रामचरित मानस के उर्दू शायरी में अनुवाद पर हुई परिचर्चा

डाॅ. अहसन भी तुलसीदास और बाल्मीकि की तरह अनेक भाषाओं अनेक पुराणों अनेक साहित्यों, अनेक इतिहासों और अनेक सभ्यताओं के जानकार थे। यह अनुवाद उन्होंने स्वतः सुखाए, आत्म संतोष और और आत्म प्रबोधन के लिए किया है, तुलसीदास की तरह डाॅ. अहसन का भी काव्य मूलतः स्वतः सुखाए होते हुए भी लोकमंगल के उद्देश्य की पूर्ति करता है। दोनों ही जगह रामकथा का अनुराग मिलता है, यह अपने समय का सबसे बड़ा काम है। यह अनुवाद साहित्य जगत का बहुत बड़ा काम है, अफसोस है कि अब तक इसका प्रकाशन नहीं हो सका है। अब इम्तियज गाजी ने इसके प्रकाशन का बीड़ा उठाया है तो कुछ उम्मीद बनती दिख रही है। यह बात इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के पूर्व विभागाध्यक्ष डाॅ. सुरेश चंद्र द्विवेदी ने गुफ्तगू द्वारा आयोजित आॅनलाइन परिचर्चा में कही, वे रामचरित मानस का उर्दू शायरी में अनुवाद करने वाले शायर डाॅ. जमीर अहसन की शायरी पर बोल रहे थे। डाॅ. अहसन की बेटी अतिया नूर ने कहा कि मैं साक्षी हूं इतिहास रचने वाले इस शायर के हर संघर्ष की, चाहे वो मानस के तर्जुमे के दौरान उन पर फतवा जारी करने की बात हो या तथाकथित बुद्धिजीवियों की ओर से तर्जुमे के प्रसारण को बंद कराने, उसे उर्दू जैसी अपवित्र जुबान करार देने की बात हो....। नहीं बनता कोई भी तुलसी, सूर, कबीर, गालिब, बहादुर शाह जफर बिना जुल्म की आग की तपिश को महसूस किए बिना, घर -परिवार को तकलीफ में झोंके बिना। मानस के तर्जुमे का काम उन्होंने मेरे जन्म से पहले यानि 1975 में शुरू किया था। ये काम चैदह बरस में पूरा हुआ। मैं जब थोड़ी बड़ी हुई, मैंने उनके संघर्ष को महसूस किया। हम छह भाई-बहनों की जिम्मेदारी के बीच किस तरह उन्होंने इस महान कार्य को पूरा किया आज सोचती हूं, तो आंखें नम जरूर होती हैं मगर नाज भी होता है। वे कम्युनिस्ट पार्टी से थे, आपातकाल के दौरान जेल की सलाखों में बंद उन्होंने देखा था कैदियों को लाने वाली गाड़ी
के पीछे लिखा हुआ-‘मंगल भवन अमंगल हारी, द्रवहुँ सुदसरथ अजिर बिहारी।’ बस यहीं से शुरू हुआ मानस के तर्जुमे का सफर। जहां भी होते थे एक खुशनुमा माहौल कायम कर देते थे ,जेलर ने वहीं पर उन्हें पेन, कागज वगैरह मुहैया कराया और उन्होंने इस काम को वहीं शुरू किया।
मासूम रजा राशदी ने कहा कि एक उस्ताद शायर, एक महान भाषाविद, गंगा-जमुनी तहजीब का अलमबरदार और समाज के कट्टरपंथी मानसिकता से टकराने की हिम्मत रखने वाला व्यक्तित्व जब एक ही व्यक्ति में समाहित होता है तो डॉ. जमीर अहसन साहब जैसे युग पुरुष का निर्माण होता है। आप यकीन मानिए कि रामचरित मानस का उर्दू शायरी में अनुवाद करना किसी कमजोर शख्सियत के बस की बात थी भी नहीं। और जहां तक डाॅ. जमीर अहसन की फन्ने शायरी पर ऊबूर का सवाल है तो रामचरित मानस के इस अनुवाद के एक एक शेर से उनकी उस्तादी छलकती है, आप खुद देख लीजिए-ये तोड़ना चढ़ाना तो दरकिनार भाईध् तिल भर जमीं से इसमें जुंबिश तलक न आई।’ एक एक लफ्ज को जिस हुनरमंदी से उन्होंने बरता है उस हुनर को ही उस्तादी कहा जाता है। जमादार धीरज, नरेश महारानी, मनमोहन सिंह तन्हा, इश्क सुल्तानपुरी, शैलेंद्र जय, ऋतंधरा मिश्रा, शगुफ्ता रहमान, डाॅ. नीलिमा मिश्रा, डाॅ. इम्तियाज समर, रचना सक्सेना, संजय सक्सेना, रमोला रूथ लाल ‘आरजू’, अर्चना जायसवाल ‘सरताज’, डॉ.ममता सरूनाथ, सुमन ढींगरा दुग्गल, डॉ. शैलेष गुप्त ‘वीर’, सागर होशियारपुरी और अनिल मानव ने विचार व्यक्त किए। संयोजन गुफ्तगू के अध्यक्ष इम्तियाज अहमद गाजी ने किया। शुक्रवार डाॅ. ममता सरुनाथ की कविताओं पर परचिर्चा होगी।


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