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डा. पूर्णिमा की कविता में बिखरा है बेटी का दर्द:प्रेमा राय

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महिला काव्य मंच प्रयागराज इकाई के तत्वावधान में आज प्रयागराज की कवयित्री डा. पूर्णिमा मालवीय की कविताओं पर समीक्षात्मक परिचर्चा का आयोजन किया गया। जिसमें डा. पूर्णिमा मालवीय की चार चुनिंदा कविताओं को पटल पर चर्चा के लिए रखा गया। वरिष्ठ कवयित्री ’कविता उपाध्याय’ ने अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि डा. पूर्णिमा जी की प्रथम कविता हृदय को अथवा नारी मन को अंदर तक झकझोरने या दबी पीड़ा को कुरेदने में तत्पर है। जो बेटी बचपन से जवानी तक माता-पिता के घर को अपना घर समझती आई थी, अचानक ही युवा होते और विवाह होते ही पराई हो जाती है । माता-पिता, भाई कहते हैं पराया धन है, तो ससुराल वाले कहते हैं ,इसे कैसे दर्द होगा ,पराए घर से आई है। अतः पराएपन का दंश उसे सदैव कुरेदता है। कवयित्री की कविता में इलाहाबाद का गुणगान है। वास्तव में यहां के अमरूद दूर-दूर तक स्वाद गुण की महक बिखेरते हैं, एक ओर बड़े-बड़े साहित्यकार महीषी महादेवी वर्मा, निराला, बालकृष्ण भट्ट, आदि है तो दूसरी ओर  कलाकार अमिताभ बच्चन, हरिप्रसाद चैरसिया, रामकुमार वर्मा आदि है। यह महान नेता नेहरू जी की जन्मस्थली भी है। गंगा जमुनी तहजीब है। कुंभ

थम गई मेरी जिन्दगी है अभी

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दूर  इस  दिल  से  तीरगी  है  अभी ! तेरी  चाहत   की   रौशनी  है  अभी ! हिचकियाँ  आयीं  तो  मेरे  दिल  में ! एक   उम्मीद   सी   जगी  है  अभी ! मुझको     कैसे     सुकूँन   आयेगा ! तुझसे  मिलने की  बेकली  है अभी ! लौट   आओ   के    तेरे   जाने   से ! थम  गई   मेरी   जिन्दगी  है  अभी ! तेरे   आने   की   जो   खबर  आई ! बस  इसी  बात की  खुशी है अभी ! गुल  खिले  हैं  चमन  ये  महका है ! शाखे-गुल भी  सनम  हरी है अभी ! शाम   रंगीन  हो   जो  आ  जाओ ! दिल ढला शम्मा भी जली है अभी ! कैसे  मंजिल   तलक  ये  पहुँचेगी ! जिन्दगी   राह  में   पड़ी  है  अभी ! कुछ  नहीं  है ‘कशिश’  कहूँ  कैसे ! रब  मेरा  उसकी  बंदिगी  है  अभी !       

मुहब्बत की खातिर ये दुनियाँ बनाई

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मुहब्बत दिलों से कब होती जुदा है ! मुहब्बत  जुनूँ है  मुहब्बत  नशा है !              कहीं   ईश्वर  है !              कहीं ये खुदा है ! मुहब्बत  में है  उसकी  सारी  खुदाई ! मुहब्बत की खातिर ये दुनियाँ बनाई ! मुहब्बत हकीकत का इक आईना है ! मुहब्बत  जुनूँ  है   मुहब्बत  नशा है !               कहीं   ईश्वर  है !               कहीं ये खुदा है ! मुहब्बत  के  दम से  बदन  में हरारत ! मुहब्बत  है  इंसानियत  की  जमानत ! मुहब्बत  है  जिसमें  उसी  में वफा है ! मुहब्बत  जुनूँ   है   मुहब्बत  नशा  है !              कहीं   ईश्वर  है !              कहीं ये खुदा है ! मुहब्बत से यारो  दिलों की है  धड़कन ! मुहब्बत से महके वफाओं का गुलशन ! मुहब्बत  बहुत  ही   हसीं  दिलरुबा  है ! मुहब्बत   जुनूँ   है   मुहब्बत   नशा  है !               कहीं   ईश्वर  है !               कहीं ये खुदा है ! मुहब्बत हर-इक दिल में खूँ की तरह है ! मुहब्बत ही दिल  में  सुकूँ  की तरह  है ! मुहब्बत  का   रुतवा  जहाँ  में  बड़ा है ! मुहब्बत  जुनूँ   है   मुहब्बत   नशा  है !               कहीं   ईश्वर  है !               कहीं ये खुदा है !

रेनू मिश्रा की कविताओं में काव्यात्मकता के साथ शिक्षा भी है: देवयानी

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महिला काव्य मंच प्रयागराज ईकाई के तत्वावधान मे प्रयागराज ईकाई की अध्यक्ष रचना सक्सेना और महासचिव ऋतन्धरा मिश्रा जी के संयोजन मे एक  समीक्षात्मक परिचर्चा का आयोजन प्रयागराज की एक कवयित्री और खेल गांव स्कूल की शिक्षिका रेनू मिश्रा जी पर केन्द्रित रहा। इस परिचर्चा के अंतर्गत उनकी कुछ उत्कृष्ट रचनाओं को उमा सहाय, डा सरोज सिंह, कविता उपाध्याय, जया मोहन, मीरा सिन्हा, देवयानी जी आदि समीक्षकों के समक्ष प्रस्तुत किया गया। समीक्षक के रुप में प्रयागराज की वरिष्ठ कवयित्रियों एवं साहित्यकारों ने अपने अपने विचार प्रस्तुत किये। लेखिका ’मीरा सिन्हा’ ने कहा  उनकी पहली रचना कृष्ण उद्धव प्रसंग को लेकर है जिसे इन्होने बहुत सरल शब्दों मे व्यक्त किया है सच है भक्ति भावना की चीज है तर्क की नही और एक भक्त कभी ज्ञानी की बात नही मान सकता दूसरी कविता अपने माता पिता के सम्मान करने की शिक्षा देती है तीसरी कविता परशुराम जी के बारे मे है जो विष्णु के अवतार माने जाते है और रेणुका और जमदग्नि ऋषि के पुत्र थे उनके प्रताप से विश्व परिचित हैं चैथी कविता मानव को नीतियों का पालन करने और संघर्षो है पर अडिग रहने की बात कहती ह

श्रमजीवी नारी का सजीव चित्रण है अर्विना गहलोत: कविता उपाध्याय

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प्रयागराज ईकाई के तत्वावधान मे प्रयागराज ईकाई की अध्यक्ष रचना सक्सेना और महासचिव ऋतन्धरा मिश्रा जी के संयोजन मे एक समीक्षात्मक परिचर्चा का आयोजन प्रयागराज की  एक वरिष्ठ कवयित्री अर्विना गहलोत जी पर केन्द्रित रहा। इस परिचर्चा के अंतर्गत उनकी पुस्तक देहरी के गुलमोहर काव्य संग्रह से ली गई कुछ रचनाओं पर प्रयागराज की वरिष्ठ कवयित्रियों एवं साहित्यकारों ने अपने विचार प्रस्तुत किये। उनकी रचनाओं पर कविता उपाध्याय जी के अनुसार अर्विना जी वनस्पति विज्ञान में अपनी पैठ रखती हैं संभवतः इसी कारण प्रकृति से उनका विशेष जुड़ाव है।  वह गुलमोहर को संभवतः एक बुजुर्ग अथवा पूर्वज से तुलना करती हैं जो हर परिस्थिति में उनकी देहरी पर अडिग खड़ा है साथ ही लूं थपेड़ों से उनकी रक्षा करके खूबसूरत लाल पुष्पों से जीवन में सुकून भर देता है । दूसरी जगह है वह सूखी दरखत को देखकर चिड़िया के माध्यम से संदेश दे रही हैं कि नारी अबला नहीं सबला है श्रमजीवी नारी का सजीव चित्रण है। देवयानी जी के अनुसार देहरी के गुलमोहर भावनात्मक कविता है। जिसे कवयित्री ने पूर्वज कहा है। पूर्वज हो तुम मेरे वर्षो से दुआ बनकर दरखत कविता भी हृदय को छू ज

बैंक बैलेंस बढ़मि कमीशनम् नमामि

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देश के लोगों के कल्याण के लिए पशु-पक्षी और जन-जन में दलाल के कंसेप्ट का प्रसार और विस्तार करने का व्रत लेकर निरंतर विचरण करने वाले कमीशनाधिपति ऋषिगणों को मैं खुलकर प्रणाम करता हूँ। कमीशनश्री के मूर्धन्य सम्मान से विभूषित परम आत्माओं को मैं पुनः-पुनः दण्डवत करता हूँ। एकमात्र उन्ही को सुविधा है कि वे बिना किसी रोक-टोक के कमीशन लोक के पर्याय विभिन्न मंत्रालयों व आॅफिसों में आत्म कल्याण के लोक कल्याण में बदलने के लिए अपने चरण-कमलों की रज को उनके सोफों पर छिड़क दें। वे समय-असमय भगवन् दलाल के निकट पहुँचकर अपनी सामयिक व असामयिक चुनावी घोषणाओं और वादों को दरकिनार करते हुए कमीशनावतार के रूप में पर्चा देने के लिए किसी सौदेबाजी के गर्भधारण करने का पवित्र कारज करते हैं। अतः देश के उत्तम स्वास्थ्य के लिए प्रत्येक नर-नारी को कमीशन स्रोत नियमित रूप से करना चाहिए।   ओम श्री इच्छामि, कोठी, कार, बैंक बैलेंस बढ़मि कमीशनम् नमामि। जो कमीशन को देने वाले दलाल देवगण का अपमान करते है, उनका तिरस्कार करते है। उनकी लुटिया हमेशा डूबती दिखी है। नाना रूपाणि कमीशननानि। एक बार मामला प्रकाश में आ जाए तो पुनः-पुनः दलाल दे

मजदूरों की दुर्दशा का जिम्मेदार कौन है

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राज्यों से पलायन कर रहे मजदूर अपने सर कंधों पर अपने कर्म, अपने धर्म,अपने फर्ज, साथ ही अपने दुःख तकलीफों का बोझ लादे सैंकड़ों मील का सफर अपने छालों से भरें नंगे पैरों से आँखों में आँसू, पसीने से लथपथ सड़कों को बिना थके, बिना रुके अपने हौंसलों से नाप रहे हैं। अगर इतना सब हो रहा है तो पलायन शब्द कंहा से आया, मजदूर भूखे रहा, स्थानिकों की गाली-मार खाई, अपमान सहे, सड़कों-फुटपाथ पर अपना रैन बसेरा किया, लेकिन कभी भागा नही क्योंकि उसे अपने बूढ़े माता-पिता, छोटे-छोटे मासूम बच्चों का पेट भी पालना था, और वो सुविधा-असुविधा से अनजान बस अपने कर्म को अंजाम देता रहा और अपने परिवार का भरण-पोषण करता रहा. .परंतु आज अचानक ऐसा क्या हो गया कि उसी मजदूर को अपनी कर्मभूमि छोड़कर पलायन करना पड़ रहा है, चिंतन का विषय है,,और सभी राज्य सरकारें चिंतन करें। सड़कों पर पैदल चल रहे मजदूरों के साथ उनकी पत्नी, उनके छोटे छोटे बच्चोँ की भूख, उनके आँसू, उनके पैरों के छालों पर राजनीति करने के बजाय ऐसा कुछ क्यों नही हो रहा कि मजदूर भागे ही नहीं,, और क्यों भाग रहे हैं ये मजदूर, क्यों तपती धूप, भूख प्यास, छालों की परवाह किये बिना सैंकड़

आ अब लौट चलें

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कोरोना के संक्रमण में सारे प्रवासी अब अपने घरों को लौट रहे है । आखिर वो कौन सा कारण है कि इस बीमारी से लोग इतना डर गए है और अपने गाँव को लौटने को मजबूर है,  मिट्टी की सुगंध उनको अपनी ओर क्यो खींच रही है। अगर पुरानी पहले की बाते याद करे तो देखते है कि हमारे बड़े बुजुर्गों ने हमे बताया था कि प्लेग, हैजा, चेचक के चलते पूरा का पूरा गांव साफ हो जाता था, लोग गाँव छोड़कर सिवान में बस जाते थे बाग-बगीचे, खलिहान में रहने के लिए चले जाते थे। उस समय भी संक्रमण एक दूसरे से ही फैलता था लोग साफ-सफाई का पूरा ध्यान रखते थे। परिस्थितियां लगभग वही है केवल रोग बदल गया है, रोग के लक्षण बदल गए है, उस समय भी इन रोगों का कोई सटीक उपचार नहीं था और आज भी कोरोना की कोई दवा नही है।  आज के आर्थिक युग मे लोगों द्वारा किसी न किसी तरह से प्रकृति के नियमो का पालन न करना और प्रकृति के विरूद्ध कार्य करना, प्रकृति के साथ खिलवाड़ करना उसका दुरूपयोग व दोहन करना इस बीमारी को और विकराल बनाती है। प्रकृति अपने को संतुलित करती है । अब जबसे पूरी दुनियाँ में सर्व बंदी (लाॅकडाउन) हुई है तबसे वातावरण स्वच्छ, पर्यावरण साफ, प्रदूषण समाप

प्रभु की शिक्षाओं को जानना ही प्रभु को जानना है

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(1) मैं कौन हूं? मोक्ष क्या है? क्या मोक्ष इसी जीवन में संभव है?:-    इंसान अनादि काल से जगत की उत्पत्ति और प्रलय के रहस्यों को खोलने में लगा है। वह जानना चाहता है कि यह प्रकृति कैसे कार्य करती है? जीवों के जन्म-मरण का रहस्य क्या है? जगत के इन दैवीय रहस्यों को जानने के लिए मनुष्य जप, तप, खोज, ध्यान, मनन, चिंतन, तीर्थाटन, सत्संग आदि-आदि के मार्ग अपनाता है। आज मानव जाति अनेक समस्याओं, कुरीतियों तथा मूढ़ मान्यताओं से पीड़ित तथा घिरी हुई है। मनुष्य परमात्मा के दर्शन भौतिक आंखों से करना चाहता है। अध्यात्म अनुभव का क्षेत्र है और इसकी प्रक्रियाओं व वैज्ञानिक प्रयोगों को प्रत्यक्ष दिखाया नहीं जा सकता, जैसे- हम वायु को देख नहीं सकते, केवल अनुभव कर सकते हैं, ठीक उसी तरह अध्यात्म के वैज्ञानिक प्रयोग स्थूलजगत में देखे नहीं जा सकते, केवल उनके परिणामों को देखा जा सकता है। (2) पृथ्वी ही ऐसा ग्रह है जहां पदार्थ तथा चेतना दोनों तत्व हैं:-   इस सृष्टि में पदार्थ और चेतना दोनों साथ-साथ मिलकर कार्य करते हैं। जैसे हमारे शरीर में जब तक जीवात्मा है तब तक प्रकृति के पंचतत्वों भूमि, आकाश, वायु, अग्नि तथा जल से ब

आग उल्फत की लगानी चाहिये

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जिन्दगी   को   भी   मआनी   चाहिये ! दिल   पे    तेरे     हुक्मरानी   चाहिये ! चाहतों   का   घर   बनाने   के   लिये ! आप   जैसा    एक    बानी    चाहिये ! तेरी आमद   पर   मेरे  दिल  ने  कहा ! प्यार  की   दुनिया   सजानी   चाहिये ! इश्क    महकेगा     हमारा    उम्र  भर ! हर  कदम  पर   रुत   सुहानी  चाहिये ! इश्क  का  सजदा  हो   पाये  यार  हो ! रस्म-ए-उल्फत   यूँ   निभानी  चाहिये ! संग  दिल  को  मोम  करने  के  लिये ! आग  उल्फत   की   लगानी   चाहिये ! इश्क   के   ता लाब   को   मेरे   खुदा ! अब   समंदर    सी    रवानी   चाहिये ! तुम  सदाकत  साथ  में  रख्खो  वफा ! खुशनुमा   गर    जिन्दगानी    चाहिये ! हुस्न  पहले   बा-वफा   होकर  दिखा ! इश्क   की    गर   पासबानी   चाहिये ! आशिकों में हो ‘कशिश’ का भी शुमार ! बस    तुम्हारी     मेहरबानी    चाहिये !          

मनुष्य एक भौतिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक प्राणी है!

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मनुष्य की भौतिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक तीन वास्तविकतायें होती हैं:- आज विद्यालयों के द्वारा बच्चों को एकांकी शिक्षा अर्थात केवल भौतिक शिक्षा ही दी जा रही है, जब कि मनुष्य की तीन वास्तविकतायें होती हैं।पहला-मनुष्य एक भौतिक प्राणी है, दूसरा-मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है तथा तीसरा मनुष्य- एक आध्यात्मिक प्राणी है। मनुष्य के जीवन मेंभौतिकता, सामाजिकता तथा आध्यात्मिकता का संतुलन जरूरी है। मनुष्य के सम्पूर्ण व्यक्तित्व के विकास के लिए उसे सर्वश्रेष्ठ भौतिक शिक्षा के साथ ही साथ उसे सामाजिक एवं आध्यात्मिक शिक्षा भी देनी चाहिए। प्रारम्भिक काल में शिक्षालयों में बालक को बाल्यावस्था से भौतिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक तीनों प्रकार की शिक्षा संतुलित रूप् से मिलती थी। इस प्रकार व्यक्ति का संतुलित विकास होने से वह व्यक्ति अपनी नौकरी या व्यवसाय को ईश्वर की नौकरी करने की उच्चतम समझ से करता था। उस समय मानव जीवन एकता तथा प्रेम से भरपूर था। बालक कोई ईश्वर का उपहार एवं मानव जाति का गौरव बनायें:- यदि बालक को केवल विषयों का भौतिक ज्ञान दिया जाये और उसके सामाजिक एवं आध्यात्मिक गुणों में कमी कर दी जायें तो उससे बा

नसीहत देने वाली शायरी करते हैं हसनैन: सागर

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देखो हरगिज न हेकारत से गरीबों की तरफ/सिर्फ मकसद तो नहीं जीस्त का पैसा होना।’ यह शेर मशहूर शायर हसनैन मुस्तफाबाद के कलम से निकला हुआ है, यह उनकी शायरी का आईना है जो उनकी बुलंद ख्याली की तरफ इशारा करता है। इनके अशआर नसीहत आमेज हैं। वो एक हमदर्द इंसान भी हैं और सबको खुश देखना चाहते हैं। वो समाज में चल रही बुराइयों जैसे गरीबों और मजदूरों पर जुल्म, बुरी सियासत, बेवफाई, एहसान फरोशी वगैरह से बहुत दुखी हैं। उन्होंने हर मौजू पर बेहद उम्दा शेर कहे हैं। यह बात गुफ्तगू की ओर आयोजित आॅनलाइन साहित्यिक परिचर्चा में वरिष्ठ शायर सागर होशियारपुरी ने कही। इसरार अहमद ने कहा कि जब कोई कलमकार अपनी तालीम व इल्म के बलबूते अपने ही क्षेत्र के महान कलमकारों से प्रेरित होकर अपनी कलम चलाता है तो वह वास्तव में अन्य कलमकारों की तुलना में अतुलनीय रचना का निर्माण करता है। ऐसा हसनैन मुस्तफाबाद की गजलों को पढ़कर मालूम होता है। इनकी गजलों में इश्क-मोहब्बत से लेकर राजनीति तक पर सारगर्भित कटाक्ष साफ तौर पर नजर आता है। मनमोहन सिंह तन्हा ने कहा कि ‘दर्दो-गम की जब मेरे सर पर बला आने लगी, आह के बदले मेरे दिल से दुआ आने लगी।’ हस

छोटी बह्र के ग़ज़लों के शहंशाह हैं विज्ञान व्रत

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विज्ञान व्रत बेहतरीन चित्रकार के साथ-साथ छोटी बह्र की गजलों के शहंशाह हैं। छोटी-छोटी बह्र में बड़ी-बड़ी बातें इतनी आसानी से कह देना, जिनके जेरे असर से बाहर निकलना आसान ही नहीं नामुमकिन है। ये गजलंे पढ़ने और सुनने में बहुत आसान लगती हैं, लेकिन इनमें गागर में सागर समाया हुआ है-‘मैं कुछ बेहतर ढूंढ रहा हूं/घर में हूं घर ढूंढ रहा हूं।’ लफ्ज को बरतना और उसे मआनी देना, ऐसा कमाल कि चुम्बकीय आकर्षण पैदा करता है। एक-एक शेर में सदियां समायी हुई हैं, ‘एक सच है मौत भी/वो सिकन्दर है तो है।’ आप कहन के साथ गजल कहने का लाजवाब हुनर रखते हैं। यह बात शनिवार को डाॅ. नीलिमा मिश्रा ने गुफ्तगू द्वारा आयोजित ऑनलाइन साहित्यिक परिचर्चा में नोएडा के मशहूर गजलकार/चित्रकार विज्ञान व्रत की गजलों पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहीं। डाॅ. शैलेष गुप्त वीर ने कहा कि छोटी बह्र में लाजवाब गजलों से गजल की दुनिया में अपना अलग मुकाम बनाने वाले विज्ञान व्रत शिल्प की कसौटी पर शत-प्रतिशत खरी गजलें कहते हैं। इनकी गजलों का कथ्य बहुत गहरा और धारदार है। इन गजलों में अपने समय का यथार्थ प्रतिबिम्बन है। गजलों में उन्होंने कई प्रयोग किये

कत्ल इंसानियत का जो करते

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कैसी तासीर है हवाओं  में! लोग शामिल हुये गुनाहों में! कत्ल इंसानियत का जो करते!  उनकी गिनती है परसाओं में! रब ने बख्शा है वो असर लोगो! मुफलिसों-बे-कशों की आहों में ! यार कश्ती डुबोने वाला तो! कोई शामिल है ना-खुदाओं में! जिसके आने से बे-खुदी छाये ! वो असर अब कहाँ  बलाओं में ! उनके आने से ये चमन महका! आई रंगत है इन फजाओं  में! दिल की नजरों से मैंने देखा तो ! वो नजर आया हर  दिशाओँ में ! नाम तेरा ‘कशिश’ के दिल में है! तू ही धड़कन की है सदाओं में!      

नारी पीड़ा का मार्मिक वर्णन करती हैं डाॅ. ममता: तारक

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डॉ. ममता सरुनाथ की रचनाएं एक से बढ़कर एक हैं। आपकी रचनाएं प्रकृति प्रेम, नारी पीड़ा, बेटी और मित्रता आदि विषयों से ओतप्रोत हैं, नारी पीड़ा का वर्णन बहुत बहुत ढंग से किया गया है। साथ ही कविताओं में संकल्प एवं ढृढ़ निश्चय के भाव का प्राकट्य हो रहा है। निश्चित ही आपके काव्य सृजन समाज के लिये मार्गदर्शक का काम करती हैं, तथा साहित्य जगत की अमूल्य कृति हैं। यह बात गुफ्तगू की ओर से आयोजित ऑनलाइन परिचर्चा में तामेश्वर शुक्ल ‘तारक’ ने डाॅ. ममता सारुनाथ की कविताओं पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कही। शैलेंद्र कपिल ने कहा, डाॅ. ममता सरूनाथ समसामयिक विषयों से सरोकर रखती हैं, वह एक समाज शास्त्री एंव समाजसेविका होने के नाते महिलाओं की अदम्य शक्ति में विश्वास प्रकट करते हुए कहती हैं-‘चुप्पी तोडो मुंह को खोलो/बहुत हुई खामोशी/तुम बनकर चिंगारी और ज्वाला/हो रहे सामाजिक अन्याय को सहो नहीं।’ खुदा में पूरा विश्वास व्यक्त करते हुए आस्तिकता का परिचय देती हैं कि दुआंए कबूल होती हैं, जद्दोजहद कभी मत छोडो। हर प्रकार के हालात व चुनौतियों को स्वीकारो व अपने भीतर आत्मविश्वास जगाकर हालात को सुधारो। मनमोहन सिंह तन्हा के म

जीवन की संवेदनशील प्रतिबद्धताओं के बीच समन्वय का प्रतीक हैं डा अर्चना की कवितायें: जया मोहन

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प्रयागराज। महिला काव्य मंच प्रयागराज इकाई के तत्वावधान में एक समीक्षात्मक परिचर्चा का आयोजन किया गया जो कि कवियत्री और कहानीकार डॉ अर्चना पांडेय पर केंद्रित रहा। डा सरोज सिंह ने डॉ अर्चना जी की कविताओं और गजलों के विभिन्न पहलुओं पर अपनी राय रखी उन्होंने कहा कि - वजनी  शब्दों के जरिए अर्चना जी चमन से बिछुड़ने का गम और आँखें नम जैसे भावों को बहुत ही सहजता से व्यक्त करती हैं। कवयित्री की रचनाओं के बारे में मीरा सिन्हा ने कहा कि, गजल दमदार है जिसमें अपने देश की मिट्टी से अलग होकर व्यक्ति व्यथित हो जाता है और दूर होने के बाद ही अपनों का महत्व जान पाता है। डा अर्चना ने अपनी कविता के माध्यम से सहित्य की ताकत भी बखूबी बतलाई है जो समाज मे क्रांति लाने में सक्षम है।               मै सत्य हूं शीर्षक से डॉ अर्चना की अतुकान्त कविता के बारे में बताते वरिष्ठ कवियत्री प्रेमा राय ने कहा कि, कवयित्री ने स्त्री की अस्मिता के औचित्य का गुणगान करते हुए विपरीत परिस्थिति  की कसौटी पर स्वयं को कसते हुए सत्यमेव जयते का संदेश दिया है तो वहीं आंसू, नारी की हताशा और सहिष्णुता किस प्रकार उसका शोषण करती है यह भी बता

रामचरित मानस के उर्दू शायरी में अनुवाद पर हुई परिचर्चा

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डाॅ. अहसन भी तुलसीदास और बाल्मीकि की तरह अनेक भाषाओं अनेक पुराणों अनेक साहित्यों, अनेक इतिहासों और अनेक सभ्यताओं के जानकार थे। यह अनुवाद उन्होंने स्वतः सुखाए, आत्म संतोष और और आत्म प्रबोधन के लिए किया है, तुलसीदास की तरह डाॅ. अहसन का भी काव्य मूलतः स्वतः सुखाए होते हुए भी लोकमंगल के उद्देश्य की पूर्ति करता है। दोनों ही जगह रामकथा का अनुराग मिलता है, यह अपने समय का सबसे बड़ा काम है। यह अनुवाद साहित्य जगत का बहुत बड़ा काम है, अफसोस है कि अब तक इसका प्रकाशन नहीं हो सका है। अब इम्तियज गाजी ने इसके प्रकाशन का बीड़ा उठाया है तो कुछ उम्मीद बनती दिख रही है। यह बात इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के पूर्व विभागाध्यक्ष डाॅ. सुरेश चंद्र द्विवेदी ने गुफ्तगू द्वारा आयोजित आॅनलाइन परिचर्चा में कही, वे रामचरित मानस का उर्दू शायरी में अनुवाद करने वाले शायर डाॅ. जमीर अहसन की शायरी पर बोल रहे थे। डाॅ. अहसन की बेटी अतिया नूर ने कहा कि मैं साक्षी हूं इतिहास रचने वाले इस शायर के हर संघर्ष की, चाहे वो मानस के तर्जुमे के दौरान उन पर फतवा जारी करने की बात हो या तथाकथित बुद्धिजीवियों की ओर से तर्जुमे के प्रसा

त्रासदी में अपने कर्तव्यों के प्रति जवाबदेह बने कर्मवीर

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कुछ दिन पूर्व जब प्रधानमंत्री मोदी ने देश के विभिन्न शहरो में त्रासदी की सबसे ज्यादा मार झेल रहे गरीब, मजदूर व श्रमिको के लिए लॉकडाउन में ढील बरतते हुए उन्हें अपने घर बुलाने की योजना बनायी थी और सभी राज्य सरकारों ने बड़े पैमाने पर लाखो मजदूरो के लिए सीधे घर की जगह पहले क्वॉरनटीन सेंटरों की व्यवस्था की थी , ताकि शेष सामान्य मानवी को संक्रमित होने से बचाया जा सके और बाहर से आ रहे मजदूरो के लिए हर जनपद में कम्युनिटी किचिन के द्वारा भोजन की व्यवस्था की गयी थी, लेकिन कथित भ्रष्ट तंत्र ने अपनी भ्रष्ट मानसिकता के चलते गरीबो को मिड डे मील से भी बत्तर भोजन की व्यवस्था की है और गरीब जीने के लिए उस भोजन को खा रहा है जो जानवरो को दिया जाता है, भृष्ट तंत्र ने त्रासदी में भी मानवीय मूल्यों के प्रति कोई संवेदना प्रकट नही की, क्वॉरनटीन सेंटरों में शासन की मंशा के अनुरूप कोई व्यवस्था नही है, कई जगह तो जिन कर्मचारियों की ड्यूटी लगी है वे केवल अपने हस्ताक्षर करके ही घर वापिस लौट आते है, दो-चार पुलिस के जवानों के अधीन ही सेंटर चलता रहता है और सेंटरों में रुके लोग जिल्लत भरी जिंदगी जीने को मजबूर हो रहे है औ

नफरत मिटाने की बात करते हैं डाॅ. समर: रचना

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प्रयागराज। डाॅ. इम्तियाज समर एक सजग गजलकार हैं, गजल की कसौटी पर खरी गजलें कहते हैं और अपनी शायरी के जरिए समाज से नफरत मिटाने की बात करते हैं। आज के समय में हमारे देश को ऐसे की गजलकार की आवश्यकता है। जिंदगी के दर्द में डूबी, अमन चैन की हवा को चूमती, प्यार मोहब्बत के भावना को रेखांकित करती इनकी गजलें बहुत ही खूबसूरत हैं। वह कहते हैं-’हम ऐसे शख्स को जालिम करार देते हैध्मसलकर फूल जो खूशबू की बात करता है।’ आपकी शायरी संवेदनशील है, आप एक सजग रचनाकार हैं। यह बात गुफ्तगू द्वारा आयोजित ऑनलाइन साहित्यिक परिचर्चा में रचना सक्सेना ने डाॅ. इम्तियाज समर की शायरी पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कही।  जमादार धीरज के मुताबिक मुहब्बत और सद्भाव के शायर इम्तियाज समर नफरत से दूर रह कर प्यार विश्वास और देशभक्ति से लबरेज जिंदगी जीने के साथ जीवन के उतार चधाव में वक्त की नजाकत के साथ जीने की कला सीखने का सन्देश अपनी विभिन्न गजलों के माध्यम से देते हंै। कहते हैं-कि इस चमन में लहू है तुम्हारे पुरखों काध्कभी न फूलों की नी लाम आबरू करना।’ उन्होंने हिंदी और उर्दू को गंगा जमुनी तहजीब के रूप में सम्मान दिया है जिसे हि

प्रिया की शायरी में सौंदर्य के सुंदर भाव: ऋतंधरा

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प्रयागराज। प्रिया श्रीवास्तव दिव्यम् की कलम से सौंदर्य का सुंदर भाव, मनुष्य की जीवन शैली, सामाजिक रीति-रिवाजों पर कटाक्ष आपातकालीन स्थिति की व्यथा मानवता से प्रेम और सिंगार का भाव पिरोते रोते हुए अपनी रचना में एक सुंदर माला बनाने का प्रयास किया है। सहज और सरल शब्दों की अभिव्यक्ति जन-जन तक पहुंचेगी, इस सकारात्मक भाव का सोच लिए अपनी रचनाओं में बड़े ही आत्मविश्वास और दृढ़ता से कहना एक सच्चे कलमकार की निशानी है, जो प्रिया की शायरी में मौजूद है। यह बात गुफ्तगू द्वारा आयोजित ऑनलाइन परिचर्चा में कवयित्री ऋतंधरा मिश्रा ने प्रिया श्रीवास्तव ‘दिव्यम की शायरी पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते कही। नोएडा के मशहूर गजलकार विज्ञान व्रत के मुताबिक प्रिया श्रीवास्तव में एक सर्जनात्मक तड़प दिखाई पड़ती है। अपने मन को रचनाओं में उकेरने के लिये प्रिया का शब्द-चयन उनके कहन को एक खास किस्म की धार देता हुआ नजर आता है। मुझे विश्वास है कि शीघ्र ही प्रिया का ‘अपना वैशिष्ट्य’ उनकी गजलों के द्वारा एक पहचान को प्राप्त करेगा। समुन ढींगरा दुग्गल ने कहा कि प्रिया श्रीवास्तव ‘दिव्यम’ उम्दा शायरा हैं। इनकी गजलों में शालीन स्पष्टवा