अनामिका

अनामिका के पापा का लाखों का कारोबार था, अंजलिका और वह उनकी दो ही बेटियां था। बड़े लाड़-प्यार, एशो-आराम में पली वे दोनों ही अमीरी के कारण मगरूर हो गई थी। बदमिजाज और मुंहुफट होने के कारण ही वे हर किसी पर कमेंट पास कर उसकी हंसी उड़ाती रहती। वे दोनों ही बेहद खूबसूरत थी उन्हें बदसूरत और काले लोगों से नफरत थी। घर में पैसा बेइंतिहा था, उससे वे बड़ी-बड़ी शानदार पार्टी क्लब होटलों विदेशों की सैर शाॅपिंग आदि में दिल खोलकर खर्चती। अत्याधुनिक समाज के ऊँचे तबके के लोगों में डठते-बैठते वे कभी-कभी विदेशी शराब पीना तथा स्मोकिंग करना भी सीख गई थी, लेकिन ये वो मम्मी-पापा से छुपकर ही करती। इन्हीं दिनों अनामिका की मुलाकात रोहित कपूर से हुई। रोहित गजब का हैंडसम युवक था, उसकी नीली आँखें और लालिमा लिए दमकता गौरवपूर्ण उसके विदेशी होने का भ्रम करता था। अनामिका रोहित से जब पहली बार मिली तो मानो सारी कायनात ही झूम उठी कुछ अनचीन्हा, अनजाना सा कोमल एहसास मन में जगा और कानों में मधुर घंटिया सी बजने लगी। सम्पूर्ण परिवेश से बेखबर अपनी सुधबुध भले वह उसे मोहाविष्ट हो देखती रही। शायद उसे प्रथम दृष्टि में ही उसके प्यार हो गया था। रोहित को भी अनामिका अच्छी लगी। शीघ्र ही वे विवाह सूत्र में बंध गये।
 रोहित आर्किटेक्ट था अपने काम में बहुत माहिर होने तथा कुछ विनम्र हंसमुख स्वभाव के कारण उसका काम बहुत बढ़िया चल निकला था। अनामिका से वो बेहद प्यार करता था, अब वह पहले सी बदमिजाज नहीं थी। जिस्म के अंग-अंग से महकते रोहित के प्यार में उसे दुनिया बहुत ही सुन्दर और रंगीन लगती। वह प्रतिदिन रोहित की दफ्तर से लौटने की आतुरता से प्रतीक्षा करती। रोहित आते ही उसे बांहों में समेट गर्म चुम्बनों की बौछार कर देता। वह स्वयं को छुड़ाने का बहाना करते हुए भी दिल ही दिल में यह चाहती कि उसकी गिरफ्त कुछ और कस जाए। पुरूष स्पर्श का चह नया-नया मादक अनुभव उसे मदहोश किए रहता।
 शादी के तीन वर्ष लम्बे हनीमून की तरह दुनिया को भुलाये एक दूसरे के प्यार में समाये डूबे बीत गये। रोहित का काम इधर बढ़ने लगा था वो दोपहर लंच के लिए भी नहीं आ पाता। अनामिका का वक्त काटे नहीं कटता। कभी फोन पर मम्मी और अंजू से बांते कर लेती। मम्मी अपनी महिला समिति, सोशल वेलफेयर आदि के कामो मे अत्यंत व्यस्त रहती। अंजू पी.एच.डी. की तैयारी में लगी थी। रोहित और वे दोनों ही अब चाहते थे कि उनका घर आंगन नन्हे-मुन्ने की किलकारियों से गंूजें। एक दिन अनामिका ने रोहित को बताया कि वो लेडी डाॅक्टर कुंतल शर्मा से मिलकर आई है। उन्होंने नौ महीने सावधानी से रहने को कहा है सच कहते हुए रोहित उसे उठाकर हमेशा की तरह नचाने ही वाला था कि उसने अपने पेट की तरफ इशारा किया। रोहित ने उसे बहुत होले से बेड पर बिठा दिया। उसके पायताने बैठकर नाटकीय लहजे में बोला हा तो मलिका-ए-आलम लंच में क्या खाना पसंद करेंगी बिरयानी, मटन सूप, मलाई कोफ्ता, स्टफ, टमेटों,  केसर पुलाव ... बस ... बस शाही खानसमाजी ये सब नाम गिनाना बंद करिए। अभी तो बस एक कप इलायची वाली चाय इनायत कर सकें तो बंदी शुक्रगुजार होगी। अभी ... अभी लो कहते हुए रोहित हेंड टाॅवेल कंधे पर डाले किचेन में घुस गया।
 रोहित अनामिका का बेहद ख्याल रखता उसे रेग्यूलर डाक्टर के पास ले जाता। ठूंस-ठूंसकर फल, दूघ, जूस वगैरह देता। अनामिका मना करती तो रोहित कह उठता समझ लो यह हम अपने बेटे को खिला रहे हैं, अच्छा जी, आपको अभी से हम से वो ज्यादा अजीज हो गया है।
 नौ महीने पूरे होने के कुछ दिन बाद अनामिका ने एक प्यारे से गोल-मटोल खूब स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया। उसे प्यार से वे बिट्टू पुकारने लगे। घर के काम के लिए उन्होंने हर समय के लिए एक नौकरानी रख ली थी। उसका नाम सुमंगली था। उसका एक किशोर बेटा चंपक जो उससे कभी-कभी मिलने आ जाता था। सुमंगली छोटी उमर ही विधवा हो गई थी। अनामिका ने उससे पूछा, तूने दुबारा शादी क्यों नहीं कर ली, सुमंगली अभी तेरी उमर ही क्या है ऐसे अकेले कैसे रहेगी सारी जिन्दगी। 
 बीबीजी बसाया था घर दुबारा लेकिन वो दूसरा मरद ताड़ी पीकर आता और मेरे साथ चंपक को भी पीटता ये बात हमें सहन नहीं हुई बीबीजी कि कोई हमारे बेटे को मारे, हम तो खैर जोरू थी हमें ही पीटता तो कोई बात न थी!
 अरे बात कैसे नहीं शादी क्या तूने उससे मार खाने के लिए की थी ... 
 हमने उसका घर छोड़ दिया बस मरद जात से ही हमकों अब नफरत हो गई ...
 नहीं सुमंगली सब मरद एक से नहीं होते ... अब साहब को ही देख ले ...
 जी बीबीजी साहब तो खैर एकदम देवता आदमी हैं आप पर और बिट्टू पर तो जान छिड़कते हैं आप किस्मतवाली हैं बीबीजी ...
 बिट्टू अब स्कूल जाने लगा। रोहित और अनामिका अपना सारा प्यार उस पर उड़ेलने लगे। रोहित आफिस से लौटते ही बिट्टी के साथ खेलने लगता। कभी क्रिकेट कभी फुटबाल। बिट्टू भी पापा को पल भर के लिए नहीं छोड़ता। रोहित ने कुछ ही दिन हुए विकास जैन को अपने आॅफिस के काम में सहायता के लिए नियुक्त किया था। विकास अत्यंत आकर्षक व्यक्तित्व का युवक था। स्वभाव से वह संजीदा किस्म का था। वो आसानी से लोगों को दोस्त नहीं बनाता था, लेकिन एक बार दोस्त बना लेने पर दोस्ती को पूरी ईमानदारी से निभाता था। रोहित विकास को बहुत पसंद करता था। असल में दुनियां को देखने का उनका नजरिया एक सा ही था, उनके विचार बहुत मेल खाते थे, फिर विकास था भी बहुत मेहनती और होशियार। आर्किटेक्ट बनने के बाद वह पांच साल जर्मनी भी रह चुका था। वहां का जीवन उसे रास नहीं आया तो वो वापस स्वदेश लौट आया था।
 रोहित अक्सर विकास को धर खाने पर बुलाता जहाँ वे बिजनेस का भी डिस्कशन कर लेते। पहले तो विकास अनामिका के सामने बहुत रिजर्व रहता वह जो कुछ पूछती बस उसी का उत्तर देता, लेकिन धीरे-धीरे उसकी झिझक दूर होती गई। विकास गम्भीर प्रकृति का था शायद इसलिए बिट्टू को अपने पापा के मुकाबले में विकास अंकल बहुत नीरस और रूखे लगते थे। उसे उनका आना अच्छा नहीं लगता अक्सर वो मम्मी से कहता, मम्मी ये विकास अंकल रोज-रोज क्यों आ जाते हैं। जब वो आते हैं तो पापा तो बस उन्हीं से बातें करते रहते हैं। न हमारी बात सुनते हैं, ना ही हमारे साथ खेलते हैं।
 बेटा पापा उन्हें बुलाते है, तभी तो वो आते हैं, फिर वो पापा के काम में कितनी मदद करते हैं वर्ना पापा अकेले सब काम कैसे संभालेंगे। अनामिका बिट्टू को प्यार से समझाते हुए कहती। बिट्टू निरूत्तर हो जाता, लेकिन असंतोष की रेखायें उसके चेहरे पर फिर घिर आती।
 एक दिन सुमंगली को पूछते हुए उसका बेटा चंपक आया तो पहली बार अनामिका ने उसे देखा। पंद्रह-सोलह वर्ष का दुबला-पतला किशोर लाल चटक रंग की चुस्त बनियाइन जैसे, टी-शर्ट और पैबंद लगी रंग उड़ी पैंट। घने बालों में ढेर सा तेल लगा हुआ था। उसके गहरे श्याम वर्ण चेहरे पर उसकी बड़ी-बड़ी चमकती आँखों में एक वीरानगी सी झलकती थी। मेरी माँ इधर आई है क्या मेमसाहब, उसने कुछ फटी-फटी सी आवाज में पूछा।
 वो तो बहुत देर हुए काम करके चली गई, अनामिका ने कुछ आश्चर्य से कहां आखिर ऐसा क्या जरूरी काम है माँ से इसे। उसने मन ही मन सोचा।
 चंपक एकाएक मुड़ा तेजी से गेट के बाहर निकल गया। अनामिका को वह बहुत परेशान सा गुस्से से भरा हुआ लगा। लगता है आज माँ बेटे में युद्ध होगा, लेकिन कारण उसे समझ नहीं आ रहा था बगैर बाप के बच्चा पालना बहुत मुश्किल है बीबीजी। खासकर लड़का एक उमर के बाद माँ के काबू में नहीं रहता। अक्सर चंपक की शिकायत करते हुए कहती।
 दूसरे दिन सुमंगली ने जाते हुए कुछ झिझकते हुए कहा,
 बीबीजी एक बात कहनी थीं। 
 हाँ,  हाँ, बोल सुमंगली क्या बात है।
 बीबीजी उसने रूकते-रूकते कहा आप कोई और मेहरी का बंदोबस्त कर लेना अगले महीने से मैं नहीं आ सकूंगी।,
 क्या मैंने घबराकर पूछा।
 हम शादी कर रहे हैं बीबीजी।
 उसकी बात सुनते ही अनामिका चैंक पड़ी। सुमंगली तू और शादी, हाँ बीबीजी शंकर बहुत टेम से शादी के लिए कह रहा था। अच्छा आदमी है वो मेरी बहुत मदद करता है। उसको लेकर कल चंपक ने मुझ पर हाथ उठाया बीबीजी। अभी मेरे हाथ-पैर चलते हैं, जब मैं बूढ़ी हो जाऊँगी तो ऐसे बेटे से क्या आस करूं। उसकी संगत खराब है उसे बिगाड़ने वाले मोहल्ले मंे बहुत है। शंकर से वह डरता है। शंकर उसे बाप का प्यार देगा तो शायद वह सीधे रास्ते आ जाए, शंकर ने मंदिर में देवी माँ की सौगंध खाकर कहा है कि वो चंपक को बेटे जैसा रखेगा।
 सुमंगली यह कहकर चली गई। दूसरे दिन बिट्टू का वर्थडे था। शाम को ही रोहित और विकास केक और उपहार खरीदने निकल गये। उनके लौटने का इंतजार करते जाने कब अनामिका की आँख लग गई। टीवी चल रहा था और वह सोफे पर ही सिर टिकाये गहरी नींद में सो रही थी कि अचानक फोन की घंटी बज उठी फोन मिसेज वर्मा का था, अनामिका देखों घबराने की बात नहीं ... मिसेज वर्मा के मुंह से इतना सुनते ही अनामिका किसी आशंका से कांप उठी। उसकी छठी इन्द्रिय ने जैसे उसे कुछ बता दिया था मिसेज वर्मा कह रही थी, रोहित का मामूली सा एक्सीडेंट हुआ है, डाॅ. चतुर्वेदी की क्लिनिक पर उन्हे फस्र्ट एड दी जा रही है ...
 इन दिनों मिस्टर वर्मा की कोठी का नक्शा रोहित ही डिजाइन कर रहा था इसी सिलसिले में वो दो-तीन बार उनके घर आये आये थे। मिस्टर वर्मा के साथ ही अनामिका क्लिनिक पर बदहवासी में पहंची तो वहां सारा खेल खत्म हो चुका था। सर पर चोट लगने से ब्रेन हैमरेज से रोहित की मौत हो चुकी थी। विकास को मामुली चोट आई थी।
  अनामिका का हंसता-खेलता घर उजड़ गया था जहां रोहित और बिट्टू के कहकहे उनकी आहटें गूंजती रहती थी वहां मातम छा गया था बिट्टू भी अब पहले सी चैकड़ी करना भूल गया था वह इतना दबे पांव चलता कि आहट भी न होती। बिट्टू का बचपन भी जैसे पापा के साथ ही चला गया।
 अनामिका को मम्मी-पापा ने अपने पास बुलाना चाहा लेकिन उसने मना कर दिया। रोहित का घर ही उसका घर था उसकी यादें उसके जीने का सहारा और वैसे भी मम्मी-पापा के बड़े बंगले में उसका मन नहीं लगता था। अंजू शादी के बाद अपने डाक्टर पति के साथ अमेरिका चली गई थी। उसने भी दीदी को अमेरिका आने के लिए लिखा, फोन पर उसने कहा, दीदी कुछ दिन के लिए आ जाओ मन बहल जायेगा, तुम्हारा दुःख समझती हूँ, अगर तुम्हें यहाँ का जीवन रास आ जाये तो तुम भी रह सकती हो यहां पर काम की कमी नहीं, सर्विस कर लोगी तो तुम्हारा दिल भी लगा रहेगा, अनामिका ने उसके और उसके पति विश्वास के इस प्रस्ताव को भी विनम्रता से अस्वीकृत कर दिया।
 विकास प्रतिदिन एक बार उसकी जरूरते पूछने और उसका हाल जानने जरूर आता। रोहित का काम अब विकास ने संभाल लिया था और वो उसे बखूबी चला रहा था। फाइनेन्स तथा बिजनेस के बारे में वो अनामिका को पूरी जानकारी रात देर तक बैठ के देता रहता। वे अब एक-दूसरे के बहुत करीब आ गये थे। उनकी अंतरंगता के बारे में अनामिका के मम्मी-पापा भी जान गये थे वे चाहते थे कि अनामिका विकास से शादी कर लें।
 अनामिका बिट्टू को पहले मानसिक रूप से इस शादी के लिए तैयार करना चाहती थी। वह रोहित को भूल नहीं पाया था। वह बिट्टू को विश्वास में लेकर कई बार उसका मन टटोल चुकी थी। विकास अंकल के गुण बताकर उसके प्रति बिट्टू के मन से ईष्र्या भाव निकाल देना चाहती थी। शायद बिट्टू को डर है कि विकास हम माँ बेटों का प्यार बांट लेना चाहता है बिट्टू की मर्जी के खिलाफ विकास से ब्याह कर वह उसके कोमल दिल को आघात नहीं पहंुचाना चाहती थी।
 मम्मी-पापा ने बिट्टू को अपने पास ही रख लेने का प्रस्ताव भी रखा था। बिट्टू से अलग रहने का अनामिका सोच भी नहीं सकती थी। वह बिट्टू के लिए विकास को छोड़ सकती थी विकास के लिए बिट्टू को नहीं। वह निरन्तर इस कोशिश में लगी थी कि किस तरह बिट्टू विकास को पापा स्वीकार कर ले। वह अपने जीवन से मिलती-जुलती कहानी बिट्टू को सुनाती फिर कहानी में अपने जीवन जैसा ही मोड़ आने पर बिट्टू की राय बताओं बिट्टू उस औरत को दूसरी शादी करनी चाहिए कि नहीं, क्या बच्चे को वो पापा स्वीकार लेना चाहिए। देखो वो उन लोगों को कितना चाहता है उनकी कितनी मदद करता है बिलकुल एक फरिश्ते की तरह क्या उस बच्चे को इतना क्रूर होना चाहिए।
 विकास ने भी बिट्टू का दिल जीतने के कोई कसर नहीं उठा रखी थी बिट्टू के नजदीक आने पर उसे लगा बिट्टू वास्तव में एक संवेदनशील निहायत ही मासूम और प्यारा बच्चा है  सच्चे प्यार की भाषा बच्चे खूब समझते है। एक दिन, बिट्टू ने रात सोते हुए अनामिका से कहा, मम्मी विकास अंकल हमारे साथ ही क्यों नहीं रहते। अनामिका बिट्टू की बात सुनकर भीतर ही भीतर खिल उठी। उदासी की चट्टानों को भेदकर खुशियों का एक स्रोत फूट पड़ा था। उसमें सराबोर होते हुए उसने बिट्टू से पूछा, सच, बिट्टू क्या तुम सचमुच चाहते हो विकास अंकल हमेशा यहां हमारे पास रहे। अब तुम उनसे नाराज तो नहीं।
 नहीं मम्मी अंकल बहुत अच्छे हैं, 
सुबह वो भी मुझसे पूछ रहे थे कि मैं उनसे नाराज हूँ, मम्मी पूछते हुए अंकल की आँखों में पानी आ रहा था मैंने पूछा तो कहने लगे आँख में कुछ गिर गया है लेकिन मम्मी वो झूठ कह रहे थे, अंकल रो रहे थे। फिर बिट्टू ने बड़ी मासूमियत से पूछा, मम्मी अंकल क्या मेरे कारण रो रहे थे।
 नहीं मेरे बेटे, नहीं अंकल तुम्हे बहुत प्यार करते है ना इसलिए उनकी आँखें भीग गई होंगी।
 मैं भी अंकल को बहुत प्यार करता हूँ।
 एक मिनट बिट्टू कहते हुए अनामिका ने विकास को फोन मिलाया। चोंगा बिट्टू के हाथ में देते हुए कहा, हाँ, बिट्टू जरा फिर से वो कहो जो तुम अभी कह रहे थे।
 बिट्टू ने अपनी बात दुहरा दी अंकल मैं आपसे बहुत प्यार करता हूँ विकास ने उधर से कहा।
 आप अभी आ सकते हैं।
 अभी नहीं बेटे! सुबह मिलेंगे लेकिन ये बताइए आप हमारे साथ हमारे घर रहना पसंद करेंगें या हमें ही अपने घर बुलायेंगे।
 हमारे घर, बिट्टू ने चहकते हुए कहा।
  ओ. के. तो सुबह आते हैं आपके घर! दूसरे ही दिन अनामिका और विकास ने सिविल मैरिज कर ली। बिट्टू के चेहरे पर पहले जैसी रौनक और प्रफुल्लता लौट आई।    


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