कौन कहां क्या कर रहा है

जैव-जगत, प्राणी समूह एवं सकल दृश्य-अदृश्य सत्ता के रूप में वह परमात्मा ही सर्वत्र अभिव्यक्त है। परमात्मा द्वारा बनाई गई सृष्टि में प्रत्येक प्राणी आदरणीय है और पारिस्थितिक तंत्र के संतुलन में सबकी अपनी विशिष्ट भूमिका है। अतः प्रकृति के प्रत्येक घटक का आदर ईश्वरीय आराधन है! संसार के कण-कण में ईश्वर का वास है। हर जीव, पेड़-पौधे में परमपिता परमेश्वर का अंश है। आवश्यकता है तो अपने अंदर ईश्वर का अनुभव, प्रतीति करने की। ईश्वर की कृपा दृष्टि सब पर है। कौन कहां क्या कर रहा है, उससे कुछ भी छिपा नहीं है। ईश्वर की कृपा को पाने के लिए जरूरतमंद लोगों की सेवा करनी चाहिए। इस संसार में बहुत से लोग ऐसे हैं, जिनको हमारी आवश्यकता है। मनुष्य जीवन मानवता की सेवा परोपकार के लिए है। प्राणी मात्र की सेवाभाव से अपने जीवन स्तर के साथ-साथ दूसरों का जीवन स्तर भी सुधर सके। जो असहायों के हृदय स्पर्श न कर सका, संसार को सद्व्यवहार न दे सका, उसकी उपासना अधूरी है। उसे कभी भगवान मिलेंगे यह सोचना भी गलत है। परमात्मा से सच्चे हृदय से जो प्रीति रखते हैं उन्हें सृष्टि के प्रत्येक प्राणी में उन्हीं की छाया दिखाई देती है। क्या ऊँचा, क्या नीचा! सारा संसार उन्हीं से ही तो ओत-प्रोत हो रहा है। छोटे-बड़े, ऊँचे-नीचे का भेदभाव परमात्मा के प्रति अन्याय है। सर्वत्र व्यापी प्रभु को समदर्शी पुरुष ही जान पाते हैं। जो प्राणी मात्र को प्रेम की दृष्टि से देखता है, वही ईश्वर का प्यारा है। अपने पत्नी-बच्चों, रिश्तेदारों तक ही प्रेम को प्रतिबन्धित रखना स्वार्थ हैं। प्रेम का क्षेत्र असीम है, अनन्त है। उसे प्राणी मात्र के हृदय में देखना ही ईश्वर निष्ठा का प्रमाण है। वह कभी किसी को अप्रिय नहीं कह सकता, किसी को दुःखी देखकर उसका हृदय द्रवीभूत हो उठता है। उसने तो सबमें ही अपने राम को रमा हुआ देख लिया है। इसलिए जो चेतन है, सर्वशक्तिमान है, सर्वज्ञ है, सर्वव्यापक है, जो शुद्धस्वरूप है, जो न्यायकारी है, जो दयालु है, जो सब सुखों और आनंद का स्रोत हैय वह परमात्मा उसको सब में दिखता है।


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