रेनू मिश्रा की कविताओं में काव्यात्मकता के साथ शिक्षा भी है: देवयानी

महिला काव्य मंच प्रयागराज ईकाई के तत्वावधान मे प्रयागराज ईकाई की अध्यक्ष रचना सक्सेना और महासचिव ऋतन्धरा मिश्रा जी के संयोजन मे एक  समीक्षात्मक परिचर्चा का आयोजन प्रयागराज की एक कवयित्री और खेल गांव स्कूल की शिक्षिका रेनू मिश्रा जी पर केन्द्रित रहा। इस परिचर्चा के अंतर्गत उनकी कुछ उत्कृष्ट रचनाओं को उमा सहाय, डा सरोज सिंह, कविता उपाध्याय, जया मोहन, मीरा सिन्हा, देवयानी जी आदि समीक्षकों के समक्ष प्रस्तुत किया गया। समीक्षक के रुप में प्रयागराज की वरिष्ठ कवयित्रियों एवं साहित्यकारों ने अपने अपने विचार प्रस्तुत किये।
लेखिका ’मीरा सिन्हा’ ने कहा  उनकी पहली रचना कृष्ण उद्धव प्रसंग को लेकर है जिसे इन्होने बहुत सरल शब्दों मे व्यक्त किया है सच है भक्ति भावना की चीज है तर्क की नही और एक भक्त कभी ज्ञानी की बात नही मान सकता दूसरी कविता अपने माता पिता के सम्मान करने की शिक्षा देती है तीसरी कविता परशुराम जी के बारे मे है जो विष्णु के अवतार माने जाते है और रेणुका और जमदग्नि ऋषि के पुत्र थे उनके प्रताप से विश्व परिचित हैं चैथी कविता मानव को नीतियों का पालन करने और संघर्षो है पर अडिग रहने की बात कहती है पांचवी कविता बहुत प्यारी है जो हमसफर का साथ कैसा होता है इस बारे मे है जीवन साथी की अच्छी-बुरी सभी बाते अच्छी लगती है हमे उनकी आदत पड़ जाती है और वही जीवन लगता है।
’जया मोहन’ जी कहती है इनकी पहली कविता हायकू से मिलती जुलती है। जिसमे उद्धव गोपी संवाद है। वो कहती है हम सगुण उपासक है हमे निर्गुण भक्ति का ज्ञान न दो। दूसरी कविता माता-पिता को समर्पित है।वो हमारे जन्मदाता है हमे कभी उनका अपमान नही करना चाहिए। तीसरी कविता परशुराम जी को समर्पित है जिनके प्रताप से संसार परचित है। चैथी कविता नफरत हिंसा मिटा कर प्रेम का संदेश है। पांचवी कविता भारतीय नारी का पति के प्रति पूर्ण समर्पण की है। पति ही उसका जीवन आधार होता है।उसे हर हाल में उनका साथ प्यारा लगता है।
’देवयानी’ जी कहती है रेणु जी का सहज सरल स्वभाव रेणु जी की रचनाओं में झलकता है। काव्यातमकता के साथ उसमे शिक्षा भी है। जीवन वरदान है अभिशाप मत बनाइए।
भगवान परशुराम को याद कर उन्होंने भारत देश की महानता गायी हैं। भारत देश को उन्होंने वीरों का देश कहा है। संकल्प कविता भी उनकी शिक्षा देती है। कि लक्ष्य याद रखना, बांधाए कितनी आए तुम ना डगमगाना।
मेरी आदत पड़ गई है कविता मे कवियतरी ने जैसे मन के हार जाने की बात कही हो। प्यार के इर्द-गिर्द उन्होंने जीवन को समर्पित किया है। ’कविता उपाध्याय जी के अनुसार प्रथम कविता ,महान कवि हरिऔध जी की कविताओं से प्रेरित जान पड़ती है, जिसमें सगुण उपासना के महत्व को तथा निश्चल प्रेम को इंगित किया गया है। उद्धव का ब्रह्म ज्ञान है, तर्क-वितर्क है। दूसरी कविता में स्पष्ट संदेश है कि माता पिता का रूप भगवान से कम नहीं ,जरूरी नहीं कि मंदिर जाएं, वृद्धावस्था में उनकी सेवा अत्यंत आवश्यक है। तीसरी कविता जामदाग्नी, रेणुका के पुत्र परशुराम जी के गुण तेजस्विता के लिए है, जिसे हर भारतीय जानता है। चैथी कविता संकल्प है, मनुष्य के जीवन में कितनी भी बाधाएं आएं, लेकिन उसे अपने संकल्प पर अडिग रहना चाहिए ,साथ ही दिखावे से मानव दूर रहे तो बहुत ही सुंदर होगा ,अपने संस्कारों का सदैव सम्मान करें, एक नजर देशभक्ति पर भी डाली गई है कि देश के गद्दारों को कभी माफ न करें। आखिरी कविता भारतीय नारी के मन की सहज ही पति के प्रेम में डूबी हुई है।
वह कहती हैं तुमसे ही मान-सम्मान ,त्यौहार ,सब जुड़े हैं, भारतीय महिला का निश्छल संसार उसका पति है, कुल मिलाकर अत्यंत सरल भाषा में लिखी गई कविताएं हैं जो जनमानस को सहजता से समझ में आती हैं, उनमें अतुकांत होते हुए भी गेयता है।
आखिर में मैं कहना चाहूंगी की कवयित्री के भाव अत्यंत ही सुंदर और प्रेरणादायक हैं। ’डा. सरोज सिंह’ जी कहती है कि कवयित्री रेनू मिश्रा जी एक उभरती हुई रचनाकार हैं, जो अपनी देशज भाषा के गांभीर्य के साथ ही अनेक भावों का संगुफन करती हैं।अपनी पहली कविता चुनौती में वे उद्धव-गोपी के संवादों के साथ योग की जगह प्रेम,और  भक्ति के माहात्म्य को व्यक्त किया है।
दूसरी कविता में जीवन की सार्थकता और उद्देश्य को व्यक्त करती हुई सुकर्मों, बड़ों की सेवा, सम्मान, माता पिता के प्रति दायित्व बोध के प्रति नयी पीढ़ी को आगाह एवं जागरूक करती हैं।तीसरी कविता में भगवान परशुराम के प्रति अपनी आस्था प्रस्तुत करती हैं। चैथी कविता ‘संकल्प’ में जीवन के लक्ष्यों के प्रति आगाह करते हुए कठिनाइयों में जिजीविषा बनाये रखने पर बल देती हैं। जीवन में अंहकार ,ढोंग पाखंड और आडंबर संकल्पों को क्षीण करते हैं। पाँचवीं कविता में स्त्री जीवन में जीवन साथी की चाहत, आदत ,प्यार और उसी से सौभाग्य, सुख और चाहत को दर्शाती हैं। यह कविता प्रेमपूर्ण भावों के कारण आह्लादित करती है। भाषा सहज,सुगम और प्रभावोत्पादक है। वरिष्ठ कवयित्री ’उमा सहाय’ जी का कहना है कि, विदुषी कवयित्री रेनू मिश्रा जी एक सरल, सहज, आदर्शवादी एवं धार्मिक प्रवृत्ति की महिला प्रतीत होती हैं। उनकी कविताएं भी उनके इन गुणों की प्रतिछाया लगती हैं। पौराणिक कथाओं एवं आख्यानो के प्रति उनमें गहरी रूचि झलकती है। चुनौती कविता में कृष्ण के प्रति वह उन्हें भगवान मानते हुए भी मित्र भाव से अपना मानती हैं । इस कविता में खड़ी बोली के साथ हल्का सा स्पर्श ब्रजभाषा का भी है जो इस कविता के माधुर्य को बढ़ाता है। उनकी कविताओं के भावों में तथा भाषा में भी आडंबर नहीं है। वह आधुनिक समय में भारतीय संस्कृति के अनुसार जिन बातों की समाज को आवश्यकता है उन्हें अपनी कविता में मोतियों की भांति बखूबी पिरोती हैं । हमारे कर्तव्यों के प्रति हमें बड़ी सरलता से सजग करती रहती हैं। सबसे बड़ी बात तो यह है कि वह आधुनिक महिला सशक्तिकरण के उस पहलू की समर्थक नहीं है जो परिवार को तोड़ते हैं। त्याग और संयम के बहुत ही सुंदर सरल उदाहरण उन्होंने अपनी अंतिम कविता में दिए हैं। वह स्वयं तो जीवनसाथी के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित हैं। साथ ही तुम्हारी डांट ही मुझको यह बताती है कि तुम्हें मेरे साथ रहने की आदत पड़ गई है। पंक्ति कहकर अपनेपन को बड़ी स्वाभाविक सादगी से जता दिया है । सच है कि दांपत्य जीवन में सहनशीलता ही उसे सुदृढ़ बनाती है। रेनू जी की कविताएं आज की पीढ़ी के लिए अनुशीलन एवं अनुपालन का संदेश देती है। आज हमारे परिवार एवं समाज को ऐसी ही कविताओं की आवश्यकता है विशेषतरू अंतिम कविता बहुत ही प्रभावशाली है।
यह आयोजन महिला काव्य मंच पूर्वी उत्तर प्रदेश की अध्यक्षा आ मंजू पाण्डेय जी की अध्यक्षता में सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ ।


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