तीन दिन तक अकेले लड़ा

घटना 1962 के चीन भारत युद्ध की है। चीन ने भारत के नेफा क्षेत्र में हमला किया। गढवाल राइफल्स की चैथी इन्फ्रैन्ट्ररी बटालियन का सिपाही नम्बर-4039009 जसवंत सिंह रावत 17 नवम्बर 62 को असम-अरूणाचल सीमा पर नूरानांग में तैनात था चीनी सेना की मीडियम मशीन गन भारतीय सेना पर मौत बरसा रही थी। जसवंत सिंह, लांस नायक त्रिलोक सिंह नेगी और राइफलमैन गोपाल सिंह गुसेंग रेंगते हुये चीनी बंकर के 12 मीटर निकट पहुंचे और उन्होंने बंकर पर ग्रेनेड से हमला किया। बंकर के सभी चीनी सैनिक मारे गये। जसवंत सिंह चीनी एम. एम. जी उठा कर त्रिलोक सिंह के साथ अपनी पोेस्ट की ओर भागने लगे किन्तु वह दोनों चीनी फायरिंग का शिकार हो गये। यद्यपि गोपाल सिंह गुसेंग भी घायल था परन्तु वह किसी प्रकार मशीनगन भारतीय चैकी में खींच कर लाने में कामयाब हो गया इससे युद्ध का रूख ही बदल गया। चीनी सैनिक भारी संख्या में मारे गये और वे अपने करीब 300 साथियों की लाशें छोड़ कर भाग गये। जसवंत सिंह को मरणोपरान्त महावीर चक्र के सम्मान से सम्मानित किया गया और गोपाल और त्रिलोक को वीर चक्र से सम्मानित किया गया श्री जसवंत सिंह की शहादत की कहानी भी असाधारण वीरता और बहादुरी से भरी हुयी है। 18 नवम्बर को जसवंत सिंह 10,000 हजार फुट की उंचाई पर नूरानांग में तैनात थे कि उनकी कंपनी को चैकी छोड़ कर पीछे आने का आदेश मिला। सब भाग गये किन्तु वह अकेले पोस्ट पर डटे रहे। उन्होने दो स्थानीय लड़कियों सेला और नौंग की मदद से अकेले तीन दिनों तक चीनी सेना का सामना किया और उन्हें पोस्ट पर कब्जा नही करने दिया। उन्होने कई जगह हथियार जमाये और स्थान बदल बदल कर 303 राइफल से चीनी फौज पर फायरिंग करते रहे। 56 चीनी सैनिक मारे गये। चीनी सेना भ्रम मे रही कि वे पूरी टुकड़ी का सामना कर रहें है। किन्तु अंत में उन्होने जसवंत को राशन सप्लाई करने वाले को पकड़ लिया जिससे उन्हें पता चला वे मात्र एक ही सैनिक का सामना कर रहें हैं। तो उन्होने पूरी ताकत से उन पर हमला किया सेला ग्रेनेड विस्फोट में मारी गई नौंग पकड़ी गई और जसवंत ने खुद को पकड़े जाने के भय से अंतिम कारतूस से खुद को गोली मार ली। चीनी सेना जसवंत का सिर काट कर अपने साथ ले गये। किन्तु चीनी कमांडर जसवंत की बहादुरी से बेहद प्रभावित हुआ युद्धविराम के बाद उसने उनका सिर भारतीय फौज को बहादुरी के चीनी ताम्रपत्र के साथ लौटा दिया जो आज युद्ध स्थल पर बने स्मारक पर जड़ा हुआ है। दोनो लड़कियों के नाम पर राजमार्ग बना है।
 युद्ध के स्थल पर एक छोटा सा मंदिर बना हुआ है। जहां जसवंत सिंह सन्त के रूप में पूजे जाते हैं। एक संगमरमर के शिलालेख में अंकित हैं कि यहां गढवाल राइफल्स के जसवंत सिंह और बटालियन के 161 योद्धा नूरानन्ग के युद्ध में शहीद हुये थे। से ला और जंग के मध्य स्थित यह स्थल जसवंतगढ कहलाता है। यहां से गुजरने वाले सभी अफसर और जवान श्रद्धा से सर झुकाते हैैं। अन्यथा वे उनके शाप के शिकार होते हैं। स्थानीय लोग व इस पोस्ट तैनात सैन्यकर्मी उन्हें जीवित मानते हैं। और उनकी आत्मा पोस्ट में रहती है। और वे जवानों और जनता के सपनों में आकर उनके दुखों और समस्याओं का समाधान करते हैं। 6 जवान रोज उनके जूते, वर्दी बिस्तर और अन्य वस्तुओं को साफ करते है। उनके बिस्तर में सुबह सिलवटें पाई जाती है। और कपड़े फर्श पर सिकुड़े पाये जाते है। भारतीय सेना के इतिहास मे वह एकमात्र अपवाद हैं कि जिन्हें सेना द्वारा मरणोपरान्त भी सारे प्रमोशनल और पद प्रदान किये जाते है। आज वह मेजर जरनल के मानद पद पर हैं। लोंगों का विश्वास है। कि मरणोपरान्त भी जसवंत सिंह की आत्मा पोस्ट की रक्षा करती है।


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