सूर्य का प्रतिबिंब है ‘स्याही की लकीरें’: डाॅ. नीलिमा मिश्रा

शैलेंद्र जय एक ऐसा इतना संवेदनशील कवि है जो आस-पास घट रही घटनाओं से मर्माहत होकर मौन ही रहकर सब कुछ सह लेना चाहता है लेकिन उसी क्षण उसके अंदर का बुद्ध जागृत होकर उसे उस सत्य को उद्घाटित करने के लिए प्रेरित करता है जिससे वह समाज को एक नयी राह दिखा सके और उसके मौन तोड़ते सृजन होता है। ‘स्याही की लकीरें’ नामक काव्य संग्रह में सूर्य का प्रतिबिम्ब है, जो कुहासे का काजल मिटाने की चाहत रखता है। अनुभव के शिलालेख पर गढ़े गये यथार्थ के खूँटे को उखाड़ कर मुक्त हो जाने की कोशिश करता है जो उसे एक नयी ऊर्जा से उसे भर देती है। यह विचार डाॅ. नीलिमा मिश्रा ने मंगलवार को गुफ्तगू के ऑनलाइन साहित्यिक परिचर्चा में शैलेंद्र के काव्य संग्रह ‘स्याही की लकीरें’ पर व्यक्त करते कहा। मनमोहन सिंह तन्हा ने कहा कि शैलेंद्र जय एक संवेदनशील और गंभीर साहित्यकार हैं, जो बड़ी ही नम्रता और  सहजता से समाज की विसंगतियों पर अपनी कलम चलाते हैं। अंदाज और शब्द रचना इतनी अद्भुत की बहुत देर तक तो सुनने वाला वही रुका रह जाता है और सोचने पर विवश होता है कि हमारे दौर की प्राथमिकताएं क्या है। केंद्रीय विद्यालय की शिक्षिका अर्चना जायसवाल ने कहा कि शैलेंद्र जय जी की काव्य संग्रह में  इनके व्यक्तित्व की गम्भीरता एवं संवेदनशीलता प्रतिबिंबित होता है। स्वयं को समाज और सृष्टि का अंश मानने के कारण न चाहते हुए भी मौन नहीं रह पाते, स्याही की लकीरों से, आक्रोश, जीवन की रिक्तियों को भरते है और खामोशियो को तोड़ते है सतना के कवि तामेश्वर शुक्ल ‘तारक’ के मुताबिक शैलेन्द्र जय ने स्याही की लकीरें खींचकर अंतर के उद्गारों को अनुभव के शिलालेख पर खामोशी की ठंडक, कुहासे का काजल, मेरी कविता, यथार्थ का खूँटा आदि विभिन्न प्रभावी कविताओं से जनमानस के अंतरूपटल एवं साहित्य जगत में सूर्य का प्रतिविम्ब जैसे स्थापित कर दिया है। इनकी छंदमुक्त कविता पढ़कर एक ऊर्जा मिलती है।
नीना मोहन श्रीवास्तव के मुताबिक शैलेंद्र जय जी की कविताएं मानवीयता के धरातल को तलाशती एक सशक्त रचनाकार के मनोभावों की रचना है। जीवन की कठिनाइयों को देखकर कवि मन विचलित होकर कह उठता है-‘जीवन की रिक्तियां भरी जाती हैं दुश्चिंताओं से, और पड़ा रहता हूँ मैं, एक तरफ, सिर्फ तमाशबीन बनकर।’ वह अपनी अंतर व्यथा अपनी कविता के माध्यम से बखूबी रखते हैं। इनके अलावा जमादार धीरज, ऋतंधरा मिश्रा, रचना सक्सेना, संजय सक्सेना, नरेश महरानी, शगुफ्ता रहमान उधम सिंह नगर उत्तराखंड, अनिल मानव, रमोला रूथ लाल ‘आरजू’, प्रभा शंकर शर्मा, सागर होशियारपुरी और डॉ. शैलेष गुप्त ‘वीर’ ने भी विचार व्यक्त किए। संयोजन गुफ्तगू के अध्यक्ष इम्तियाज अहमदगाजी ने किया। बुधवार को नरेश महरानी की कविताओं पर परिचर्चा होगी।


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