डाॅ.मुखर्जी का बंगला

डाॅ. मुखर्जी आज भी मेरी जिन्दगी का अहम् हिस्सा है। यह उन चन्द्र शख्सों मे से एक हैं, जिन्होंने मेरी जिन्दगी को काफी गहराई तक प्रभावित किया। सबसे पहला उनसे मेरा परिचय सन् 1951 में हुआ, जब मैंने लखनऊ के किंग जार्ज मेडिकल कालेज में एडमीशन लिया जहाँ वे पैथोलाॅजी के रीडर थे, अद्भुद ज्ञान और चमत्कारी बुद्धि के स्वामी डाॅ. मुखर्जी का व्यत्तित्व असाधारण था एम.बी.बी.एस. करने के बाद एम.एस. की पढाई के लिये मैं लंदन चला गया वहीं एक प्रसिद्ध अस्पताल में 20 साल नौकरी करने के बाद मैं हिन्दुस्तान आया और दिल्ली के लेडी हार्डिंग मेडिकल कालेज मे मैं सीनियर सर्जन हो गया डाॅ. मुखर्जी आज भी मेरे दिमाग पर हावी थे एनॅाटामी और पैथोलाॅजी में उनका ज्ञान बेजोड़ था उनकी डायग्नोसिस आश्चर्यजनक थी, उतना ही रहस्यमय व विचित्र था उनका ईलाज करने का तरीका। असाघ्य और पुराने रोगियो को वे चुटकियों मे ठीक कर देते थे मुझे अच्छी तरह याद है कि जब मैं सेकेन्ड ईयर मे था तो मेडिकल कालेज मे एक विचित्र रोगी किसी नामी अस्पताल से रेफर होकर आया जिसे सांस लेने मे भारी तकलीफ थी शेष लक्षण टिटनैस के थे पुराने सीनियर डाक्टर्स टिटनैस मान कर ही ईलाज कर रहे थे हम सब की भी वही राय थी लेकिन डाक्टर मुखर्जी ने उसका परीक्षण करके बताया कि इसे टिटनैस नही बल्कि फेफड़े मे एक प्रकार का इन्फैक्शन है। उन्होंने सारी दवाईयां बन्द कराकर एक साधारण सी एंटीबायटिक टेरामाइसिन विचित्र तरीके से दी एक कैप्सूल सुबह और तीन कैप्सूल रात मे दूसरे दिन वह आश्चर्यजनक रूप से ठीक हो गया और तीसरे दिन उसको छुट्टी दे दी गई। एक बार हार्ट अटैक से पीड़ित मरीज को जब पेटेन्ट दवाईयों से लाभ नही मिला तो उसके घुटने के पीछे की नस काटकर थोड़ा खून निकाल कर डेªसिंग कर दी मरीज अगले दिन स्वस्थ हो गया दिल्ली आकर डाॅ. मुखर्जी से मिलने की मेरी इच्छा पुनः बलवती हो गई लेकिन काम के ज्यादा दवाब के कारण मैं एक साल तक समय नही निकाल सका दिसम्बर 1979 मे मैंने दो माह की छुट्टी मंागी जो बड़ी मुशकिल से मंजूर हुई दिसम्बर के अंतिम सप्ताह मे मैं लखनऊ पहुँचा और मैंने बर्लिगन्टन होटल में डेरा डाला मेरे कुछ क्लासफैलो डाक्टर्स लखनऊ मे ही थे जिसमे से रजनीकंात मेल्होत्रा तो मेडिकल कालेज मे ही पैथोलाॅजी का लैक्चरर था एस.पी. सिंह सिविल डिस्पेंसरी मे सीनियर फिजीशियन था कुछ अपनी अच्छी प्रैक्टिस कर रहे थे मैंने उनसे मिलकर डाक्टर मुखर्जी के बारे मे जानकारी ली सबसे ज्यादा मदद मुझे राजन से मिली।
वह डाॅ. मुखर्जी के ही विभाग मे था उसने मुझे बताया कि डाॅ. मुखर्जी सन् 1966 मे रिटायर होने के बाद अपने हरदोई रोड वाले पुश्तैनी बंगले मे चले गये थे वही उन्हांेने अपना अस्पताल और रिसर्च सेन्टर खोला था यद्यपि कई सालों से खुद उनसे मिला नही हूँ। लेकिन सुना है कि वे वहां अपना अस्पताल चला रहे हैं। उनका बंगला मेरा देखा हुआ था स्टूडैन्ट लाइफ में उनके बंगले पर मैं पांच-छह बार जा चुका था। हरदोई रोड पर काकोरी से 10-12 मील दूर बांये हाथ पर पुराने चर्च के आगे उतरौली गांव के पास उनका ब्रिटिश स्टाइल का विशाल दुमंजिला बंगला था, अगले दिन शाम को बर्लिन्टन होटल से टैक्सी लेकर मैं डाॅ. मुखर्जी के बंगले के लिये रवाना हुआ आखिरी दिसम्बर के दिन थे सर्दी का मौसम अपनी जवानी पर था सूरज डूबते ही अंधेरा छा गया था सड़के कोहरे व सन्नाटे मे डूबी हुयी थीं शहर पीछे छूट गया था रोड के दोनांे किनारों पर दूर-दूर तक फैले मलिहाबादी आम के बाग माहौल को रहस्यमय बना रहे थे मैंने घड़ी मे देखा शाम के सात बज रहे थे करीब एक घंटे बाद पुराने चर्च के पास पहुँचे कार अचानक रूक गई पता चला कार का इंजन काफी गर्म हो गया था उसे ठंडा करने के लिये कार वहां रोकनी पड़ी सुनसान इलाके में बनी चर्च की ऊँची इमारत रात मे बेहद डरावनी नजर आ रही थी चर्च के अंदर व बाहर बल्ब टिमटिमा रहे थे उनकी धुंधली रोशनी में चर्च का हाता और पूरब मे बना कब्रिस्तान नजर आ रहे थे तभी मेरी नजर कब्रों के बीच दो धंुधली सी मानव आकृतियां पर पड़ी गौर से देखा तो एक नवयुगल जोड़ा कब्रिस्तान में नजर आया लड़का मैरिज सूट और युवती सफेद मैरिज गाउन मे थी, वे दोनों किसी की कब्र के सामने खड़े थे कभी वे हमे बहुत दूर खड़े नजर आते तो कभी बिलकुल पास कोहरे भरी रात सुनसान मे फिर वे हमारी ओर आने लगे कुछ पास आने पर पता चला वे जीवित नही बल्कि सड़ी हुयी लाशें हैं। जिनके शरीर मांस जगह-जगह से गल चुका था चेहरा बिलकुल सफेद सूखा सा और बेहद डरावना था, उन्हें देखकर मैं भय के मारे में कांपने लगा ड्राईवर भी मेरी हालत देखकर घबरा गया तभी गोली चलने की आवाज आई साथ ही हमे किसी औरत की एक दर्दनाक चीख सुनाई दी मैंने देखा दोनो जमीन पर गिर कर तड़पने लगे किसी प्रकार हिम्मत जुटा कर ड्राईवर के साथ मैं चर्च के अंदर गया और फादर को पूरी बात बताई फादर टार्च लेकर अपने सहायक के साथ बाहर आये हम सब कब्रिस्तान गये लेकिन तब के भीतर ले गये सहायक चाय ले आया चाय पीकर मैं कुछ सामान्य हुआ फादर ने कहा बेटे तुम्हें जरूर कोई वहम् हुआ है। फादर से विदा लेकर हम आगे बढे करीब एक किलोमीटर बाद हम लोग डाॅ. मुखर्जी के बंगले पर पहुँचे कार की हैडलाईट गेट पर पड़ी उनका साइनबोर्ड दिखाई दिया जिस पर अंग्रेजी मे लिखा था प्रो. डाॅ. एस. मुखर्जी, एम.एस., एफ.आर.सी.एस, एम.आर. सी. आ.ेजी., लंदन। हम लोग अंदर गये बंगला एक काफी बड़ी जमीन के बीच बना था जो चारों ओर घने पेड़ांे से घिरा था बंगले के चारांे चहारदीवारी बनी थी बाहर बरामदे और अंदर बल्ब जल रहे थे हमे गेट से अंदर आता देखएक बूूढा नौकर आया और हमारा नाम पूछकर अंदर चला गया कुछ देर बाद डाॅ. मुखर्जी बाहर आये उन्होंने गर्म कोट और गेलिस वाली पैन्ट पहनी थी जिसकी बेल्टस कंधों होते हुयी सामने पैन्ट के दोनों साइडों मे बंधी हुयी थी हम लोग अंदर गये अलावदान मे लकड़ियां जल रही थी जिसकी वजह से कमरा खासा गर्म था चारों ओर मजबूत लकड़ियों की कई अलमारियां रखी थी जो किताबों से भरी थी दीवार पर तीन-चार बेहद उम्दा क्वालिटी के गिटार टंगे थे मुझे पता था कि डाक्टर साहब बेहतरीन गिटार वादक थे बायंीं दीवार पर लगी उनकी स्वर्गवासी पत्नी की फोटो पर माला चढी थी उसके नीचे फैमिली फोटो लगी थी जिसमे डाक्टर साहब अपनी पत्नी दो बेटों व एक बेटी के साथ खड़े थे परिचय देने पर वह तुरन्त मुझे पहचान गये हम लोग बातचीत मे मशगूल हो गये बातचीत के दौरान नौकर चाय-नाश्ता ले आया करीब दो घंटे तक हमने मेडिकल के अनेक विषयों पर बातचीत की। उन्हांेने मुझे अपनी लिखीं दो किताबें भी भंेट की। स्टेंªज हब्र्स और मिराकल्स ड्रग्स आॅफ हिन्दुस्तान दोनो पुस्तके नेशनल पब्लिशिंग हाउस, दिल्ली से छपी थीं तभी नौकर खाना लगा गया खाने के बाद हमने अनेकांे असाघ्य रोगों व उनके इलाज पर चर्चा की। उन्होंने मुझे करीब डेढ दर्जन असाध्य रोगों के पचासों नायाब नुस्खे दिये जिन्हें मै डायरी मे नोट करता रहा हम लोगांे को बातें करते-करते रात के तीन बज गये फिर वे बोले चलो सो जाओ बाकी बातें सुबह करेगें। डाक्टर साहब अपने बेडरूम मे चले गये नौकर ने मुझे ऊपर के कमरे मे पहुँचा दिया जहँा ड्राईवर पहले ही सो रहा था अभी मुझे सोये घंटा भर भी नही हुआ था कि एक अजीब सी आवाज के साथ मेरी नींद खुल गई मुझ कहीं दूर गिटार बजने की आवाज आई धुन बेहद मधुर व दिलकाश थी। लेकिन बड़ी दर्द भरी थी मुझे हैरत हुयी इतनी देर रात कौन गिटार बजा रहा है। क्या डाक्टर साहब मुझसे रहा नही गया मैं नीचे गया वहाँ का दृश्य देखकर मारे भय के घिग्गी बंध गई कुर्सी पर रखा गिटार अपने बज रहा था तभी किसी ने कंधे पर पीछे से हाथ रखा भय से मेरी चीख निकलते निकलते बची पीछे देखा तो ड्राइवर खड़ा था अभी हम कुछ बात करते तो हमे बाहर से किसी की चीख सुनाई दी हम बाहर भागे बाहर हमे अंधेरे मे हाते मे किसी आदमी के गिरे पड़़े होने का अहसास हुआ मैंने गौर से देखा दी यह तो बंगले का चैकीदार था जिसका सर फटा हुआ था वह मर चुका था जैसे उसे किसी ने ऊपर से फेंक दिया हो सारा नजारा देख कर ड्राइवर बेहोश हो गया मैं किसी तरह उसे होश मे लाया हमने बंगले मे रूकना उचित नही समझा हमने बाकी रात कार मे गुजारी सुबह होते ही हम काकोरी पुलिस चैकी पहुँचे चैकी ईन्चार्ज को सारी घटना बताई तो एक सिपाही बोला आप डाॅ. मुखर्जी के बंगले की बात कर रहे है। वहां तो बरसों से कोई नही रहता मैं खुद उसी के पास के गांव उतरौली का रहने वाला हूँ, मेरा भतीजा ही उस बंगले के चैकीदार है। जो दिन भर बंगले मे रहकर शाम को वापस आ जाता है। मैंने कहा क्या बकवास है। मैंने खुद उस बूढे चैकीदार की लाश देखी है। लेकिन वह बंगला तो बरसों से वीरान है। खुद डाक्टर साहब को मरे बरसों बीत चुके हैं। मैं भी अपनी बात पर अड़ा रहा अंत मे मेरी तसल्ली के लिये हम सब पुलिस टीम के साथ बंगले पहँचे जो बंगला रात मे आलीशान नजर आ रहा था, दिन मे बिलकुल खंडहर लग रहा था गेट पर भारी ताला लटक रहा था मैं अभी भतीजे को बुलाकर ताला खुलवाता हूँ। आधे घंटे बाद सिपाही एक 35-40 साल के संावले युवक को लेकर आया जिसने बताया कि मैं ही यहां का चैकीदार रामदुलारे हूँ। मैं दिन भर यहां की देखभाल करता हूँ और दिन ढले लौट जाता हँ। उसने गेट का ताला खोला हम सब अंदर गये बंगले को देखने से लगता था कि बरसों से उसमे कोई गया नही था मैं हैरान था हाते कोई लाश नहीं थी कमरे सूनसान पड़े थे फर्श व कमरे मकड़ी के जालों व धूल से पटे पड़े थे एक पुरानी सी कुर्सी पर एक गिटार पड़ा था हम ऊपर के कमरे मे गये वहां जमीन पर मेरा ब्रीफकेस रखा था ड्राईवर द्वारा पी गई बीड़ियों के टुकड़े जली हुयीं तीलियां पड़ी थीं मैने ब्रीफकेश खोलकर देखा तो आश्चर्य से मेरी आंखे फटी रह गई उसमे डाॅ. मुखर्जी द्वारा भेंट की गयीं दोनो किताबें मौजूद थीं
मैं बोला देखिये इन्सपैक्टर साहब यह रहा सबूत कि कल रात मैं यहां डाक्टर मुखर्जी से मिला था हम सब भौचक्के थे कि आखिर माजरा क्या है हम सब पुलिस चैकी पहँुचे चैकीदार ने बताया कि साहब यह बंगला भुतहा है यह बंगला डाक्टर साहब के घर वालों को एक एक करके खा गया मैंने अविश्वास से कहा यह नामुकिन है। भला बंगला कैसे किसी की जान ले सकता है। दुलारे बोला करीब 15 साल पहले की बात है। जब बंगले पर किसी की मनहूस नजर पड़ी मैंने कहा पूरी बात बताओ बात उन दिनों की है डाक्टर साहब जब काम से थक जाते थे तो गिटार मे डूब जाते थे एक दिन वह दवाईयों का आॅडर देने लाटुश रोड गये थे तो उनकी निगाह पुराना सामान बेचने वाली एक दुकान पर पड़ी उन्होंने उससे कोई गिटार दिखाने को कहा कुछ सोचकर दुकानदार अंदर स्टोर से एक पुराना अजीब सा गिटार ले आया गिटार देखते ही डाक्टर साहब समझ गये यह दुर्लभ किस्म का विदेशी गिटार है। जो द्वितीय विश्वयुद्ध के समय का स्पेन की मशहूर कम्पनी लाॅ मेंडोलिन कम्पनी का बना था। वह कम्पनी बरसो पहले बंद हो चुकी थी डाक्टर साहब जैसे ही धुन बजाई तो वे झूम उठे गिटार का बेस व आवाज जादुई थे, बेशक गिटार लाखों मे एक था उन्होंने उसका दाम पूछा दुकानदार ने मात्र 30 रूपये बताया डाक्टर साहब को लगा शायद उन्हें सुनने मे धोखा हुआ है। ऐसा नायाब गिटार 300 रूपये मे भी सस्ता था, दुकानदार द्वारा पुनः दाम बताने पर डाक्टर साहब दाम चुकाकर चले आये इधर डाक्टर साहब कुछ दिन तक काम मंे कुछ ऐसे उलझे कि कई हफ्तों तक गिटार बजाने की नौबत ही नही आई लगभग एक महीने बाद डाक्टर साहब का बड़ा लड़का शंशाक लंदन से पढाई करके लौटा। दूसरे दिन रात दस बजे डिनर के बाद डाक्टर साहब ने सबको नये गिटार पर धुन सुनाने की पेशकश की लेकिन जैसे ही गिटार पकड़ा एक हैरत-अंगेज घटना घटी अचानक गिटार अपने आप बजने लगा मकान के बाहर अचानक तेज हवायें चलने लगीं मकान के सब खिड़की दरवाजे खुलने बंद होने लगे पर्दे उड़ने लगे देखते-दखते ना जाने कहां से बादल आकर गरजने लगे गिटार अपने आप बजता जा रहा था अचानक बिजली चली गई अंधेरे में एक भयानक चीख गूँजी डाक्टर साहब ने नौकर को आवाज दी नौकर मीटर देखने चला गया पता चला फयूज उड़ गया था नया फयूज लगाते ही लाइट आ गई उन्होने टेबुल पर देखा शंशाक औंघे मुँह पड़ा था डाक्टर साहब ने उसे सीधा किया शंशाक की अँाखंे खुली थी उनमे भारी भय समाया हुआ था मुँह से खून बह रहा था वह मर चुका था डाक्टर साहब की दुनिया उजड़ चुकी थी।
जैसे तैसे हिम्मत जुटाकर उन्होने शंशाक का अंतिम संस्कार किया डाक्टर साहब अपने मरीजों में मशगूल हो गये एक दिन वह किसी मरीज को देख रहे थे तभी वह गिटार अपने आप बजने लगा डाक्टर साहब का कलेजा मँुह को आ गया गिटार अचानक ही बजना बंद हो गया शाम तक तो सब कुछ सामान्य रहा शाम को एकाएक फोन आया कि डाक्टर साहब के लड़की और दामाद जो इलाहाबाद मे रहते थे एक कार एक्सीडैंट मे मारे गये डाक्टर साहब को यह दूसरा आघात लगा था इसने उन्हंे बुरी तरह तोड़ दिया था नाती को उसके नाना व नानी पालने लगे डाक्टर साहब ने गिटार को मनहूस मान कर गोदाम मे बंद करके ताला लगा दिया कुछ समय बाद डाक्टर साहब एक सुबह नाश्ता कर रहे थे तभी उनके कानों मे गिटार बजने की आवाज आई मारे दहशत के उनकी सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई किसी तरह नौकर के साथ वह हाल मे गये मारे डरकर आखे फट गई गिटार चेयर पर पड़ा अपने आप बज रहा था वहां कोई नही था उसी दोपहर में बूढा नौकर ऊपरी मंजिल के बरामदे मे कुछ काम कर रहा था ना जाने कैसे वह ऊपर से नीचे दालान में आ गिरा सर फटने उसकी मौत हो गई डाक्टर साहब आधे पागल से हो गये अकेला बंगला उन्हें काटने को दौड़ता था एक रात सोते समय गिटार बजने की आवाज से उनकी नींद खुल गई उन्हांेने देखा कि टेबुल के पास पड़ा गिटार हवा मे खुद ही बज रहा है तभी उन्हे गिटार के पास सफेद मैरिज गाउन पहने हुये बेहद डरावने चेहरे वाली एक युवती दिखाई दी जिसका सूखा चेहरा बिलकुल सफेद था आखों की जगह दो काले गढ्ढे थे। डाक्टर साहब घबराकर बुरी तरह चीख पड़े और हार्ट अटैक पड़ने से उनकी मौत हो गई उनकी मौत पर उनका सबसे बड़ा लड़का जो उनसे झगड़ कर बम्बई चला गया था। उसने पिता अंतिम क्रिया की। और दुलारे को बंगले का चैकीदार बना कर वापस चला गया मेरे जोर देने पर पुलिस ने कोठी से वह गिटार जब्त कर लिया मेरे साथ पुलिस गिटार के पूर्व मालिक का पता लगाने लाटुुश रोड पर पुरानी सामान के दुकान पर पहुंची पहले तो उसने असमर्थता दिखाई लेकिन हमारे जोर देने पर उसने पुराने रेकार्ड देखकर बताया अन्य सामानों के साथ उसने यह गिटार 1964 में कानपुर रोड, आलमबाग निवासी मिसेस फ्रान्सिस से खरीदी थी मिसेस से मिलने पर एक बेहद दुःख भरी कहानी सामने आई यह गिटार उनके इकलौते स्वर्गवासी बेटे साईमन का था जो उसके पापा मेजर फ्रान्सिस ने उसे 12 वें जंमदिन पर विदेश से लाकर कर दिया था जहां वे नौकरी करते थे।
साईमन अपनी क्लासफैलो नैन्सी डिसूजा से बेहद प्रेम करता था, नैन्सी भी उसके अटूट प्रेम करती थी। लेकिन नैन्सी के पिता साईमन को जरा भी पसंद नहीं करते थे पिता ने नैंसी की शादी साईमन से करने से साफ मना कर दिया था प्रेम में असफल रहने पर उसने आत्महत्या कर ली थी साईमन की मौत की खबर पाकर नैन्सी ने भी जहर खाकर आत्महत्या कर ली थी। प्रेमी युगल को एक ही दिन, एक ही स्थान पर आसपास दफ्ना दिया गया। हमनें इस संबन्ध में काकोरी चर्च के फादर को पूरी बताई, उनसे मदद मांगी उन्होंने कैथेलिक कर्मकण्डों के द्वारा उस अभिशप्त गिटार को प्रेत मुक्त किया और उनकी सलाह के अनुसार पुलिस ने गिटार जला दिया। उसके बाद से कोई मनहूस घटना बंगले मे नही घटी लेकिन बंगले के आसपास गुजरने वालो का कहना है। कि आज भी कभी-कभी रात-बिरात बंगले से गिटार की आवाज आती है। आज भी डाॅ. मुखर्जी की भेट की गई उनकी दोनो किताबें मेरे पास हैं।
(रहस्य-रोमांच कहानी के स्थान व पात्र पूर्णतः काल्पनिक है।)


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