जब भी ध्यान भटके

ईश्वर क्या है, उसको खोजने का अर्थ है कि हमारी वाहय परिस्थतियाँ चाहे जैसी भी हो, हम आंतरिक रूप से ईश्वर को अपने जीवन का ध्रुवतारा बना लें। इस माया रूपी संसार में अपने कर्तव्यों का निर्वाह करते हुये हम मानसिक रूप से अपने सभी कार्य ईश्वर के चरणों में अर्पित कर दें। ईश्वर वह शक्ति है जो हमारे अस्तित्व को बनाये रखती है। ईश्वर पर हमेशा यह विश्वास बनाये रखिये कि वह हमे उन सारी चीजों को प्रदान करेगें, जिनकी कि हम चाह रखते है। हम प्रतिदिन जो भी कार्य करे, वह एकाग्रता से करें। दिन भर में कुछ-एक क्षणों के लिये जब भी ध्यान भटके ईश्वर को याद करें, और कहे कि हे प्रभु! दर्शन दें! मेरे साथ रहे, हे प्रभु मुझे रास्ता दिखाए। 
 ईश्वर के स्वरूप का एक पहलू है जो भावतीत है-अर्थात् निरपेक्ष ब्रह्म और दूसरा पहलू है-जो ब्रह्माण का संचालन कर रहा है-वह भी कितने उत्कृष्ट रूप से। हमारा पहला कर्तव्य ईश्वर का ध्यान। हम आंतरिक स्थिरता में लम्बे समय तक बैठे और ईश्वर से प्रर्थाना करें कि हे ईश्वर हमारी विपत्तियाँ भी सबसे अच्छी मित्र है जो हमें आपसे जोड़ती है, क्योंकि जब विपत्तियाँ आती है तभी हमें भगवान का ध्यान आता है और हम सोचने लगते है कि काश हमने ऐसे न किया होता तो ऐसा न होता।         ईश्वर प्रेम मे निःशर्त स्वीकृति होती है। यदि हमे ऐसा आभास होता है कि ईश्वर की अनुकम्पा हम पर नहीं है तो भी हार न मानकर उनकी शरण में बने रहना चाहिए और प्रतीक्षा करते रहना चाहिए, यह है भक्ति-प्रेम। सच्चे प्रयास का फल सदा प्राप्त होता है। हमे अपने मन में यह भाव कभी भी न आने देना चाहिए कि मै तो इतना नगण्य हूँ कि ईश्वर मुझे नहीं सुनेगे। हम संसार में रहे, लेकिन संसार का बनकर नही। हमे कार्य करते समय निरन्तर यह बोध रहना चाहिए कि यह सब हम अपने प्रभु के लिए कर रहे हैं, और यह सब ईश्वर से मिलने वाले आनंद के लिए कर रहे हैं।   संकलित  


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