कठिन नौकरी में भी गजल की दीवानगी: मुनव्वर राना
गुफ्तगू के आनलाइन साहित्यिक परिचर्चा में केके मिश्र उर्फ इश्क सुल्तानपुरी की शायरी पर लोगों ने अपने विचार व्यक्त किए। मशहूर शायर मुनव्वर राना ने कहा कि पुलिस की मुश्किल नौकरी, घर आंगन की देखभाल, आए दिन घर से दूर रहने की सजाएं काटने वाला ये इश्क सुल्तानपुरी अपनी आंखों में दो इंतजार करने वाली आंखों को बसाए, अपने बच्चों के लिए सुनहरे दिनों की दुनिया सजाने के लिए दिन रात जिन्दगी को हादिसात की हथेली पर सजाए मारा फिरता है। शायद गजल ऐसे ही दीवानों को अपना दीवाना बनाने के लिए बेताब रहती है। फिर रफ्ता-रफ्ता ऐसे नौजवानों की खुद की दीवानी हो जाती है और उन्हें शोहरत, इज्जत, नामवरी सम्मान का
वो मुकाम अता कर देती है कि दुनिया में जब तक कागज और कलम में दोस्ती रहेगी गजल के आशिकों को अदब और साहित्य से मुहब्बत करने वाले कभी फरामोश
न सकेगा।
प्रभाशंकर शर्मा के मुताबिक महबूब की आंखों में चाहत से लेकर सामाजिक यथार्थ पर पैनी नजर रखने वाले इश्क सुल्तानपुरी की गजलों में पूरा कसाव है साथ ही यह व्याकरण सम्मत भी हैं। शब्दों को अनुभव की गहराई से निकाल कर के गजलों में पिरोने का बहुत ही सफल प्रयास किया गया है। कवयित्री रचना सक्सेना ने कहा कि इश्क सुल्तानपुरी की गजलें न सिर्फ मोहब्बत और रुमानियत पर आधारित हैं बल्कि सामाजिक सरोकारों और राजनीति जैसे विषय पर भी तंज कसा है। गजलों में उर्दू शब्दों के साथ साथ हिंदी के उन शब्दों का प्रयोग हुआ है जो आम व्यक्ति भी बहुत आसानी से समझने में सफल है।
वरिष्ठ कवि जमादार धीरज ने कहा कि इश्क सुल्तानपुरी की शायरी में समाज में व्याप्त असह्य दर्द से उभरती हुई चीखें स्पष्ट सुनाई पड़ती हैं और वह
गूंगे बहरे शासन को सचेत करने का साहस करते हुए कहता है, ‘यहां माहौल में हैं हर तरफ चीखें ही चीखें/कोई सुनता नहीं बहरी हुकूमत दिख रही है।’ इस चटुकारिता के युग मे अपने पद के कर्तव्य धर्म की विशिष्टता के साथ अपने कवि धर्म का निर्भीक निर्वहन किया है। इनके अलावा सागर होशियारपुरी, डॉ. ममता सरूनाथ, रमोला रूथ लाल ‘आरजू’, नरेश महरानी, शैलेंद्र जय, डाॅ. शैलेष गुप्त ‘वीर’, डाॅ. नीलिमा मिश्रा, सुमन ढींगरा दुग्गल, अनिल ‘मानव’, शगुफ्ता रहमान, तामेश्वर शुक्ल ‘तारक’, संजय सक्सेना, मनमोहन सिंह तन्हा, ऋतंधरा मिश्रा और ममता देवी ने अपने विचार व्यक्त किए। संयोजन गुफ्तगू के अध्यक्ष इम्तियाज अहमद गाजी ने किया। मंगलवार को शैलेंद्र जय के काव्य संग्रह ‘स्याही की लकीरें’ पर परिचर्चा होगी।