अपनी शायरी से दिल में उतर जाते हैं गाजी: शबाना आजमी

इम्तियाज गाजी की शायरी में उनकी मिट्टी की महक आती है और इसलिए वो लोगों के दिल में उतर जाते हैं। उनकी शायरी में बेबाकी और सच्चाई कूट-कूटकर भरी है। आज ऐसी ही शायरी की जरूरत है। यह बात मशहूर फिल्म अभिनेत्री शबाना आजमी ने गुफ्तगू की ओर आयोजि ऑनलाइन परिचर्चा में इम्तियाज अहमद गाजी की शायरी पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कही। मशहूर साहित्यकार ममता कालिया ने कहा कि इम्तियाज गाजी के पास कुछ यादगार नज्में और गजलें हैं। वे वक्त की तल्खियों को परे सरका कर, अमन और सुकून की, संग साथ और मुहब्बत की बात करते हैं-‘इस जहां में सभी मुसाफिर हैंध्सौ बरस का सामान है फिर भी।‘ या ‘आज साहिल पे इतनी खुशबू है/कोई चेहरे को मल रहा है क्या।’ जैसे अशआर जेहन में देर तक बने रहते हैं। गाजी यह महसूस करते हैं कि-‘तुम जिसे जिन्दगी नहीं कहते/हम उसे मौत भी नहीं कहते।’ इम्तियाज एक मुश्किल समय का न सिर्फ सामना करते हैं वरन उसे आसान बनाने के लिए लिखते हैं। समाज की पड़ताल करते हैं मगर सियासत के ज्यादा नजदीक नहीं जाते। मशहूर गीतकार यश मालवीय के मुताबिक इम्तियाज अहमद गाजी न केवल एक सतर्क, सजग एवं जागरूक एडिटर हैं, वरन हिंदुस्तानी गजल का एक कीमती नगीना भी। उनका अंदाजे गुफ्तगू गजल के तमाम शायरों के बीच अलहदा नजर आता है, कई बार तो वह शायरों की जमात में किनारे खड़े दरख्त की तरह अलग से अपनी मौजूदगी दर्ज कराते हैं। शायरी की मशाल,जो वह जलाते हैं, उससे छनकर आती इल्म की रोशनी दिल दिमाग को रोशन कर देती है। फिल्म स्टोरी राइटर संजय मासूम ने कहा कि इम्तियाज गाजी अपनी धुन के पक्के इंसान हैं। एक बेचैनी, एक जुनून है उनके अंदर और यही बेचैनी, यही जुनून उनक गजलों में भी है। उनके पास एक अलग सा एहसास है। नोएडा के मशहूर गजलकार विज्ञान व्रत ने कहा कि इम्तियाज अहमद गाजी की गजलों से गुजरते हुए सर्वप्रथम जो बात जहन में आती है वह है गजलों में प्रयुक्त उनकी सुस्पष्ट भाषा और उनके कहन का सहज अंदाज। अपनी सम्वेदनाओं को कागज पर उकेरने के लिये गाजी भारी-भरकम शब्दों का अम्बार लगा कर अपनी विद्वत्ता का लोहा मनवाने की फिराक में कभी नजर नहीं आते हैं। अपनी बौद्धिकता को शायर अपने कहन पर कभी हावी नहीं होने देता है, कहता है-‘रात महकी है चांदनी महकीध् तेरे आने से  हर  कली महकी।’ इम्तियाज अहमद गाजी ने स्वयं को शायरी में बखूबी स्थापित किया है यह एक बहुत बड़ी बात है। इलाहाबाद में साहित्यिक गतिविधियों का आयोजन करते रहना साहित्य में उनकी सक्रिय उपस्थिति का प्रमाण है। इनके अलावा लक्ष्मी शंकर वाजपेयी, संजय सक्सेना, अतिया नूर, रचना सक्सेना, डॉ. शैलेष गुप्त ‘वीर’, नीना मोहन श्रीवास्तव, शैलेन्द्र जय, सुमन ढींगरा दुग्गल, मनमोहन सिंह तन्हा, अना इलाहाबादी, प्रभाशंकर शर्मा, अनिल मानव, रमोला रूथ लाल ‘आरजू’, डॉ. ममता सरूनाथ, शगुफ्ता रहमान, ऋतंधरा मिश्रा, दयाशंकर प्रसाद, डॉ. नरेश कुमार ‘सागर’, इसरार अहमद, विजय प्रताप सिंह, जमादार धीरज, शैलेंद्र कपिल, मासूम रजा राशदी, सागर होशियारपुरी, अर्चना जायसवाल, डाॅ. नीलिमा मिश्रा, सम्पदा मिश्रा और प्रिया श्रीवास्तव ने भी विचार व्यक्त किए। रविवार को अतिया नूर के गजल संग्रह ‘पत्थर के आंसू’ पर परिचर्चा होगी।


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