क्या देश विभाजन व आरक्षण पहले से तय था

20 वीं सदी के महानतम ब्रिटिश ज्योतिषी काउंट लुई हेमन कीरो ने अपनी 1927 में प्रकाशित पुस्तक ‘वल्र्ड प्रैक्टिशन’ में भारत के संबध में भविष्यवाणी करते हुये लिखा है। कि भारत की राशि मकर है और 1945 के बाद दुनिया की कोई शक्ति उसे गुलाम बना कर नही रख सकती है। सूर्य कुंभ राशि में प्रवेश कर चुका है। कुंभ राशि का चित्र पानी का कलश उठाये एक बूढा आदमी है जो संसार के समस्त दुःखी, निर्धनों, पीड़ितों को पानी पिलाने आया है कुंभ काल मे सारे संसार मे शनि के प्रतीक गुलामों, निर्धनांे, श्रमिकों तथा निर्बलों का उत्थान होगा और भारत हिन्दू, मुस्लिम और बौद्ध तीन भागों में विभाजित हो जायेगा कीरो की भविष्यवाणी आश्चर्यजनक रूप से सच हुयी विश्व में साम्यवाद की उत्पत्ति, ब्रिटिश साम्राज्य का विनाश तथा सदियों से गुलाम सैकडा़ें कमजोर देशों को आजादी प्राप्त हुयी भारत भी उनमें से एक था कीरो भारत की समाजिक व्यवस्था और जाति प्रथा से परिचित नही थे अंगे्रज आजादी के पूर्व स्वतंत्रता आंदोलन को कमजोर और कुचलना चाहते थे और इस उददेश्य की पूर्ति हेतु उन्होने 1857 की गदर से सबक लेते हुये देश की एकता तोड़ने हेतु हर संभव प्रयास किये उन्होने मुस्लिम हिन्दू साम्प्रदायिकता की नींव डाली उनके प्रयासों के कारण 1902 में मुस्लिम लीग का गठन किया गया और भविष्य में मुस्लिमों को होमलैण्ड का सपना दिखाया गया दूसरी ओर हिन्दुओं में फूट डालने हेतु अम्बेडकर के अभियान को बढावा दिया दोनांे संगठन ना केवल स्वतंत्रता आंदोलन से अलग रहे बल्कि उसे कमजोर भी करते रहे और दोनांे परस्पर एक दूसरे का समर्थन करते रहे। दोनों के कार्यकलाप पूरी तरह से ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा संचालित होते रहे। विशेषतः अम्बेडकर ने हर स्तर पर ना केवल स्वतंत्रता आंदोलन का विरोध किया बल्कि अंग्रेजों के हर कदम का समर्थन किया और आजादी प्राप्ति के बाद विभाजनकारी नीति के चलते देश हितों और प्राकृतिक न्याय के विरूद्ध आरक्षण की अपनी पुरानी मंाग रखते हुये भारत सरकार को ब्लैकमेल किया और जबरन देश के संविधान मे आरक्षण का प्राविधान रखा और स्वयं और अपने समर्थकों को बौद्ध घोषित कर दिया इस तरह कीरो की सन 1927 में की गई भविष्यवाणी सच हुयी और भारत कानूनत, हिन्दू और बौद्धों मे विभाजित हो गया भारत के संविधान का अघिकांश भाग वास्तव में धूर्त ब्रिटिश शासकों द्वारा बनाई गई एक योजना थी जिसे ब्रिटिश शासकों के निर्देश पर देश के कुछ स्वार्थी राजनीतिज्ञों ने संविधान मे सम्मलित किया था भारत विभाजन के गुप्त  और खतरनाक प्लान का विस्तृत वर्णन अंग्रेजों के पूर्व जासूस धर्मेन्द्र गौड़ ने अपनी पुस्तकों मै अंग्रेजों का जासूस था और फोर्स वन थ्री सिक्स में किया है ब्रिटिश सरकार द्वारा मनोनीत 57 सदस्यों में शामिल मुस्लिम लीग व अम्बेडर की हठवादिता के कारण प्रथम और द्वितीय गोल मेज सभा असफल हुयी तभी ब्रिटिश सरकार के निर्देश पर अल्पसंख्यकों के प्रतिनिधियों ने नवम्बर 1930 में माइनार्टीज पैक्ट तैयार किया जिसमेे हरिजनों के लिये आरक्षित सीटों व अलग निर्वाचन मंगडलों का प्राविधान था वास्तव मे अम्बेडकर और मुस्लिम लीग दोनो मिले हुये थे (नेताजी सुभाष चन्द्र बोस-लेखक शिशिर कुमार बोस, नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया) और ब्रिटिश एजेंट थे तीनों गोलमेंल सभा के बाद लंदन के एक गैर सरकारी संगठन ने पूर्णतः ब्रिटिश हितों को घ्यान में रखते हुये एक श्वेत पत्र जारी किया जिसमे एक सूची देते हुये कहा गया कि इन विषयों को केन्द्र सरकार को कानून बनाने का हक होगा।
 एक अंय सूची पर राज्य सरकार को कानून बनाने का हक होगा और कुछ विषयों पर दोनों को कानून बनाने का हक होगा भारत के संविधान में उपरोक्त श्वेत पत्र को ना जाने किन कारणों और किसके निर्देश पर हूबहू उतार लिया गया इस लेख में इन विषयों पर ज्योतिष का प्रकाश डाला गया है।
 भारत का जंम 15 अगस्त 1947 को रात्रि 12 बजे दिल्ली में हुआ देश की वृष लग्न में राहू, मिथुन में शत्रुराशि गत मंगल, कर्क में सूर्य, चन्द्र, शुक्र, शनि, व बुध बैठे हैं। तुला मे गुरू व वृश्चिक में केतु है। पाराशर ज्योतिष अनुसार सूर्य व मंगल क्षत्रिय जाति के गुरू ब्राह्मण के बुध व शुक्र वैश्य, शनि शूद्र जाति के प्रतीक हैं राहू मुस्लिम व केतु क्रिश्चयन व अन्त्यज जातियों के प्रतीक है। सभी अग्नि प्रधान राशियां क्षत्रिय, द्विस्वभाव राशियां ब्राह्मण, पृथ्वी तत्व राशियाँ वैश्य तथा वायु प्रधान राशियाँ शूद्रों की प्रतीक है। देश के नवम भाव में मकर राशि है। जो प्राचीन ज्योतिष ग्रन्थों मे प्राचीन भारत की राशि बताई गई है। नवम भाव पिता का और उससे पंचम भाव लग्न पिता की संतान यानि स्वयं जातक का है।  यानि वृष लग्न में देश को आजादी मिलना विधाता की योजनानुसार पहले से तय था यह एक आश्चर्यजनक तथ्य है कि भारत के इतिहास मे कई ऐतिहासिक घटनायें वृष लग्न या वृष मे स्थित राहू केतु के गोचर मे हुयी घटित हुयी है जैसे सोमनाथ मंदिर का घ्वंस, 5 मई 1528 को रामजंम भूमि का घ्वंस, 1857 की गदर की लग्न तथा देश की आजादी की लग्न वृष ही है देश की कुण्डली में क्षत्रिय कारक दोनो ग्रह सूर्य व मंगल गंभीर पाप प्रभाव में है। सप्तमेश मंगल सप्तम से आठवें (मृत्यु) भाव में है व राहू व सूर्य व शनि के मध्य पाप कर्तरी मे तथा चर्तुथेश सूर्य चतुर्थ से 12 वें व्यय भाव में है। ब्राह्मण कारक ग्रह गुरू लाभेश होकर लाभ भाव से आठवें (मृत्यु) षष्ठ  भाव में है और अष्ठमेंश होकर रोग व शत्रु भाव में है। अतः आजादी के बाद उपरोक्त दोनो जातियों का भारी आर्थिक और समाजिक पतन हुआ और ये जातियां हाशिये पर आ गयीं वैश्य कारक ग्रह बुध पंचमेश होकर तृतीय भाव मे अपने मित्र ग्रहों शनि व शुक्र के साथ है अतः वैश्यों का कोई विशेष नुकसान नही हुआ शूद्र कारक ग्रह शनि नवमेश होकर नवम भाग्य भाव को देख रहा है तथा अपने परम मि़त्र ग्रह बुध व शुक्र के साथ है अतः शूद्रों का भारी भाग्योदय हुआ शुुक्र व चन्द्रमा पिछड़ी जातियों के प्रतीक है। शुक्र अपनी शत्रु राशि कर्क में है और तथा चन्द्रमा अपने कई शत्रु ग्रहों शुक्र, बुघ व शनि के साथ अतः पिछड़े भी भारी घाटे रहे कहीं कहीें उन्हें मामूली सा फायदा हुआ भारत का संविधान 26 जनवरी 1950 को मेष लग्न मे लागू हुआ जो भारत की लग्न की द्वादश व्यय भाव की राशि है। जो देश के स्वतंत्रता सेनानियों के सपनों के भारत हेतु विनाशकारी सिद्ध हुयी। मेष भारत के शत्रु पाकिस्तान की लग्न है अतः संविधान अधिकांश देशवासियों के लिये मित्र नही साबित हुआ
 संविधान की मेष लग्न मे चन्द्रमा, पंचम भाव मे सिंह राशि राजकीय राशि मे शूद्र कारक ग्रह शनि बैठा है। शनि से द्वितीय राजक्षत्र कारक केतु होने से शूद्रों को स्थाई चैतरफा राजकीय संरक्षण, नौकरी व राजनैतिक, समाजिक व आर्थिक लाभ प्राप्त हुआ छठे भाव में क्षत्रीय ग्रह मंगल शत्रु राशि कन्या में केतु युत होकर बैठा है। त्रिक भाव में शत्रु राशि का मंगल क्षत्रियों के राजनैतिक, समाजिक व आर्थिक र्दुगति के कारण बना। ब्राह्मण कारक ग्रह दशम में नीच का होने से ब्राह्मण भी दुर्गति को प्राप्त हुये वैश्य व कायस्थ कारक ग्रह भाग्य भाव मे शत्रु राशि मे है। किन्तु उससे द्वितीय भाव में  बुध का मित्र शुक्र होने और सूर्य शनि मे राशि परिवर्तन होने से शनि के भी बुध से द्वितीय भाव फल देने से बुध बली हो गया है। जिससे व्यापारी वर्ग भी भारी लाभ में रहा बुध देश की कुण्डली में पंचमेश भी है। पिछड़ों का कारक ग्रह चन्द्रमा लग्न मेे मित्र राशि मे अतः उन्हें कुछ लाभ मिला किन्तु उससे त्रिकोण शनि व बुध दो शत्रु ग्रह होने के कारण विष योग व निम्न कर्म योग बनने के कारण उन्हें भारी निराशा और निचले व मध्यम स्तर का व्यापार ही प्राप्त हुआ आजादी की लग्न मे बैठे बली राहू के कारण देश आजादी के पूर्व और बाद में गंभीर षडयंत्रों का शिकार बना मीन राशि का राहू संविधान के जंमचक्र में ब्रह्म शाप बना रहा  किसी समय जब राहू मीन राशि मे होगा तो संविधान पर भारी संकट आयेगा यह समय केवल अति विद्वान ज्योतषी ही जान सकते हैं। भविष्य परमात्मा के आधीन है उसके हुक्म के बिना एक पत्ता भी नही हिलता है। अतः देश का विभाजन व आरक्षण परमात्मा की योजनानुसार ही हुआ हर वस्तु की  ही तरह इसके भी अच्छे बुरे दोनो ही पहलू है हर वस्तु जो  जंम लेती है एक दिन समाप्त हो जाती है। कीरो की 1927 में प्रकाशित पुस्तक ‘ वल्र्ड प्रैक्टिशन’ के अनुसार अयन के सिद्धान्त के अनुसार सूर्य वक्र गति से एक राशि मे 2150 वर्ष तक रहता है। अयन सूर्य ने सन 1742 में में कुंभ राशि में प्रवेश किया था जो सन 3892 तक कंुभ में रहेगा कुंभ राशि का स्वामी ग्रह शनि व राहू है शनि तो न्याय व धर्म का कारक ग्रह है किन्तु राहू प्रदूषण, राक्षस, तम, भारी मशीनरी, हवाई यात्रा, जादू, सैक्स, भ्रष्टाचार, मायावी विज्ञान, अपराध, बुराईयोें, षडयंत्रों व आतंकवाद का का कारक ग्रह है। दुर्भाग्यवश राहू भारत की कुण्डली की लग्न मे बैठा है अतः कुंभ के सूर्य काल मे देश व विश्व में ये बुराईयां चरम सीमा पर पहुँच जायेगी और देश, मानवता और संसार त्राहि त्राहि करेगा उस समय ईश्वर संसार व देश की व्यवस्था को सुधारने के लिये किसी महान आत्मा को प्रथ्वी पर भेजेंगी अयन का एक अंश करीब 71-72 वर्ष का होता है। तथा एक नवांश वर्ष का होता है। हर 72 वर्ष और  वर्ष बाद संसार और भारत मे लघु परिवर्तन आयेगा तत्पश्चात अतः संविधान के 72 वें वर्ष सन 2022 में कोई अति महत्वपूर्ण परिवर्तन आने का योग है। सन 3893 में मकर राशि में प्रवेश करेगा जो भारत की प्राचीन राशि व लग्न उस समय भारत की चैतरफा प्रगति होगी विशेष रूप से आघ्यात्मिक क्षेत्र मे क्योंकि मकर का स्वामी ग्रह शनि धर्म, न्याय, कर्म, साधना व तपस्या का कारक ग्रह है। तब पुत्र चक्रवर्ती सम्राट भरत द्वारा की गई थी उन्ही के नाम पर देश का नाम भारत पड़ा। उन्होने सारे भारत को जीत कर उसे एकता के सूत्र मे पिरोया था कुछ तिब्बती ज्योतिष ग्रन्थांें के अनुसार उस समय मकर लग्न मे उच्च का मंगल सातवें भाव में उच्च का गुरू था लग्नेश शनि नीच का था शनि व मंगल में राशि परिवर्तन था अतः शुद्र यद्यपि निम्न स्थिति मे ै थे किन्तु शनि के नीच भंग होने के कारण शूद्र को भी
तप व योग्यता के आधार पर उच्च पद मिल जाता था और जाति प्रथा वर्तमान के समान विकृत और निम्न रूप मे नही पहुँची थी जैसे विदुर का मंत्री होना, राजा शान्तनु का धीवर पुत्री से विवाह कर उसे रानी बनाना राजा दुष्यंत द्वारा ब्राह्मण कन्या शकुन्तला से विवाह कर उसे साम्राज्ञी बनाना। इस लेख का उददे्श्य समाजिक विद्वेष फैलाना नही है। बल्कि देश के सभी वर्गों को न्याय दिला कर उन्हें राष्ट्रीय एकता के सूत्र में परोना है और  देश में घटी कुछ प्रमुख घटनाओं का ज्योतिष आधार पर विश्लेषण करना है। सभार - वाराह वाणी


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