वो आज भी अपने को पूर्ण भारतीय मानते है

भारत के बाहर बसे भारतीय हमेशा से भारत के प्रति सम्मान व लगाव बनाये रखते है। और जब बात हो गिरमिटिया का तो वो आज भी अपने को पूर्ण भारतीय मानते है जबकि वो आज दूसरे देश के नागरिक हैं। और बहुत से गिरमिट लोग उन देशों को छोड़कर अन्य दूसरे देश के नागरिक हो गए यानी ये दूसरा स्थापन्न था। 
ये गिरमिट लोग भारत आते रहते है बहुतो ने अपने पूर्वजो का परिवार भी खोज लिया है। ऐसे में एक गिरमिट डा. विष्णु बिश्राम जिनके पूर्वज 1891 में गुयाना चले गए थे गन्ने व धान के खेतों में मजदूरी करने के लिए भारत आते रहते है क्योंकि उनका बहुत लगाव है भारत से। डा. विष्णु बिश्राम गुयाना से अमेरिका जा कर बस गए और वहाँ वो अध्यापन का कार्य करते हुए सेवानिवृत्त हुए। वो एक लेखक है उनके लेख आये दिन न्यू यॉर्क, गुयाना और त्रिनिडाड और टोबैगो के अखबारों व पत्रिकाओ में छपते रहते है। 
डा. विष्णु बिश्राम इसी हफ्ते लखनऊ आये थे। इनका एक व्याख्यान एक विधि विद्यालय में था विषय था गिरमिट का भारत के प्रति लगाव। श्री बिश्राम ने बताया कि हम लोगो ने अपना धर्म अपनी संस्कृति, परंपरा, रीति-रिवाज, खान-पान, पूजा पद्धत्ति, लोक परंपरा को बचा कर रखा है यही भारतीयता हमारी पहचान है जबकि हम लोग आज तीसरे देश मे जाकर बसे है। उनसे विधालय के छात्रों ने पूछा कि आपके यहाँ क्या सारी चीजें उपलब्ध है जो आपको अपनी परंपरा को निभाने के लिए चाहिए तो बिश्राम जी बताया कि जो वस्तुएं नहीं मिल पाती उसे हम भारत से ले जाते है विशेषकर शादी -याह के सामान वाद्य यंत्र। पूजा-पाठ के सामान आदि। श्री विश्राम ने कहा, हमने कभी अपने को झुकने नही दिया चाहे कितनी भी परिस्थितियां विपरीत रही हो । श्री बिश्राम भारत हमेशा आते रहते है और अपने साथ पूजा का सामान हमेशा साथ ले जाते है हाँ एक चीज जो छूट गयी वो है भाषा आज गुयाना से भोजपुरी या हिंदी गायब हो गयी लेकिन बहुत से शब्द आज भी चल रहे है जैसे चाउर, दाल, तरकारी, कटहल, बैगन, चाचा-चाची, मौसा-मौसी, फुआ-फूफा, आजा-आजी, नानी-नाना, मामी-मामा, भउजी आदि। उनके संबोधन का विद्यार्थियों ने खूब लाभ उठाया उनको हमारे लोग जो विदेशो में जाकर बसे है उनके बारे में ज्ञान प्राप्त हुआ।



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