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मुझे दृष्टि कहते हैं

मेरा न रूप है, न रंग है, न जीवन है किन्तु संज्ञानहीन नहीं हूँ मुझमें चेतना नहीं लेकिन चेतनाशून्य भी नहीं हूँ। गति नहीं किन्तु गतिमान हूँ। ज्ञानी नहीं किन्तु ज्ञानवान हूँ। तेज रहित हूँ फिर भी निस्तेज नहीं। चंचल हूँ, पल-पल भागती रहती हूँ। वायु, विद्युत और ध्वनि सभी की गति से तेज दौड़ सकती हूँ, लेकिन मेरे पैर नहीं हैं। स्वयं में प्रकाश कहाँ किन्तु आँख और मन दोनों की ज्योति मैं ही तो हूँ। मेरा अस्तित्व नगण्य नहीं है। श्वास ओर मेरा जन्म-जन्मान्तर का रिश्ता है। हम जीवनमरण के साथी हैं। मुझे दृष्टि कहते हैं। मैं ही ज्ञान व मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करने वाली हूँ। लक्ष्य बिन्दु पर यदि केन्द्रित हो जाऊँ तो सफलता कदम चूमने लगती है। मेरी चिन्तन धारा क्षण में दिग्दगन्त घूम आती है। स्वप्न दृष्टि से आपको ब्रह्माण्ड के दर्शन करा देती है। पहेली की तरह दृष्टिकूट हूँ। मुझे देखने, विचारने के अलग-अलग परिवेश हैं, दृष्टिकोण हैं। एक कवि ने कहा है:- दृष्टि तो होती अनेक दृष्ट एक होता है।  दृष्टि का दृष्टि से कोण भिन्न होता है।। भुवि पर थी दीर्घ लघु रेखाएं खिंची तीन, मध्यम थी दीर्घतर पर दीर्घतम दिखी दीन।  कहते हैं ज

गज और ग्राह की कथा

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क्षीरसागर से कौन परिचित नहीं ? माना जाता है कि इसमें भगवान विष्णु शेषनाग की शय्या पर शयन करते हैं। यह पूरा सागर पानी से नहीं शुद्ध दूध से भरा रहता है। यह भी माना जाता है कि भगवान विष्णु अपनी पत्नी लक्ष्मी के साथ क्षीर सागर में एक बड़े कमल-पुष्प पर विश्राम करते हैं। इसी कारण क्षीरसागर की प्रसिद्धि है। यह कथा क्षीरसागर से ही आरम्भ होती है। क्षीरसागर में एक त्रिकूट नामक एक प्रसिद्ध एवं श्रेष्ठ पर्वत था। उसकी ऊँचाई आसमान छूती थी। उसकी लम्बाई-चैड़ाई भी चारों ओर काफी विस्तृत थी। उसके तीन शिखर थे। पहला सोने का। दूसरा चाँदी का तीसरा लोहे का। इनकी चमक से समुद्र, आकाश और दिशाएँ जगमगाती रहती थीं। इनके अलावा उसकी और कई छोटी चोटियाँ थीं जो रत्नों और कीमती धातुओं से बनी हुई थीं। वे भी अपनी प्रभा से चारों दिशाओं को प्रकाशित करती थीं। इस पर्वत पर विभिन्न प्रकार के वृक्ष एवं लता-बल्लरियाँ थीं जिनमें भाँति-भाँति के फूल लगते थे। निर्झरों के झर-झर झरते रहने से चारों ओर एक संगीत-सा फैलता रहता था। सब ओर से समुद्र की लहरें आकर इस पर्वत के निचले भाग से टकरातीं जिससे प्रतीत होता कि समुद्र इनके पाँव पखार रहा था।

पोषण मिशन की बैठक

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जिलाधिकारी रायबरेली, नेहा शर्मा ने पोषण मिशन बैठक की अध्यक्षता करते हुए अधिकारियों को निर्देश दिये कि सरकार के पोषण मिशन के कार्यक्रम गोद भराई, अन्नप्ररासन, सुपोषण स्वास्थ्य मेला, बचपन दिवस, ममता दिवस, लाडली दिवस आदि को समय-समय पर मनाकर पोषण मिशन के प्रति लोगों में पोषण के लिए जागरूक करें। बीएचएनडी शत-प्रतिशत हो। पोषण मिशन सुपोषित ग्राम पोषण समिति की बैठक की अध्यक्षता करते हुए जिलाधिकारी ने यह भी निर्देश दिये कि मिशन की गतिविधियों को आकड़ो से न आका जाये बल्कि जमीनी स्तर पर भी दिखाई देनी चाहिए। पोषण मिशन बच्चों के स्वास्थ्य से जुड़ा हुआ है। जिसमें किसी भी प्रकार की शिथिलता न बरती जाये। जिन अधिकारियों ने गांव को गोद लिये है वे गांव में नियमित भ्रमण करें तथा पोषण मिशन की गतिविधियों की कमियों को दूर करके तेजी लाये। जो बच्चें कुपोषित चिन्हित हैं उन्हें पोषित बनाने में सहयोग करें। उन्होंने कहा कि अधिकारी विस्तार से समन्वयक कार्य योजना बनाकर उसको मूर्त रूप दें। किशोरी बालिकाओं की जांच कराने तथा आगनबाड़ी केन्द्रों की साफ-सफाई पर विशेष ध्यान दिया जाये एवं समस्त विकास खण्डों में समन्वयक बैठक करें ज

सार्वजनिक गणेशोत्सव का आयोजन

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हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी श्री बाल मित्र मंडल,जकेरिया रोड, मुंबई द्वारा सार्वजनिक गणेशोत्सव का आयोजन राजे शहाजी गार्डन,शिवाजी चैक,जकेरिया रोड,मालाड (वेस्ट), मुम्बई में किया गया है,जोकि 12 सितंबर 2019 तक रहेगा, यह उनका 43 वां वर्ष है। इस वर्ष मंडल द्वारा शिवजी महाराज के वेशभूषा में गणपति बप्पा की मूर्ति को बनाया गया है। मंडल के अध्यक्ष हिरेन पवार ने सभी लोगों से आग्रह किया है कि वे यहाँ आकर गणेशजी का आशीर्वाद ले और कार्यक्रम को शोभा बढ़ाएँ। मंडल के उपाध्यक्ष परेश गोरखा, सचिव अनिरुद्ध करांडे, खजिनदार विनोद चावड़ा तथा सदस्य कमलेश भील, नंदू गोरखा, धीरेन गाला, बबन सेलार,पंकज साकट,रवि भील,मितेश शाहाल,नितिन सेलार,सिद्धू दीपेश सेलार, दीपेश भील,जय भालेकर, हार्दिक राहुल मकवाना,राजेश बारिया, राजेश रावूत, तुषार  विकास, संजय बारिया,, हर्ष टेरेनस नितेश संजय मकवाना,अरमान दक्ष गाला, संदीप आर्यन, अजय भील और सभी सभासद ने सभी गणेश भक्तों से निवेदन किया है कि वे यहाँ आकर गणेशजी का दर्शन करे और कार्यक्रम को सफल बनायें।

विश्वकर्मा का सम्बन्ध किसी जाति विशेष न होकर शिल्प के सम्पूर्ण परिवेश से है

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अनेकों वर्षो से मेरे मन में एक प्रश्न कौंध रहा है कि विश्वकर्मा कौन, शाब्दिक अर्थो में विश्व के सभी कर्मो को व कार्यो को करने वाला विश्वकर्मा होता है। या यह भी कह सकते है कि जितने भी कलाकृतियों, निमाणों, खोजो, अविष्कारों, उद्योगों आदि सभी विभिन्न रूपों में जुड़े वर्ग के व्यक्ति विश्वकर्मा है। इसलिए हम कह सकते है कि विश्वकर्मा का सम्बन्ध किसी जाति विशेष न होकर शिल्प के सम्पूर्ण परिवेश से है। वैदिक युग से आज तक विश्वकर्मा की महत्ता समाज के समग्र क्षेत्रों में इतनी बढ़ी, कि मानव की समस्त आवश्यकताओं व व्यवस्थाओं में अनिवार्यता स्थापित हो गयी है। वेदों में भी विश्वकर्मा शब्द का वर्णन सर्वत्र मिलता है। इस दृष्टि से भी विश्वकर्मा शब्द अत्यन्त ही प्राचीन है। विश्वकर्मा व्यापक स्वरूप है।  ये पाश्च शिव पांचालः मनु, मय, त्वष्टा, शिल्पी, दैवज्ञ है, जो क्रमशः लौहकार, काष्ठकार, ताम्रकार, पाषाणकार तथा स्वर्णकार कहे गये है। भगवान के पंचमुखों को पांचाल कहा गया, इन पांच मुखों को क्रमशः पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश माना गया। जो मनुष्य की रचना के आवश्यक तत्व हैं। विश्वकर्मा के पांच मुखों को पंचब्रह्म कहा ग

यक्ष के प्रश्न युधिष्ठिर के जवाब जानते हैं?

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यह तब की बात है जब पाण्डव अपने तेरह वर्ष के अज्ञातवास पर थे, और इस दौरान वे घने जंगलों में वास कर रहे थे। सभी भाई पेड़ की छाया में बैठकर विश्राम कर रहे थे कि अचानक हैरान और परेशान एक मुनि उनके पास पहुंचे। उन्होंने बताया कि एक हिरण उनके हाथों से यज्ञ की लकड़ी लेकर भाग गया, उन्हें वह वापस चाहिए। पांचों भाइयों ने मुनि की सहायता करने हेतु उस हिरण की खोज आरंभ कर दी। खोज करते हुए वे सभी काफी आगे निकल गए, गर्मी का समय था तो वे काफी थक भी गए। अब उन्हें इस तपती गर्मी में अपनी प्यास बुझाने के लिए पानी चाहिए था, लेकिन दूर-दूर तक उन्हें कोई जलाशय ना दिखा। अंततः पानी खोजने का काम सबसे छोटे भाई सहदेव को सौंपा गया। कुछ दूर चलने पर सहदेव को एक जलाशय दिखाई दिया। वह वहां पहुंचा और उसने देखा कि जलाशय में बेहद ठंडा पानी है, पानी साथ ले जाने की बजाय सबसे पहले अपनी प्यास बुझाने के लिए सहदेव पानी पीने के लिए जैसे ही आगे बढ़ा तो एक आवाज सुनाई दी। यह आवाज अदृश्य यक्ष की थी जो चाहता था कि सहदेव पहले उसके प्रश्नों का उत्तर दे और फिर पानी पीये। लेकिन सहदेव ने यक्ष की एक ना सुनी और जैसे ही पानी अपने होठों से लगाया वह

हिन्दी के विकास और सम्मान के लिए निरन्तर प्रयासरत रहना होगा

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हिन्दी है हम वतन है, हिन्दुस्तान हमारा, हम बुलबुले हैं इसकी हिन्दुस्तान हमारा... सारे जहाश् से अच्छा हिन्दुस्तान हमारा...  भारत में सितम्बर के महीने का विशेष महत्व है 5 सितम्बर शिक्षक दिवस और 14 सितम्बर को हिन्दी दिवस के रूप में हम मनाते है, परन्तु हम क्या आज शिक्षक और हिन्दी को वह सम्मान दे रहें हैं, जो दो-तीन दशक पहले दिया जाता था। देश स्वाधीन हुआ और हिन्दी को राजभाषा की मान्यता मिली उसके बाद से ही हिन्दी को हम राजभाषा के रूप में मानते चले आ रहे हैं। हिन्दी ही हिन्दुस्तान की पहचान है। हिन्दी के अलावा अन्य भाषाओं की बात करते हैं, इसका यह मायने नहीं रखना चाहिए कि हम हिन्दी को ही त्याग दें। हमें अन्य भाषाओं का तभी प्रयोग करना चाहिए, जब हिन्दी भाषा में उसका विकल्प न हो। हिन्दी को प्रोत्साहन देने के लिए हम अपने परिवार और इष्ट मित्रों से वार्तालाप में अधिक से अधिक हिन्दी भाषा का प्रयोग करें, इससे से भी हिन्दी को बढ़ावा मिलेगा। हिन्दी शब्दों के होने पर भी आज अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग किया जाना अनुचित ही का जायेगा। हम यह भी कह सकते हैं कि भारत से अंग्रेज चले गये लेकिन अंग्रेजी छोड़ गये, अनुचित