उपचार ज्योतिष के सिद्धान्त

ज्योतिष मे उपचारों का आदि काल से ही महत्व रहा है। पूर्वजंम में किये गये पाप कमों के कारण मनुष्य को अनेक प्रकार के आर्थिक समाजिक कष्टों शारीरिक, मानसिक रोगों, मुसीबतो और अनेक प्रकार के दुर्भाग्य का सामना करना पड़ता है। जंमपत्री के ग्रह योग व हस्तरेखा के अशुभ चिन्हों मनुष्य के गत जंम के पापों को जाना जा सकता है। भारतीय ज्योतिष व अध्यात्म के अनुसार मनुष्य को शुभ, अशुभ कमों को अवश्य ही भोगना पड़ता हैं।
'अवश्यमनु भोक्तवां मात्किचिंत फलमस्ति चेत।
येन केनापि भोगेन नाभुकत्वाथं म्रियेत तत।।
प्रश्न मार्ग-9-46
ज्योतिष मे पूर्वजंम के पापों के शमन हेतु पश्चातस्वरूप अनेक प्रकार के उपचारों का उल्लेख मिलता है। अनेक ग्रन्थो ंमे यह श्लोक मिलता र्है।
'औषधि मणि मन्त्राणं, ग्रह नक्षत्र तारिका।
भाग्य कालं भवेत सिद्ध , अभाग्यकालं निष्फलं भवेत।।
ज्योतिष मे मंत्रों, रत्नों, औषघि, दान, व्रत व अन्य उपचारों का वर्णन है। भारतीय दर्शन के अनुसार मनुष्य को वर्तमान जंम को जिस रूप में है स्वीकार कर लेना चाहिये तथा पूर्व जंम के कमों के निवारण हेतु पश्चाताप अर्थात बाद में तप करना चाहिये। व्रत, तप, दान, जप, यज्ञ, देवभक्ति आदि साधनों का  प्रयोग करना चाहिये। इसके अलावा, तावीज, कवच, गण्डे, टोना टटका, रत्न चिकित्सा, वनस्पति तंत्र, तुलसी पूजा, गंगा जी का स्नान, पूजन, शालिगराम व गाय पूजन आदि भी प्रयोेग किये जाते हैं। हाँलाकि भारतीय शास्त्रों में कुछ को महत्व नही दिया गया है। किन्तु ये भी लाभकारी होते हैं। रत्न चिकित्सा शास़्त्र सम्मत नही हैं। ये दुर्भाग्य का नाश भी नही करती है। यह कुछ शारीरिक व मानसिक रोगों मे अवश्य कुछ काम करती है। ज्योतिष में उपचार देते समय यह देखना पड़ता हैं कि उपचार काम करेगें कि नही जंमपत्री पूर्णतः स्पष्ठ कर देती हैं कि उपचार सफल होंगें या नही। आमतौर पर सभी समस्याओं का उपचार नही होता है। बहुत से मामलों में जातक को पूर्वजंम मे किये गये भीषण पापों के कारण उसे दुःख भोगना ही लिखा होता हैं। जब उसके ( प्रभु ) के यहां से फूटी तो क्या करेगी बूटी। इसी सन्दर्भ में अवधी कवि रमई काका कहते है। कि जब विधना भये प्रतिकूल तो ऊँट चढे पर कूूकुर  काटे। अतः लंबे डाक्टरी इलाज, अनेको ज्योतिषीय व तांत्रिक इलाज के बाद भी लाखों लोगों की समस्या का समाधान नही होता है। वे निःसंतान, अविवाहित, महादरिद्र, वषों तक बीमार, बेरोजगार, असामयिक मृत्यु, दुर्घटना का शिकार हो जाते हैं। जातक का उपचार संभव  है या नही केस साघ्य है या असाध्य इसके कूछ सिद्धान्तो का वर्णन ज्योतिष, धार्मिक व तंत्र ग्रन्थों में मिलता है।
 दक्षिण भारत के प्रसिद्ध ग्रन्थ 'प्रश्न मार्ग' के 14 वें अध्याय के 101 वें श्लोक के अनुसार गत जंम मे तन, मन, वाणी से किये गये शुभ और अशुभ कर्म दो प्रकार के होते हैं।
 दृढ और अदृढ। कर्म चाहे शुभ हो या अशुभ अवश्य भोगना पड़़ता है। अदृढ कर्म अभी पूर्ण रूप धारण नही कर पाते हंै। अतः इनको उपचारों और पुरूषार्थ से नियंत्रित किया जा सकता है। श्लोक संख्या 103 के अनुसार जो ग्रह चन्द्रमा की होरा में चले जाते हैं। या षडवर्गों में बली होते हैं। उनका फल दृढ होता है। ये असाध्य समस्यायें देते हैं। जिनका उपचार संभव नही होता है। जो ग्रह सूर्य की होरा मे या सूर्य के वर्गो मे होते  हैं। उनका उपचार विभिन्न साधनों से हो जाता है।
2. यदि किसी पापी ग्रह ग्रह योग पर या किसी नीच, अस्त, वक्री, पीड़ित ग्रह पर दो उससे अधिक पापी ग्रहों की युति या दृष्टि या पाप प्रभाव हो तो वह असाध्य होता है। किसी भी उपचार से उसका निदान संभव नही होता है।
3. 'ग्रहों की शान्ति के यह अनुभव' तथा 'दान द्वारा रोग निवारण' और 'एक्सीपेरीमेंट इन रेमेडिकल मेसर' के लेखक डा. एस. एस. गोला के अनुसार जब लग्न या चन्दमा पर बृहस्पति की दृष्टि नही होती है। या लग्न या चन्द्रमा पर भाग्येश की दृष्टि नही होती है। तो ऐसा व्यक्ति चाहे जितना भी उपचार करे उसे कष्ट भोगना ही पड़ता है। इसमे दृढ़ पाप होते हैं। यदि लग्न या चन्द्रमा पर गुरू या लग्न या चन्द्र से भाग्येश की दृष्टि हो तो उपचार सफल हो जाते हैं। यदि लग्न मे गुरू या गुरू चन्द्र की युति हो तो व्यक्ति बिना कठिनाइयों के आनंदपूर्वक जीवन बिताता है।
4. हवन, जन और देवोपासना, देव, तीर्थ दर्शन ग्रह शान्ति के सर्वाधिक शक्तिशाली उपचार हैं। महर्षि पाराशर के अनुसार पंचम भाव के बली ग्रह या पंचमेश से इष्ट देवता को देखा जाता है। पंचम भाव पूर्व जंम का होता है। एक एक ग्रह में कई कई देवता आते हैं। भगवान विष्णु के दस अवतार लग्न और नौ ग्रहों के प्रतीक है। वृहत पाराशर होराशास्त्र के अनुसार जो निम्न हैंे।
सूर्य-राम चन्द्र-कृष्ण, मंगल-नृसिंह बुघ-बौद्धावतार, गुरू- वामन, शुक्र- परशुराम शनि-कूर्मावतार, राहू- वाराह केतु-मत्सय
लग्न- कल्कि अवतार।
ग्रहों के वैदिक देवता- सूर्य-अग्नि, चन्द्र-जल, मंगल-स्कन्द,
बुध-विष्णु, गुरू-इन्द्र, शुक्र-शची देवी, शनि-ब्रह्मा, 
पौराणिक देवता- सूर्य-राम, चन्द्र-माता पार्वती, मंगल-कार्तिकेय
बुध-विष्णु, गुरू-शिव जी, शुक्र- लक्ष्मी, शनि-नारायण, निस्तेज,
राहू-नाग, काल, दुर्गा जी, लक्षमण जी, बलराम जी केतु- गणेश जी, तांत्रिक देवी।
 पाराशर पद्धति मे विभिन्न वर्गचक्रों में प्रत्येक वर्गचक्र में विभागों के देवता और उपदेवता निर्धारित हैं। जिनका विस्तृत विवरण पाराशर संहिता मे प्राप्त होता है। प्रश्न मार्ग मे भी विभिन्न राशियों , देष्काणों में गये ग्रहों के आधार पर देवी देवताओं की लंबी सूची मिलती है।
व्रत- यह ग्रह शान्ति, मनौती, त्यौहारों और कामनापूर्ति हेतु किये जाते हैं। अशुभ गहों की शान्ति हेतु व्रत रखने का विधान है। 
 इनको विशिष्ठ वार, माह या मुहूर्त मे शुरू किया जाता है। अंत मे व्रत का पारण करके ब्राह्मणों , स्त्रियों या बालकों को भोजन कराया जाता है। यह उत्तम श्रेणी का उपचार है। यह निर्बल, शुभ ग्रहों को बल प्रदान करता है।
दान-अशुभ ग्रहों के पाप प्रभाव को कम करने के लिये दान का सहारा लिया जाता है। दान कई प्रकार के होते हैं। विभिन्न ग्रहो के, सूर्य या चन्द्र ग्रहण या खिचड़ी दान। ज्योतिष में पापी ग्रह के वार को ग्रह की विभिन्न वस्तुओं को उस ग्रह के लिये निर्धारित व्यक्तियों को दान किया जाता है। जैसे मंगल के लिये युवा ब्राह्मण या सन्यासी, राहू हेतु भंगी, चाण्डाल, शुक्र हेतु युवा स्त्रिी शनि हेतु चींटीं, कौवे, गाय, कोंढियों, कगंले आदि को। यह भी उपचार का सर्वोत्तम उपाय है।
ग्रह स्नान- यह आम तौर पर पापी ग्रहों द्वारा उत्पन्न रोंगों की शान्ति हेतु प्रयोग किया जाता है। अशुभ ग्रहों की पीड़ानाश हेतु
विश्ेाष ग्रह की वस्तुओं को पानी में डाल कर उस ग्रह के वार , नक्षत्र या शुभ मुहूर्त को उस ग्रह का मंत्र जपते हुये स्नान किया जाता है। इसमें जल सिर से पैरों की ओर डाला जाता है।
उपरोक्त उपचारों के अतिरिक्त भी अनेक प्रकार के छोटे-बड़े उपचारों को समाज मे ंप्रयोग किया जाता है।
होरा चक्र के आधार पर उपचारः- प्रश्न मार्ग के लेखक हरिहर नम्बूरीपाद ने होरा चक्र के आधार पर ग्रह शान्ति का सिद्धान्त प्रतिपादित किया है। सर्वप्रथम राजा जनक ने सूर्य चन्द्र के आधार पर एक महामंत्र की रचना की। जिसे लीलावतार चैतन्य महाप्रभु के शिष्य श्री अच्युत दास ने प्रचारित किया इसमें सूर्य, चन्द्रमा और अन्य ग्रहों की पूरी शान्ति हांे जाती है। इस सिद्धान्त मे नौ ग्रहों को सूर्य और चन्द्र के दो समूहो मे बाँट दिया जाता है। यह मंत्र निम्नलिखित है।
'हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे, 
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्णा कृष्णा हरे हरे।।


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