रक्षा बन्धन

भारत विभिन्न धर्म, संस्कृति, सभ्यता का देश है। यहाँ पर हर रिश्ते को भी बड़ा मान-सम्मान मिला है और हर रिश्ते में एक प्रेम भी छुपा रहता है। इस समय सावन का महीना है रिमझिम फुँहारें शीतल, मन्द, सुगन्ध पवन चलती रहती है। ऐसे रिमझिम मौसम में सावन की पूर्णिमा का दिन आता है। इस दिन का बहुत महत्व होता है, इसी दिन भाई-बहन के पवित्र प्रेम का दिन है क्योंकि इसी दिन रक्षा बन्धन का त्योहार मनाया जाता है। बहन भाई की कलाई पर रेशम के पवित्र धागे से सुन्दर राखी बांधती है और तिलक लगाती है उसकी आरती उतारती है उसे मिठाई खिलाती है और भाई बहन को वचन देता है हमेशा उसकी रक्षा करने का और कुछ उपहार उसकी मनचाही वस्तु उसे देता है। बहन भाई के लिए मंगल कामना लम्बी आयु की कामना करती है। एक पौराणिक मान्यता है कि जब राजा बलि अपना सौंवा अश्वमेघ यज्ञ कर रहे थे और भगवान विष्णु उनके समक्ष वामन का रूप बनाकर ब्राह्मण वेश धारण करके याचक बनकर उसका सारा गर्व व अभिमान खत्म कर देते है। भगवान राजा बलि से अति प्रसन्न हुए और उनसे वरदान मांगने को कहा। राजा बलि ने कहा भगवान आप हम पर प्रसन्न है तो पातालपुरी में आप मेरे महल के द्वारपाल बनकर हमेशा रहेंगे। भगवान ने तथास्तु कहा। इधर बैकुण्ठ में बहुत दिनों तक लक्ष्मी जी व्याकुल होने लगी तभी नारद जी वहाँ पहुँचे और माँ को सारा वृतान्त बताया। फिर माँ ने पूछा भगवान वापस कैसे आयें। राजा बलि बहुत दानी थे उनके द्वार से कोई खाली नहीं लौटता था, उनके गुरू शुक्राचार्य ने उन्हें विष्णु भगवान से सावधान किया था। फिर भी जब राजा बलि वामन भगवान से दान मांगने को कहा तब भगवान ने कहा, मैं ब्राह्मण हूँ, धन, राज्य और हाथी-घोड़े और सम्पदायें मुझे नहीं चाहिए। मुझे तो बस अपने लिए तीन पग भूमि की आवश्यकता है। राजा बलि ने सोचा ये खुद इतने छोटे है ओर मांगा भी तो सिर्फ तीन पग भूमि उन्होंने फिर से आग्रह किया कुछ और भी मांगने को लेकिन भगवान ने कहा बस इतना ही मुझे चाहिए। तब राजा बलि ने कहा अपने पग से तीन पग भूमि ले लें। जब भगवान ने अपने चरण उठाये तो एक पग में आकाश लोक दूसरे पग में पृथ्वी लोक को नाप लिया। राजा बलि को ज्ञात हुआ कि स्वयं नारायण ही है जो कि सर्व सामथ्र्यवान है। भगवान ने पूछा कि तीसरा पग कहा पर रखू तो बलि ने उत्तर दिया कि तीसरा पैर आप मेरे मस्तक पर रख दें। भागवान ने तीसरा पैर बलि के मस्तक पर रख दिया।
 पौराणिक मान्यता है कि माँ लक्ष्मी से नारद जी ने कहा, सावन की पूर्णिमा के दिन रक्षा बन्धन का त्योहार आता है। उस दिन बहन भाई को रक्षा सूत्र में बांधती है और भाई बहन को उपहार देता है, उस समय आप भगवान को माँग सकती है। माँ लक्ष्मी ने वैसा ही किया। सावन की पूर्णिमा के दिन पातालपुरी पहुँची और बलि की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधा और बलि ने उनसे कुछ मांगने को कहा तब माँ ने कहा ये आपका जो द्वारपाल है मुझे दे दें। तब बलि समझ गये ये लक्ष्मी जी ही हो सकती हे। तब बलि ने माँ से कहा आप इन्हें ले जा सकती है पर आप एक वचन दें कि आप आज के दिन हर साल यहाँ आयेंगी। ऐसी मान्यता है कि तब से रक्षा बन्धन का त्योहार मनाया जाता हैं।    


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