सोमनाथ मंदिर की लूट

अमृत के देवता श्री सोमनाथ का मंदिर गुजरात के (कठियावाड़ जिले) के सौराष्ट्र मे वेरावल के निकट प्रभास पत्तन क्षेत्र मे स्थापित था 11 वीं सदी के पारसी भूगोलवेत्ता अकारिया अल किजवानी ने सोमनाथ के बारे मे बहुत दिलचस्प विवरण दिया है। सोमनाथ भारत के समुद्र के किनारे शानदार शहर मे स्थित है। समुद्र का जल नित्य ज्वार भाटे के रूप मे पूर्वमुखी सोमनाथ मंदिर की मूर्ति का अभिषेक करता है। इसका आश्चर्य मंदिर की एक मूर्ति है, जो बिना किसी आधार के मंदिर के मध्य हवा मे स्थित है। चन्द्र ग्रहण और शिवरात्रि के अवसर पर हजारांे हिन्दू वहाँ पूजा करने आने आते है, कहा जाता है। कि मरणोपरांत हिन्दुओं की आत्मा सोमनाथ में आती है। भगवान सोमनाथ उन आत्माओं को अगले शरीर में प्रवेश कराते हेैं। मूल्यवान से मूल्यवान वस्तु भगवान के समर्पण के लिये लायी जाती है। मंदिर के खर्च के लिये 10,000 गांवों से कर लिया जाता हें हजारों मील दूर स्थित गंगा नदी के जल से नित्य र्मूिर्त का अभिषेक किया जाता है। मंदिर की अर्चना हेतु 1,000 ब्राह्मण नियुक्त है। 5,000 दासियां मंदिर के द्वार पर नृत्य और गायन करती है। मंदिर का ढांचा टीक की लकड़ी के 56 खंभों पर टिका है, जो सीसे की पर्त से ढके है। भगवान सोमनाथ की र्मूिर्त काले रंग की है, जो मूल्यवान से मूल्यवान जेवरों से प्रकाशित रहती है। मंदिर के निकट 2,00 मन भारी एक सोने की जंजीर है जो सुबह मंदिर के घंटे बजाती है। जिसे सुनकर प्रातः मंदिर के ब्राह्मण पूजन के लिये उठते है। 12 वीं सदी के लेखक हेमचंद के अनुसार सोमनाथ की लूट के समय गुजरात का राजा भीमदेव चालुक्य सोलंकी था जो चामुण्डराज का पौत्र और उनके सबसे छोटे बेटे नागराज का पुत्र था चामुण्डराज की मृत्यु के बाद उनके पुत्र क्रमशः बल्लभराज और दुर्लभराज राजा बने पर ये निःसंतान थे 1022 मे दुर्लभराज ने अपने छोटे भाई नागराज की सलाह से भतीजे भीमदेव प्रथम (1022-1063) को राज्य सौंप कर खुद संयास ले लिया राज्यारोहण के कुछ दिन बाद दुर्लभराज व नागराज की मृत्यु हो गई भीमदेव के समय गुजरात के पच्छिम मे सिंध व मुल्तान पर महमूद गजनबी के दामाद ख्वाजा हसन मेंहदी का राज्य था गुजरात के उत्तर मे भारत सिंध सीमा पर बच्छराज चैहान के पुत्र 80 वर्षीय गोगाजी चैहान का छोटा सा रेगिस्तानी जांगल राज्य था जिसकी राजधानी सतलज नदी के पास मेरहड़ा मे थी इसके पूर्व मे (भटनेर) जैसलमेर का राज्य था उस समय भटनेर पर रावल बाछू जी का शासन था जो अति दुर्बल राज्य था उसके आगे अजमेर पर दुर्लभराज चैहान के पुत्र गोविंदराज द्वितीय का शासन था उसके पूर्व मे मालवा मे भोजराज परमार का राज्य था जोधपुर व आबू मे भोजराज के सामंत धनकूट या धुधंक का राज्य था मध्य भारत के त्रिपुरी मे कलचुरी नरेश गांगेय देव का राज्य था दिल्ली मे महिपाल तोमर का राज्य था। मध्ययुगीन इतिहासकार अली इब्न अतर के अनुसार महमूद गजनबी का जंम गुरूवार 10, मुहर्रम, हिजरी 361, 2 नवम्बर सन 971 ईस्वी को अफगानिस्तान के गजना शहर मे हुआ था, 1002 मे वो गजनी का शासक बना भारत पर कई सफल हमले करने के बाद महमूद सोमनाथ अभियान के लिये 18 अक्टूबर 1025 को अपने दो पुत्रों जलाल अलदौला महमूद, व साहिग अलदौला मसूद बहनोई दाउद बिन अताउल्लह उर्फ गाजी सालार साहू उसका पुत्र सैययद सालार मसूद अलदौला और एक वफादार दोस्त जार्जियन गुलाम मलिक एजाज के साथ गजनी से रवाना हुआ उसकी फौज मे कुछ हिन्दु सिहसालार तिलक, हिन्दवान भी शामिल थे महमूद नवम्बर के प्रारंभ मे मुलतान पहुंचा वहां का सूबेदार उसका दामाद ख्वाजा हसन मेंहदी था वहां उसने रसद आदि आवश्यक सामान जुटाया और अपने दामाद हसन मेंहदी की सेना सहित 26 नवम्बर 1025 को मुल्तान से विशाल सेना के साथ उसे भटनेर राजमार्ग से भारत मे घुसा वहां पर सबसे पहले उसकी टक्कर जांगल देश के राजा बच्छराज चैहान के पु़त्र 80 वर्षीय गोगाजी चैहान से हुयी महमूद ने गोगाजी को काफी धन देते हुये उनसे सोमनाथ जाने का मार्ग मांगा जिसे गोगाजी ने ठुकरा दिया महमूद उन्हें नजरअंदाज करके आगे बढने लगा तब गोगाजी ने अपनी 15,00 की छोटी से सेना लेकर महमूद की सवा लाख की सेना पर हमला किया और गजनबी के खिलाफ युद्ध करते हुये पूरी सेना सहित वीरगति पाई और वे लोकदेवता के रूप मे प्रसिद्ध हुये आगे (भटनेर) जैसलमेर का अति दुर्बल राज्य था भटनेर पर रावल बाछू जी का शासन था महमूद ने बाछू जी को हराकर उनके परिवार के कई सदस्यों को मुसलमान बनाया फिर महमूद सिरसा, हांसी होते हुये अजमेर राज्य मे घुसा अजमेर पर चैहान वंशीय गोविंदराज द्वितीय का शासन था महमूद ने गोविंदराज से गुजरात जाने का मार्ग मांगा उसके इन्कार करने पर महमूद ने अजमेर पर हमला कर दिया गोविंदराज बहुत बहादुरी से लड़े पर महमूद की विशाल सेना के आगे हार गये महमूद ने नरैना, सांभर और मिलयासर को खूब लूटा फिर महमूद जोधपुर जालौर होेते हुये गुजरात की ओर बढा जोधपुर और जालौर मालवा नरेश भोजदेव के अधीनस्थ राज्य थे मालवा और गुजरात राज्यों के मध्य पुरानी शत्रुता थी मकमूद ने चालाकी से मालवा नरेश से केवल गुजरात पर हमला करने के लिये मार्ग मांगा सोमनाथ मंदिर लूटने की बात छिपा ली भोजराज ने ना केवल महमूद को गुजरात पर हमले के लिये मार्ग दिया बल्कि गुजरात को खूब लुटवाया महमूद हिजरी 416 के जुल अलकदा माह दिसम्बर 1025 के मध्य मे चालुक्यों की राजधानी अनहिलपाटन मुस्लिम नाम नाहरवाल पहँुचा अनहिलपाटन मे कोई किले बंदी या सैन्य तैयारी नही थी महमूद के हुये अचानक इस हमले से भीमदेव राजधानी छोड़ कर भाग गया और उसने कंठकोट द्वीप मे शरण ली नगर के अधिकांश नागरिक भी भाग गये अतः महमूद को किसी सैन्य विरोध का सामना नही करना पड़ा वहां कोई लूटपाट नही हुयी अनहलपाटन मे कुछ दिन रूक कर महमूद सोमनाथ की ओर चला मोधेरा के सामंत ने 20,000 राजपूतों की सेना जुटा की महमूद से लोहा लिया पर वे महमूद की विशाल सेना के आगे टिक नही पाये अब महमूद देलवाड़ा पहुंचा वहां के निवासियो ने भी बिना किसी प्रतिरोघ के आत्मसमर्पण कर दिया 6 जनवरी 1025 को महमूद सोमनाथ पहुंचा जहां पर राजपूतों ने जबरदस्त किलेबंदी कर रखी थी अबू सैययद गरदेजी के अनुसार 7 जनवरी 1025 को महमूद की सेना ने सोमनाथ मंदिर पर हमला किया जिसका राजपूतों ने डटकर सामना किया पर पराजित हुये, अबू सैयद गरदेजी के अनुसार भीमदेव पहले ही खंभात की खाड़ी के पास एक द्वीप कंठकोट मे भाग गये थे, हिन्दु सूत्रों के अनुसार भीमदेव धायल होकर अचेत हो गये थे कुछ सेनानायकों ने उनकी जान बचाने हेतु उन्हे युद्ध क्षेत्र से हटा दिया फिर मंदिर पर हमला हुआ मंदिर पर हमला देखकर हजारों हिंदु मूर्ति के सामने एकत्रित हो गये कुछ रोने लगे कुछ प्रार्थना पूजा करने लगे कुछ उच्च स्वर मे मुस्लिम सेना से कहने लगे हमारा देवता तुम्हें यहाँ ले आया है। वो एक बार मे ही तुम्हारा वध कर देगा हिन्दुओं को पूजा मे लगे देखकर महमूद ने हमला करने के लिये यह उचित समय समझा वह सीढी लगाकर मंदिर प्रागंण मे घुस गया उसने अल्लाह हो अकबर का नारा बुलंद करते हुये मंदिर प्रागंण की राजपूत सेना पर हमला किया जहां भयानक युद्ध हुआ जिसमे करीब 52 हजार राजपूत शहीद हुये यह संख्या संदिग्ध लगती है। क्यों कि मंदिर प्रांगण का इतना बड़ा होना संभव नही है कि 52 हजार हिंदू और सवा लाख मुस्लिम सेना एक साथ खड़ी होकर लड़ सके मंदिर के चार हजार पुजारी नाव मे सवार होकर सिरन्दीप को भाग रहे थे जिन पर महमूद की सेना ने हमला करके उन्हें डुबो दिया (यह संख्या संदिग्ध लगती है। क्यों कि मंदिर मे जब केवल 1,000 ब्राह्मण नियुक्त थे तो चार हजार कहाँ से भागे संभव हो कि साथ मे अंय नागरिक भी भागे हों (तारीख ए फरीश्ता़) उनकी मृत्यु के बाद अगले दिन 8 जनवरी को महमूद ने मुख्य मंदिर मे प्रवेश किया उसने देखा कि मंदिर 56 खंभों पर बना है। जिन पर जवाहरात जड़े है। खंभों के मध्य मे पत्थर का तराशी हुयी 5 गज की श्री सोमनाथ का लिंग (मूर्ति) है जो 2 गज जमीन मे गड़ी है और तीन गज जमीन के उपर थी उसने गुरज (गदा) मार कर शिवलिंग के दो टुकड़े कर दिये और फिर चार टुकड़े करके दो गजनी भेजे और दो मदीना कहा जाता है कि हिन्दुओं ने महमूद के दामाद ख्वाजा हसन मेंहदी के द्वारा महमूद से बात चलाई कि यदि वह मूर्ति ना तोड़े वो सोमनाथ की मूर्ति के बदले उसे मूर्ति से दुगने भार का सोना महमूद को देगंे परन्तु महमूूद ने सोना तो रख लिया पर उसने कहा कि वह बुतशिकन है बुतपरस्त नही शिवलिंग के अंदर से इतने अधिक जवाहरात निकले जो पुजारियों द्वारा दिये जाने वाले धन से कई गुना अधिक मूल्यवान थेे मूर्ति के टुकड़ों का गजनी मे 1026 मे बनी जामा मस्जिद की सीढियों मे चुनवा दिया गया ताकि मुसलमान उन्हें अपने पैरो से रौंदे (तारीख ए फरीश्ता़) कुछ इतिहासकारों के अनुसार महमूद ने र्मूिर्त अपने भान्जे सालार मसूद को दे दी मसूद ने मूर्ति का चूर्ण करके चूर्ण को पान मे मिला कर हिन्दुओं को खिला दी इस विश्वासघात के कारण उसका दामाद ख्वाजा हसन मेंहदी विद्रोही हो गया था (यह बात संदिग्ध लगती है। क्योंकि अगर मूर्ति चूर्ण कर दी तो तो उसके टुकड़े कैसे गजना व मदीना मे भेजे) कहा जाता है कि इसी मंदिर के एक कक्ष मे एक ऐसा मंदिर था जिसमे मूर्ति बुत मुअल्लिक (बिना आधार के) थी जिसे देख कर महमूद चकित रह गया अंत मे भेद खुला कि बुत लोहे का था मंदिर की दीवारों और छत पर मखनातीज (चुबंक) लगा था जब उसकी एक दीवार गिरा दी गई तो मूर्ति स्वँय गिर पड़ी। (जामे उलहक्ययात व तारीख ए फरीश्ता़ 54) महमूद ने मंदिर लूटने का आदेश दिया सोने-चांदी की हजारों मूर्तियां जिनके आगे रत्नजड़ित पर्दा लटका हुआ था अनगिनत स्वर्ण पात्र, गहनों के सेट, मंदिर के चंदन के दरवाजे रत्नों से जड़ित झाड़ फानूस आदि जिनका मूल्य बीस लाख दीनार आंका गया प्राप्त हुये सोमनाथ के लूट की खबर आग की तरह सारे हिन्दुस्तान मे फैल गई महमूद के धोखे और सोमनाथ मंदिर के विध्वंस और लूटे जाने की खबर जब मालवा पहुंची तो वहां भारी रोष फैला मालवा नरेश भोजराज, अजमेर नरेश तथा अंय राजाओं ने महमूद को दंड देने और लूट का माल वापस छीनने के लिये विशाल सैन्य संघ बनाया और उन्होने वापसी के गुजरात जालौर राजमार्ग पर नाकाबंदी कर दी मुस्लिम इतिहाकारों ने मालवा नरेश का नाम परमदेव बताया है। जो वास्तव मे परमार भोजदेव है इस नाके बंदी की जानकारी होने पर महमूद ने भयभीत होकर वापसी का मार्ग बदल लिया उसने आबू के बजाय थार के रेगिस्तान का रास्ता चुना लाहौर के पास आज जहाँ कान्छा काना नामक शीाशम का घना जंगल हैं वहां महमूद के जमाने मे कान्छा काना जाट नामक एक दुर्गान्त शिवभक्त डाकू था जब उसे पता चला कि महमूद सोमनाथ का मंदिर लूट कर इसी रास्ते से आ रहा है। तो उसने गजनबी से खजाना हथियाने की एक तरकीब निकाली कान्छा जानता था कि वह वो महमूद से युद्ध मे जीत नही पायेगा अतः उसने महमूद से मिल कर खुद को इस ईलाके का बहुत बड़ा राजा बताया और महमूद को अपना मेहमान बना कर राजस्थान से सटे क्षेत्र मे महमूद और उसकी फौज को दावत दी उसने महमूद द्वारा खजाना जे जाने वाले बक्सों की हूबहू नकल के बक्संे बनवाये और दावत के समय कुछ बक्से बदल दिये कान्हा ने इस गांव का नाम खजाने के नाम पर खन्ना रखा दूसरी दावत उसने आज के लुधियाना के खन्ना मंडी क्षेत्र मे दी यहां भी उसके आदमियों ने कुछ बक्से बदल दिये तीसरी दावत उसने आज के पाकिस्तान के जिला साहिवाल के दीपालपुर के पास गांव मे रखी इसका नाम भी खन्ना रखा यहां खजाने के बाकी बक्से बदल दिये गये महमूद जब गजनी पहुँचा तो काफी बक्सों मे केवल पत्थर मिले उसके पास केवल सोमनाथ के फाटक थे दस्यू राजा कान्छा काना को दंड देने के लिये महमूद ने 1026 मे लाहौर पर हमला किया लाहौर के छत्री नाम बदल कर खत्री बन गये कुछ भाग कर उत्तर प्रदेश मे बस गये कुछ नाव द्वारा भाग कर पठानकोट से कांगड़ा मे आबाद हो गये कुछ को महमूद गुलाम बना कर गजनी ले गया जो मुसलमान होकर पठान खत्री बन गये (साभार-कुछ छुपे रहस्य और कड़वे सच-लाहौर से आये एक रिफुयजी डा. हरिचन्द्र वर्मा द्वारा लिखित पुस्तक) कहा जाता है कि गजनी स्थित महमूद की मजार पर सोमनाथ के दरवाजे लगे है। पर प्रथम अफगान युद्ध मे जब पहली जाट लाईट इन्फैन्टरी बटालियन ने जब 6 सितम्बर 1842 को गजनी फोर्ट पर हमला किया तो लार्ड एलनबोर्गोस के आदेश पर वे महमूद के मकबरे से चंदन के दरवाजे उखाड़ लाये दिसम्बर 1842 मे यह भारत लाये गये 19 वीं सदी मे ब्रिटिश शासन मे हुयी सरकारी जाँच मे यह दरवाजे साधारण अफगानी देवदार की लकड़ी के बने पाये गये जो सोमनाथ के दरवाजे की नकल मात्र है। महमूद ने मूल मंदिर नही तोड़ा केवल मूर्ति नष्ट हुयी थी हिन्दु अभिलेखों व गुजराती इतिहासकारों के अनुसार मंदिर को कोई खास क्षति नही पहुँची थी, जिनमे मंदिर विनाश का कोई वर्णन नही है इतिहासकार मीनाक्षी जैन के अनुसार केवल तुर्क पारसी इतिहासकारों ने इसका विस्तृत विवरण फैलाया है। 30 अप्रैल 1030 मे महमूद की 59 वर्ष की उम्र मे मलेरिया और टी बी से मृत्यु हो गई।


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