पारिवारिक ज्योतिष पिता पुत्र के नाक्षत्रिक संबध

संहिता ग्रन्थों मे वर-वधु के प्रकरण मे जिन सिद्धान्तों का उल्लेख किया गया है, वे पूरे परिवार पर लागू होते हैं। क्योंकि यह ज्योतिष का सैद्धान्तिक पक्ष है, यहीं पर हमे अर्गला के सिद्धान्तों की भी पुष्टि होती है। 
1. सैद्धान्तिक रूप मे वर-वधु की राशियां द्विद्वादश नही हो सकती हैं। यह धन हानि करती है। इसे ही नुदूर कर सिद्धान्त बता कर वर्जित किया गया है। इससे हमे यह संकेत मिलता है, कि परिवार मे कुछ ऐसी घटनायें घटती है, जिन्हें हम आपदा कह सकते हैं। यद्य़पि इसमे मृत्यु का वर्णन नही है। परन्तु धनहानि बताई गई है। ग्रन्थों मे कारण का वर्णन नही है महर्षियों मे इसे निषेध बताया है। अतः पिता व पुत्र के परस्पर नक्षत्र द्वि-द्वादश राशियों मे हो सकते हैं।
2. वर वधु के नक्षत्र परस्पर षष्ठाटक नही हो सकते है। क्योंकि ये मृत्युदायक होते है। अतः पिता पुत्रों के नक्षत्र भी षष्ठाष्टक नही हो सकते है।
4. वर-वधु के नक्षत्र पंचम नवम मे होने पर संतान की हानि बताते हैं। अर्थात संतान मृत्यु को प्राप्त होती है। भाग मेें चर्चा से स्पष्ट है कि नवम पंचम मे वही नक्षत्र होगें जो पिता के नक्षत्र या उससे दूर की श्रेणी मे आयेंगें। क्योंकि त्रिकोण के सिद्धान्त के अनुसार पिता के नक्षत्र 2 या 3 हो सकते हैं सिद्धान्त रूप मे इसे अपवाद के रूप मे भी बताया गया है। यह सिद्धान्त सही है। क्योंकि आदि नाड़ियां केवल वियोग करती हैं अन्य दो नाड़ियों मे मृत्यु व वैघव्य तथा कष्ट की बात है। 
अद्यैक नाड़ी कुरूवे वियोगं, 
 मध्याख्य नाडया उभयो विनाशः।
 अन्त्या च वैधव्यम अतीव दुखं,
 तस्मातच भिस्तः परिवर्तनीयाः।। 
मुकुट गुण विभााग मे 2-12, 6-8 या 5-9 मे गुण भाव की प्राप्ति होती है। इसे अपत्यशनिः नवात्मने के सूत्र के रूप मे बताया गया है।
4. वृहत ज्योतिषसार और ज्योतिष प्रकाश मे कपितय अपवादों की चर्चा कर गई है। जो इस प्रकार है। यदि वर की राशि से कन्या की राशि से पंचम हो और कन्या की राशि से वर की राशि नवम हो तो यह नवम पंचम शुभ होता है।
 वरस्य पंचमे कन्या, कन्यायाः नवमे वरः।
 एततत्किोणकं गााहृयं, पुत्र पौत्र सुखावहम।।
वृहत ज्योतिषसार मतान्तर से यदि वर की राशि से कन्या की राशि पंचम होती है। तो संतति का क्षय अन्यथा शुभ होता है। ज्योतिष प्रकाश समान नक्षत्रें मे होने के कारण पंचम नवम कुछ ही शुभ होगा कुछ वियोंग कार्य भी होगा अतः त्याज है।
5. शाडर्गंध्रोग के अनुसार मीन कर्क, वृश्चिक-कर्क,
कुंभ- मिथुन तथा मकर कन्या ये चार नव पंचक विशेषतः त्याज्य है।
6. चन्द्रराशि का नवांशेश, चन्द्र राशि का स्वामी यदि मित्र हो नव पंचम निष्फल हो।
7. मेष, सिंह, वृष, कन्या, मिथुन तुला, कर्क वृश्चिक, सिंह, धनु, तुला कुंभ, वृश्चिक मीन, धनु मेष, मकर, वृषादि मित्र नवपंचक पीयूषधारा के अनुसार ग्राहृय है।
8. चतुर्थ दशम- वर और कन्या की राशियां यदि परस्पर चतुर्थ व दशम तो यह भी शुभ कहा गया है। इसके भी अपवाद हैं। क्योंकि दशम भाव अर्गला का विरोधी है। अतः यह दुर्भाग्य व दरिद्रता देता है। अपवाद- तुला मकर, धनु कन्या, वृष सिंह, कुंभ वृश्चिक, मेष कर्क, मिथुन मीन। चतुर्थ व दशम मे बने उपरोक्त योग दुर्भाग्य व दरिद्रता देते हंै। अतः चतुर्थ व दशम भी त्याज्य है।
9. त्रि-एकादशः- वर और कन्या की राशियां यदि तृतीय एकादश होने पर सर्वथा शुभ मानी गयी हैं।
एक राशौ महाप्रीतिः, चतुर्थ दषमे सुखम।
  तृतीय एकादशे वित्तं, सुप्रगाः समसप्तके।।
10. वर और कन्या की राशियां यदि परस्पर समसप्तक हो तो यह राशि भाव समसप्तक कहलाता है।
    एकादश तृतीये च, तथा दश चतुर्थ वे।
   ग्रह मैत्री किम कुर्यात, उभयोः समसप्तकम।।
समसप्तक शुभ है परन्तु कर्क मकर व सिंह कुंभ इसके अपवाद हंै। इस प्रकार वर वधु के नाड़ियों की परस्पर तुलना करके दनके भावी जीवन की घटनाओं का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है। यह सिद्धान्त परिजनों पर भी लागू होता है। परिवार मे पिता पुत्र, बेटे बेटियों के बीच मेल ना होना इसी सिद्धान्त के आधार पर लगाया जा सकता है। कुछ उदाहरण द्वारा इन सिद्धान्तों का अवलोकन करते है।
1. उदाहरण संख्या-1
1. पिता का नक्षत्र- 
2. प्रथम पुत्री का नक्षत्र-
श्रवण 10 ।  3. द्वितीय पुत्री का नक्षत्र- मूल- 5।
पिता व पुत्रियों अलग अलग, सरकारी नौकरी व अध्यनरत होने के कारण अलग-अलग निवास का रही है।
2. उदाहरण संख्या-2
1. पिता का नक्षत्र-चित्रा-6। 2. प्रथम पुत्र का नक्षत्र-मघा 5 । 3. द्वितीय पुत्र का नक्षत्र- पूर्वा फा. - 5। पुत्री का नक्षत्र- भरणी-2।
1. उदाहरण संख्या-1
1. पिता का नक्षत्र- 
2. प्रथम पुत्री का नक्षत्र-
श्रवण 10 ।  3. द्वितीय पुत्री का नक्षत्र- मूल- 5।
पिता व पुत्रियों अलग अलग, सरकारी नौकरी व अध्ययनरत होने के कारण अलग-अलग निवास का रही है।
2. उदाहरण संख्या-2
1. पिता का नक्षत्र-चित्रा-6। 2. प्रथम पुत्र का नक्षत्र-मघा 5। 3. द्वितीय पुत्र का नक्षत्र- पूर्वा फा. - 5। पुत्री का नक्षत्र- भरणी-2। उदाहरण संख्या-4।
1. पिता का नक्षत्र-आश्लेषा-4। 2. प्रथम पुत्र का नक्षत्र-हस्त-6 । द्वितीय पुत्र का नक्षत्र-हस्त-6। 
वधु का नक्षत्र- पु. फा.। नक्षत्र पास पास होने के कारण वर वधु साथ साथ है। पिता दूर है।
उदाहरण संख्या-5।
1. पिता का नक्षत्र-उ. फा.-4। 2. प्रथम पुत्र का नक्षत्र-उ. भाद्रपद-12। द्वितीय पुत्र का नक्षत्र- 18.3.9। प्रथम पुत्र नौकरी के सिलसिले मे बाहर है। बाकी सब साथ हैं।
 उपरोक्त विवेवन से स्पष्ठ है कि वर वधु या परिवार मे परस्पर नक्षत्रों की द्वि-द्वादश, षष्ठ-अष्ठ,
चतुर्थ-दशम, सम-सप्तक एक ही नाड़ी या एक ही  नवांशेश त्याज्य है।
 अतः केवल तृतीय नाड़ियां ही शोभन है। इसके आधार पर जातक के भावी सन्तानों की नाड़ियों की गणना करके उनके दीर्घायु या अल्पायंु होने की योजना की जा सकती है तथा उनके व्यवसाय, विदेश गमन, पारिवारिक कलह या शान्ति की भविष्यवाणी की जा सकती है। इसे कुण्डलियों के शोधन हेतु भी प्रयोग किया जा सकता है।
 निष्कर्ष मे तृतीय या एकादश निकट कर नाड़ियां कष्टप्रद है। जिससे धन की हानि होती है।


 


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