वक्री और अस्त शनि के फल

शनि स्थूल रूप से एक राशि पर 30 माह रहते हैं। और प्रतिवर्ष वार महीने या 140 दिन वक्री रहते हैं। वक्री होने के 5 दिन आगे पीछे स्थिर रहता है। शनि सूर्य से चैथी राशि पार करते ही वक्री हो जाता है। सूर्य से पांचवी, छठी राशि पर वक्री, सातवी और आठवी राशि पर अति वक्री और नवमी व दसवी राशि पर कुटिल हो जाता है। वक्री शनि अपने से 12वीं राशि का फल देता है, और अति अशुभ फल और आयु क्षीण करता है। जंमस्थ वक्री जातक के जाॅब तक कई बार परिवर्तन कराता है। आत्मविश्वास में कमी देता है। अशांति, असन्तुष्टि, शक्कीपन, असुरक्षा व स्वार्थी बनाता है। अन्र्तमुखी, निराशाबादी एकांतवासी, लापरवाह, खोखले, डरपोक व समझौतावादी होते हैं। लग्न मे वक्री शनि अहंकारी, अड़ियल, विद्वान, कुटिल, कूटनीतिक, धनवान बनाता है। लग्न में उच्च या स्वग्रही या धनु मीन राशिगत षनि उच्च पद और राजा के समान वैभव देता है।
 द्वितीय भावस्थ वक्री शनि भौतिकतावादी, कटुभाषी, खर्चीला, परदेश मे धन कमाता है। तृतीय भावस्थ वक्री शनि शिक्षा, भाई बहनों के प्रति लापरवाह रहता है। अशांत, धनहानि, प्रतापी और शास्त्रों का ज्ञाता होता है। 
 चतुर्थ भावस्थ वक्री शनि अति भावुक, जायदाद के प्रति लापरवाह उच्च या स्वग्रही हो तो जायदाद मिलती है।
 पंचम भावस्थ वक्री शनि संतान के प्रति लापरवाह, प्रेम मे अति स्वार्थी, कामुक, अपमानित होता है। 
 शष्ठ भावस्थ वक्री षनि अति रिर्जव, रोगी, शत्रु रहित, शत्रुहन्ता किन्तु नीच शत्रुआंे से पीड़ित रहता है। 
 सप्तम भावस्थ वक्री शनि पार्टनरों से हानि, अस्थाई पार्टनर, अहंकारी, पत्नी मित्रों के प्रति शंकालु, कटु आलोचक व अविश्वास करने वाला होता है। विधवा, विधुर, तलाकशुदा तथा पति-पत्नी के मध्य आयु का काफी अंतर या बड़ी उम्र की पत्नी देता है। 
 अष्ठम भावस्थ वक्री शनि अति विद्वान, दुष्ट, विद्याओं का दुरूपयोग करके धन कमाने वाला होता है।        अष्ठमेश अल्पायु, नवमेश भाग्य मे अचानक पतन, दशमेश जाॅब मे कई बार परिवर्तन कराता है। लाभेश आय मे अचानक हानि या बेरोजगारी देता है। अस्त शनि के फल:- अस्त शनि कर्मों, मेहनत, योग्यता का पूरा फल ना मिल, जाॅब में उतार-चढ़ाव, एकाकीपन, उदासी, गठिया, लकवा रीढ की हड्डी के रोग, टी. बी., बेराजगारी, पिता या उच्चाधिकारियों में मतभेद। यदि शनि लग्नेष हो तो रोग, द्वितीमेश हो भारी कर्जा, तृतीयेश हो तो छोटे सहोदरों की मृत्यु या कश्ट, चतुर्थेश हो तो माता को रोग, वाहन, मकान, शिक्षा मे बाधा, षश्ठेश हो तो रोग, काला जादू, सप्तमेश विवाह विलंब, दुःखी वैवाहिक जीवन, अष्ठमेश रोग, अल्पायु नवमेश भाग्य हानि पिता को रोग, दशमेश हो तो बेराजगाारी, लाभेश हो तो  आय हानि, व्यय हो तो सुख हानि। अष्ठमेश अल्पायु, नवमेश भाग्य मे अचानक पतन, दशमेश जाॅब मे कई बार परिवर्तन कराता है। लाभेश द्वादश भावस्थ वक्री शनि अन्र्तमुखी प्रतिभा दे। घुमक्क्ड़, लापरवाह, निर्दयी, निर्धन, खर्चीला, दुःखी, अपाहिज, नीच संगति, शत्रुओं द्वारा पराजित होता है।
 लग्नेश वक्री शनि रोग चिंता, धनेश धनहानि, तृतीयेश डरपोक सहोदरों की हानि, अस्त शनि के फल, पंचमेश संतान बाधा, सप्तमेश विवाह विलंब, पाति-पत्नी में अस्थाई अलगाव, अष्ठमेश रोग, अल्पायु नवमेश भाग्य हानि पिता को रोग, दशमेश हो तो बेराजगाारी, लाभेश हो तो  आय हानि, व्ययेश हो तो सुख हानि।
 नवम भावस्थ वक्री शनि धर्मान्ध, हठी, अध्यात्मिक ज्ञान का दुरूपयोग करने वाला होता है। पुरानी इमारतों की मरम्मत कराने वाला और उनसे धन कमाता है।
 दशम भावस्थ वक्री शनि पद व अधिकारों का दुरूपयोग करने वाला ठंडे स्वभाव के, मुर्दादिल यदि कर्क का हो तो अति भावुक, अहंकारी, लापरवाह उच्च पदाधिकारी होता है। कानून का ज्ञाता, वकील, जज बनाता है। मिथुन का या स्वग्रही शनि उच्च पद व भारी लाभ देता है। लाभ भावस्थ वक्री शनि मित्रों, संबधियों से मतभेद, नीच लोगों से संगति व सम्मान पाये, चापलूसी पंसद होता है। स्त्री, संतान को हानि हो।   


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