जलमग्न द्वारिका की खोज

सन् 2002 मे चेन्नई के राष्ट्रीय समुद्र प्रौद्योगिक संस्थान ने गुजरात के तट से 30 किमी. दूर खंभात की खाड़ी मे समुद्र के जल प्रदूषण की जांच करने की गरज से समुद्र के तल मे सोनार फोटोग्राफी की जो उनका रूटीन कार्य था, लेकिन जब प्राप्त तस्वीरों का विश्लेषण किया गया वैज्ञानिक यह देखकर दंग रह गये ये समुद्र की सतह से 40 किमी. नीचे हजारों साल पुरानी विशाल नगर सभ्यता के अवशेष के चित्र निकले। उनमे रिहायशी घरों जैसे आयताकार ढांचे, मोहन जोदड़ो के विख्यात पोखर जैसे चित्र थे। कई सप्ताहों तक इन चित्रों पर विचार-विमर्श के बाद वैज्ञानिकों ने रहस्यमय सनसनीखेज खुलासे किये कि गुजरात के तट से 30 किमी. दूर व समुद्र सतह से 40 किमी. नीचे समुद्र मे एक प्राचीन नदी के किनारे 9 किमी. के दायरे मे एक विशाल नगर के अवशेष फैले हुये हैं। जो हजारों साल पहले सागर मे डूब गया था सभ्यता मे निम्न ढांचे महत्वपूर्ण थे। सीढियों वाला एक विशाल तालाब, 200 मीटर लंबा और 45 मीटर चैड़ा एक पक्का चबूतरा, मिट्टी की मोटी दीवार से बना 183 मीटर लंबा अन्न भंडार, सैकड़ों रिहायशी घरों जैसे आयताकार ढांचे, इनमें नालियां, सड़कें, पत्थर के औजार, गहने, बर्तन, आकृतियां, जवाहरात, हाथीदांत, मनुष्य के जबड़े, लकड़ी के टुकड़े तथा नगर मे मानव द्वारा बनाये गये एक विशाल बांध के अवशेष, एक लकड़ी के कुंदे का काल जानने के लिये उसे लखनऊ व हैदराबाद की प्रयोगशाला मे भेजा गया जो वहां की रिपोर्ट देख कर सब दंग रह गये लखनऊ की बी एस आई पी प्रयोगशाला ने उसे 5500 ईसा पूर्व का बताया और हैदराबाद की एन, जी आई आई ने उसे 7500 ईसा पूर्व का बताया इस खोज से हंगामा मच गया।
 भगवान कृष्णः- श्री आद्य जगदगुरू शंकराचार्य वैदिक शोध संस्थान वाराणसी के संथापक स्वामी ज्ञानानंद स्वरसती ने अनेक ग्रन्थों, पुराणों, ऐतिहासिक दस्तावेजों, भृगुसंहिता की व कम्प्यूटर के तीर्थ, चक्र तीर्थ, कपिटंक तीर्थ, नृगकूप, सिद्धाश्रम, लीला सरोवर, हरि मंदिर, ज्ञानती, दानतीर्थ, गणपति तीर्थ, रैवत पर्वत, माया तीर्थ, गोमती- सिंधु संगम आदि पवित्र स्थान थे। राजा शाल्व व कृष्ण दो द्वारिका के राजा थे भागवत पुराण के अनुसार शाल्व मे अपने दिव्य विमान से श्री कृष्ण की द्वारिका पर विमान, आग्नेयास्त्रों व दिव्यास्त्रों से हमला किया था जिसके कारण द्वारिका की भूमि बंजर व नगर खंडहर बन गया था जसका जवाब श्री कुष्ण ने जवाबी हमले से दिया और अपने दिव्यास्त्रों से शाल्व का विमान मार गिराया महाभारत के अनुसार महाभारत युद्ध मे जब गंधारी के निन्यानबे पुत्र मारे गये तो गंधारी को भारी पुत्रशोक हुआ जब भगवान कृष्ण गंधारी के सामने गये तो गंधारी ने भगवान कृष्ण को शाप दिया हे कृष्ण तुम चाहते तो युद्ध को रोक सकते थे लेकिन तुमने ऐसा नही किया और मेरे सारे पुत्रों का वध हुआ जिस तरह तुमने मेरे वंश का नाश किया है। उसी तरह तुम्हारे यदु वंश का भी नाश होगा श्रीकृष्ण को यदु वंश विनाश और द्वारिका के भीषण अंत को पूर्वाभास था इसलिये वे भारी अन्न भंडार व अपने वंशजों के साथ प्रभास क्षेत्र मे आ गये थे उन्होंने ब्राह्मणों को दान देने व मृत्यु का इंतजार करने का आदेश दिया था कुछ दिनों बाद कृतवर्मा और सात्यकी के मध्य विवाद हो गया क्रोध मे सात्यकी ने कृमवर्मा का सर काट लिया जिसके कारण यादवों मे गृहयुद्ध छिड़ गया जिसमे कृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न, पौ़त्र अनिरूद्ध, और मित्र सात्यकी दोनो मारे गये सारा यदुवंश युद्ध मे नष्ट हो गया केवल दारूक और बव्रुवाहन ही बचे। इस युद्ध से खिन्न होकर बलराम एवं कृष्ण वन मे चले गये और  वर्तमान जूनागढ के बेरावल कस्बे के बाहर तीन नदियों के संगम स्थल पर भालुक तीर्थ नामक स्थान पर एक पेड़ के नीचे लेट गये जहाँ उन्हें पशु समझ कर जरा नामक बहेलिये पांव के तलवें तीर मे मार दिया जिसके कारण कृष्ण जी देह त्याग कर गोलोक गमन किया।


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