और दिलरूबा जान चुनाव हार गई

हिदायत लखनऊ के तमाम वोटर-ए-शौकीन को, दिल दीजिए दिलरूबा को, वोट शमसुद्दीन को।

चुनाव में हार से दिलरूबा जान बहुत निराश हुई। दिलरूबा जान के कोठे की रौनक गायब हो गई। दिलरूबा जान ने कहा कि चैक में आशिक कम मरीज ज्यादा हैं।

- मनोज मिश्रा 

खूबसूरत तवायफ ने जब लड़ा चुनाव, कोई मुकाबले को नहीं था तैयार, लेकिन हार का करना पड़ा सामना

अंग्रेजी हुकूमत में अदब और तहजीब का शहर कहा जाने वाला लखनऊ तवायफों और कोठों के लिए भी विख्यात था। तमाम राजा महाराजा, नवाब और निजाम अधिकतर लखनऊ के कोठों पर शाम की महफिलों में नजर आते थे। उन दिनों लखनऊ के चैक इलाके में एक तवायफ दिलरूबा जान हुआ करती थी, जो बहुत खूबसूरत थी। दिलरूबा जान के चाहने वाले लखनऊ से लेकर आसपास के शहरों तक थे। 1920 में लखनऊ में नगर पालिका का चुनाव होना था। दिलरूबा जान ने कोठे की डेहरी पार कर चुनावी मैदान में उतरने की घोषणा कर दी। इसके बाद क्या था। दिलरूबा जान के चाहने वालों ने चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया।

दिलरूबा जान जब चुनाव प्रचार के लिए निकलतीं तो उसके पीछे भारी भीड़ चलती थी। दिलरूबा जान की सभा में जबरदस्त भीड़ उमड़ने लगी। चुनाव के आखिर तक दिलरूबा जान के मुकाबले मैदान में कोई दूसरा प्रत्याशी नहीं था। ऐसा प्रतीत होता था कि तमाम ऐसे प्रत्याशी जो चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन दिलरूबा जान और उसकी लोकप्रियता देखकर पीछे हठ गए। उन दिनों लखनऊ में नामी हाकीम हुआ करते थे नाम था शमसुद्दीन। हकीम शमशुद्दीन भी लखनऊ के चैक के अकबरी गेट इलाके में रहते थे।

हकीम शमशुद्दीन के दोस्तों ने उन पर चुनाव लड़ने का दबाव बनाया तो वह तैयार हो गए, लेकिन कुछ दिनों में हकीम शमशुद्दीन को लगने लगा कि चुनाव जीत पाना मुश्किल है। क्योंकि हकीम शमशुद्दीन के पीछे गिने-चुने लोग थे, जबकि दिलरूबा जान के पीछे पूरा हुजूम था। वो दौर चुनावी नारों का था। हकीम शमशुद्दीन ने लखनऊ के तमाम इलाकों में दीवारों पर ऐसा नारा लिखवाया, जो देखते-देखते सबकी जुबान पर चढ़ गया। यह नारा था है हिदायत लखनऊ के तमाम वोटर-ए-शौकीन को, दिल दीजिए दिलरूबा को, वोट शमसुद्दीन को।

जब दिलरूबा जान को इस नारे का पता चला तो उसी अंदाज में जवाब देने का फैसला किया। दिलरूबा जान ने चैक से लेकर पुराने लखनऊ की तमाम दीवारों पर लिखवाया है हिदायत लखनऊ के तमाम वोटर-ए-शौकीन को, वोट देना दिलरूबा को, नब्ज शमसुद्दीन को। दिलरूबा जान और हकीम शमसुद्दीन की मीठी नोकझोंक के बीच चुनाव हुए और जब रिजल्ट आया तो सब कुछ पलट चुका था। दिलरूबा जान भले ही लोकप्रिय थीं और उनके पीछे भीड़ थी, लेकिन दिलरूबा जान चुनाव हार गई। हकीम शमसुद्दीन चुनाव जीत गए। चुनाव में हार से दिलरूबा जान बहुत निराश हुई। दिलरूबा जान के कोठे की रौनक गायब हो गई। दिलरूबा जान ने कहा कि चैक में आशिक कम मरीज ज्यादा हैं।



 

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