आजादी के आन्दोलन में लाला लाजपत राय का योगदान बहुमूल्य था



देश की आजादी में लाला लाजपत राय का बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान है. तिलक की ही भाँति पंजाब में लाला लाजपत राय ने नयी सामाजिक और राजनीतिक चेतना लाने की कोशिश की. पंजाब के रहने वाले लोग लाला लाजपत राय को श्रद्धा से पंजाब केसरी कहते थे.। लाला लाजपत राय का जन्म 1865 ई. में पंजाब में हुआ था. उनके पिता स्कूल-इंस्पेक्टर थे. लाला लाजपत बचपन से ही प्रखर बुद्धि के थे, उन्हें प्राचीन भारतीय सभ्यता और संस्कृति से बहुत लगाव था. इसी लगाव के चलते ही उन्होंने प्राचीन विद्या, धर्म और संस्कृति का गहन रूप से अध्ययन किया वे भी विदेशी शासन के विरोधी थे, उनका राजनीतिक दर्शन दयानंद सरस्वती  के दर्शन से प्रभावित था. अपनी शिक्षा खत्म कर के वे सक्रिय रूप से राजनीति मे आ गये।.
1888 ई. में उन्होंने कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की. वे कांग्रेसी के नरमपंथी नेताओं और कांग्रेस की कुछ नीतियों से काफी असंतुष्ट थे. तिलक के सामान वे भी उग्र राष्ट्रवादिता के हिमायती थी. जल्द ही तिलक और बिपिनचंद्र पाल के साथ उन्होंने अपना उग्रवादी गुट बना लिया जिसे लाल-बाल-पाल के नाम से जाना गया। इन लोगों ने कांफ्रेस की शांतिपूर्ण नीतियों का विरोधरंभ किया. फलत, कांग्रेस के अन्दर नरमपंथियों का प्रभाव कम होने लगा और उग्र नेताओं का प्रभाव बढ़ने लगा. बनारस कांग्रेस अधिवेशन 1905 में उग्र नेताओं ने कांग्रेस पंडाल में भी अलग बैठक की. लाजपत राय ने भी इसमें भाग लिया, उन्होंने कहा कि अगर भारत स्वतंत्रता प्राप्त करना चाहता है तो उसको भिक्षावृत्ति का परित्याग कर स्वयं अपने पैरों पर खड़ा होना पड़ेगा।
1907 ई. में कांग्रेस के विभाजन के बाद लाला लाजपत राय कांग्रेस से अलग हो गए. कांग्रेस से अलग होकर इसी वर्ष उन्होंने पंजाब में उपनिवेशीकरण अधिनियम के विरोध में एक व्यापक आन्दोलन चालाया. लाला हरदयाल के साथ मिलकर उन्होंने क्रांतिकारी आन्दोलनों में भी भाग लिया. फलतः सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर भारत से निर्वासित कर दिया. निर्वासन के बाद लाजपत राय अमेरिका चले गए और वहीं से राष्ट्रीय आन्दोलन और अंग्रेजी सरकार विरोधी गतिविधियों में भाग लेते रहे, उन्होंने भारत की दयनीय स्थिति से सम्बंधित एक पुस्तक की रचना भी की जिसे सरकार द्वारा जब्त कर लिया गया।
1920 में लाला लाजपत राय पुनः भारत वापस आये. उस समय सम्पूर्ण देश महात्मा गान्धी के नेतृत्व में असहयोग आन्दोलन की तैयारी कर रहा था. जब गांधी ने अपना आन्दोलन शुरू किया लाजपत राय ने भाग लिया और पंजाब में इसे सफल किया. उनके कार्यों से क्रोधित होकर सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया. जेल से छूटने के बाद वे फिर से राजनीति में सक्रिय हो उठे. 1923 में वे केन्द्रीय सभा के सदस्य निर्वाचित हुए। वे स्वराज दल के सदस्य भी बने परन्तु बाद में इससे अलग होकर एक राष्ट्रीय दल की स्थापना उन्होंने की. 1925 में उन्हें हिन्दू महासभा के कलकत्ता अधिवेशन का सभापति बनाया गया. 1928 में जब साइमन कमीशन के बहिष्कार की योजना बनाई गई तो लाला ने भी उसमें भाग लिया. उन्होंने लाहौर में साइमन कमीशन विरोधी जुलूस का नेतृत्व किया, पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर लाठियाँ बरसायी. इससे लाला लाजपत राय को सर पर चोट लगी. इसी चोट की वजह से 17 नवम्बर, 1928 को उनकी मृत्यु हो गई. उनकी असामयिक मृत्यु से पूरा देश स्तब्ध रह गया. भारतीय स्वतंत्रता-संग्राम में लाला लाजपत राय का बहुमूल्य योगदान था।


 


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