उन्नाव की धरती में चुनौती स्वीकार करने का साहस है

 


उन्नाव लखनऊ तथा कानपुर के बीच में स्थित है उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से लगभग 60 किलोमीटर तथा कानपुर से लगभग 18 किलोमीटर दूर है। दोनो शहरों को जोड़ने वाले राजमार्ग व रेलमार्ग यहाँ से गुजरते है। जनपद के पूर्व में सईं नदी व लखनऊ नगर की सीमाएँ, पश्चिम में गंगा नदी और कानपुर नगर की सीमाएँ, उत्तर में हरदोई, दक्षिण में रायबरेली व दक्षिण-पश्चिम में फतेहपुर है। जनपद मुख्यालय से 6 किमी की दूरी पर शारदा नहर के तट पर स्थित प्रियदर्शी नगर (हिन्दूखेड़ा) ग्राम में राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह अशोक स्तम्भ निर्मित है।
पौराणिक मान्यता के अनुसार उन्नाव के गंगा तट के परियर नामक स्थल पर बैठकर महर्षि वाल्मीकि ने दुनिया के प्रथम महाकाव्य रामायण की रचना की थी। मान्यता है कि लव-कुुुश ने राम की सेना को यहीं परास्त किया था। गौतम बुद्ध ने जनपद के बांगरमऊ ब्लांक के नेवल जगटापुर ग्राम में 512 ई.पू. में 16वाँ वर्षावास व्यतीत किया। नगर को अभी तक अनेक देशभक्त, हिंदी साहित्य के पुराधाओ की धरती से जाना जाता है। 1857 की क्रांति के बाद तत्काल अवध के बैसवारा चकला को विभाजित करके उत्तरी भाग उन्नाव को नया जनपद बनाया गया।
हिन्दी साहित्य में इसके पश्चात भगवती चरण वर्मा व नन्ददुलारे वाजपेयी एवं डॉ॰ राम विलास शर्मा, डॉ॰ शिवमंगल सिंह 'सुमन', प्रतापनारायण मिश्र, सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला', आल्हा सम्राट लल्लू बाजपेई, रमई काका दिनेश बैसवारी केे नाम से जाना जाता है। जहां उन्नाव में अनेकों साहित्यकार हुए और पुत्र ने पिता की सेना को परास्त कर के चुनौती स्वीकार करने का साहस दिखाया है। 


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