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शारदीय नवरात्र की महिमा

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संसार में प्रेम संबंध का सबसे अद्वितीय उदाहरण माता है। माँ अपने बच्चों को जितना प्रेम करती है उतना और कोई भी सम्बन्धी नही कर सकता। श्री रामकृष्ण परमहंस, योगी अरविन्द घोष, छत्रपति शिवाजी आदि कितने महापुरूष व शक्ति उपासक थे। शक्ति धर्म भारत का प्रधान धर्म है। नवरात्र के इन शुभ क्षणों मंे शक्ति का प्रंचड प्रवाह उमड़ता है। नवरात्र के नौ रात्रियों और नौ दिनों में साधना के सामान्य एवं गहन प्रयोग सम्पन्न किये जाते है।दसंक्रमण काल जो कि दो कालों के बीच की अवधि होती है, साधना के लिए अत्यधिक अनूकुल एवं उपयोगी होती है।  श्रद्धापूर्वक किये गये थोड़े से ही प्रयासों में कई गुना परिणाम प्राप्त होना समय एवं काल की महत्त्ता को दर्शाता है। संक्रमण काल के शारदीय नवरात्र की महिमा इन दिनों अद्भूत एवं आश्चर्यजनक है। इन सब कारणों से ये नवरात्र विशेष ही नही अति विशेष है।  जिस प्रकार विपरीत समय में अत्यधिक परिश्रम एवं लगन से की गई साधना विषेश फलदायी नही होती और वही अगर अनूकूल समय हो और थोड़ा सा परिश्रम करके भी विशेष फल प्राप्त किया जा सकता है। यों तो यह दिव्य अवधि वर्ष में चार बार आती है, जिसे चार नवरात्र कहते है

जागा हुआ कौन है

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जैसे ही अन्तःकरण में ब्रह्म जिज्ञासा की तीव्रता जागृत होती है संपूर्ण सृष्टि में माधुर्य-सौंदर्य, एकत्व, परिपूर्णता आदि दिव्य-अनुभव स्थिर होने लगते हैं! ईश्वर का विचार शान्ति, आनन्द एवं सरसता प्रदाता है! संसार के सारे कार्य करते हुए स्वयं को जानना अत्यंत आवश्यक है। अथातो ब्रह्म जिज्ञासा ... बादरायण का ब्रह्मसूत्र इस अत्यंत सुंदर और अर्थगर्भी वाक्य से प्रारंभ होता है। आओ, अब हम परम सत्य की जिज्ञासा करें। यह एक आवाहन है, प्रस्थान है, दिशा है और गति भी। धर्म का अर्थ है, आस्था! और, दर्शन का अर्थ है! जिज्ञासा। विवेकवान को ही शास्त्र 'जागा हुआ' कहते हैं। जागर्ति को वा? अर्थात्, जागा हुआ कौन है? इसका उत्तर देते हुए आद्यशंकर कहते हैं, 'सदसद् विवेकी, यानी, जो सत्य-असत्य का विवेक कर सकता है, वही जागा हुआ है। नहीं तो, 'मोह निशा सब सोवन हारा! अनन्त संभावनाओं से समाहित मनुष्य जीवन की नियति है, ब्रह्म। अथातो ब्रह्म जिज्ञासा, स्वयं में परम सत्ता को अनुभूत करने की दिव्य सामर्थ्य जागरण में सहायक है, सत्संग। अतः सत्संग ही सर्वथा श्रेयस्कर-हितकर है ! शास्त्रों में सत्संग की महिमा का बारंब

स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है अदरक का पानी

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अदरक सेहत के लिए एक लाभकारी बहुत है, अदरक में एंटी-इंफ्लेमेट्री, एंटी-बैक्टीरियल आदि गुण होते हैं इसलिए सूजन को कम करने और सर्दी-जुकाम की समस्या से निजात दिलाने के लिए अदरक का पानी पीना फायदेमंद होता है। अदरक को अन्य रुप में सेवन नहीं कर पाते हैं तो सुबह-सुबह खाली पेट अदरक का पानी पी सकते हैं जिससे आप पूरा दिन ऊर्जा से भरपूर रहते हैं। आइए जानते हैं कि अदरक का पानी सेहत के लिए कैसे लाभकारी होता है। पाचन के लिए उपयोगी:- अदरक को रातभर पानी में डालकर रखें और सुबह उस पानी को पी लेने से पाचन तंत्र स्वस्थ रहता है और जी मिचलाने और अपच की समस्या नहीं होती है। इसके अलावा आपको मॉर्निंग सिकनेस की समस्या भी नहीं होती है। वजन कम करता है:- अदरक का पानी वजन कम करने के लिए भी लाभकारी होता है। अदरक का पानी ब्लड शुगर को नियंत्रित रखता है जिससे डायबिटीज की बीमारी नहीं होती है साथ ही इसे पीने से भूख कम लगती है जिससे वजन कम करने में मदद मिलती है। बालों और त्वचा के लिए लाभकारी:- अदरक के पानी में पर्याप्त मात्रा में एंटी-ऑक्सीडेंट्स होते हैं इसलिए इसका सेवन करने से शरीर को पर्याप्त मात्रा में विटामिन ए और सी

जज्बात, जुनून, जन्नत प्रेरणादायी पुस्तक है

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साहित्यकार पं. हरि ओम शर्मा 'हरि' द्वारा लिखित 17वीं पुस्तक एवं उर्दू भाषा में प्रकाशित पुस्तक 'जज्बात, जुनून, जन्नत' का भव्य विमोचन मोती महल वाटिका में चल रहे नेशनल बुक फेयर के साँस्कृतिक पाण्डाल में बड़ी भव्यता से सम्पन्न हुआ। उल्लासपूर्ण माहौल व तालियों की जोरदार गड़गड़ाहट के बीच मंचासीन विशिष्ट हस्तियों ने पुस्तक 'जज्बात, जुनून, जन्नत' का विमोचन किया। समारोह का शुभारम्भ पं. हरि ओम शर्मा 'हरि' के पूज्य माता-पिता एवं पुस्तक के मार्गदर्शक श्री मिहीलाल शर्मा व श्रीमती रेशम देवी के चित्र पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्वलन से हुआ। इस अवसर पर लखनऊ के ख्याति प्राप्त लेखकों, साहित्यकारों, शिक्षाविद्ों, समाज सेवियों एवं प्रशासनिक अधिकारियों व पत्रकारों ने बड़ी संख्या में अपनी उपस्थिति दर्ज कराकर समारोह की गरिमा को बढ़ाया, साथ ही पुस्तक के विभिन्न पहलुओं की चर्चा करते हुए सामाजिक व्यवस्था में युवा पीढ़ी के योगदान की पुरजोर अपील की।  इस भव्य समारोह में इंकलाब उर्दू के स्थानीय संपादक श्री जिलानी खान अलीग ने मुख्य अतिथि के रूप में समारोह की गरिमा को बढ़ाया तो वहीं दूसरी ओर व

तांत्रिक उपाय

वैदिक ज्योतिष एवं प्राच्य विद्या शोध संस्थान अलीगंज, लखनऊ के तत्वाधान मे 129 वीं मासिक सेमिनार का आयोजन वाराह वाणी ज्योतिष पत्रिका कार्यालय में किया गया, सेमिनार का विषय ज्योतिष में मंत्रोपचार का महत्व  था। जिसमे डा. डी एस परिहार के अलावा श्री अनिल कुमार बाजपेई एडवोकेट, श्री उदयराज कनौजिया, डा. प्रदीप निगम, प.ं के. के. तिवारी, आचार्य राजेश श्रीवास्तव प.ं शिव शंकर त्रिवेदी, प.ं जे पी शर्मा, प. आनंद एस. त्रिवेदी प. जर्नादन प्रसाद त्रिपाठी, प्रो. के.के. त्रिपाठी, तथा पं. शिव सहाय मिश्रा आदि ज्योतिषियों एवं श्रोताओं ने भाग लिया गोष्ठी मे डी.एस. परिहार, श्री उदयराज कनौजिया पं. जे.पी. शर्मा, पं. जर्नादन प्रसाद त्रिपाठी तथा पं. आनंद त्रिवेदी ने अपने अनुभव और व्यक्तव्य प्रस्तुत किये। श्री उदयराज कनौजिया ने कहा कि ज्योतिष में मनुष्य की समस्याओं को अधिदैविक, अधिदैहिक और अध्यात्मिक श्रेणी मे बांटा गया है तथा उनके मंत्रोपचार भी भिन्न-भिन्न है। उन्होंने मंत्रों को वैदिक, तांत्रिक और साबरी भागों मे विभाजित बताया कलयुग मे किसी मंत्र का चार गुना जप करने से ही लाभ होता है। वैदिक मंत्रों के प्रांरम्भ ऊँ

मोदीजी ने हमेशा जीवन में कुछ करने का सपना देखा

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श्री नरेन्द्र मोदी का जन्म 17 सितम्बर 1950 में गुजरात के वदनगर, मेहसाणा जिले में हुआ था। आपके पिता का नाम श्री दामोदर दास मूलचंद एवं माता का नाम श्रीमती हीरा बेन हैं। श्री नरेन्द्र मोदी के पिता बहुत साधारण व्यक्ति थे, जिनके 6 संतानों के रूप में पांच भाई तथा एक बहन हैं। बालक नरेन्द्र अपने पिता के साथ रेलवे स्टेशन पर चाय का स्टाल लगाते थे। न्यू इण्डिया के निर्माण के लिए संकल्पित मोदीजी का जन्मदिन सम्पूर्ण भारत में सेवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। संयोग से इसी दिन 17 सितम्बर को शिल्पकला कौशल में सर्वोच्च एवं सृष्टि के रचयिता भगवान विश्वकर्मा की जयन्ती बड़े ही श्रद्धा भाव से देश भर में मनायी जाती है। विश्वकर्मा जयन्ती तथा मोदीजी की जयन्ती के अवसर पर भी सभी देशवासियों को दोहरी हार्दिक बधाइयाँ।   हमारा मोदीजी से इस लेख के माध्यम से निवेदन है कि संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी को आधिकारिक भाषा का दर्जा दिलाने के लिए प्रस्ताव पास करवाने की कृपा करें। विश्व में हिन्दी भाषा लगभग 120 करोड़ लोग बोलते तथा जानते हैं। भारत में इनकी संख्या पर लगभग 100 करोड़ है तथा अन्य देशों में हिन्दी बोलने तथा जानने

अंग्रेजी मानसिकता में आज भी मजबूरी में जी रहे हैं

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देश की आजादी के पश्चात 14 सितंबर, 1949 को भारतीय संविधान सभा ने देवनागरी लिपि में लिखी हिन्दी को अंग्रेजी के साथ राष्ट्र की आधिकारिक भाषा के तौर पर स्वीकार किया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरू ने तथा उनकी सरकार ने इस ऐतिहासिक दिन के महत्व को देखते हुए हिन्दी को देश-विदेश में प्रचारित-प्रसारित करने के लिए 1953 से सम्पूर्ण भारत में 14 सितम्बर को प्रतिवर्ष हिन्दी-दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की। भारत का परिपक्व लोकतंत्र, प्राचीन सभ्यता, समृद्ध संस्कृति तथा अनूठा संविधान विश्व भर में एक उच्च स्थान रखता है। भारत की गरिमा, गौरव तथा हिन्दी भाषा को हर कीमत पर विकसित करना चाहिए।   स्वदेशी के प्रबल समर्थक भाई राजीव दीक्षित के अनुसार हिन्दी के विकास में सबसे ज्यादा योगदान महर्षि दयानंद सरस्वती तथा महात्मा गांधी ने दिया था। महर्षि दयानंद का जन्म गुजरात में हुआ था। उनकी मातृ भाषा गुजराती थी। उन्होंने अपना सारा जीवन अपनी संस्था आर्य समाज के माध्यम से दक्षिण भारत में हिन्दी के प्रचार-प्रसार में लगाया था। महर्षि दयानंद सरस्वती के नेतृत्व में देश भक्तों का यह पहला सबसे बड़ा अहिंसक संगठित