हिन्दूराव की कोठी

सन् 1946 में लाहौर के लाल चैक मे उत्तरी कोने पर लाला हरबंस लाल की विशाल कोठी हुआ करती थी। वे बड़े सरकारी ठेकेदार और भरे पूरे परिवार के मालिक थे उनके तीन बेटे चमन लाल, गोपाल और कन्हैया लाल थे चमन का कपड़े का कारोबार था और गोपाल का दवा का काम था सबसे छोटा कन्हैया अपने पिता के काम मे हाथ बंटाता था लाहौर से तीस किलोमीटर दूर सालनपुर गाँव मे उनकी तीन सौ एकड़ खेतिहर जमीन थी उसके अलावा लाहौर मे उनकी दो अन्य कोठियां थीं। उन दिनों मुस्लिम लीग का पाक आन्दोलन जोर पकड़ता जा रहा था माहौल में हिन्दू मुस्लिम के बीच नफरत की आग भड़क चुकी थी कहीं कहीं दंगे भी भड़क जाते थे भविष्य और वक्त नजाकत को देखते हुये लाला हरबंस ने अपना सारा पैसा, जेवर व बहूमूल्य सामान करोलबाग दिल्ली के अपने बहनोई किशन चन्द्र के मार्फत दिल्ली के बैंकांे मे पहुंचा दिया था और जनवरी 1947 की एक सर्द रात अपनी खेती और कोठियों का मोह छोड़ सपरिवार निजी मोटरों से दिल्ली आ गये वे उन चन्द खुशनसीबों मे से थे जो बिना जान माल नुकसान के हिन्दुस्तान आयेे थे कनाॅट प्लेस दिल्ली मे उन्होंने एक मकान किराये पर ले लिया और धीरे-धीरे अपना पुराना कारोबार जमा लिया इसके चंद महीनों बाद मुल्क का बंटवारा हो गया और लाखों लोगांे को अपनी जान-माल से हाथ धोना पड़ा। लाला जी ने अपनी लाहौर की जायदाद के कागजात कस्टूडियन को सौप दिये जिसके एवज मे उन्हें सरकार से दिल्ली मे दो कोठियां और शहर से पंैंतीस मील उत्तर मे जमुना नदी के सटी हिन्दूराव की कोठी और उससे लगी 240 एकड़ हासिल हुयी 24 कमरे की विशाल दुमंजिली कोठी एक ऊचे टीले पर बनी थी इसके चारों कोने पर गुम्बज थे और मुख्य द्वार पर विशाल गुम्बज था जिसके आधे फर्लांग पश्छिम मे घना जंगल था दांये हाथ पर खेत थे, और बांये हाथ पर कुछ दूरी पर जमुना नदी बहती थी पूरब मे दिल्ली मेरठ राजमार्ग था। कोठी सड़क से बांये हाथ पर कुछ दूर पड़ती है यह कोठी पहले फरूखाबाद के नवाब मेंहदी हसन खान की थी जो बंटवारे के बाद पाकिस्तान चले गये थे दिसम्बर 1948 मे लाला जी ने जमुना से सटे जंगल की लकड़ी काटने का ठेका ले लिये उन्होंने हिन्दूराव की कोठी मे अपना निवास और कार्यालय बनाने का निश्चय किया कोठी की सफाई आदि के लिये उन्होंने दो नौकर रंगीलाल और दुलारे भेजे और उसके हफ्ते भर बाद वे दोस्त और मेनैजर जीवनलाल के साथ कोठी के लिये रवाना हुये कोठी पहुंचते-पहुंचते उन्हें रात हो गई। यह कड़क जाड़े की रात थी शाम से ही कोहरा फैल गया था, कोहरे मे लैम्पपोस्ट और झाड़फानूस की धंुधली रोशनी मे डूबी कोठी बड़ी डरावनी सी लग रही थी हवेली के पास पहुंचकर उन्होंने हवेली पर एक नजर डाली तो उन्हें लगा कि हवेली की छत पर कोई खड़ा है। उन्हें हैरत हुयी कि इतनी ठंडी रात मे कौन छत पर खड़ा है उन्हें लगा कि शायद उन्हें धोखा हुआ है। किन्तु गौर से देखने पर उन्हें काले कपड़े पहने एक 40 साल की डरावनी शक्ल की एक औरत खड़ी दिखाई दी उसके बाल खुले थे और हाथ मे लैम्प था जो उन्हें जलती आंखो से घूर रही थी उन्होंने अपने दोस्त से कहा उधर देखो छत पर कौन औरत खड़ी है जीवनलाल ने भी छत पर देखा पर उसे कुछ नही दिखा लालाजी ने फिर छत पर देखा इस बार उन्हें कुछ भी नही दिखाई दिया तभी नौकर आया कार से सामान निकाल ले गया सेठ जी अलावदान के पास पड़ी कुर्सियों पर बैठे कर बिजनेस की बातें करने लगे तभी नौकर चाय-नाश्ता ले आया नाश्ते के दौरान लालाजी ने नौकर से छत वाली औरत के बारे मे पूछा उसने हैरानी से जवाब दिया कि मैं तो हफ्ते भर यही रह रहा हँू मुझे तो पूरे मकान मे कोई औरत नजर नहीं आई। अगले दिन उन्होंने पूरी कोठी और आसपास के इलाके का मुआयना किया कोठी की छत से चारों ओर के खेतो, जंगलों और जमुना नदी का नजारा बहुत सुन्दर और लुभावना दिखता था फिर देर रात खाना खाकर दोनों दोस्त उपरी मंजिल पर बने एक ही कमरे में सो गये अभी उन्हें सोये दो घंटे भी नही बीते थे कि अचानक लालजी की नींद उचट गई और उन्हें कही दूर से किसी औरत के दर्द भरी आवाज मे रोने की आवाज सुनाई दी जाड़ें की उस रात मे रोने की आवाज बड़ी डरावनी लग रही थी पहले तो उन्होनें इसे अपना भ्रम समझा लेकिन जब काफी देर तक आवाज बंद नही हुयी तो उन्होने जीवनलाल को भी जगा लिया उसे भी रोने की आवाज सुनाई दी। आवाज की सच्चाई का पता लगाने के लिये दोनो टार्च लेकर बाहर निकले तो आवाज आनी बंद हो गई। चारों ओर पूरे हवेली मे सन्नाटा फैला हुआ था पूरे हवेली खामोशी मे डूबी हुयी थी वे बारी-बारी से सभी कमरे चैक करने लगे जब वे गैलरी के आखिरी छोर के कमरे को जाँच पड़ताल कर रहे थे तभी जीवनलाल ने सेठ जी का कंधा पकड़ कर उन्हें गैलरी के दूसरे छोर की ओर देखने का ईशारा किया दोनों ने उधर देखा तो वहाँ उन्हें काले कपड़े पहने एक औरत की आकृति दिखाई दी उसके काले खुले बाल पीठ पर लहरा रहे थे उसके हाथ मे एक लैम्प था सेठ जी को उसकी केवल पीठ ही दिख रही थी वह धीरे-धीरे चलती हुयी गैलरी के अन्त के अन्त दांयी ओर मुड़ गई जहाँ छत पर जाने के लिये जीना बना हुआ था उसे देख की डर के मारे दोनांे की हालत पतली हो गई फिर हिम्मत बांध कर वे उसके पीछे गये। किन्तु गैलरी के छोर पर जाकर वे हैरान रह गये वहां ना तो कोई औरत थी, ना उसका कोई निशान। उन्होंने छत पर जाकर कोना-कोना छान मारा किन्तु वहां सन्नाटे के सिवाय कुछ ना था वे दोनों बुरी तरह घबरा गये और हनुमान चालीसा जपते हुये किसी तरह अपने कमरे मे आये। शेष रात उन दोनों ने जागते हुये काटी। सुबह सेठ जी ने सारी बात नौकरों को बतायी सबको पूरा यकीन हो गया कि यह कोठी भुतहा है। नौकर सामने गांव मे रहने वाले पं गिरजा शंकर मिश्र को बुला लाये उन्होंने सारी बात जान कर कोठी मे देवी पूजन करके सबको अभिमंत्रित तावीज पहनाये और लालाजी को किसी भी हालत मे रात मे बाहर निकलने पर रोक लगा दी। सब मामला शान्त हो गया लालाजी काम निपटा कर दिल्ली लौट गये इस बात के कुछ महीनों बाद सेठ जी को फिर जरूरी काम से कोठी जाना पड़ा कोठी के पीछे लालाजी ने पीछे लकड़ी रखने के लिये टीनशेड का एक बड़ा सा गोदाम बनवाया था जिसका एक हिस्सा तेज आंधी तूफान मे गिर गया था बारिस के दिन थे कई दिनों मे रह-रह कर बारिस हो रही थी लालाजी उसी का इंतजाम करने बेटे कन्हैया के साथ कोठी जा रहे थे, आसमान पर बादल जमे हुये थे हल्का-हल्का पानी रास्ते मे दोनों ओर के खेत बागों मे पानी भरा हुआ था। लाला जी की कोठी के करीब एक मील पहले बांये हाथ पर अंग्रेजों का बनवाया हुआ डाक बंगला पड़ता जिसे सरकार ने गेस्ट हाउस बना दिया था लालाजी जब गेस्ट हाउस पहुँचे तो अचानक मोटर बंद हो गई आगे का दृश्य देखकर वे परेशान हो गये आगे काफी दूर तक पूरी सड़क पानी मे डूबी थी रात हो रही थी अंधेरा भी फैल गया था मजबूरन उन्हें गेस्ट हाउस मे रुकना पड़ा यह सड़क से 25-30 हाथ ऊचे टीले पर बनी काफी पुरानी लेकिन मजबूत दुमंजिली इमारत थी जो धने पेड़ो से घिरी थी मौसम खराब होने के कारण पूरा गेस्ट हाउस खाली था उन्हें बड़ी आसानी से उपरी मंजिल पर कमरा मिल गया। कमरा बड़ा और आरामदायक था लेकिन उसका फर्नीचर और कर्मचारियों की वेशभूषा 19 वीं सदी का लग रहा था आजकल वैसे कपड़े कोई नही पहनता था लालाजी कुछ ना बोलकर खामोश रहे रात मे उन्हें बेहद लजीज और लाजवाब खाना पेश किया गया उसके बाद वे सोने चले गये। अचानक कुछ अजीब सी आवाजों के कारण उनकी नींद खुल गई उन्हें महसूस हुआ कि कोई खिड़की को खरोंच रहा है। पहने वे काफी भयभीत हुये फिर हिम्मत बांध कर उन्होने खिड़की खोली तो पता चला कि बाहर तूफानी हवाआंे के साथ मूसलाधार पानी बरस रहा है। उसके झोंके कमरे मे भी आ रहे थे यह उसी की आवाज थी कमरे से सटा एक ऊँचा बरगद का पेड़ था जिसकी लम्बी-लम्बी जटाये बड़ी डरावनी लग रही थीं। वे खिड़की बंद करना चाहते थे कि अचानक उनकी निगाह कमरे से सटी डाल पर दुल्हन वेश मे खड़ी एक अति सुन्दर युवती पर पड़ी जिसके हाथ मे एक दिया जल रहा था यह दृश्य देखकर भय के मारे लालाजी की डर के मारे हालत पतली हो गई और कांपने लगे वे चीखना चाहते थे पर मुँह से चीख नही निकली तभी उन्होने देखा वह युवती हवा मे चलती खिड़की की ओर आने लगी अचानक युवती ने अपनी दोनों बाहें लालाजी की और बढा दीं और उसके हाथ बेतहाशा लंबे होने लगे करीब 20-20 फुट लंबे यह खौफनाक दृश्य देखकर लालाजी गहरी चीख मारकर बेहोश हो गये। उनकी चीख सुनकर कन्हैया और गेस्ट हाउस के कर्मचारी सब जग गयें होश मे आने पर उन्होंने सबको पूरा किस्सा बताया एक बूढे कर्मचारी ने बताया कि उसने पुराने चैकीदार से सुना था यह गेस्ट हाउस भुतहा है। और यहां किसी दुल्हन की आत्मा भटकती है। लालाजी गेस्ट हाउस मे दो दिन रुके दूसरे दिन कोई हादसा नही हुआ तीसरे दिन रास्ता साफ हुआ तीसरे दिन जब उन्हांेने गेस्ट हाउस छोड़ा तो उन्हें यह देखकर काफी हैरत हुयी कि रहने व खाने का बिल काफी कम था मात्र डेढ रूपया उन्होने कैशियर से कहा कि कृपया वह पुनः बिल चैक करे। तो उसने पुनः चेक करके बताया कि बिल मे कोई गडबड़ी नही है। बिल चुकता कर लालाजी कोठी आये और वही रहकर नया गोदाम बनवाने लगे। कोठी के दक्षिणी पश्छिमी कोने पर एक इंदारा कुंआ था जिसका पानी कोठी मे प्रयोग किया जाता था गोदाम के निर्माण मे उसी कुंये का पानी प्रयोग किया जा रहा था एक दिन एक नौकर ने लालाजी को बताया कि एक अंजानी दुल्हन अक्सर कुंये पर आकर बैठती है। ना वह कुंये से हटती है, और ना कोई जवाब देती है सारा कामकाज रुक जाता है। इसकी अगली शाम नौकर ने लालाजी को बताया कि काम रुक गया है। कुंये पर वही दुल्हन बैठी है। लालाजी ने जाकर देख वहां एक दुल्हन घुंघट काढे बैठी थी लालाजी ने उससे कई बार उसका नाम पूछा और उससे कुंये से हटने को कहा है किन्तु ना वह हटी ना उसने कोई जवाब दिया लालाजी ने क्रोध मे आकर नौकर से कहा कि इसे धक्के मार कर बाहर भगा दो नौकर जैसे ही उसके पास पहुँचा तो दुल्हन खिखिला कर हँसी और गायब हो गई अचानक तेज हवाये चलने लगी देखते हवा का एक बड़ा बगूला बन गया जिसके बीच मे धूल पेड़ों की पत्तियाँ गोल-गोल चक्कर लगाने लगीं बगूले ने आगे बढकर एक नौकर को अपनी चपेट मे ले लिया नौकर हवा मे उठा और जीवधारी कुयें मे जा गिरा कुयें का पानी उपर उठने लगा जब तक नौकर और मजदूर उसे बचाते उसकी लाश उपर तैरने लगी सारा नाजरा देखकर बाकी नौकरों मजदूरों की रूह फना हो गई वे भूत-भूत कहते भाग गये सेठ जी अचेत हो गये काफी उपचार के बाद वे होश मे आये सबको यकीन हो गया कि वह दुल्हन कोई चुडै़ल है, इस हादसे ने लालाजी को हिला दिया उन्होंने कोठी का इतिहास जानने के लिये फरूखाबाद के नवाब के वंशजों से मुलाकात की तो उन्होंने बताया कि यह कोठी उनके दादाजान नवाब आरिफ मोहम्मद खान ने गदर के बाद पांच हजार रूपये मे सरकारी नीलामी मे खरीदी थी कोठी खरीदने के चन्द साल मे ही दादाजान को पता चल गया था कि कोठी मनहूस है। कोठी खरीदने के कुछ महीनो बाद दादीजान की छत से गिर कर रहस्यमय मौत हो गई अगले साल उनकी बड़ी बेटी विधवा हो गई और दूसरी बेटी खून की उल्टिया करते-करते मर गई कोई हकीम, डाक्टर व ओझा उसकी बीमारी का पता नही लगा सका सयानों ने बताया कि यह कोठी भुतहा है। और इसमे किसी औरत की आत्मा भटकती है। कोठी मे रोने, कभी हँसने नाचने व गाने की रहस्यमय आवाजें आती थीं। कभी कभी रहस्यमय डरावनी औरते दिखती थीं। जो गायब हो जाती थीं। सयानों और बुर्जुगों की सलाह से दादाजान यह कोठी छोड़ कर चाँदनी चैक मे बस गये दादाजान बताते थे कि उन्होंने कोठी मे गोपाल नामक एक नौकर को काम पर रखा जो गदर से पहले इसी कोठी मे नौकर था जिसने दादाजी को बताया था कि यह कोठी दिल्ली के मशहूर कपड़े व्यापारी सेठ हिन्दूराव ने बनवाई थी यहां उनका आवास और कपड़े का गोदाम था यहां से जमुना के रास्ते उनका माल बनारस और बंगाल तक जाता था सेठ जी ने पहली बीबी के रहते दूसरी शादी की थी दोनों की रहस्यमय तरीके से मौत हो थी सेठ ने सारा धन पैसा बगावत मे लगा दिया था अंग्रेजों ने हिन्दूराव की सारी जायदाद जब्त करके उसे फांसी पर चढा दिया था, तबसे कोठी वीरान पड़ी थी लालाजी ने कोठी को प्रेतमुक्त करवाने के लिये दर्जनों बाबाओं, तांत्रिको से हवन आदि करवाये लेकिन कोई लाभ नही हुआ तभी एक दिन उनके बहनोई ने उनसे मेहरौली के कामाख्या देवी के बंगाली तांत्रिक रामस्वरूप शास्त्री का जिक्र किया लालाजी उनसे मिले उन्होंने आश्वासन दिया सब ठीक हो जायेगा अगली अमावस की रात को उन्होंने हिन्दूराव की कोठी मे मां काली का हवन किया और कोठी की प्रेतात्माओं का आह्वाहन किया एक-एक करके दो प्रेतात्मायें सामने आयीं काले कपड़े वाली चुड़ैल ने बताया कि मै सेठ हिन्दूराव की पहली बीबी आनंदी देवी हूँ, मेरी बरसों तक कोई औलाद नही हुयी तो सेठ जी ने एक बालक रघुनाथ को गोद लिया, फिर संतान के लालच मे सेठ जी ने निर्मला नामक सोलह साल की सुन्दरी से विवाह कर लिया तभी गदर शुरु हो गई सेठ जी अधिकतर बादशाह के दरबार मे रहते थे उन्हीं दिनो सौतिया डाह मे जलते हुये मैने करवा चैथ की रात मैंने नई नवेली दुल्हन को दूध में जहर दे दिया नई दुल्हन की मौत कर खबर ने सेठ जी को नीम पागल कर दिया अब कोठी मे नई दुल्हन का प्रेत मुझे परेशान करने लगा एक रात मै छत पर हाथ मे लैंप लिये उसके पीछे भटक रही थी कि निर्मला के प्रेत ने मुझे छत से ढकेल कर मुझे मार डाला। तब से हम दोनांे की आत्मायें कोठी मे भटक रही है। उन दोनों की प्रार्थना पर बंगाली तांत्रिक ने उन्हें जलाकर मुक्ति दे दी तबसे कोठी मे कोई हादसा नही हुआ इसके कुछ महीने बाद लालाजी कोठी जा रहे थे तो उन्हें अचानक गेस्ट हाउस की याद आई उन्होंने पीपल के पेड़ के सामने मोटर रोकी तो वह देखकर हैरान रह गये वहां कोई गेस्ट हाउस नही था 25-30 हाथ उपर दरख्तों से घिरा एक टीला अवश्य था जिसमे मात्र खंडहरनुमा दीवारें थी स्थानीय लोगों और सरकारी लोगों ने बताया कि बरसों से यहां कोई गेस्ट हाउस नही है। केवल टीला व खंडहर है। सरकार ने 1962 मे सेठ जी को 30 लाख मुआवजा देकर कोठी व जमीन अधिग्रहीत कर ली और शानदार कालोनी बसाई।
(यह रहस्य-रोमांच कहानी के पात्र वस्थान काल्पनिक है)


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