रहस्यमय चन्द्रमा

चन्द्र वैज्ञानिको के अलावा किसी को यह नही मालूम है कि पिछले 13 हजार वर्षों से हमारे सौरमंडल मे एक कृत्रिम उपग्रह चन्द्रमा के चारो ओर चक्कर लगा रहा है, उसके बारे मे सबसे पहले दिसंबर 1927 में संकेत मिला उन दिनों थ्रोसलो के प्रो. कार्ल स्टीमैर को यह पता चला कि टेलर और यंग नामक दो अमरीकी वैज्ञानिको को कुछ ऐसे रेडियो सिगनल मिले है। जो अंतरिक्ष से आते हैं स्टीमैर इलैक्ट्रो-मैगनेट तरंगे के विशेषज्ञ थे उन्होंने आइकहीवेन के फिकिन्स शोध संस्थान के डचमां वांडर पोत के साथ सम्पर्क स्थापित किया इन दोनों ने मिलकर 25 सितंबर 1928 को कुछ प्रयोग किये उन्होने 30 सेकेंड के अंतराल से विभिन्न दूरियों पर रेडियो ध्वनि संकेत प्रसारित किये करीब तीन सप्ताह बाद उनके रिसीबर पर ठीक वे ही संकेत प्रतिध्वनित हुये लेकिन वे 30 के बजाय 3 से 1.5 सेकेंड के अंतराल पर आये तेरह दिन बाद यानि 24 अक्टूबर को 48 अन्य संकेत प्राप्त हुये इस प्रयोग की सूचना प्रो स्टीमैर ने संसार के अंय विज्ञानियो को 16 अगस्त 1929 को नेचरविशेनशाफटेन पत्रिका के 17 वें अंक मे दी। वैज्ञानिकों के सामने यह सवाल उठा कि पृथ्वी से भेजे जाने वाले रेडियो सिगनल की         प्रतिध्वनित विभिन्न अंतरालों पर क्यो सुनाई दी ये प्रतिध्वनियांे 1929 की फरवरी की 14, 15, 16 व 18 फरवरी तथा 4, 9,11 और 21 अप्रैल को संसार के विभिन्न भागों मे सुनाई दी वैज्ञानिको ने 1934, 1940, 1949 तथा 1970 में इन प्रयोगों को दोहराया इस बीच स्काॅटलैण्ड के युवा खगोलशास्त्री डंकन लुआन ने इस शोध मे रस लेना शुरू कर दिया जब उन्हें पता चला कि 1980 मे स्टानफोर्ड विश्वविद्यालय अमरीका की रेडियो एस्ट्राॅनामिेक  इन्स्टीटयूट के प्रो. आर. एन. ब्रेसवेल ने यह कहा कि यदि दूसरे ग्रह के प्राणी हमारे साथ सम्पर्क स्थापित करना चाहेंगे तो वे हमारे रेडियो सिगनलों को विभिन्न अंतरालों पर  प्रतिध्वनित करेंगें तो लुआन देरी से आने वााले सिगनलों के अध्ययन मे जुट गये। 11 अक्टूबर 1928 को प्राप्त संकेतों के आधार पर उन्होंने खगोलीय चार्ट तैयार किया यह एप्सिलोन बुटस नामक ग्रह का निकला जो पृथ्वी से 103 प्रकाशवर्ष दूर स्थित है देरी से आने वाली प्रतिध्वनियों के परिलक्षित परिणामों के आधार पर जो छह चार्ट तैयाार हुये वे एप्सिलोन बुटस नामक ग्रह के निकले। 1973 के स्पेस फलाइट नामक शोधपत्र मे एक लेख स्पेस वेव फ्राम एप्सिलोन बुटस। इसमें वे इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि पिछले 12,600 साल से हमारे सौरमंडल में चन्द्रमा के चारों ओर एप्सिलोन बुटस ग्रह से भेजा गया एक कृत्रिम उपग्रह चक्कर लगा है। उसमे एक ऐसा कम्प्यूटर है जो पृथ्वी से भेजे जाने वाले रेडियों संकेतो को पृथ्वी पर वापस भेजता है। इसमे लगने वाली देरी का कारण है। कि वह संकेत लौटाने का कार्य तभी करता है। जब वह पृथ्वी के निकटततम बिंदु पर होता है। वह हमारी वेवलेंथ कभी नही बदलता है। अब तक हमें यह जानकारी हुयी है। हमारा अपना सूर्य एप्सिलोन बुटस है। यह एक दोहरा तारा है। हम सात ग्रहों मे से छठे पर रहते हैं। यह गणना बड़े सूर्य की ओर से की गई है। हमारे छठे ग्रह का एक चन्द्रमा है हमारे चैथें ग्रह के तीन चन्द्रमा हैं। हमारे प्रथम और तृतीय ग्रह के एक एक चन्द्रमा है। हमारा उपग्रह तुम्हारे चन्द्रमा की कक्षा में घूम रहा है। पिछले दो सौ साल से चन्द्रमा के गढढों मे विचित्र रोशनियाँ और अंय आकृतियां देखी गयी है। 29 जुलाई 1953 को स्व. जाॅन ओ नील (न्यूयार्क हेराड ट्रिब्यून के अंतरिक्ष विज्ञान संपादक) अपनी शक्तिशाली दूरबीन से चन्द्रमा का निरीक्षण कर रहे थेे अचानक उन्होनंे देखा कि एक बड़े गढढे ‘मारे क्रिसमस’ पर एक सिरे से दूसरे सिरे तक कोई 12 मील लंबा पुल बना हुआ है। सूरज की रोशनी मे उसकी परछाई और उसके खंभों के बीच से छनती हुयी धूप भी साफ नजर आ रही है। इसी तरह 29 अक्टूगर 1963 को जेम्स ग्रीनेकर नामक खगोल विज्ञानी ने अरिस्टाकर्श नामक गढ्ढे मे मंद लाल चमक देखी एक अंय अवसर पर उन्होने बीस अलग अलग और बहुत तेज रोशनियां देखी। कुछ वैज्ञानिकों का विचार है। कि चन्द्रमा पर किसी अंय ग्रह के निवासी चन्द्रमा पर पहुँच चुके हैं। चन्द्रमा के बड़े बड़े गढढों में उन्होने अपने स्टेशन बना रखें है और गढढों पर सरकने वाली छतें भी बना रखी हैं। 4 अप्रैल 1892 को को एक डच खगोलशास्त्री मुल्लर अपनी दूरबीन से चांद का निरीक्षण कर रहे थे कि अचानक उन्होंने चांद के सामने से होकर गुजरती हुयी काली तश्तरीनुमा चीज को देखा वे सकते में आ गये उन्होंने इसका जिक्र अनेक खगोलशास़्ित्रयों से किया किन्तु वे उन्हें संतोषजनक जवाब नही दे सके। उस समय तक वैज्ञानिको के पास उड़नतश्तरियों की आधुनिक व्याख्या नही थीं। फरवरी 1966 को चांद की धरती पर उतरे रूसी यान लूना-9 ने चांद के ओशन आॅफ स्टार्म नामक क्षेत्र के कुछ चित्र भेजे जिन्हें देखकर वैज्ञानिक हैरान रह गये वहांँ पत्थरों की एक सीध मे जाती अनेक लंबी लंबी कतारे थीं जो बड़ी सफाई से एक सीध मे बनी थी हर पत्थर का आकार समान था और  दो पत्थरों के बीच की दूरी भी समान थी (यू.एफ.ओ. मिस्ट्रीज, नाइजेल ब्लंडेल और रोजर बोअर) 1975 मे रूस के वैज्ञानिक अमरीका के चन्द्रयान द्वारा खींचे चित्रों का अध्ययन कर रहे थे तो उन्हें चन्द्रमा के सी आॅफ ट्रेंक्यूलिटी नामक क्षेत्र मे आठ बड़े-बड़े पिरामिड मिले जिनमे सबसे बड़ा 60 मीटर उँचा था इन पिरामिडो का क्रम हूबहू मिस्त्र के पिरामिडों जैसा है। (संदर्भ ग्रन्थ- नवभारत टाइम्स वार्षिकांक, 1977, फलाइंग साॅसर्स आॅन अटैक, हेराॅल्ड टी. विकिन्स, यू. एफ. ओ. मिस्ट्रीज, नाइजेल ब्लंडेल और रोजर बोअर, सोवियत रिव्यूय आॅफ फलाइंग साॅसर्स, कीव)


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