मेलन में विकसित और विकासशील देशों ने एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप तो थोपे ही लेकिन जो चिंताएँ व्यक्त की गई, वह वाजिब थी। भारतीय किशोरी युगरत्ना श्रीवास्तव ने इस सम्मेलन के माध्यम से दुनिया के दो अरब पचास करोड़ से अधिक बच्चों के साथ ही आगे जन्म लेने वाली पीढ़ियों के सुरक्षित भविष्य के लिए विश्व के राजनेताओं से पूछ ही लिया कि ''ये कैसा इंसाफ है कि हमें धरती अच्छी हालत में मिले लेकिन हम उसे आने वाली पीढ़ी के लिए खराब हालत में दें?'' युगरत्ना ने आगे कहा कि ''अगर धरती पर रहने लायक पर्यावरण ही न रहेगा तो धन, दौलत व तमाम सम्पत्तियाँ धरी की धरी रह जायेगी।'' युगरत्ना ने धरती को बचाने के लिए दुनिया के लोगों से ऐसे कुछ कदम उठाने की अपील की है जिसका फायदा भावी पीढ़ी तक भी पहुँचे। स्वीडन की बेटी ग्रेटा थनबर्ग ने ग्लोबल वर्मिंग के प्रति यूएन जलवायु परिवर्तन सम्मेलन मंे सारे विश्व को बहुत ही प्रभावशाली ढंग से सचेत किया है।  
 विश्वविख्यात पर्यावरण विशेषज्ञ श्रीमती जेन गुडौल ने चेतावनी दी है कि यदि दुनिया के निवासियों ने एकजुट होकर पर्यावरण को बचाने का प्रभावशाली प्रयत्न नहीं किया तो जलवायु में भारी बदलाव के परिणामस्वरूप 21वीं सदी के अन्त तक छः अरब व्यक्ति मारे जायेंगे। संसार की एक महान पर्यावरण विशेषज्ञ की इस भविष्यवाणी को मानव जाति को हलके से नहीं लेना चाहिए। यह गम्भीर भविष्यवाणी मानव जाति के अस्तित्व को बचाने के लिए समय रहते ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ाने वाले कारणों जिसमें परमाणु बमों के विस्फोट भी एक प्रमुख कारण हंै, को नियंत्रित करने के लिए प्रभावशाली कदम उठाने के लिए प्रेरित करती है। आज ग्लोबल वार्मिंग के कारण पृथ्वी की सतह का तापमान लगातार बढ़ता जा रहा है किन्तु विडम्बना यह है कि हम ग्लोबल वार्मिंग के खतरों को भली भांति जानते हुए भी लापरवाही बरत रहे हैं और सबसे ज्यादा गैर जिम्मेदारी तो वह देश दिखा रहे हैं जिनकी ग्लोबल वार्मिग में सर्वाधिक हिस्सेदारी है। 
 भारत ही विश्व में एकता तथा शान्ति स्थापित करेगा। हमारा मानना है कि युद्धों तथा आतंकवाद से धरती को बचाने के लिए भारत को अपनी संस्कृति के आदर्श वसुधैव कुटुम्बकम् तथा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 के अनुरूप एक वैश्विक लोकतांत्रिक व्यवस्था (विश्व संसद) गठित करने लिए सभी देशों के राष्ट्राध्यक्षों की बैठक शीघ्र बुलानी चाहिए। साथ ही मानव निर्मित तथा प्राकृतिक अपदाओं से सामाजिक सुरक्षा प्रत्येक वोटर को प्रदान करने के लिए वोटरशिप अधिकार कानून की अविलम्ब आवश्यकता है! वोटरशिप कानून के अन्तर्गत प्रत्येक वोटर को उसके हिस्से की आधी धनराशि उसके खाते में भेजने की मुहिम विश्व परिवर्तन मिशन के संस्थापक विश्वात्मा भरत गांधी द्वारा देश में जोरदार तरीके से चलाया जा रहा है। भारत सरकार को उनके द्वारा भारतीय संसद में दायर याचिका पर चर्चा करवानी चाहिए। 


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