सजग, समर्थ और संवेदनशील रचनाकार उर्वशी: डा. सरोज सिंह

महिला काव्य मंच प्रयागराज ईकाई के तत्वावधान मे अध्यक्ष श्रीमती रचना सक्सेना जी के द्वारा आयोजित की जा रही आनलाइन समीक्षात्मक परिचर्चा महिला काव्य मंच पूर्वी उत्तर प्रदेश की अध्यक्षा मंजू पाण्डेय की अध्यक्षता और रचना सक्सेना एवं ऋतन्धरा मिश्रा के संयोजन में, एक सशक्त कवयित्री उर्वशी उपाध्याय जी की कविताओं पर केन्द्रित रहीं अतः मंच की अनेक वरिष्ठ कवित्रियों के मध्य उर्वशी उपाध्याय जी की रचनाऐं चर्चा में बनी रही जिस पर डा. सरोज सिंह, आ. प्रेमा राय जी, आ. मीरा सिन्हा जी, आ. कविता उपाध्याय जी, आ. जया मोहन जी, आ. उमा सहाय जी एवं देवयानी जी ने अपने विचार प्रकट किये।


डा. सरोज सिंह जी के अनुसार कवयित्री उर्वशी उपाध्याय प्रेरणा जी बहुत ही सजग, समर्थ और संवेदनशील रचनाकार है उनकी रचनाओं में समसामयिक विसंगतियों का अंकन सफल रुप  में किया गया है। हर रचनाकार को हमेशा अपने सामाजिक सरोकार को रचना में अभिव्यक्त करना एक चुनौती भी है उर्वशी जी ने अपनी कविता मैनें देखा है में सामाजिक सरोकारों का निर्वाह किया है वरिष्ठ कवयित्री आ. प्रेमा राय जी के अनुसार उर्वशी उपाध्याय जी नें व्यक्तिगत एवं सामाजिक विषयों पर अपनी कविताऐं प्रस्तुत की है कविता मेरी नजर मे शीर्षक के अन्तर्गत लिखी गई कविता में काव्य को प्रत्येक काल एवं परिस्थिति में सामाजिक दिग्दर्शन का सर्वोत्तम एवं प्रबलतम साधन मानकर कविता को कालजयी माना गया है कवयित्री साहित्य समाज का दर्पण है भाव को स्पष्ट करने में सफल है वरिष्ठ कवयित्री मीरा सिन्हा जी का कहना है कि उनकी कविता बोलती पत्थर निराला जी की तोड़ती पत्थर की याद दिलाती है नारी क्या है एक बोलने वाली पत्थर ही तो है जो बोलना जानकर भी सब कुछ खामोशी से सहती है। आ. कविता उपाध्याय जी का कहना है कि उर्वशी उपाध्याय जी की सभी कविताए प्रभावी है उनके बारे में कुछ कहना सूर्य को दीपक दिखाने के समान है। जया मोहन जी के अनुसार कविता वही लिख सकता है जिसमे संवेदनाएं प्रवाहित हो। उर्वशी जी उन्ही में से है। कविता प्रीत की पाती के विषय में वह बताती है कि यह कविता प्रेम की पराकाष्ठा है जिसमें संयोग, वियोग दोनों रंग है। प्रणय निवेदन कि चाहे जितने झंझावात आये तुम साथ न छोड़ना न पास आ सको तो स्वप्न में ही आगाह करना। वरिष्ठ कवयित्री देवयानी जी  कहती है कि उर्वशी जी ने बड़े ही सुंदर ढंग से असंभव को संभव किया है।ष्हम साथ चले थे बहुत दूर तथा धरती अंबर का संगम होते देखा है पढ़ने से ऐसा बोध हुआ कि जैसे जीवन ही प्रकृति है और प्रकृति ही जीवन है। कविता ही संस्कृति है लिख कर कवियित्री ने हमे उस चैखट पर पहुचाया है जिसे हम भूल चुके हैं। वरिष्ठ कवयित्री उमा सहाय जी के अनुसार उर्वशी जी आज की प्रगतिशील नारी की भांति कविवर सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी से अत्यंत प्रभावित प्रतीत होती हैं। मैंने देखा है कविता में इनका निरीक्षण का दायरा अत्यंत व्यापक है। वह कर्मठता का,अपने हाथों से कुछ करते रहने का संदेश देती हैं। कविता सशक्त है और अपने उद्देश्य में सफल भी।


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