संवैधानिक संस्थाओं की विश्वनियता कायम रखना मोदी सरकार की चुनौती

देश का संविधान सर्वोपरि है, वह किसी पार्टी, सरकार और व्यक्ति से बहुत ऊपर उसका स्थान है। देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था की विश्वसनियता को कायम रखना सबसे बड़ी चुनौती है। क्योंकि सरकारे आती रहेंगी, जाती रहेंगी व्यक्ति आयेगा और जायेगा लेकिन हमारा लोकतंत्र तभी तक कायम रहेगें जब तक संवैधानिक संस्थायें जैसे न्यायापालिका, कार्यपालिका, केन्द्रीय जांच ब्यूरो, सी.बी.सी.सी.आई.डी, चुनाव आयोग और मीडिया पर आम जनमानस में विश्वसनियता कायम रख सके। आज का जो वातावरण अथवा माहौल है उसको देखकर हम कह सकते है कि सरकार को इससे कठोरता से निपटना एक बहुत बड़ी चुनौती है। बदलते परिवेश में अधिकतर राष्ट्रीय स्तर के निर्णय उच्च न्यायालय अथवा सर्वोच्च न्यायालय करता है तो वह भी बिना आरोप के नहीं रह पाता है, उसे भी राजनीति से प्रेरित निर्णय लोग कहना शुरू कर देते हैं, इसी प्रकार सी.बी.आई. तो अपने जांच से पहले ही विवादों में रहना उसका चोली-दामन का सम्बंध सा हो गया है। उसी तरह रिजर्व बैंक आॅफ इण्डिया के गवर्नर जिस तरह से अपना त्यागपत्र दिये अथवा मीडिया में आकर अपना बयान रखा उससे उस पर भी संदेह उठना स्वाभाविक हो जाता है। आज सबसे अधिक चर्चा चुनाव आयोग की हो रही है। जो काफी दिलचस्प और पेचिदा हो गया है, जिस प्रकार ई.वी.एम. पर आरोप लग रहे और चुनाव की ही विश्वसनियता पर सवालिया निशान लग रहे है, जो कि निश्चित ही लोकतंत्र के ढांचे को लेकर ठीक नहीं है यह अलग बात है कि सकुशल चुनाव संपन्न हो रहे हे और सरकारे भी बन रही हैं। अब बात कर रहे हैं लोकतंत्र के चैथे स्तंभ मीडिया यानि जागरूक प्रेस की आज के दौर में मीडिया खास कर इलेक्ट्रानिक मीडिया के प्रति जिस तरह लोगों के वफादार की भूमिका का आरोप लगना कतई स्वतंत्र पत्रकारिता को कलंकित करता है। अब तो आम जनमानस में प्रचारित सा होने लगा है कि कौन सा चैनल किस पार्टी का पक्ष लेगा और किसका विरोध करेगा। बदलती परिस्थितियों में सरकार का दायित्व है कि वह संवैधानिक संस्थाओं की कार्यशैली की निष्पक्षता पर देश स्वतंत्र परिचर्चा हो, सरकार और सरकारी संस्थाओं पर विश्वास कायम कराना भी मोदी सरकार की अहम चुनौती होगी।


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