आयुर्वेद की मदद से जानें अपने शरीर की प्रकृति

आयुर्वेद शास्त्र हमारा शरीर, मस्तिष्क और आत्मा के संतुलन का होना है। आयुर्वेद के अनुसार स्वस्थ रहने के लिए सबसे महत्वपूर्ण है कि अपने आपको यानि कि अपने शरीर को जानना। हमारा शरीर पांच तत्वों से मिल कर बना है पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश। हर व्यक्ति में इन पांचों तत्वों की मात्रा भिन्न होती है। इसके असंतुलन को आयुर्वेद में त्रिदोष सिद्धान्त कहते हैं।
त्रिदोष सिद्धान्त:-
आयुर्वेद की हमारे रोजमर्रा के जीवन, खान-पान तथा रहन-सहन पर आज भी गहरी छाप दिखाई देती है। 
आयुर्वेद की अद्भूत खोज है - 'त्रिदोष सिद्धान्त' जो कि एक पूर्ण वैज्ञानिक सिद्धान्त है और जिसका सहारा लिए बिना कोई भी चिकित्सा पूर्ण नहीं हो सकती । इसके द्वारा रोग का शीघ्र निदान और उपचार के अलावा रोगी की प्रकृति को समझने में भी सहायता मिलती है ।
आयुर्वेद का मूलाधार है:- 'त्रिदोष सिद्धान्त' और ये तीन दोष है- वात, पित्त और कफ ।
त्रिदोष अर्थात् वात, पित्त, कफ की दो अवस्थाएं होती है -
 1. समावस्था (न कम, न अधिक, न प्रकुपित, यानि संतुलित, स्वाभाविक, प्राकृत)
 2. विषमावस्था (हीन, अति, प्रकुपित, यानि दुषित, बिगड़ी हुई, असंतुलित, विकृत)।
 आयुर्वेद में शरीर को तीन तरह का माना जाता है - वात, पित्त और कफ। आयुर्वेद के अनुसार, हम सभी का शरीर इन तीनों में से किसी एक प्रवृत्ति का होता है। अगर आप अपने शरीर के बारे में इतना कुछ जान लेंगे तो यकीनन अपनी सेहत से जुड़ी समस्याओं को हल करने और फिट रहने में आपको मदद मिलेगी।
वात युक्त शरीररू आयुर्वेद के अनुसार, वात युक्त शरीर का स्वामी वायु और आकाश होता है।
बनावट - इस तरह के शरीर वाले लोगों का वजन तेजी से नहीं बढ़ता और ये अधिकतर छरहरे होते हैं। इनका मेटाबॉलिज्म अच्छा होता है लेकिन इन्हें सर्दी लगने की आशंका अधिक रहती है। आमतौर पर इनकी त्वचा ड्राइ होती है और नब्ज तेज चलती है।
स्वभाव - सामान्यतः ये बहुत ऊर्जावान और फिट होते हैं। इनकी नींद कच्ची होती है इसलिए अक्सर इन्हें अनिद्रा की शिकायत अधिक रहती है। इनमें कामेच्छा अधिक होती है। इस तरह के लोग बातूनी किस्म के होते हैं।
मानसिक स्थिति - ये बहुमुखी प्रतिभा के धनी होते हैं और अपनी भावनाओं का झट से इजहार कर देते हैं। हालांकि इनकी याददाश्त कमजोर होती है और आत्मविश्वास अपेत्राकृत कम रहता है। ये बहुत जल्दी तनाव में आ जाते हैं।
डाइट - वात युक्त शरीर वाले लोगों को डाइट में अधिक से अधिक फल, बीन्स, डेयरी उत्पाद, नट्स आदि का सेवन अधिक करना चाहिए।
पित्त युक्त शरीररू आयुर्वेद के अनुसार, पित्त युक्त शरीर का स्वामी आग है।
बनावट -इस तरह के शरीर के लोग आमतौर पर मध्यम कद-काठी के होते हैं। इनमें मांसपेशियां अधिक होती हैं और इन्हें गर्मी अधिक लगती है। अक्सर ये कम समय में ही गंजेपन का शिकार हो जाते हैं। इनकी त्वचा कोमल होती है और इनमें ऊर्जा का स्तर अधिक रहता है।
स्वभाव - इस तरह के लोगों को विचलित करना आसान नहीं होता। इन्हें गहरी नींद आती है, कामेच्छा और भूख तेज लगती हैं। आमतौर पर इनके बोलने की टोन ऊंची होती है।
मानसिक स्थिति - इस तरह के लोग आत्मविश्वास और महत्वाकांक्षा से भरपूर होते हैं। इन्हें परफेक्शन की आदत होती है और हमेशा आकर्षण का केंद्र बने रहना चाहते हैं।
डाइट - पित्त युक्त शरीर के लिए डाइट में सब्जियां, फल, आम, खीरा, हरी सब्जियां अधिक खानी चाहिए जिससे शरीर में पित्त दोष अधिक न हो।
कफ युक्त शरीररू कफ युक्त शरीर के स्वामी जल और पृथ्वी होते हैं। आमतौर पर इस तरह के शरीर वाले लोगों की संख्या अधिक होती है।
बनावट - इनके कंधे और कमर का हिस्सा अधिक चैड़ा होता है। ये अक्सर तेजी से वजन बढ़ा लेते हैं लेकिन इनमें स्टैमिना अधिक होता है। इनका शरीर मजबूत होता है।
स्वभाव - इस तरह के लोग भोजन के बहुत शौकीन होते हैं और थोड़े आलसी होते हैं। इन्हें सोना बहुत पसंद होता है। इनमें सहने की क्षमता अधिक होती है और ये समूह में रहना अधिक पसंद करते हैं।
मानसिक स्थिति - इन्हें सीखने में समय लगता है और भावनात्मक होते हैं।
डाइट - कफ युक्त शरीर के लिए डाइट में बहुत अधिक तैलीय और हेवी भोजन से थोड़ा परहेज करना चाहिए। हां, मसाले जैसे काली मिर्च. अदरक, जीरा और मिर्च का सेवन इनके लिए फायदेमंद हो सकता है। हल्का गर्म भोजन इनके लिए अधिक फायदेमंद है।
अच्छी सेहत के लिए है हमारा खानपान का सही और संतुलित होना। इसीलिए भोजन का चयन अपनी प्रकृति के अनुसार करना चाहिए। अर्थात वात, पित्त और कफ जैसे दोषों को ध्यान में रखते हुए, यही आयुर्वेद के अनुसार हमारे जीवन का मूल आधार है। 


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