पुर्नजंम

इस विचित्र केस का जंम वेणी कोठा निवासी श्री मदनलाल चांडक के घर 12 अक्टूबर 1973 को हुआ इस दिन उनके घर दो जुड़वा कन्याओं ने जंम लिया बड़ी अनीता जिसका जंम प्रातः 9 बजकर पचीस मिनट पर हुआ छोटी सुनीता जिसका जंम बीस मिनट बाद 9 बज कर पैंतालिस मिनट पर हुआ श्री चांडक का विवाह 1952 मे हुआ था वैसे तो उनका वैवाहिक जीवन अत्यंत आनंद से बीत रहा था पर एक कमी उन्हें बरसो से सालती थी दर असल शादी के 20 साल बीतने पर भी और काफी मनौतियों व्रत के बाद भी उनके कोई संतान नही पैदा हुयी थी दोनों पति-पत्नी ने उन्ही दिनों चालीस गांव जाकर भगवान रामदेव के परम भक्त बापत्ति मुनि से भी आर्शीवाद लिया था आखिर भगवान ने उनकी सुन ली और घर भर मे खुशियां लहराने लगी दोनों बच्चियां हंसी खुशी बढने लगी लेकिन मार्च 1978 मे अचानक सुनीता बहकी-बहकी बातें करने लगी कि मै तो बेबी हूँ मेरा घर बेलगांव मे हैं कोई मुझे घर पहुँचा दो पहले तो किसी ने उसकी बात पर विश्वास नही किया पर एक दिन की घटना ने चांडक परिवार को ना केवल चाौंका दिया बल्कि चिंतित भी कर दिया एक दिन सुनीता बाहर खेलते-खेलते गुम हो गई शाम हो गई बहुत ढूंढने पर वो पाटिल के घर पास खड़ी एक बैल गाड़ी के पास गुमसुम सी हालत मे मिली उसके हाथोें मे बीस पचाीस सीपियां थी यह कहां से मिली पूछने पर उसने बताया कि वो नदी तक गई थी पर यह भी कोई नदी है। क्यों क्या हुुआ अरे इसमे ना तो गुंज है। ना शंख मिलते है। मेरे बेलगांव की नदी मे तो दोनो चीजें खूब मिलती है। वहां नदी है पहाड़ है। बहुत अच्छा लगता है। वहां मैने अपने घर बेेलगांव मे एक पोटली मे ढेर सारे शंख  बांध कर रखें है। कौन सा बेलगांव यह कहाँ है। पर सुनीता इसका जवाब नही दे पाई चांडक ने सुनीता का दर्जनों तात्रिकांे से ईलाज करवाया पर कोई फायदा नही हुआ एक तांत्रिक भगजी ने काफी तांत्रिक उपचार करने के बाद घोषणा की सुनीता पर कोई भूत प्रेत का चक्कर नही यह पुर्नजंम का मामला है। फिर पुर्नजंम की यादें तेजी से उभरने लगी उसने बताया कि उसने गत जंम मे बड़ी बहन सुमित्रा से 5 रूपया उधार लिया था उसे भी उसे चुकाना है। वह घर मे मिलनेवाने वाले पैसो जोड़ने लगी ताकि सुमित्रा का कर्ज चुका सके सुनीता के पुर्नजंम की खबर जंगल मे आग की तरह फैलने लगी अनेक पत्र पत्रिकाओं के लेखक प्रतिनिधि आये स्थानीय दैनिक सिंह झेंप के संपादक श्री देवीलाल भोरे भी चांडक के घर आये नागपुर के दैनिक पत्र तरूण भारत ने अपने 30 नवम्बर 1973 के अंक मे सुनीता के पुर्नजंम का मामला मुख्य पृष्ठ पर प्रकाशित किया बाद मे पूना बम्बई के कई समाचार पत्रों ने इस खबर को प्रमुखता के साथ छापा साथ मे एक सूचना भी छापी गई कि अगर आपके क्षेत्र मे बेलगांव नाम का गांव हो तो कृपया पूर्ण विवरण के साथ श्री मदनलाल चांडक, वेणी-445101(महाराष्ट्र) को जानकारी भेजे पाठकों ने इस मामले में रूचि ली और अनेक लोगों ने पूर्ण भौगोलिक जानकारी के साथ अपने क्षेत्र के बेलगांव के विवरण भेजे पूना के श्री भाऊ साहब काले ने विस्तृत विवरण के साथ 28 बेलगावों का विवरण भेजा बेलगांव की तलाश मे चांडक ने छिंदवाड़ा के सोंसेर तहसील के बेलगांव, जिला बुलढाना के मेहकर तहसीले के बेलगांव समेत दर्जनों गंावों की तलाश की पर निराशा ही हालत लगी तभी 26 फरवरी 79 को उन्हें नारा निवासी किसनलाल ढाबरी का पत्र मिला जैसे गांव की आपकोे तलाश है ऐसा एक गांव वर्धा जिले मे कारंजा से चार किलोमीटर दूर एक जगह लारा है। वहां से पांच किलोमीटर आगे पहाड़ियो के बीच बेलगांव नामक ग्राम विद्यमान है। तरूण भारत समाचार पत्र मे छपे विवरण से इस गांव का विवरण मिलता जुलता है। चांडक ने सोचा क्यों कि सुुनीता पूर्वजंम की जानकारी मराठी भाषा मे देती है इसलिये उससे सम्बन्धित बेलगांव महराष्ट्र ही होना चाहिये पत्र पाने के दूसरे दिन चांडक सपरिवार रवाना हो गये रास्ते मे घमण गांव मे तरूण भारत के प्रतिनिधि श्री पद्यमाकर जोशी उन्हें मिले वो भी उत्सुकतावश उनके साथ हो लिये 27 फरवरी को वो लोग बेलागंाव पहुँचें वहाँ पुर्नजंम की खबर फैलते ही सुनीता को देखने के लिये साधारण जन के अलावा साथ कई फोटोग्राफर वकील प्रोफेसर, डाक्टर तथा अन्य अनेक बुद्धिजीवियो की भीड़ लग गई उछलती कूदती सुनीता आगे चली जा रही थी उसके पीछे चांडक उनकी पत्नी जानकी देवी पुत्री अनीता श्री किसनलाल, श्री ब्रजमोहन राबरी पुलिस पाटिल श्री दिवाकर सोनारे, बाबू ताज मंसूरी, सरपंच ध्रुवे, श्री अरविंद साठे, श्री नारायण राव देशमुख, श्री पद्यमाकर जोशी चल रहे थे आस-पास के नारा, आर्नी, मानिकवाड़ा, कारंजा, ससंदा, साबरडीह गांव के हजारों लोग भी साथ हो लिये चलते-चलते सुनीता एक बरगद के पेड़ के नीचे रूक कर बोली बोली यही यह पेड़ है जहां अक्सर में खेलती थी फिर वो नदी के पास चली गई पानी मे उतरकर एक पत्थर पर खड़ी होकर बोली यही मै अपने कपड़े धोती थी नदी के आगे बढी तो नई पाठशाला को देख कर तो ठिठक गई बोली अरे यह स्कूल कहां से टपक पड़ा यहां तो किराने की दुकान थी यही फम और बेरी के पेड़ थे जहां हम खेला करते थे यह सुनकर गांव के बड़े बूढे स्तब्ध रह गये पल भर बाद एक आदमी ने  पूछा उसका नाम क्या था टाबरे बड़ा चिड़ड़िा आदमी था उधार के नाम पर नाक मुह चिढाता था सुनीता की बाते सुनकर गंाव वाले दंग रह गये लेखक के पूछने पर गांव वालो ने मंसूरी को बताया कि आज से करीब 20 साल पहले सचमुच वहां टाबरे की किराने की दुकान थी लेकिन 1965 मे वर्धा जिला परिषद ने वह जगह लेकर वहां पाठशाला बनवा दी थी सुनीता ने गांव वालों की सारी बातों का सही सही जवाब दिया किसी ने उससे उसकेे घर के बारे मे पूछा तो वह दौड़ती हुयी चन्द्रभान जी कालमेघ के घर के सामने खड़ी हो गई फिर घर मे घुस कर चन्द्रभान जी से बोली पिताजी आपने मुझे पहचाना नही मै बेबी हूँ बेबी चन्द्रभान जी ने रोते हुये सुनीता को स्नेह से अपनी गोद मे उठा लिया चन्द्रभान जी ने सबको बताया कि उनकी दो बेटियां थी बड़ी बेटी का नाम सुमित्रा था और छोटी का नाम शांता था उसी को वे लोग प्यार से बेबी कहते थे हंसी खुशी से दिन बीत रहे थें तभी 1952 मे प्लेग फैला और चन्द्रभान जी के परिवार के चार लोग काल के गाल मे चले गये जिनमे छोटी बेटी शांता उर्फ बेबी भी थी उस समय उसकी उम्र 5 साल थी सबको पूर्ण विश्वास हो गया कि शांता ने ही सुनीता के रूप मे पुर्नजंम लिया है। सुनीता ने वह बयाना बाई पाटलीन का घर भी दिखाया जहां से वह चाय के लिये दूघ लाया करती थी उसने वह जगह भी दिखाई जहां बयाना बाई अपनी भैंस बांधती थी गांव मे करीब पांच सौ औरतें थी किसी ने कहा बेटी सुमित्रा को पहचान लोगी बच्ची सुुमित्रा अब 35-36 साल की महिला थी लेकिन सुनीता ने भीड़ मे घुस कर बड़ी बहन सुमित्रा को पहचान कर उसके गले से लिपट गई सुनीता ने जब इकठ्ठा किये 5 रूपये सुमित्रा को लौटाये तो सुमित्रा रो पड़ी इस केस के बारे मे जान कर वर्जीनिया युनिवर्सिटी के परा मनोविज्ञान के प्रोफसर डा. ईयान स्टेवेन्सन अपनी अस्टिटेंट डा. सतवन्त पसरिचा सहित 20 नवम्बर 1980 को वेणी आये उनके साथ अनुवादक श्री पद्यमाकर जोशी भी थे उन्होने अनेक सवाल पूछते हुये सुनीता के दिमाग का परीक्षण भी किया और कैमरे से 60 मीटर लंबी फिल्म बनाई उन्होने बेलगांव जाकर भी केस की पूरी जांच की। और इसे पूर्णतः सत्य पाया।


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