शाहजहांँ और ज्योतिषी


इस सम्बन्ध में ऐक रोचक उल्लेख है। एक बार मुगल बादशाह शाहजहाँ के पास काशी से एक ज्योतिषी आया जिसे शाहजहाँ ने परखने के लिये कुछ आदेश दिये। आदेशानुसार ज्योतिषी ने गणना करी और अपनी भविष्यवाणी एक कागज पर लिख दी। वह कागज बिना पढे एक संदूक में ताला लगाकर बन्द कर दिया गया तथा ताले की चाबी शाहजहाँ ने अपने पास रख ली। इस के उपरान्त रोजमर्रा की तरह शाहजहाँ अपनी राजधानी दिल्ली के चारों ओर बनी ऊँची दीवार के घेरे से बाहर निकलकर हाथी पर घूमता रहा। उस ने कई बार नगर के अन्दर वापिस लौटने का उपक्रम किया परन्तु दरवाजों के समीप पहुँच कर अपना इरादा बदला और घूमता रहा। अन्त में उस ने एक स्थान पर रूक कर वहाँ से शहर पनाह तुडवा दी और नगर में प्रवेश किया। किले में लौटने के पश्चात तालाबन्द संदूक शाहजहाँ के समक्ष खोला गया। जब भविष्यवाणी को खोलकर पढा गया तो शाहजहाँ के आश्चर्य कि ठिकाना नहीं रहा। लिखा था कि आज शहनशाह एक नये रास्ते से नगर में प्रवेश करेंगे।


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