भुवल सन्यासी केस

रामेन्द्र नारायन राय भुवल रियासत के तीन राजकुमारों मे मंझले राजकुमार थे भुवल रियासत आजादी के पूर्व पूर्वी पाकिस्तान मे ढाका से पास थी पांच लाख आबादी वाली भुवल रियासत 1500 वर्ग किलोमीटर या 579 वर्गमील मे फैली हुयी थी। उनका विवाह विभादेवी के साथ हुआ था।
 वे शिकार के बेहद शौकीन थे और उन्होंने कई शेर मारे थे 1905 मे उन्हें सिफलिस हुयी थीे 1909 मे पित्त की पथरी के इलाज के लिये वे दार्जलिंग गये थे जहां 7 मई को 25 वर्ष की आयु मे उनकी मृत्यु हो गई 8 मई को उनके परिवार वालों ने उनका अंतिम संस्कार कर दिया संस्कार के समय भारी आंधी तूफान आ गया और चिता से शव कही गायब हो गया पत्नी विभावती अपने भाई सत्येन बनर्जी के साथ ढाका लौट गई अगले दस सालों मे बाकी दोनो राजकुमार भी मर गये और अंग्रेजो ने रियासत का शासन अपने हाथों मे ले लिया 1920-21 में ढाका मे भभूत लपेटे हुये एक सन्यासी प्रकट हुआ उन्ही दिनांे यह अफवाह फैली कि सन्यासी भुवल स्टेट का मंझला राजकुमार है। जिसका अंतिम संस्कार पूर्ण नही हुआ था राजकुमार की बड़ी बहन का बेटा सन्यासी की जांच करने गया लेकिन वह किसी नतीजे पर नही पहुँचा फिर राजा के अंय रिश्तेदार और बहन ज्योर्तिमयी ने सन्यासी की पूरी जांच करके पाया कि उनका भाई जीवित है सन्यासी ही उनका मंझला भाई रामेन्द्र है। जिसकी लाश चिता मे जलने से पूर्व ही गायब हो गई थी 12 अप्रैल 1921 को सन्यासी हाथी पर बैठ कर ढाका आया रिश्तेदारों ने मान लिया कि वही मंझला राजकुमार है। 30 अप्रैल को संबधियो ने पुनः उसे ढाका बुलाया और सैकड़ों संबधियो और हजारो जनता के मध्य उसे पेश किया गया साधु ने अपने कई कर्मचारियो, रिश्तेदारों को पहचाना अपनी वेट नर्स को भी पहचाना जिसके बारे मे कोई नही जानता था अन्ततः सब लोगों ने उसे अपना दूसरा राजकुमार मान लिया किन्तु रानी विभावती ने उसे फ्राड और धोखेबाज बताया कुछ लोगों का कहना था कि रानी के अपने धरेलू डाक्टर के साथ गलत संबध थे और उसने ही डाक्टर के साथ मिल कर राजकुमार को मारने की साजिश रची थी राजकुमाार ने बताया कि वह दार्जलिंग मे बीमार था फिर उसे कुछ याद नही जब उसे होश आया तो उसने खुद को एक साधु धर्मदास नागर के पास पाया जिसे राजकुमार भीगी अवस्था मे जंगल मे मिला था साधु ने उसका इलाज करके अपना चेला बनाया और वह कई वर्ष तक साधु चरणदास बन कर रहा वह अपनी यादाश्त खो चुका था जब उसकी यादाश्त वापस आने लगी तो साधु ने उसे घर लौट जाने को कहा 15 मई 1921 को  जैयदभर राजावटी मे भारी भीड़ ने सार्वजनिक तौर पर उसे अपना राजकुमार घोेषित कर दिया रानी विभावतीने सन्यासी से मिलने से मना कर दिया 29 मई 1921 को राजा अपने दो वकीलों के साथ ढाका के भवल हाउस मे आये और जिला जज व कलेक्टर जे. एच. लिंडमे से मिलकर अपना दावा लिखवाया राज्य प्रबंधक पंजाब मे बाबा धर्मदास नागर से मिले जिसने बताया कि बाबा चरणदास भोपाल का मान सिंह हैं। 3 जून को राजस्व विभाग ने दावा किया कि दावेदार झूठा है, राजा के प्रमुख सहयोगी सौरेन मुखर्जी ने वकील अनंद चन्द्र राय द्वारा मामला अदालत मे पेश करने की सोची। किन्तु सन्यासी के वकील विजाॅय चन्द्र चटर्जी ने 30 अप्रैल 1930 को जिला जज एलन हैन्डरसन और पन्नालाल बोस की कोर्ट मे विभावती और अन्य जमींदारों के खिलाफ कोर्ट आॅफ वार्ड में मुकदमा दायर किया 30 नवम्बर 1933 को केस शुरू हुआ रानी ने सन्यासी को धोखेबाज बताया बाबा      धर्मदास नागर ने कोर्ट को बताया कि बाबा चरणदास भोपाल का मान सिंह है। 24 अगस्त 1936 को कोर्ट ने फैसला सन्यासी के हक मे दिया फैसले को राजस्व विभाग ने नही माना और फैसले के खिलाफ 5 अक्टूबर 1936 को कलकत्ता हाईकोर्ट मे अपील की कोर्ट के आदेश से निचली अदालत से 11,327 पेज दस्तावेज मंगाये गये तीन जजो की विशेष बेंच लिओनाॅर्ड कोस्टले, चारू चन्द्र विश्वास और रोनाल्ड फ्रान्सिस का गठन हुआ विश्वास ने राजा के हक मे फैसला दिया और बाबा धर्मदास के बयान को झूठा करार दिया 29 अगस्त 1940 को जस्टिस कोस्टले का फैसला जज विश्वास के पास आया जिसके मुताबिक उन्होने निचली कोर्ट के फैसले को बदलने से इंकार कर दिया अतः अपील निरस्त कर दी गई विभादेवी ने हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ प्रिवी कौसिंल, लंदन मे अपील की और अपील स्वीकार की गई। लार्ड मैक कर्टन, लार्ड हसर्ट डू पारेक मरी, और सर चेत्तूर माधवन नायर ने 28 दिन तक सुनवाई की 30 अप्रैल 1946 को तीनो जजांे ने राजा  रामेन्द्र नारायन राय के हक मे फैसला दे दिया और अपील निरस्त कर दी। फैसला 31 जुलाई 46 को कलकत्ता आया उसी शाम राजा साहब को स्ट®क लगा और दो दिन बाद 2 अगस्त 46 को 62 साल की आयु मे उनकी मृत्यु हो गई। 13 अगस्त को उनका श्राद्ध हुआ उनकी मृत्यु को रानी ने दैवी  न्याय व दंड बताया और 8 लाख रूपये की विरासत लेने से मना कर दिया मुकदमे मे विद्वान जजों ने राजा रामेन्द्र व सन्यासी के बीच निम्न समानतायें पाई। उनका रंग, बाल, आँखों का रंग, मूँछें, दोनो का निचला ओठ दांयी ओर मुड़ा होना, नोकदार कान, कान की ओर गाल से जुड़ी ना होना, उपरी बंाया मोलट दान्त टूटा होना, छोटे हाथ, बांये हाथ की तर्जनी और मघ्यमा दांये हाथ से छोटी होन,दांयी पलक के नीचे मस्से का दाना, पैर का आकार, सिफलिस के घाव, सर व पीठ पर जलने के घाव, घुटने के पास आपरेशन के निशान, दांयी भुजा पर चीते के हमले का घाव, लिंग पर हलका सा तिल, फोटोग्राफ, हाव भाव, आवाज, भाव भंगिमा।


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