रचना सक्सेना की पुस्तक ‘किसकी रचना’ पर ऑनलाइन परिचर्चा

रचना सक्सेना की कविताओं में सघन संवेदना की परतें हैं, समय की सुनी अनसुनी आहटें हैं, युगबोध की गूंजें हैं, कथ्य के आसमान के साथ, शिल्प का सम्यक संयोजन भी है। यह विचार मशहूर गीतकार यश मालवीय ने बुधवार को कवयित्री रचना सक्सेना की पुस्तक ‘किसकी रचना’ पर गुफ्तगू की तरफ से हुए ऑनलाइन परिचर्चा पर व्यक्त किया। फतेहरपुर के कवि डाॅ. शैलेष गुप्त वीर ने कहा कि रचना सक्सेना जी की काव्य-कृति ‘किसकी रचना’ की कविताए विविध विषयों में पिरोयी मानव मन की सहज अभिव्यक्ति है। इन कविताओं में भाव-बोध का अंकन प्रभावी है। वह अपनी बात कहने के लिए अधिक ताना-बाना नहीं बुनती हैं।
सुमन ढींगरा दुग्गल ने कहा कि नारी मन को छूने में सक्षम हैं रचना की कविताएं। अंधविश्वास और नारी के प्रति हो रहे अपराधों पर भी इनकी सजग कलम ‘रीति रिवाज’ नामक कविता में दृष्टिगोचर होती है। युवा अनिल मानव के मुताबिक रचना सक्सेना के लेखन में परंपरागत संबंधों, प्रेम, नैतिकता, मानवीयता और नारी-मन का कोमलतम रूप उभर कर सामने आया है। कुछ भी हो आधुनिकता की अंधी दौड़ में टूटते हुए रिश्ते, हास होती नैतिकता, विखंडित होते परिवारों के बीच ऐसे काव्य सृजन की बेहद जरूरत है।
नीना मोहन श्रीवास्वत के मुताबिक रचना सक्सेना की कविताओं में एक कोमल हृदय से झरती सरिता सी,जो प्रेम में विरह-मिलन और जीवन के झंझावातों से उतरती-सम्भलती सी प्रवाहित होती सी लगती है। ऋतंधरा मिश्रा ने जहां उन्हें व्यावहारिक जीवन की बात करने वाली कवयित्री बताया तो कानपुर की कवयित्री ममता देवी ने जीवन के विविध पहलुओं पर हस्ताक्षर अंकित करने वाली कवयित्री बताया। इनके अलावा रमोला रूथ लाल ‘आरजू’, मनमोहन सिंह ‘तन्हा’, नरेश महारानी, शगुफ्ता रहमान, तामेश्वर शुक्ल ‘तारक’ और संजय सक्सेना ने विचार व्यक्त किए। संयोजन गुफ्तगू के अध्यक्ष इम्तियाज अहमद गाजी ने किया। गुरुवार को युवा कवि अनिल मानव की कविताओं पर परिचर्चा होगी।


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