युवा, तकनीक और भविष्य से झांकते कुछ सवाल

नयी तकनीक और वैज्ञानिक उपलब्धिया काफी चर्चा में रही। इनमे से सबसे प्रबल चर्चित थी सोफिया, सऊदी अरब की नयी नागरिक जोकि एक ए-1 यानि की कृत्रिम बुद्धिमता वाला एक रोबोट है।
सोफिया एक नये युग की शुरूआत है या मानवता के अंत का संकेत, यह एक ऐसा विवाद जो शायद कभी अंत ना हो। मगर यह बात तो तय है कि तकनीकी विकास हमारे जीवन में अब एक अभिन्न स्थान है जो निरन्तर बढ़ रहा है। आज हमारे जीवन में प्रत्येक श्रेणी में तकनीक का अभूतपूर्व प्रसार हो रहा है। हमारे दिन-प्रतिदिन की गतिविधियाश्, हमारे जीवन की लय, सब कुछ तकनीक औ उसके उपकरणों पर निर्भर है। सोते-जागते, उठते-बैठते हर जगह किसी न किसी रूप में तकनीक हमारे जीवन में मौजूद है। जहा पुराने लोग नयी पीढ़ी के इस नये नशे को घड़ी-धड़ी बुरा-भला कहने से भी नही चूकते वहीं नयी पीढ़ी भी अपने मोबाइल, लैपटाप और मैसेज के बीच भागती जिन्दगी में झूमते नजर आते हैं।
ऐसा नही है कि तकनीक के पुजारी इसकी बुराइ्रयों से अनजान है। और ऐसा भी नही है कि तकनीक के विरोधी पूरी तरह से इससे अछूते हैं। सत्य यह है कि आज के युग में तकनीक से बचना नामुमकिन है। या फिर तभी मुमकिन है जबकि हम हिमालय पर जाके सन्यास लेने के इच्छुक हो। यदि आप को भौतिक युग में रहना है, जीवन यापन करना है तो तकनीक से दोस्ती लाजिमी है। कम या ज्यादा, यह शायद व्यक्तिगत पसंद हो, मगर तकनीक की उपयोगिता और सर्वभौतिकता अविवादित है।
मगर यह भी उतना ही बड़ा सत्य है कि तकनीक और उसके विभिन्न चेहरो की परछाईया एक ऐसा अंधा कुआ है जिसमें फंसकर हम सभी खासकर युवा पीढ़ी अपने वक्त, रिश्तों और यहा तक कि मानवता के अमूल्य भावनाओं और पलो से भी वंचित होती जा रही है। तकनीक का जाल हमारे वक्त और भावनात्मक संतुलन, दोनों पर ही एक ऐसा बोझ जो न निभाये निभता है और न हटाये हटना है।
अनुचित नही होगा कि तकनीक ही हमारी परतंत्रता का सबसे बड़ा कारण है जिसका शिकंजा हमारे जीवन, हमारे मन और हमारी आत्मा पर कसता जा रहा है।
उपाय है संयम! हमें और हमारी युवा पीढ़ी को यह याद रखने की जरूरत है कि तकनीक अंततः एक मानव सृजित गुलाम है जो हमारे सुविधा उपयोग के लिए बनाया गया है। इसे गुलाम से बढ़कर अपना मालिक बनाने की अनुमति देना हमारी घोर मूर्खता होगी। संयमित उपयोगी व समझदारी से इस पर नियंत्रण हमारी मानसिक, शारीरिक एवं अध्यात्मिक सेहत के लिए आवश्यक है। यदि हम चाहते है कि तकनीक हमारे जीवन को सुगम बनाती रहे व हम इसका भरपूर लाभ ले सके, जो हमें स्व अनुशासन को अपनाना होगा हमें यह याद रखना होगा कि अति सर्वत्र वर्जयेत और यदि तकनीक की अति की वजह से हमारे जीवन का नाश होता है तो वह तकनीक की नहीं हमारी गलती है।
अंततः यह हम पर भी निर्भर करता है कि हम निर्जीव तकनीक को जीवंत दुनिया में कैसे रहने देना चाहते है। क्या हम उसे अपना सर्वस्व सौपकर मानवता की बर्बादी के बीज बोना चाहते हैं या फिर हम समझदारी से बुद्धिमत्ता से उसका सदुपयोग करते हुए अपना ही नहीं बल्कि समस्त मानवता की प्रगति और विकास में सहयोग करना चाहते है। अंततः हमारे भविष्य का फैसला तकनीक पर नहीं, हम पर निर्भर है।


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