छोटी बह्र के ग़ज़लों के शहंशाह हैं विज्ञान व्रत

विज्ञान व्रत बेहतरीन चित्रकार के साथ-साथ छोटी बह्र की गजलों के शहंशाह हैं। छोटी-छोटी बह्र में बड़ी-बड़ी बातें इतनी आसानी से कह देना, जिनके जेरे असर से बाहर निकलना आसान ही नहीं नामुमकिन है। ये गजलंे पढ़ने और सुनने में बहुत आसान लगती हैं, लेकिन इनमें गागर में सागर समाया हुआ है-‘मैं कुछ बेहतर ढूंढ रहा हूं/घर में हूं घर ढूंढ रहा हूं।’ लफ्ज को बरतना और उसे मआनी देना, ऐसा कमाल कि चुम्बकीय आकर्षण पैदा करता है। एक-एक शेर में सदियां समायी हुई हैं, ‘एक सच है मौत भी/वो सिकन्दर है तो है।’ आप कहन के साथ गजल कहने का लाजवाब हुनर रखते हैं। यह बात शनिवार को डाॅ. नीलिमा मिश्रा ने गुफ्तगू द्वारा आयोजित ऑनलाइन साहित्यिक परिचर्चा में नोएडा के मशहूर गजलकार/चित्रकार विज्ञान व्रत की गजलों पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहीं।
डाॅ. शैलेष गुप्त वीर ने कहा कि छोटी बह्र में लाजवाब गजलों से गजल की दुनिया में अपना अलग मुकाम बनाने वाले विज्ञान व्रत शिल्प की कसौटी पर शत-प्रतिशत खरी गजलें कहते हैं। इनकी गजलों का कथ्य बहुत गहरा और धारदार है। इन गजलों में अपने समय का यथार्थ प्रतिबिम्बन है। गजलों में उन्होंने कई प्रयोग किये हैं, जो सर्वथा विशिष्ट हैं। कम शब्दों में बड़ी बात बेहद सलीके से कह जाना उनकी खासियत है, ’उस किले को कौन जीते/जो हवाओं में बना हो।’ विसंगतियों और विद्रूपताओं के चित्र बहुत सहजता से उकेर देते हैं, जहाँ आम आदमी का दर्द फोकस में आ जाता है। तामेश्वर शुक्ला ‘तारक’ ने कहा कि जब कभी छोटी बह्र में गजल पढ़ने और सीखने की इच्छा होती तब मैं सीधे गुगल पर विज्ञान व्रत की गजलें लिखकर कविता कोश का दरवाजा खटखटाता हूं ,और वहां मुझे आप इनकी गजलों से बहुत कुछ सीखने को मिलता है, तथा एक नयी ऊर्जा मिलती है। इम्तियाज गाजी द्वारा गुफ्तगू काव्य परिचर्चा पर आज पुनः विज्ञान व्रत जी को पढ़ने का अवसर हमारे लिये गौरव की बात है। शैलेंद्र जय के मुताबिक दुष्यंत कुमार के पश्चात उनकी परंपरा के के अनुरूप हिंदी गजल को जिन गजलकारों ने पल्लवित-पुष्पित कर आगे बढ़ाया, उनमें शेरजंग गर्ग, बलवीर सिंह रंग, डॉ. कुंवर बेचैन, जहीर कुरैशी, चंद्रसेन विराट के साथ विज्ञान व्रत का नाम भी लिया जाएगा। छोटी बह्र की गजलें कहने में विज्ञान व्रत को सिद्धि प्राप्त है। छोटे-छोटे बह्र की धारदार गजलें सुनने वालों के हृदय को बेधती चली जाती हैं और वह उन शब्दों की तड़प से बाहर निकलने में आह, वाह करके रह जाता है। इनके अतिरिक्त नरेश महारानी, मनमोहन सिंह तन्हा, जमादार धीरज, अतिया नूर, रमोला रूथ लाल ‘आरजू’, शगुफ्ता रहमान, अर्चना जायसवाल, ऋतंधरा मिश्रा,
डाॅ. सुरेश चंद्र द्विवेदी,संजय सक्सेना, सागर होशियारपुरी, डॉ. ममता सरूनाथ, रचना सक्सेना, प्रिया श्रीवास्तव ‘दिव्यम’, शैलेन्द्र कपिल और नीना मोहन श्रीवास्तव ने विचार व्यक्त किए। संयोजन गुफ्तगू के अध्यक्ष इम्तियाज अहमद गाजी ने किया। रविवार को हसनैन मुस्तफाबादी की शायरी पर परिचर्चा होगी।


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